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टिड्डियों के आतंक से भारत परेशान

भारत में टिड्डियों के आतंक का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। राजस्थानी टिड्डियों की टोली से परेशान हो रहा है भारत के बाकी राज्यों का किसान समुदाय। अब तो टिड्डियों की टीम का खतरा शहरों तक आ पहुंचा है। दिल्ली भी इस खतरे से जूझ रहा है। कई राज्यों ने तो टिड्डियों के दल से निपटने हेतु कमर कस ली है।

बता दें कि कोरोना काल के बीच में ही अचानक टिड्डियों की टोली नई मुसीबत बनकर भारतीय किसानों की नींद उड़ाने में लग गई है। भारत के कई राज्यों में लाखों-करोड़ों की तादाद में आए टिड्डियों ने किसानों की नाक में दम कर दिया है। अब तक टिड्डियों द्वारा देश में 10 करोड़ की फसल बर्बाद की जा चुकी है। लाखों किसान भूखमरी के कगार पर खड़े होकर परिवार के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा ड्रोन की सहायता से छिड़काव किया जा रहा है। कुछ मुख्यमंत्रियों द्वारा इमरजेंसी बैठकें बुलाई जा रही हैं।

चलते-चलते यह भी जानिए कि 27 वर्षों के बाद टिड्डियों का यह आतंक किसी भी रूप में कोरोना के कहर से कम नहीं है। 1 घंटे में टिड्डियों के दल ढाई हजार लोगों का भोजन चट कर जाता है। उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के 1 लाख 25 हज़ार एकड़ जमीन की फसल को बर्बाद कर दिया है। टिड्डियों ने राज्य सरकार के साथ-साथ भारत सरकार की भी नींद हराम कर दी है।

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बिहार की बेटी ज्योति ने राष्ट्रपति ट्रंप की बेटी इवांका को बनाया दीवाना

जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का…. तो फिर देखना फिजूल है बिहार की बेटियों के लिए कद आसमान का। कामयाबी का जुनून यदि अंदर विद्यमान हो तो बाहर मुश्किलों की क्या औकात रह जाती है बिहारी बेटियों के लिए। ऐसी ही बेटियों में एक 15 साल की बिहारी बेटी है ज्योति जिसने कोरोना लाॅक डाउन के दरमियान 7 दिनों में 1200 किलोमीटर का लंबा सफर (हरियाणा के गुरुग्राम से बिहार के सिरहुल्ली दरभंगा तक) अपने मजबूर पिता को साइकिल पर बिठाकर तय किया।

बता दें कि मजदूर पिता मोहन एवं माता फूलो की इस पुत्री ज्योति के ऐसे साहसिक कदम को देखते हुए भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन ने ट्रायल के साथ-साथ सम्मानित करने के लिए भी उन्हें दिल्ली बुलाया है। ज्योति के इस साहसिक कदम के लिए नवभारत टाइम्स ने भी उनसे संपर्क किया है। अब तो ज्योति की मदद के लिए कई हाथ उठने लगे हैं।

यह भी जानिए कि विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने बिहार की इस बेटी की जमकर सराहना की। जहां दरभंगा पहुंचने पर ज्योति को ₹20000 देकर पुरस्कृत करते हुए यह भी कहा गया कि उसकी पढ़ाई का खर्चा भी लोग उठाएंगे वहीं लगे हाथ दिल्ली से साइकिल पर रेस लगाने हेतु फोन आया और यह भी कहा गया ज्योति को दिल्ली में ही रखेंगे और वही पढ़ाएंगे लिखाएंगे।

चलते चलते यह भी कि ज्योति साइकिल पर रेस लगाना चाहती है… वह पढ़ना भी चाहती है और ऐसे साहसिक कदम उठाने के लिए चारों ओर लगातार हो रही तारीफ की जानकारी पाकर ज्योति बिहार की बेटियों से यही कहना चाहती है- मैंने सपने में भी कभी नहीं सोची थी कि ऐसा दिन आएगा।

