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संयुक्त राष्ट्र पहली बार मनाएगा ‘भारतरत्न’ अंबेडकर की जयंती

डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिनका जीवन ही दलित अधिकारों के लिए संघर्ष का पर्याय है और जो विश्व के किसी भी मंच से सर्वोच्च सम्मान के अधिकारी हैं, संयुक्त राष्ट्र ने उनके ‘निर्वाण’ (निधन) के 60 वर्षों के बाद उनकी जयंती मनाने का फैसला किया है। इस वर्ष बाबा साहब की 125वीं जयंती है और इस तरह देर से ही सही लेकिन पहली बार उनकी जयंती मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने बड़ा यादगार मौका चुना है।

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र बाबा साहब की जयंती से एक दिन पहले 13 अप्रैल को अपने मुख्यालय में उनकी जयंती मनाएगा। इस अवसर पर “सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए असमानता से मुकाबला” विषय पर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी मिशन ‘सरोज फाउंडेशन’ और ‘फाउंडेशन फॉर ह्यूमन होराइजन’ के साथ मिलकर करेगा।

इस मौके पर भारतीय मिशन द्वारा जारी किए गए एक नोट में कहा गया कि भारत अपने ‘राष्ट्रीय प्रेरणास्रोत’ की 125वीं जयंती मना रहा है जो करोड़ों भारतीयों और दुनिया भर में समानता एवं सामाजिक न्याय के समर्थकों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। इसमें आगे कहा गया, “हालांकि यह एक संयोग है, हम गरीबी, भुखमरी और सामाजिक-आर्थिक असमानता के 2030 तक खात्मे के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों में उपयुक्त रूप से बाबा साहब की उज्जवल दृष्टि के निशान देख सकते हैं।”

भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था और 1956 में वे ‘निर्वाण’ को प्राप्त हुए थे। दलितों अधिकारों के इस सबसे बड़े ‘प्रवक्ता’ को 1990 में मरणोपरान्त ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया था।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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कोहली और उनके तीन ‘टी’ के रहते ‘कप’ हमारा है..!

कोहली ने भारत को एक और ‘विराट’ जीत दिलाई। इस एक अकेले खिलाड़ी के सामने कभी अजेय कहलाने वाली ऑस्ट्रेलिया की टीम असहाय नज़र आई। जिस महामुकाबले पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई थीं और हर गेंद, हर रन, हर विकेट पर लोगों की धड़कनें तेज हो रही थीं, उसमें टीम इंडिया के हाथों ऑस्ट्रेलिया को करारी हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर जीत के नायक बने टीम इंडिया सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज विराट कोहली। 27 साल के विराट आज टीम इंडिया की रीढ़ बन चुके हैं। अकले दम पर किसी भी मैच को विपक्षी टीम के जबड़े से छीन लेने का जुनून ही विराट को तमाम दिग्गज खिलाड़ियों के बीच भी अलग खड़ा कर देता है।

मोहाली में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ करो या मरो के मुकाबले में करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर सोने जैसा खरा उतरने वाले विराट की पारी इतनी शानदार थी कि भारत तो भारत, ऑस्ट्रेलियाई मीडिया भी फिदा है उन पर। विराट कोहली ने भले ही ऑस्ट्रेलिया की टी-20 विश्वकप के सेमीफाइनल में पहुँचने की उम्मीद तोड़ दी हो लेकिन इस देश की मीडिया ने अकेले दम पर भारत को अंतिम चार में जगह दिलाने के लिए इस असाधारण बल्लेबाज की जमकर तारीफ की। ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच में भारत को 161 रन का लक्ष्य दिया था जो मोहाली की पिच को देखते हुए हरगिज छोटा ना था लेकिन 51 गेंदों पर विराट ने जिस तरह 82 रनों की पारी खेली उससे ये लक्ष्य भी जैसे बौना साबित हुआ और भारत बहुत शान से सेमीफाइनल में पहुँच गया।

