जरा सोचो भारत की बेटियों ! महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके प्रति पूर्वाग्रस्त होकर उन्हें कमतर आंकना है। अगर आपमें जुनून हो तो कोई भी आपको अपने सपने पूरे करने से नहीं रोक सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण है- आईसीसी मैच के रेफरी-पैनल में शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर जीएस लक्ष्मी।
बता दें कि आंध्र प्रदेश में जन्मी जीएस लक्ष्मी (गांडिकोटा सर्व लक्ष्मी) लाइमलाइट में तब आई जब वह आईसीसी की पुरुष वनडे मैच की पहली महिला रैफरी बनी। यूँ तो आंध्र महिला, बिहार महिला….. रेल महिला समेत कई टूर्नामेंट खेली है। वह तेज गेंदबाज और बल्लेबाज के रूप में खेलती रही है। वर्ष 1999 में भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे के लिए चयनित भी हुई थी लक्ष्मी, परंतु देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का लक्ष्मी का ख्वाब पूरा नहीं हो सका था।
यह भी जानिए कि 2004 में अपनी 12 वर्ष की बेटी प्रणाती श्रावणी की परवरिश करते हुए और अपनी फिटनेस के साथ खेलते हुए क्रिकेट से रिटायर होने के बाद लक्ष्मी ने क्रिकेट में कोचिंग देना शुरू कर दिया। इस दौरान 4 साल बाद यानी 2008 में बीसीसीआई ने घरेलू महिला क्रिकेट में महिला रेफरी को मैच में उतारना शुरू किया तो लक्ष्मी बतौर रेफरी शामिल होने लगी। 12 वर्षों से रैफरी की भूमिका निभा रही 51 वर्षीय लक्ष्मी के लिए आगे की राह तब खुली जब बीसीसीआई ने महिलाओं को क्रिकेट अधिकारी के रूप में जोड़ने के लिए संपूर्ण भारत से मात्र 5 महिलाओं को चुना जिसमें जीएस लक्ष्मी पहली भारतीय महिला थी। कुछ समय पूर्व आईसीसी मैच रेफरी के अंतरराष्ट्रीय पैनल में शामिल होने पर लक्ष्मी चर्चा में आई। वही लक्ष्मी शारजाह के अबूधाबी के जायद स्टेडियम में हांगकांग और आयरलैंड के बीच होने वाले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में रेफरी की भूमिका निभाई। जिसे देश के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाने का अफसोस अब तक सलाता रहा था। लक्ष्मी कहती है कि क्रिकेट की बदौलत ही उन्हें कॉलेज में एडमिशन मिल पाया था। वह भारत की बेटियों को यही संदेश देना चाहती है- “दुनिया में कोशिश का कोई विकल्प नहीं। दो बच्चे की मां मैरी कॉम आज एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीत लेती है और ओलंपिक में जीतने का हौसला रखती है। जुनून हो तो महिलाएं कुछ भी कर सकती है चांद पर घर बसा सकती है। पर्वतारोही संतोष यादव की तरह एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा सकती है।”