ज्योति के ऐसे साहसिक कदम के बारे में जानकारी मिलते ही समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने यही कहा- ज्योति ने यह साबित कर दिखा दिया है कि कोई जगत-जननी नारी को कमजोर नहीं समझे। नारी तो उत्साह, चेतना और प्रेरणा का संगम है। ज्योति ने आधी आबादी को अच्छी तरह संस्कारित कर दिया है… झकझोर दिया है तथा ऊंची उड़ान के लिए हौसला बुलंद कर दिया है।

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भारतीय बच्ची श्रव्या को ट्रंप ने कोविड-19 को लेकर पुरस्कृत किया

अमेरिका में कोरोना ने जो तांडव मचा रखा है वह किसी से छिपा नहीं है। अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना से निपटने के लिए अग्रिम मोर्चे पर तैनात डॉक्टरों, नर्सों एवं दमकल विभाग के कर्मचारियों को कुकीज व कार्ड भेजने वाली आंध्र प्रदेश की 10 वर्षीय श्रव्या अन्नापरेड्डी को सम्मान के साथ पुरस्कृत किया।

बता दें कि श्रव्या के माता-पिता वर्तमान में अमेरिका में ही रहने लगे हैं और श्रव्या “गर्ल स्काउट ग्रुप” की सदस्य भी है। 10 वर्षीय श्रव्या मैरीलैंड के हनोवर हिल्स एलीमेंट्री स्कूल के क्लास फोर्थ की छात्रा है।

यह भी बता दे कि श्रव्या अन्नापरेड्डी जो ‘गर्ल स्काउट’ की उन तीन बच्चियों में शामिल है जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं अमेरिका की प्रथम महिला मिलेनिया ट्रंप ने शुक्रवार को कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए अग्रिम मोर्चे पर तैनात कोरोना वारियर्स की मदद करने हेतुु ससम्मान पुरस्कृत किया।

चलते-चलते यह भी कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि जो कोई इस कठिन समय में हमें मदद कर अपने स्नेह में बांधता है और हमें नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है उसे सम्मानित करना हमारा परम कर्तव्य है। इन लड़कियों ने कोरोना वारियर्स को कुकीज के 100 डिब्बे भेजे थे तथा हाथ से बनाकर 200 कार्ड भी स्नेह की डोरी से बांधकर भेजे थे।

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लॉक डाउन में रवीन्द्र नाथ टैगोर की 160वीं जयंती मधेपुरा में इस तरह मनी

मधेपुरा की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था कौशिकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन जहां कोरोना संक्रमण के कारण गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की 160वीं जयंती 7 मई को आयोजित नहीं की जा सकी। सम्मेलन के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ के निदेशानुसार सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने लाॅकडाउन के दरमियान सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करते हुए अपने परिवार के सदस्यों के बीच नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एक सशक्त कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, निबंधकार, नाटककार, चित्रकार के साथ-साथ एक महान शिक्षक रवीन्द्र नाथ टैगोर की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यही कहा-

कि 7 मई के ही दिन 1861 ई. में कोलकाता के देवेंद्र नाथ टैगोर के घर चौदहवीं संतान के रूप में एक बालक रवीन्द्र ने जन्म ग्रहण किया था। उसने 8 वर्ष से लिखना आरंभ किया। उसकी कविता 12 वर्ष में एवं लघु कथा 16 साल की उम्र में प्रकाशित हुई। वर्ष 1910 में उन्होंने गीतांजलि की रचना की जिसे 10 दिसंबर 1913 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विश्व का सर्वश्रेष्ठ सम्मान “नोबेल पुरस्कार” पाने वाला पहला भारतीय बने रवीन्द्र नाथ टैगोर।

अंत में डॉ.मधेपुरी ने पुनः कहा कि 3 देशों के राष्ट्रगान से गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का नाम जुड़ा है। भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन…..” और बांग्लादेश का राष्ट्रगान “आमार सोनार बांग्ला….” तो उनकी ही रचनाएं हैं। तीसरा देश श्रीलंका  जिसका राष्ट्रगीत “श्रीलंका मथा….” भी गुरुदेव की कविताओं की प्रेरणा से बना है।