भारत की इस ‘विराट’ जीत पर ‘द ऑस्ट्रेलियन’ के गिडोन हेग ने कहा कि “कोहली ने अपनी शानदार बल्लेबाजी से लक्ष्य का पीछा करने को बेहद सामान्य बना दिया।” ‘सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड’ के क्रिस बैरेट ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीवन स्मिथ का ये कहना कि यह ‘विराट शो’ था, बिल्कुल सही है। उन्होंने कहा कि टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों की अब तक की सबसे महान पारियों में से एक खेल कर इस दिग्गज भारतीय बल्लेबाज ने अकेले दम पर ऑस्ट्रेलिया को 20 ओवर की विश्व चैम्पियनशिप से बाहर कर दिया। ‘सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड’ ने यह भी कहा कि कोहली महान सचिन तेन्दुलकर के उत्तराधिकारी के रूप में उभरे हैं।

‘डेली टेलीग्राफ’ के बेन होर्ने ने विराट की पारी पर लिखा – “एक व्यक्ति ने जीत दिला दी।” होर्ने ने आगे कहा – “मुझे लगता है कि यह कहना सुरक्षित होगा कि फिलहाल विश्व क्रिकेट में विराट कोहली जैसी कोई प्रतिभा नहीं है।” इधर भारत में सुनील गावस्कर के भी यही उद्गार थे। कल के मैच के बाद उन्होंने कहा कि कोहली “मौजूदा दौर के सबसे उम्दा बैट्समैन” हैं। एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा कि “इस समय कोहली सीमित ओवरों के खेल में दुनिया के सबसे महान बल्लेबाज हैं। इसके बारे में कोई संदेह ही नहीं है, वह असाधारण और सबसे अलग हैं। मेरे जो थोड़े बाल बचे हैं, वे इस युवा जीनियस की पारी देखकर खड़े हो गए थे।“ इससे पूर्व पाकिस्तान पर भारत की धमाकेदार जीत के बाद इमरान खान ने कहा था कि विराट कोहली में ‘सार्वकालिक महान खिलाड़ी’ बनने की क्षमता है। वहीं पाकिस्तान के पूर्व बल्लेबाज मोहम्मद युसूफ के शब्दों में कोहली क्रिकेट ग्राउंड में विरोधी टीम के लिए किसी ‘बला’ से कम नहीं हैं।

बता दें कि मोहाली में बनाए गए नाबाद 82 रन के बाद इस साल अन्तर्राष्ट्रीय टी-20 में सबसे ज्यादा रन विराट के नाम हो गए हैं। यह पहला मौका है जब किसी बल्लेबाज ने एक सीजन में 500 रनों का आंकड़ा पार किया है। 2016 में 12 मैचों की 11 पारियों में 536 रन बनाकर विराट टॉप पर हैं। उन्होंने इन 12 मैचों में 133.66 की स्ट्राइक रेट से रन बनाते हुए छह हाफ सेंचुरी भी बनाई है। बड़ी बात ये कि इन 12 मैचों में छह दफा वो नॉट आउट रहे।

क्रिकेट के लिए अद्भुत पैशन, रन बनाने की भूख और किसी भी चुनौती से निपटने का हौसला कोहली को क्रिकेट का ‘विराट’ खिलाड़ी बनाता है। वो जब मैदान में उतरते हैं तो पिच और गेंदबाज उनके लिए जैसे मायने ही नहीं रखते। उनकी आँखें तो बस अर्जुन की तरह ‘मछली की आँख’ यानि अपने लक्ष्य को देख रही होती हैं। गेंद को मैदान के हर कोने में पहुँचाने की उनकी चाहत और कभी कम ना होने वाले उनके उत्साह से ही गेंदबाज खौफ खाते हैं। कोहली के टैलेंट, टैम्परामेंट और टाइमिंग को देख कहना ही पड़ेगा कि कोहली जैसा कोई नहीं और ये भी कि कोहली और उनके इन तीन ‘टी’ के रहते ‘कप’ हमारा है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

 

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सचिन के लिए झुके ‘विराट’ सिर को सलाम..!

