कबीर की नगरी काशी में 26 अगस्त 1918 को प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, विचारक व समाज सुधारक रासबिहारी लाल मंडल ने दुनिया को अलविदा कह दिया। काशी में ही एक दिन कबल यानि 25 अगस्त को सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में बालक बीपी मंडल ने माता सीतावती मंडल की गोद में जन्म लिया था।
बता दें कि आज 26 अगस्त को रासबिहारी उच्च विद्यालय के परिसर में रासबिहारी लाल मंडल की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी लिखित पुस्तक “रासबिहारी लाल मंडल : पराधीन भारत में स्वाधीन सोच” को संदर्भित करते हुए कहा कि रासबिहारी बाबू हिन्दी, मैथिली, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, बंगला, फ्रेंच एवं संस्कृत जैसे कई भाषाओं के जानकार ही नहीं, विद्वान और विचारक भी थे। आजादी के आंदोलनकारियों को उन्होंने नेतृत्व प्रदान करते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।
डॉ.मधेपुरी ने संक्षेप में कहा कि “तिरहुत का राजा” और “मिथिला का शेर” कहलाने वाले रासबिहारी लाल मंडल बंग-भंग के समय “भारत माता का संदेश” पुस्तक लिखकर आंदोलनकारियों यानि विशेष रूप से आजादी के दीवानों की हौसला अफजाई करने में लगे रहे। तब के संपूर्ण भारत की धरती को उर्वर बनाने वाले रास बिहारी लाल मंडल के कार्यकाल को भले ही 102 वर्ष गुजर गए, किन्तु आज भी उनके दहेज व मृत्यु भोज आदि विरोधी सारे विचार प्रासंगिक हैंं।
यह भी कि कोविड-19 के तहत सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सादगी के साथ समाजसेवी चिकित्सक व रास बिहारी बाबू के पौत्र डॉ.अरुण कुमार मंडल ने उनकी प्रतिमा पर प्रथम माल्यार्पण किया। ‘रासबिहारी लाल मंडल : पराधीन भारत में स्वाधीन सोच’ के लेखक डॉ. भूपेन्द्र मधेपुरी ने स्कूल में नामांकन के लिए आए छात्र-छात्राओं एवं स्कूल के प्राचार्य अनिल कुमार सिंह चौहान, पूर्व प्राचार्या रंजना कुमारी सहित शिक्षकगण बीरबल प्रसाद यादव, शिवनारायण, रामनरेश प्रसाद यादव, मुर्तुजा अली, संगीत शिक्षक गांधी कुमार मिस्त्री, सुभद्रा रानी, अमित कुमार, इंद्रजीत भगत, रणविजय कुमार, ललन कुमार, सरोज कुमार, अजय कुमार सिंह एवं नवीन कुमार आदि को उपर्युक्त संदेश देकर कार्यक्रम का समापन किया। शुरू से अंत तक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया। सभी शिक्षकगण एवं नामांकन हेतु आए सभी छात्र-छात्राएं उनके बारे में जाननेेे के बाद बारी-बारी से उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते देखे गए।