चलते-चलते यह भी कि बचपन में इस नोबेल पुरस्कार विजेता को स्कूल की दीवारें बंधन जैसा लगता था जिसके कारण उन्होंने बड़े होकर शांति निकेतन की स्थापना की। आज दुनिया उसे विश्व भारती यूनिवर्सिटी के नाम से पुकारती है।

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कोरोना के कहर के कारण माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई भी बंद की नेपाल ने

कोरोना वायरस के कोहराम से चिंता की लहर जब यूरोपीय देशों में उठी तो आवाजाही पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई। रोम के चर्च में जहां प्रार्थना पर रोक लगा दी गई वहीं कावा में सामूहिक नमाज अता करने पर प्रतिबंध…. या फिर काशी के मंदिरों में ताले ही लगा दिए गए। सभी प्रकार के वाहनों से लेकर सरकारी व निजी विमानों के परिचालन पर आज तक रोक लगी हुई है।

क्यों न लगे रोक… जबकि लाखों-लाख लोग कोरोना की चपेट में दम तोड़ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने तो इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। सारा विश्व कोरोना के खिलाफ युद्ध कर रहा है। सारे विश्व की गति ठहर सी गई है। स्कूल-कालेज, कोर्ट-कचहरी और बाजार सबके सब बंद हैं। सभी देश घर के अंदर सिमट गया है।

यह भी जानिए कि कोरोना का असर लोगों तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि उसके  बंद के घेरे में गिरिराज हिमालय के माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई भी आ गई है। नेपाल ने भी कोरोना संक्रमण के डर से माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई बंद कर दी है। नेपाल सरकार के पर्यटन मंत्री ने घोषणा कर दी है कि माउंट एवरेस्ट सहित पर्वतराज हिमालय की अन्य चोटियों की चढ़ाई भी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही अगले आदेश तक के लिए निलंबित कर दी गई है। मतलब यही कि इस घोषणा के अनुसार मार्च से मई तक फिलहाल किसी प्रकार का पर्वतारोहण नहीं होगा। इससे नेपाल सरकार के पर्यटन विभाग को लाखों-लाख  डॉलर आय का नुकसान होगा तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोरोना की चोट सहन करने के लिए विवश होना पड़ेगा।

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शाकाहारी भोजन कोरोना के लिए ज्यादा सुरक्षित

मानव शरीर के लिए ऐसा कोई पौष्टिक तत्व नहीं जो शाकाहारी भोजन यानि वनस्पतियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। शाकाहारी भोजन हमें कठिन से कठिन रोगों से भी बचाता है। दुनिया के महानतम लोग शाकाहारी रहे हैं।

बता दें कि शाकाहारियों में हृदय को रक्त भेजने वाली धमनियों से संबंधित बीमारियों की संभावना कम होती है। मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों में हाई ब्लड प्रेशर की संभावना भी कम होती है। स्वास्थ्य रक्षा एवं रोग अवरोधक शक्ति का संचय ही शाकाहार का लाभ है। शाकाहारियों द्वारा रेसा युक्त फल और सब्जियों का अधिक सेवन करने से इम्यूनिटी भी बढ़ता है और साथ ही फेफड़ों व बड़ी आँत कैंसर भी कम होता है। शाकाहारियों में एस्ट्रोजन की मात्रा कम पाए जाने के कारण विश्व भर के लिए गए आंकड़े यही बताते हैं कि शाकाहारी भोजन करने वालों में कैंसर (खासकर स्तन कैंसर) एवं गुर्दे से संबंधित रोगों की संभावना कम होती है।

जानिए कि भोजन दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है जो शरीर को ऊर्जावान व फुर्तीला बनाए रखता है। जहां मांसाहार को पचाने में बहुत समय लगता है वहीं शाकाहारी भोजन सुपाच्य होता है। शाकाहारी भोजन शरीर के ऐम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। जो कोरोना से अंत तक लड़ता है। भारत में 31% जनसंख्या शाकाहारी है जो दुनिया में सबसे अधिक है। रिसर्च के अनुसार शाकाहार से 50 लाख  लोगों की मौत को टाला जा सकता है। तभी तो लोग मांसाहार से किनारा करने लगे हैं। विश्व भर में शाकाहार का डंका बजने लगा है और अब संसार ‘शाकाहार दिवस’ भी मनाने लगा है।

डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के करीबी रहे डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी कहते हैं कि डॉ.कलाम ताजिंदगी संपूर्ण शाकाहारी बने रहे… जीवन पर्यन्त डॉ.कलाम ने चाय-कॉफी के साथ-साथ मांस-मछली भी नहीं ग्रहण किया। विश्व की चंद हस्तियों को जाने जिन्होंने शाकाहार को स्वीकारा और वे हैं- महात्मा गांधी, हिटलर, निकोला टेस्ला, सीवी रमन, रविंद्र नाथ टैगोर, डॉ.कलाम, नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन… आदि !!

 

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कोरोना वायरस से भयभीत है दुनिया !

विगत तीन-चार महीनों से समस्त संसार कोरोना वायरस से भयभीत है। दुनिया के विकसित देशों- अमेरिका, इटली, स्पेन… जैसे देश इस कोरोना के कहर के सामने घुटने टेक दिए हैं। इन देशों में कोरोना वायरस के कोहराम के चलते अमूमन 15 हजार से 50 हजार लोगों ने मौत को गले लगा लिया है।

बता दें कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय से जगकर तथा 135 करोड़ देशवासियों का सहयोग प्राप्त कर कोरोना वायरस से सामना करने वाला विश्व का प्रथम राष्ट्र नायक बनने का गौरव प्राप्त कर लिया है। इस गौरव को प्रधानमंत्री ने देशवासियों के साथ-साथ कोरोना के समस्त वारियर्स को समर्पित किया है।

यह भी बता दें कि हमारे प्रधानमंत्री  अहर्निश देश और देशवासियों की चिंता में डूबे रहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था से लेकर भारत में भी कोरोना के बैक गियर से उत्पन्न होने वाली खतरनाक स्थितियों व मुसीबतों से जूझते रहते हैं। इन्हीं कारणों से उनकी आंखों से नींद भी आजकल दूर होती जा रही है। भला क्यों नहीं, आजादी की जंग से अधिक कठिन है कोरोना से लड़ना और जीतना।

यह भी जानिए और मानिए कि कोरोना का कोई मजहब नहीं। यह तो चीन से निकला एक दानव है। इसे मजहबी चश्मे से कोई ना देखें तो यह दानव जल्द से जल्द हमारा पीछा छोड़ देगा। इस दानव को मिटाने में अपनी सारी ऊर्जा को लगाना है और कोरोना रूपी राक्षस से अपने संसार को बचाना है। आज हर जुबान से बस यही आवाज निकले- “कोरोना को हराओ और देश को बचाओ !!”

चलते-चलते यह भी बता दें कि फिलहाल दुनिया में 2 लाख से अधिक लोगों की मौत कोरोना के कारण हो चुकी है जबकि पूरी दुनिया में 30 लाख कोरोना संक्रमित हैं। वे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं तथा उन्हें बचाने के लिए कोरोना वारियर्स के रूप में सरकारी तंत्र, सामाजिक संगठन और डॉक्टर्स व पुलिस प्रशासन के लोग लगे हैं।

जहां भारत में अब तक 26500 से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं… और 6000 से अधिक लोग ठीक हो कर घर भी लौट गए हैं… तथा 824 लोगों की मौत हो चुकी है… वहीं बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या 238 है– जिसमें मधेपुरा (बिहारीगंज) की एकमात्र महिला कोरोना पॉजिटिव पाई गई है। इस पर मधेपुरा के संवेदनशील-समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने लोगों से निवेदन किया–

सभी धैर्य और संयम के साथ घर में रहें…. सुरक्षित रहें तथा अक्षय तृतीया एवं रमजान के इस पाक महीने में- “इंसानियत की होती रहे बात… कोरोना को देने के लिए मात… सारा देश रहे एक साथ !!!”