बीते शनिवार को कोलकाता के ईडन गार्डन्स में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत की इबारत लिखने वाले विराट कोहली हर जगह छाए हुए हैं। टी20 वर्ल्ड कप के इस हाइ वोल्टेज मुकाबले में यादगार 55 रन बनाकर उन्होंने टीम इंडिया को 6 विकेट से जीत दिलाई। मीडिया के हर फॉर्मेट में बस जीत के इस ‘नायक’ की बात हो रही है। सोशल मीडिया पर तो उनकी तारीफों वाले ट्वीट्स की जैसे बाढ़ ही आ गई। उनकी इस पारी के बाद पाकिस्तान के महानतम क्रिकेटर इमरान खान ने कहा कि विराट जिस तरह से बल्लेबाजी कर रहे हैं अगर आगे भी करते रहें तो वो दिन दूर नहीं जब वो विश्व क्रिकेट का हर बड़ा रिकॉर्ड तोड़ देंगे।

भारत की जीत और विराट की बल्लेबाजी ने हर भारतीय की होली और रंगीन कर दी। पूरा देश जश्न में डूबा हुआ है। ईडन गार्डन्स पर हासिल की गई ये जीत क्रिकेटप्रेमियों के दिल पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। होनी भी चाहिए। पर इस जीत के अलावे भी उस दिन ऐसा कुछ हुआ जिसे आप बहुत प्यार, बहुत आदर के साथ ताज़िन्दगी अपनी यादों में सहेजकर रखना चाहेंगे। जी हाँ, उस दिन ईडन गार्डन्स भारत की ऐतिहासिक जीत के अलावे उस लम्हे का भी साक्षी बना जिसे भारतीय क्रिकेट के सबसे खूबसूरत लम्हों में शुमार किया जा सकता है। इतना खूबसूरत कि आँखों के रास्ते बस दिल में उतरे और घर बना ले हमेशा के लिए।

Virat & Sachin
Virat & Sachin

जब पूरे देश की नजरें पाकिस्तान से जीत छीनकर टीम इंडिया की झोली में डाल रहे विराट कोहली पर टिकी थीं तब इस लाजवाब बल्लेबाज ने अपनी हाफ सेंचुरी बनाई और अपना सिर उस खिलाड़ी के आगे झुका दिया जिसे इस खेल का ‘भगवान’ कहा जाता है। जिस सचिन को विराट बचपन से अपना आदर्श मानते रहे हैं उन्हें उसी सचिन के सामने ‘इतिहास’ रचने का मौका मिला इससे बड़ी बात उनके लिए हो भी क्या सकती थी। अपने ‘अघोषित गुरु’ को ‘सम्मान की दक्षिणा’ देने का सचमुच बड़ा अवसर था उनके पास जिसे उन्होंने हाथ से जाने ना दिया। विराट ने पहले हाफ सेंचुरी पूरी की और फिर बेहद विनम्रता और अगाध सम्मान के साथ टीम इंडिया को कई बेहतरीन और यादगार जीत दिलाने वाले अपने ‘हीरो’ के आगे सिर झुका दिया। नि:संदेह ये खूबसूरत लम्हा भारतीय क्रिकेट के महान होने और बने रहने के प्रति आश्वस्त करता है।

विराट ने जो किया उससे यह भी साबित हुआ कि वो महान बल्लेबाज के साथ-साथ कितने बेहतरीन इंसान भी हैं। भारतीय क्रिकेट के ‘शिखर पुरुष’ के आगे ‘वर्तमान शिखर’ अपना सिर झुका रहा था। क्रिकेट की दो पीढ़ियों के लिए आदर्श का इससे बड़ा क्षण हो ही नहीं सकता। विराट ने तो उदाहरण पेश किया ही, टीम के बाकी सदस्य भी पीछे नहीं रहे। जीत के बाद पूरी की पूरी टीम ने स्टैंड में मौजूद सचिन के प्रति जिस तरह सम्मान व्यक्त किया उससे सचिन भाव-विभोर हो गए। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा – “महान जीत, टीम इंडिया। पारी और इस अभिव्यक्ति के लिए शुक्रिया।“ विराट और पूरी टीम के सम्मान से अभिभूत सचिन को कहना पड़ा कि उन्हें ऐसा लगा कि वो कभी रिटायर ही नहीं हुए।

Virat with Sachin on his shoulders & other Teammates after winning 2011 world cup.
Virat with Sachin on his shoulders & other Teammates after winning 2011 world cup.

