जब हम लोग विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को गहराई से नहीं जानते थे तब हम वृक्षों की पूजा किया करते थे। उन दिनों हमारे पूर्वजों द्वारा तुलसी के छोटे-छोटे पेड़-पौधों से लेकर पीपल व बरगद के विशाल वृक्षों की पूजा संपूर्ण समर्पण के साथ की जाती थी। तब भले ही हम यह नहीं जानते थे कि यह तुलसी या पीपल हमें अहर्निश प्राणवायु (ऑक्सीजन) देते हैं…। फिर भी तुलसी हर घर व आंगन की शोभा बढ़ाती थी…. और पीपल के पत्तों या टहनियों को तोड़ने या काटने की बात सोचते ही हमारे हाथ कांपने लगते थे।
बता दें कि प्राचीन काल में हमारे पूर्वज एक पेड़ को सौ पुत्रों के समान मानते थे। जब हमने उन्हें काट-काट कर शहर बसाया और उद्योग खड़ा करने लगे तो दिल्ली जैसे शहरों में सांस लेना मुश्किल होने लगा। लोगों की औसत उम्र 3 वर्ष कम हो गई। वाहनों के परिचालन को लेकर ऑड-इवन फॉर्मूला लगाने को विवश होना पड़ा। तब घर-घर यह स्लोगन गूंजने लगा-
“पर्यावरण हम सबकी जान,
आओ करें इसका सम्मान”
यह भी जानिए कि दुनिया को भले ही कोरोना लाॅकडाउन के चलते आर्थिक भूचाल देखना पड़ा है परंतु हमें साफ-सुथरा आसमान और वायुमंडल में बढ़ रहे ऑक्सीजन का स्तर तो मिला है….। इतने दिनों में दुनिया रिचार्ज तो हो गई है। तभी तो दिल्ली के बच्चे कहने लगे हैं कि दिल्ली में हमने इतना साफ और सुंदर आसमान कभी देखा ही नहीं था।
चलते-चलते बता दें कि आज इस विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने विचार व्यक्त करते हुए कहा- सरकार प्रतिवर्ष एक महीने का लाॅक डाउन सम्यक विचारोपरान्त तब लगाएं जब बच्चों की परीक्षाएं ना हो, लू चलती हो… रमजान आदि का महीना ना हो तो गंगा-यमुना जैसी नदियां एवं वायुमंडल… सब कुछ स्वतः स्वच्छ और साफ होता रहेगा।