मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के टेंगराहा-सिकयाहा में जहाँ कभी गरजती थीं बंदूकें वहीं सिकयाहा के आदित्य आनंद के यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन में कम्पीट करने के बाद से गांव में सजीव बदलाव का श्रीगणेश हो गया है। जहां की गली-सड़क पर गरजती थी बंदूकें वहीं अब कूची से निकले रंग से मधुबनी पेंटिंग बनने लगी है और जीवन सँवरने लगा है। गांव की माली हालत में सुधार होने लगा है और आर्थिक समृद्धि आने लगी है।
यह भी जानिए कि यही वह क्षेत्र है जहां हजारों एकड़ बंजर भूमि है। जहां कभी सैकड़ों एकड़ जमीन जंगल जैसे दृष्टिगोचर होते थे। लोग बंदूके थामे रहते थे। कई बार हथियार समर्पण कराए गए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण और जननायक कर्पूरी ठाकुर के प्रयास से हथियारबंद लोगों ने आत्मसमर्पण यह सुनकर किया कि सरकार आपके रोजगार का बंदोबस्त करेगी, परंतु ऐसा नहीं हो पाया।
बता दें कि 70 के दशक में उस इलाके में भ्रमण करने के अनुभवों को समाजसेवी प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने मधेपुरा के एक सांसद के समक्ष रखते हुए यही कहा था कि यदि केंद्रीय सरकारी सरकार की ‘बंजर भूमि सुधार आयोग’ की टीम को लाकर इस बंजर भूमि को सुधारा जाए, जिसके बीचों-बीच एक नदी बहती है, तो यह इलाका उपजाऊ बन जाएगा और लोग बंदूक की जगह हल चलाने लगेंगे… लेकिन वैसा नहीं हो पाया।
मालूम हो कि टेंगराहा-सिकयाहा की गूंजती बंदूकों को शांत करने के लिए 2006 में सूबे बिहार के सीएम नीतीश कुमार के पहल पर 60 लोगों को आत्मसमर्पण कराकर मुख्यधारा में लाया गया। 26 भूमिहीनों को जमीन भी दी गई तथा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी… फिर भी माली हालात नहीं सुधर पाई।
डीएम बनने की तमन्ना लिए गांव के स्कूल में पढ़ने वाला उसी धरती का बेटा आदित्य आनंद जब यूपीएससी कम्पीट कर दिखाया तो बच्चे पढ़ने लगे और अचानक गांव में बदलाव की हवा भी बहने लगी। आज गांव की महिलाएं मधुबनी पेंटिंग एवं डगरा निर्माण करने लगी है। वर्तमान में सौ से अधिक महिलाएं एक-एक पेंटिंग 1200 से 1500 तक में बेच लेती है। हाल में जिला प्रशासन की अनुशंसा पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया गया है।