सचिन भारतीय क्रिकेट की वर्तमान पीढ़ी के आदर्श हैं और इस ‘लिटिल मास्टर’ का कद इतना बड़ा है कि वे आने वाली तमाम पीढ़ियों के आदर्श रहेंगे। ‘सचिन तेन्दुलकर’ होने का मतलब क्रिकेट और इस देश के लिए क्या है अब इसे जानना और मानना बड़ी बात नहीं। लेकिन ये विराट ही थे जिन्होंने 2011 में वर्ल्ड कप जीतने के बाद कहा था कि “तेन्दुलकर ने 21 सालों तक देश की उम्मीदों का भार अपने कंधों पर उठाया है, अब ये भार उठाने की बारी मेरी है।“ ये कहना सबके बूते की बात नहीं थी। ये विराट ही कह सकते थे और उन्होंने केवल कहा ही नहीं अपने कहे को आज निभा भी रहे हैं। धोनी नि:संदेह एक महान कप्तान हैं लेकिन बल्लेबाज के तौर पर सचिन की जगह और जिम्मेदारी किसी ने ली है तो वो विराट ही हैं। पाकिस्तान पर जीत के बाद उन्होंने बिल्कुल सही कहा कि “अपने बचपन में मैंने उन्हें भारत के लिए ऐसा (मैच जिताते) करते हुए देखा है और अब मेरे पास उनके सामने ऐसा करने का अवसर है, इसलिए ये एक एहसास है जिसे बयां नहीं किया जा सकता है।“

रन के लिए विराट की ‘भूख’ को आज हर कोई सलाम करता है और अभी उन्हें रिकॉर्डों का अंबार लगाना है। लेकिन ईडन गार्डन्स में विराट ने अपने ‘आदर्श’ के लिए जिस अंदाज में सिर झुकाया उसने ये बता दिया कि वो केवल ‘रन’ से नहीं ‘मन’ से भी ‘विराट’ हैं और ये भी कि सचिन की वैभवशाली विरासत ‘विराट’ हाथों में है और बहुत महफूज़ है।

Virat Kohli giving flying kiss to his fans
Virat Kohli giving flying kiss to his fans

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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जी हाँ, अमेरिका में हो रहा रिसर्च कि मोदी कैसे बने ‘ग्लोबल लीडर’..!

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बढ़ता प्रभाव और उनकी लोकप्रियता का दिन-ब-दिन बड़ा होता कैनवास अब शोध का विषय है और ये शोध विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका में हो रहा है। जी हाँ, अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में मोदी की वैश्विक छवि को लेकर एक शोध किया गया और इस शोध से प्राप्त निष्कर्ष में कहा गया कि उनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के नेता की छवि बनाने में सोशल मीडिया ने बहुत बड़ा योगदान दिया है।

बता दें कि मिशिगन यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के प्रोफेसर जोयोजीत पाल मोदी द्वारा पिछले छह सालों में सोशल मीडिया पर किए गए ट्वीट का अध्ययन कर रहे हैं। गहन अध्ययन और विश्लेषण के बाद उन्होंने पाया कि सोशल मीडिया पर व्यक्त किए गए मोदी के विचार और उनके रचनात्मक ट्वीट ने विश्व के सबसे प्रभावशाली नेताओं में उनके शुमार होने में बड़ी भूमिका निभाई है।

शोध में कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने पारंपरिक मीडिया के तरीकों को पूरी तरह नकारते हुए अपने समर्थकों से सीधे तौर पर सम्पर्क बनाया जिससे उनकी छवि में जबरदस्त सुधार आया। यही नहीं, ट्वीटर पर लगातार सक्रिय रहकर उन्होंने खुद को एक शक्तिशाली ब्रांड के रूप में विकसित किया।

प्रोफेसर पाल के मुताबिक मोदी भारत के अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों में सबसे ज्यादा संवाद करने वाले पीएम हैं। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के विचार जानने हैं तो आप ट्वीटर के जरिये हर मुद्दे पर उनके विचार जान सकते हैं और यही वजह है कि मोदी आज विश्व के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने आम जनता से संवाद करने से लेकर सरकार चलाने तक में जिस तरह सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है उससे सम्पर्क के नए माध्यमों को नया आयाम मिला है। ना केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि अपनी सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाने तथा योजनाओं में त्वरित कार्रवाई के साथ लोगों को जोड़ने में आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर वो लगातार जोर देते हैं। इस दिशा में मोदी की सक्रियता का इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि सोशल मीडिया पर उन्हें चाहने वालों की संख्या दो करोड़ को छूने लगी है।

