कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर की 81वीं पुण्यतिथि मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने की और संचालन सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी ने किया।
विषय प्रवेश करते हुए अध्यक्ष श्री शलभ ने कहा कि कवींद्र रवींद्र बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा थे। वे एकमात्र कवि थे जिनकी दो रचनाएं दो देशों भारत के लिए “जन गण मन….” और बांग्लादेश के लिए “आमार सोनार बांग्ला….” प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी है। साहित्य की सभी विधाओं में उन्होंने रचना की।
अपने लाइव प्रसारण में बोलते हुए सम्मेलन के संरक्षक, मंडल विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति व पूर्व सांसद डॉ.आरके यादव रवि ने कहा कि टैगोर और गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां महात्मा गांधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। डॉ.रवि ने यह भी कहा कि कवींद्र रवींद्र मानवीय चेतना के सशक्त स्वर थे, हैं और रहेंगे भी।
संस्था के सचिव व समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने कहा कि टैगोर कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार ही नहीं बल्कि उच्च कोटि के नाटककार, निबंधकार और चित्रकार भी थे। उन्हें बाल्यकाल से ही प्रकृति से अगाध प्रेम था। असाधारण सृजनशील रवींद्र नाथ को गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ.मधेपुरी ने बच्चों के साथ अपने निवास (वृंदावन) पर टैगोर के तैल चित्र पर श्रद्धा पूर्वक पुष्पांजलि करते हुए यही कहा कि रवींद्र संगीत युग-युग तक बांग्ला साहित्य में सदैव ऊर्जा का संचार करता रहेगा।
प्रो.मणि भूषण वर्मा ने कहा कि उनके गीतों में आध्यात्मवाद के विभिन्न रूपों को बखूबी उकेरा गया है जिसे पढ़ने से उपनिषद की भावनाएं परिलक्षित होती है। इस लाइव प्रसारण में डॉ.अरविंद श्रीवास्तव ने सम्मिलित हुए सभी साहित्यकारों को धन्यवाद ज्ञापित किया।