प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री उषा किरण खान के निधन पर शोक

साहित्य के क्षितिज पर बिहार की बेटी पद्मश्री उषा किरण खान के निधन से मानवीय संवेदनाओं के रचनाकारों की कमी होती जा रही है। लोकजीवन के संवेदनशील चितेरा पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु की गहरी छाप उषा किरण की रचनाओं पर पड़ी है। 11 फरवरी रविवार को दोपहर 2:00 के आसपास पटना मेदांता अस्पताल में हृदयाघात के कारण 78 वर्षीय उषा किरण ने अंतिम सांस ली। निधन के समय उनके एक मात्र पुत्र तुहिन शंकर मौजूद थे। उनके पति रामचंद्र खान (आईपीएस) 2 वर्ष पूर्व ही दिवंगत हो गए थे।

कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन संस्थान के अध्यक्ष व पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल की अध्यक्षता में स्थानीय साहित्यकारों ने शोक संवेदनाएं व्यक्त की। अपने शोकोदगार में  डॉ.मंडल ने कहा कि प्रख्यात लेखिका उषा किरण के जाने से हिंदी एवं मैथिली साहित्य को भारी क्षति हुई है। सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पद्मश्री उषा किरण खान बिहार की संवेदनशील रचनात्मक अस्मिता एवं महिला लेखन की बुलंद पहचान थी। उनकी विराट रचना संसार को बाल लेखन से ही पूर्णता मिली। उन्होंने हिंदी और मैथिली में विपुल साहित्य की सर्जना की। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। विदुषी डॉ.शांति यादव ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मशहूर रचनाकार नागार्जुन के शिष्यत्व एवं प्रभाव में उन्होंने साहित्य जगत में 1977 ई. से ही अपना डेग धरा और फिर मुड़कर कभी पीछे नहीं देखी। प्रखर साहित्यकार डॉ.विनय कुमार चौधरी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी कई रचनाओं के अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया सहित कई अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में कवि व साहित्यकार प्रोफेसर सचिंद्र, डॉ.अरुण कुमार, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.सिद्धेश्वर कश्यप, सियाराम यादव मयंक, डॉ.विश्वनाथ विवेका, डॉ.महेंद्र नारायण पंकज, शंभू शरण भारतीय, प्रमोद कुमार सूरज, राकेश कुमार द्विजराज, श्यामल कुमार सुमित्र आदि। अंत में पद्मश्री उषा किरण खान की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन भी रखा गया।

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