एक तरफ जहाँ मोदी सोशल मीडिया पर हर दिन नया इतिहास रचने को तत्पर हैं वहीं इसके बरक्स एक सच्चाई यह भी है कि स्वयं उनके कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह समेत उनकी सरकार के एक दर्जन से अधिक मंत्रियों की इसमें कोई रुचि नहीं है। ऐसे मंत्रियों में अनंत कुमार, बंडारु दत्तात्रेय, उमा भारती, मेनका गांधी, मनोज सिन्हा, हंसराज अहीर, संजीव बालियान, कृष्णपाल गूजर आदि के नाम शामिल हैं। इनमें कई मंत्रियों का तो सोशल मीडिया पर अकाउंट तक नहीं है।

बहरहाल, मोदी उन चन्द नेताओं नें शुमार हैं जो केवल निर्देश नहीं देते बल्कि आगे बढ़कर उदाहरण पेश करते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी सरकार के मंत्री भी उनके साथ कदमताल करेंगे और सोशल मीडिया को विकास और परिवर्तन का नया औजार बनाएंगे।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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4 सितंबर को ‘संत’ घोषित होंगी ‘संतों की संत’ मदर टेरेसा..!

मानवता की अनमोल धरोहर मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि दिए जाने पर आखिरी मुहर लग गई। पोप फ्रांसिस ने आज कार्डिनल्स की बैठक के बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक संत का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दे दी। वेटिकन सिटी में रोमन कैथोलिक चर्च 4 सितंबर को इसकी औपचारिक घोषणा करेगा।

बता दें कि कैथोलिक परम्परा के मुताबिक ‘संत’ बनने के लिए दो चमत्कार जरूरी हैं। 2002 में वेटिकन ने मदर टेरेसा के चमत्कार के तौर पर मोनिका बेसरा के केस को स्वीकार किया था। बंगाली आदिवासी महिला मोनिका पेट के ट्यूमर से पीड़ित थीं। मदर टेरेसा के निधन के बाद 1998 में वो ठीक हो गईं और इसका श्रेय मदर टेरेसा को दिया गया। दूसरा चमत्कार ब्राजील का है। 2008 में मस्तिष्क में कई ट्यूमर की समस्या से ग्रसित ब्राजील का एक युवक ठीक हो गया था। पिछले साल वेटिकन ने इसका श्रेय भी मदर को दिया। कहा गया कि वह युवक मदर की प्रार्थनाओं और उनकी तस्वीर देखने से ठीक हुआ।

पहले चमत्कार की पुष्टि के बाद 2003 में तत्कालीन पोप जॉन पॉल द्वितीय ने मदर को ‘बियाटिफाइड’ (धन्य) घोषित किया था। ‘बियैटिफिकेशन’ ‘संत’ की उपाधि की तरफ पहला कदम होता है। वहीं मदर के दूसरे चमत्कार को पिछले साल पोप फ्रांसिस ने मान्यता दी थी। दूसरे चमत्कार को मान्यता मिलने के साथ ही मदर टेरेसा को ‘संत’ घोषित करने का रास्ता साफ हो गया था।

अपना पूरा जीवन गरीबों और असहायों की सेवा में न्योछावर कर देने वाली मदर टेरेसा का जन्म मेसोडोनिया गणराज्य में हुआ था। करुणा और दया की ये प्रतिमूर्ति 1948 में भारत आई और फिर यहीं की होकर रह गई। उन्होंने कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। 1997 में मदर टेरेसा का निधन हो गया पर यह संस्था आज भी दुनिया भर में मानवता की सेवा के पर्याय के तौर पर जानी जाती है।

मदर टेरेसा को लोग ‘गटरों की संत’ कहते हैं। जिनका कोई नहीं होता था उन्हें मदर गले लगाती थीं। वेटिकन ने भले ही ‘संत’ घोषित करने की प्रक्रिया के तहत उनके दो चमत्कारों को मान्यता दी हो, लेकिन सच यह है कि मदर के जीवन में कोई एक बार झाँक भर ले तो उसे असंख्य ‘चमत्कार’ दिखेंगे। पर वो चमत्कार ‘सेवा का’ और ‘सेवा से’ था। मदर टेरेसा स्वयं किसी ‘चमत्कार’ में विश्वास नहीं करती थीं। रोग तन का हो या मन का, उन्होंने उसका समाधान केवल और केवल ‘सेवा’ में ढूंढ़ा। झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र जैसी चीजों के लिए ना तो उनके ‘कर्म’ में कोई जगह थी, ना उनके ‘धर्म’ में।

