बिहार पंजवारा की बेटी अर्चना को 2006 के एक हादसे ने भले ही 14 वर्ष की उम्र में ही दिव्यांग बना दिया, परंतु आज की तारीख में फूलवती व महेश मंडल की इकलौती बेटी ने अपने हौसलों के बल पर सफलता के आसमान को छूती चली जा रही है।
बता दें कि 25 अक्टूबर 1992 को जन्मी अर्चना अपने तीन भाइयों के साथ खेलती-कूदती जीवन के 14 वसंतों को सकुशल पार कर ली। परंतु, 18 अगस्त 2006 की एक मनहूस रात को अर्चना छत से उतरने के दौरान सीधे जमीन पर जा गिरी। इस घटना में अर्चना के कमर के नीचे का भाग बेजान हो गया। फिर भी अर्चना की जिद और जुनून के आगे जीवन की उदासी की एक न चली। संघर्ष और पक्के इरादों के चलते अर्चना ने पंजवारा से लेकर पटना तक को व्हील चेयर पर बैठे-बैठे गौरव से भर दिया।
यह भी जानिए कि अर्चना के इलाज का सारा प्रयास बेकार रहा। भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए एक चिकित्सक ने उपचार के दौरान अर्चना के हौसलों को पंख लगा दिया। कुछ व्यायाम सिखाते-सिखाते प्रैक्टिस के दौरान अर्चना को राज्य स्तरीय पारा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला… वहां जैवलिन थ्रो, डिस्क थ्रो एवं शॉर्टपुट में उसने बेहतरीन प्रदर्शन किया।
बता दें पहली बार 2009 में अर्चना का नेशनल जूनियर पारा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में चयन हो गया और वह फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखी। सर्वप्रथम अर्चना ने डिस्क थ्रो में गोल्ड मेडल जीता। एक वर्ष बाद 2010 में हरियाणा में उसने शॉर्टपुट एवं डिस्क थ्रो में जहां सिल्वर मेडल प्राप्त किया वहीं जैवलिन थ्रो में तीसरा स्थान प्राप्त कर ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया।
चलते-चलते बता दें कि देश एवं विदेश में अर्चना के बेहतर प्रदर्शन के चलते अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी के दिन भागलपुर समाहरणालय में लिपिक पद पर योगदान देने हेतु नीतीश सरकार ने नियुक्ति पत्र भी दिया। जनवरी 27 से अर्चना वहां अपनी सेवा दे रही है…।