रविवार 9 अगस्त की रात में राहत इंदौरी को खांसी, बुखार और घबराहट होने पर उन्हें कोविड हॉस्पिटल अरविंदो में भर्ती किया गया, जहां देर रात कोरोना की पुष्टि हुई और यह भी कि शुगर बढ़ी हुई थी। मंगलवार सुबह तक सेहत में सुधार होने लगा, परंतु अचानक उन्हें दोपहर में हार्ट अटैक आया। सीपीआर देने के बावजूद भी 2 घंटे बाद उन्हें दूसरा अटैक आया और राहत इंदौरी को बचाया नहीं जा सका। 70 साल की उम्र में मंगलवार 11 अगस्त की शाम लगभग 5:00 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। लगे हाथ उन्हें 10:30 बजे रात को इंदौर में ही सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया।
बता दें कि साइन बोर्ड पेंटर से करियर की शुरुआत करने वाले राहत इंदौरी उर्दू के प्रोफेसर भी रहे। उनकी शायरी के बढ़ते प्रभाव ने उन्हें बॉलीवुड तक खींच लाया। उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मी गाने लिखे। फिल्म इश्क, तमन्ना, जुर्म, मुन्ना भाई एमबीबीएस, खुद्दार जैसी फिल्मों के लिए अनेक सुपरहिट गाने लिखे जिन्हें लोग हमेशा गुनगुनाते चलते हैं। उन्हें उनकी ये पंक्तियां हमेशा जिंदा रखेंगी-
मैं जब मर जाऊं, मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना
चलते-चलते यह भी बता दें कि ऐसे मशहूर शायर राहत इंदौरी के अचानक दुनिया को अलविदा कहने के बाद कवि, साहित्यकार व शायरों का शोकाकुल होना स्वाभाविक है। कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने इस भयावह कोरोना काल में अपने सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी से अनुरोध किया कि अपने स्तर से ऐसे मशहूर शायर को श्रद्धांजलि दी जाए। सम्मेलन के सचिव डॉ.मधेपुरी ने अपनी चंद पंक्तियां श्रद्धांजलि स्वरूप ऐसे मशहूर शायर राहत इंदौरी को समर्पित की-
कहाँ जन्मे सुनो हम नहीं जानते,
कब मरेंगे कहाँ हम नहीं जानते
काम करना है रुकना नहीं है यहाँ,
कब छुटेगा जहाँ हम नहीं जानते