कोलकाता की सड़कों पर गरीबों, रोगियों और अनाथों की सेवा में जीवन के 45 साल लगा देने वाली इस ‘मदर’ ने स्वार्थ में जकड़ी दुनिया को आत्मा के उत्थान की राह दिखाई। उनका अवदान इतना बड़ा है कि मानो ‘मदर’ शब्द का सृजन ही उनके लिए हुआ हो। काश कि रोमन कैथोलिक चर्च केवल उनकी मानव-सेवा के आधार पर उन्हें ‘संत’ घोषित करता ! ऐसा कर पोप फ्रांसिस ना केवल ‘संतों की संत’ मदर टेरेसा को सच्चा सम्मान दे पाते बल्कि इस नई परम्परा की नींव रख वे धर्म की वास्तविक और व्यावहारिक परिभाषा भी गढ़ पाते जिसकी आज के समय में कितनी जरूरत है ये कहने की बात नहीं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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भारतवंशी श्रीकांत श्रीनिवासन होंगे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अगले जज !

भारतवासियों को गौरव से भर देने वाली ख़बर..! अगर अन्तिम क्षणों में कोई उलटफेर ना हो तो भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक श्रीकांत श्रीनिवासन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अगले जज होंगे। 23 फरवरी 1967 को जन्मे 48 वर्षीय श्रीनिवासन इस पद पर पहुँचने वाले पहले भारतवंशी होंगे। जस्टिस एंटोनिन स्कैलिया की संदिग्ध अवस्था में अचानक मृत्यु के बाद यह पद रिक्त हुआ है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार संभावित जजों की सूची में श्रीकांत श्रीनिवासन का नाम सबसे ऊपर है। श्रीनिवासन अभी कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट सर्किट की अपीलीय अदालत के जज हैं। बता दें कि कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट सर्किट को आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के लिए नामांकित होने वाले जजों के लिए ‘लांचिंग पैड’ माना जाता है।

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद स्कैलिया के उत्तराधिकारी को नामांकित करने की संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करने की बात कही है। स्कैलिया रूढ़िवादियों में लोकप्रिय थे। ऐसे में ओबामा इस बात को भलीभाँति जानते हैं कि उन्हें ऐसे उम्मीदवार की तलाश करनी है जिसे रिपब्लिकन भी स्वीकार करें। इस कसौटी पर श्रीनिवासन खरे उतरते हैं क्योंकि कांग्रेस में जबरदस्त राजनीतिक गतिरोध के बावजूद सीनेट में श्रीनिवासन को फेडरल जज बनाने के नामांकन को 97-0 से स्वीकार किया गया था और रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की दावेदारी हासिल करने में जुटे टेड क्रूज और मार्को रूबियो ने भी उनके पक्ष में वोट किया था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में उनका पहुँचना तय माना जा रहा है।

श्रीकांत श्रीनिवासन की ना केवल जड़ भारत में है बल्कि वे दक्षिण और उत्तर भारत के बीच बड़ा दिलचस्प संतुलन भी साधते हैं। वो यूँ कि उनके पिता तिरुनेलवेली के थे और माँ चेन्नई की लेकिन श्रीनिवासन का जन्म चंडीगढ़ में हुआ था। श्रीनिवासन के माता-पिता 1960 में अमेरिका आए थे और पेशे से दोनों शिक्षक थे। पिता कान्सास यूनिवर्सिटी में मैथ्स के प्रोफेसर थे तो माँ कान्सास सिटी आर्ट इंस्टीट्यूट में पढ़ाती थीं।