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शुरू हुआ रमजान का पाक महीना

रमजान का पाक महीना शनिवार, 25 अप्रैल से शुरू हो गया। इस्लाम को मानने वाले लोग इस महीने का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौवां महीना रमजान का होता है। चांद दिखने के साथ ही रमजान का महीना शुरू हो जाता है और मुस्लिम समाज के लोग रोजा रखना शुरू कर देते हैं। इस बार दुनिया के तमाम मुल्क कोरोना की त्रासदी झेल रहे हैं, इसलिए रमजान भी लॉकडाउन के साये में ही होगा और लोग घरों में रहकर ही इबादत करेंगे।
रमजान के महीने में सबसे ज्यादा महत्व रोजा रखने का होता है। रोजा अल्लाह की मतलब सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की इबादत करने का एक तरीका है। इसमें मन की शुद्धता भी उतनी ही जरूरी है। रोजा रखने के लिए सूर्योदय से पहले उठकर कुछ खाने-पीने का प्रावधान है। इसे सहरी कहा जाता है। सहरी का वक्त सूर्योदय से पहले का होता है और सुबह फज्र की नमाज के साथ खत्म हो जाता है। इस तरह रोजा फज्र की नमाज के साथ शुरू होता है और शाम के समय लोग मगरीब की नमाज के बाद सामूहिक रूप से इफ्तार करते हैं। इस बीच रोजा रखने वाले दिन भर रोजा रखने के साथ अपना दैनिक काम भी कर सकते हैं। साथ ही इस महीने विशेष नमाज भी की जाती है, जिसे तराबी कहते हैं।
इस बार लॉकडाउन की वजह से इफ्तार की रौनक गायब रहेगी और लोग मस्जिद की बजाय घरों में रहकर सजदा करेंगे। माना जाता है कि यह बरकतों और रहमतों का महीना होता है और सच्चे मन से की गई हर दुआ कबूल होती है। मधेपुरा अबतक आप सभी को इस पवित्र महीने की शुभकामनाएं देता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि कोरोना से संसार को जल्द मुक्ति मिले।

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कैसे सार्थक हो विश्व पुस्तक दिवस ?

किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं,
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं,
अब अक्सर गुजर जाती हैं कम्प्यूटर के पर्दों पर..!

23 अप्रैल, विश्व पुस्तक दिवस पर गुलजार की ये पंक्तियां कितनी प्रासंगिक लगती हैं। मानव सभ्यता के विकास में किताबों की कितनी बड़ी भूमिका रही है, कहने की जरूरत नहीं। लेकिन आज उन किताबों की जगह कम्प्यूटर, लैपटॉप और स्मार्टफोन लेते जा रहे हैं। आश्चर्य की बात तो ये कि इंटरनेट की सुविधा से लैस इन उपकरणों को किताबों की जगह रख हम स्वयं को अधिक विकसित समझने की भूल भी कर रहे हैं। लेकिन किताबों का कोई विकल्प नहीं हो सकता, इसमें जो तहजीब है, जो स्थायित्व है, जो अपनत्व है, मर्म को छूने की जो अद्भुत कला और अतीत और वर्तमान के बीच संवाद स्थापित करने की जो कारीगरी है वो किसी और चीज में संभव नहीं। आज के तमाम साधन ‘सूचना’ चाहे जितनी दे लें, ‘ज्ञान’ के लिए हमें हमेशा पुस्तकों की शरण में ही जाना होगा और इसे हमलोग जितनी जल्दी समझ लें हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए उतना ही बेहतर होगा।
बहरहाल, आज के अधिकांश बच्चे जो विश्व पुस्तक दिवस मना भी रहे होते हैं, उनमें से कई ये नहीं जानते होंगे कि 23 अप्रैल 1564 को विश्व के सार्वकालिक महानतम साहित्यकारों में एक विलियम शेक्सपियर का निधन हुआ था। अपने जीवनकाल में 35 नाटक और 200 से ज्यादा कविताओं की रचना कर विश्व साहित्य में उन्होंने अप्रतिम योगदान दिया था। उसी को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 और भारत सरकार ने 2001 में 23 अप्रैल के दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। लेकिन यह देखना अत्यंत पीड़ादायी है कि यह दिन अब रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं।
आपको जानना चाहिए कि दुनियाभर की 285 यूनिवर्सिटी में ब्रिटेन और इटली की यूनिवर्सिटी ने संयुक्त अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है कि जो छात्र डिजिटल तकनीक का अधिकतम उपयोग करते हैं, वे पढ़ाई के साथ पूरी तरह नहीं जुड़ पाते और फिसड्डी साबित होते हैं। ज्यादा इंटरनेट के इस्तेमाल से उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता और अंतत: उनमें अकेलेपन की भावना घर कर जाती है।  यही नहीं, मनोभावों पर नियंत्रण रखना भी वे नहीं सीख पाते और ना ही अपनी भावी योजना और शैक्षिक वातावरण में बेहतर तालमेल बना पाते हैं।
हम ये हरगिज ना भूलें कि किताबों की उपेक्षा हमारे पिछड़ जाने का संकेत है। किताबों से दिनोंदिन बढ़ती दूरी हमें भौतिकवाद, नैतिक पतन और आत्ममुग्ध आधुनिकता से ग्रसित कर रही है। अगर हमें अपने होने का सही अर्थ पाना है तो किताबों से जुड़ना ही होगा। हम ये समझें और उस अनुरूप कदम उठाने को संकल्पित हों, यही पुस्तक दिवस की सार्थकता होगी।

