काश ! मेरे बचपन के वो दिन लौट आते !!

समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी का जन्म ब्रिटिश भारत में हुआ था। तबसे उनके पैतृक घर के सटे दोनों तरफ मुस्लिम भाइयों का घर था और अभी भी है। भारत ब्रिटिश हुकूमत से 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। जिस दिन आजादी मिली थी उस दिन रमजान का महीना था- 27वाँ रोजा और आखिरी जुम्मा यानी अलविदा जुम्मा का दिन। चारो ओर खुशी का माहौल था। परंपरा से चले आ रहे हिंदू -मुस्लिम सद्भाव की पुष्टि इस बात से हो रही थी कि ईद के दिन ईदगाह में हिंदू समुदाय के लोग मुस्लिम भाइयों को मिठाइयां खिलाते हुए मुसलमानों में यह विश्वास जगाने में लगे थे कि यह देश बंटवारे से पहले जितना उनका था उतना ही आगे भी बना रहेगा। उन्हें इसको छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है।

डॉ.मधेपुरी बताते हैं कि बहुरी मियां, मो.ईसाक और मो.मकसूद आदि को वे उसी तरह पैर छूकर प्रणाम करते जिस तरह अपने पिताजी के भाइयों को। उनके साथ खेलने वाले मुस्लिम बच्चों को ताजिया में जिस तरह जंगी बनने वाला ड्रेस पहनाया जाता था वैसे ही ड्रेस उनकी मां द्वारा उन्हें भी पहनाया जाता था। उन दिनों मोहर्रम का ताजिया हिंदुओं के घर पर आता था और उन्हें ससम्मान चावल/रुपये दिए जाते थे। हिंदू भी रोजा रखते तो मुसलमान भाई भी दुर्गा पूजा में सम्मिलित होते थे। परंपरा से चले आ रहे हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को आज कौन सा रोग पकड़ लिया है कि अब होली, ईद, रामनवमी, मोहर्रम आदि पर्वों पर प्रशासन को अपनी पूरी मुस्तैदी के साथ सतर्कता पर बरतनी पड़ती है। दोनों समुदायों के लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को घर में बंद कर लेते हैं। काश ! मेरे बचपन के वो दिन लौट आते !!

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