निर्भया कांड के चारों गुनहगारों को जोड़कर आजाद भारत में फांसी के फंदे पर लटकने वालों की कुल संख्या 724 हो गई। देश में पहली फांसी महात्मा गांधी के हत्यारों गोडसे एवं आप्टे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में दी गई थी तथा अंतिम फांसी निर्भया के चारों दुष्कर्मियों को 20 मार्च 2020 को दिल्ली के तिहाड़ जेल में दी गई।
बता दें कि निर्भया के माता-पिता के अटूट संकल्प व संयम के चलते और कोर्ट के कानूनी दांव-पेंच के बीच लगे व जगे रहने के कारण ही… लगभग 7 वर्ष 3 महीने से अधिक समय तक चली लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार छह दुष्कर्मियों में से चार को ही फांसी पर लटकाया गया। एक तो जेल में ही खुदकुशी कर ली थी और दूसरे को नाबालिग का लाभ मिल गया।
यह भी बता दें कि जब 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सर्द रात में छह दुष्कर्मियों ने निर्भया को अपना शिकार बनाया था तो ऐसा लगा कि सारा देश ठहर सा गया। निर्भया द्वारा अंतिम सांस लेने के बाद उसकी माँ “आशा” भारत की सारी माँओं की आशा बनकर कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाती रही और न्याय पाने के लिए बिलबिलाती रही। इस दरमियान यदा-कदा थक जाने के चलते हलचल काफी कम हो जाया करती तथा घर में अकेले निर्भया की तस्वीर के सामने बैठना उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था। मार्च 20 (शुक्रवार) को सवेरे 5:30 बजे फांसी की जानकारी के साथ निर्भया के माता-पिता को सुकून मिला और भारत की समस्त महिलाओं को खुशी मिली।
यह भी बता दें कि कई बार डेथ वारंट निकलने और फांसी की तिथि तय होने के बावजूद कोई ना कोई कानूनी पेच फंस ही जाता। महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतिम तिथि 17 जनवरी को दया याचिका ठुकराई, फिर भी फांसी पर लटकने में दोषियों के वकील ने 70 दिन से अधिक समय जाया कर दिया।
चलते-चलते यह भी जानिए कि डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के करीबी रहे समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी से जब निर्भया के मामले वाले दुष्कर्मियों को फांसी दिए जाने के बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे अपराध की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए समाजसेवियों, शिक्षाविदों, कानूनी विशेषज्ञों एवं भारतीय सांसदों को गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है। केवल फांसी से ऐसे अपराध की पुनरावृति रुकने वाली नहीं है। परन्तु, हमारी कोशिश हो कि इस तरह के क्रूरतम अपराध फिर नहीं हो…. क्योंकि कोशिश का दुनिया में कोई विकल्प नहीं है…।