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विश्व पृथ्वी दिवस को जानें

22 अप्रैल को दुनिया भर में ‘अर्थ डे’ यानि विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। साल 1970 में इसी दिन पहली बार अर्थ डे मनाया गया था। उस साल अमेरिकी सांसद और पर्यावरण संरक्षक गेलार्ड नेल्सन ने पर्यावरण की रक्षा और इसके लिए लोगों को शिक्षा देने के उद्देश्य से प्रतीक दिवस के रूप में 22 अप्रैल की स्थापना की थी, जिसके बाद से दुनिया के 192 देश हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाते आ रहे हैं और गेलार्ड नेल्सन ‘फादर ऑफ अर्थ डे’ के रूप में जाने जाते हैं। इस साल इसकी 50वीं वर्षगांठ है। अमेरिका में इस दिन को ‘ट्री डे’ यानि वृक्ष दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
गौरतलब है कि पृथ्वी दिवस दो अलग-अलग दिन मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 21 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के रूप में मान्यता दे रखी है। दरअसल, यह दिन पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत ऋतु का पहला दिन है। इस तरह इस दिन का वैज्ञानिक और पर्यावरण संबंधी महत्व है, लेकिन 22 अप्रैल को सामाजिक तथा राजनीतिक महत्व  हासिल है। यह अपने आप में दुनिया का सबसे बड़ा जन जागरुकता अभियान है, जिसमें एक साथ अरबों नागरिक हिस्सा लेकर पृथ्वी की रक्षा का संकल्प लेते हैं। इस दिन पृथ्वी के दक्षिणी भाग में शरद ऋतु रहती है।
आज जरूरत इस बात की है कि हम पृथ्वी दिवस के मर्म को समझें। तकनीक और विज्ञान के इस युग में जिस तरह ग्लेशियर पिघल रहे हैं, औसत तापमान बढ़ रहा है, बेमौसम बारिश आम बात हो गई है, मिट्टी की गुणवत्ता घट रही है, प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं, यह हमें अवश्यंभावी विनाश की ओर ले जा रहा है। अगर हम पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अब भी जागरुक नहीं हुए तो हम अपने साथ-साथ करोड़ों प्रकार के जीवों और वनस्पतियों को भी खतरे में डालेंगे। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह पृथ्वी हमारे साथ-साथ उन जीवों और वनस्पतियों का भी घर है और उन्हें बचाना हम मानवों का ही दायित्व है।
बता दें कि पृथ्वी दिवस का थीम हर साल बदलता रहता है। इस साल इसका थीम है – “क्लाइमेट एक्शन”, जबकि 2019 में इसका थीम “अपनी प्रजातियों की रक्षा करें”, 2018 में “प्लास्टिक प्रदूषण का अंत”, 2017 में “पर्यावरण और जलवायु साक्षरता” तथा 2016 में “धरती के लिए पेड़” था।

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