मधेपुरा कॉलेज में आयोजित कुसहा त्रासदी की सातवीं वर्षगांठ पर आयोजित “जनसंसद” में गावों से आये तब से परेशान नर-नारियों के घावों पर मरहम-पट्टी लगाने के लिए अतिसंवेदनशील इनक्लाबी महेन्द्र यादव पटना से मधेपुरा पहुँच गये | मंच संचालन के दरमियान महेन्द्र यादव ने राम लगन निराला, रामजी दास, विजय प्रताप, डॉ.मधेपुरी, विजय वर्मा, किशोर व मिराज सहित डॉ.संजय, डॉ.शंकर, अशोक सिन्हा, हर्षवर्धन सिंह राठोड़, भीम सिंह, सुभाष चन्द्र, बंटी-विकास आदि को भी कुसहा त्रासदी सहित तूफान व भूकम्प पीड़ित बेजुबानों के जुवान बनने का अवसर- प्रो.सचिन्द्र की अद्यक्षता- में दिया |
इस जन संसद में दर्जनों नर-नारियों के हाथों में इक्कीस सौ या इक्कावन सौ का सरकारी चेक दिखा जिन्हें वे महीनों-महीनों से ले-लेकर बैंक का चक्कर लगाते रहे हैं, लेकिन अबतक भुगतान नहीं हो पाया है | क्या कर रहे हैं भारतीय संसद के सदस्यगण ?
जब डॉ.मधेपुरी को इस मुद्दे पर कुछ कहने के लिए आमंत्रित किया गया तो उन्होंने कहा कि डपोरशंखी वादों से घिरी है सरकार | कुसहा त्रासदी के बाद यही वादे किये गये कि नया बिहार बनायेंगे लेकिन वादे कागज में ही दाबे चले गये | पचास प्रतिशत भी पुनर्वास नहीं हो पाया | उन्होंने यह भी कहा कि जिस भारतीय संसद में दोनों पक्ष लड़ते रहेंगे, पूरे सत्र में बहस कभी नहीं होगी, हमेशा अशोभनीय दृश्यों के दर्शन होते रहेंगे यानी जूते-चप्पल कुर्सी फेको-उ-अल, माइक तोड़ो-उ-अल एवं सिर फोड़ो-उ-अल के साथ-साथ महिला विधायिका की मंत्री जी द्वारा सदन में साड़ी खींचना भी जब लाखों लोगों के जनप्रतिनिधि के लिए शर्मनाक बातों के घेरे में नहीं आएगी तो इस देश का कैसा होगा भविष्य ?
डॉ. मधेपुरी ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि यह जनसंसद आज यह प्रस्ताव पारित करे कि प्रत्येक सदन के सदस्यों की सीट पर कुर्सी के चारो तरफ सात फीट ऊँचा लोहे का पिंजरा बने जिसमें इलेक्ट्रोनिक लॉक हो, जिसे रिमोट द्वारा स्पीकर महोदय जरुरत के अनुसार खोलेंगे या बन्द करेंगे | यदि यह व्यवस्था शीघ्र नहीं होगी तो यह समझा जायेगा कि लोकतंत्र खतरे के घेरे में आ गया है |
डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि परम्परायें इतनी तेजी से टूटती जा रही हैं कि पूर्व में लोकसभा एवं विधान सभाओं के एक साथ होने वाला चुनाव अब अलग-अलग होकर करोड़ों-अरबों रुपयों का अतिरिक्त भार देश की गरीब जनता को ढोने के लिए मजबूर कर देता है |
अन्त में अद्यक्षता कर रहे प्रो.सचिन्द्र महतो ने कहा कि राजसत्ता एवं समाजसत्ता के समन्वित प्रयास से देश आगे बढ़ता है | जब राजसत्ता अव्यवहारिक हो जाता है तो समाजसत्ता को आगे आने के लिए मजबूर होना पड़ता है |