लेखक राजेंद्र यादव और ‘हंस’ की एक सिक्के के दो पहलू जैसे हैं। जीवन के 57वें बसंत पार करने के बाद उन्होंने हंस का प्रकाशन शुरू किया था। इस उम्र में प्राय: साहित्यकार सुस्त पड़ जाते हैं, परंतु राजेंद्र यादव ने जो समय जो राह इस उम्र में पकड़ी वह उनके जीवन का सबसे उर्वर समय बन गया और उन्होंने हिन्दी साहित्य और विमर्श को बिल्कुल अलग ही दिशा दे दी तथा हिन्दी में दलित साहित्य को बढ़ाने का काम किया।
ये बातें डॉ.मधेपुरी मार्ग पर अवस्थित भारतीय जन लेखक संघ के केंद्रीय कार्यालय के महासचिव महेंद्र नारायण पंकज ने 28 अगस्त को राजेंद्र यादव के जन्मदिन पर ऑनलाइन जयंती मनाने के क्रम में कही।
इस अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करते हुए समाजसेवी-साहित्यकार का डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने श्रद्धा निवेदित करते हुए लेखक राजेंद्र यादव की हंस पत्रिका के बाबत यही कहा कि हंस के पुनर्प्रकाशन के बाद उन्होंने हंस को ऐसे मंच का रूप दिया जिस पर कई नए महिला व पुरुष कहानीकार भी सामने आए, जिन्हें दुनिया जानती तक नहीं थी। उनका दुस्साहस कहिए कि तमाम विवादों के बावजूद भी उन्होंने नए लेखक या लेखिकाओं को मौका देते चले गए।
मौके पर बीजेएलएस मधेपुरा जिला सचिव डॉ.गजेंद्र नारायण यादव ने समापन करते हुए यही कहा कि उन दिनों पुरातन मानसिकता के लोगों ने हंस की तीखी आलोचना की और कुंठित वक्तव्य भी दिए थे, परंतु राजेंद्र यादव कभी झुके नहीं बल्कि उस उम्र में भी वे अपनी चाल चलते रहे। अंत में साहित्यकार द्विजराज ने धन्यवाद ज्ञापन किया।