कठिन परिश्रमी और स्वभाव से उदारवादी श्रीनिवासन ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल और स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से लॉ और बिजनेस में मास्टर्स किया। वे ओबामा के मुख्य उपमहाधिवक्ता रह चुके हैं। 2013 में उन्हें कोलंबिया सर्किट की अपीलीय अदालत का जज नियुक्त किया गया था। इस पद पर भी पहुँचने वाले वे पहले भारतवंशी हैं। अमेरिका के ‘सिलिकॉन वैली’ से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भारतवंशियों का जलवा… सचमुच ‘असाधारण’ है ये उपलब्धि..!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का 76वां स्थान और आगे का सफर

भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने बुधवार को 2015 का वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक (इन्टरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स) पेश किया जिसमें भारत 76वें स्थान पर है। 100 के ग्रेड स्केल में भारत का स्कोर 38 है। सर्वाधिक 91 स्कोर के साथ डेनमार्क इस सूची में लगातार दूसरे साल शीर्ष पर है। उत्तर कोरिया और सोमालिया न्यूनतम 8 स्कोर के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं। बता दें कि बर्लिन स्थित ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित संस्था है जो विश्व बैंक आदि स्रोतों से प्राप्त डेटा के आधार पर भ्रष्टाचार सूचकांक तैयार करती है। इस सूचकांक से शून्य (अत्यधिक भ्रष्ट) से 100 (बहुत साफ-सुथरा) के स्केल पर विभिन्न देशों के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के स्तर का पता चलता है।

ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने इस साल कुल 168 देशों की सूची जारी की है। 2014 में इस संस्था ने 174 देशों का मूल्यांकन किया था जिसमें भारत का 85वां स्थान था। कहने का अर्थ यह है कि भारत ने 2015 में अपनी रैंकिंग में 9 स्थान की छलांग लगाई है। यह ख़बर राहत तो देती है लेकिन आंशिक रूप से, क्योंकि भारत के स्कोर में कोई सुधार नहीं हुआ। भारत का स्कोर पिछले साल भी 38 ही था।

यह बता देना भी जरूरी है कि भारत उक्त सूचकांक में 76वें स्थान पर अकेला नहीं है। इस पायदान पर उसके साथ थाइलैंड, ब्राजील, ट्यूनीशिया, जांबिया और बुर्किनाफासो भी खड़े हैं। भारत के पड़ोसियों की बात करें तो भूटान 65 स्कोर के साथ 27वें स्थान पर है। चीन का स्कोर 37 है और वह 83वें स्थान पर है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की हालत दयनीय है। पाकिस्तान जहाँ 30 स्कोर के साथ 117वें स्थान पर है वहीं बांग्लादेश 25 स्कोर के साथ 139वें स्थान पर।

ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल के इस सूचकांक के अनुसार डेनमार्क जैसे कुछ देश भ्रष्टाचार के मामले में भले ही बहुत हद तक साफ-सुथरे हों लेकिन दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं जिसे भ्रष्टाचार से मुक्त कहा जा सके। दुनिया के 68 प्रतिशत देशों में भ्रष्टाचार की समस्या अत्यन्त गंभीर रूप में व्याप्त है। ऐसे देशों में जी-20 समूह के आधे सदस्य देश भी शामिल हैं।

यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि समूचे विश्व में भ्रष्टाचार एकमात्र ऐसा मुद्दा है जिसे ‘सर्वव्यापी’ कहा जा सकता है। संसार का शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसका सामना जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर किसी ना किसी रूप में भ्रष्टाचार नाम की इस चीज से ना हुआ हो। जब ‘महामारी’ इस कदर फैल जाय तो जाहिर है कि उससे उबरने की कोशिश भी होगी। भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली इस संस्था ने इस ओर भी इशारा किया और कहा कि बदलाव की ‘जन आकांक्षा’ के कारण ही भारत और श्रीलंका जैसे देशों में नई सरकारें आईं।

अगर ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल की निगाह और टिप्पणी सरकारों के भ्रष्टाचाररोधी मंचों के जरिये सत्ता में आने पर है तो इस बात पर भी है कि भारत (और श्रीलंका) के नेताओं ने इस समस्या को लेकर लम्बे-चौड़े वादे तो किए लेकिन पूरा करने में नाकाम रहे। क्या हम ये उम्मीद करें कि हमारे हुक्मरान इस प्रतिष्ठित संस्था की ‘टिप्पणी’ को गम्भीरता से लेंगे और कुछ ऐसा जतन करेंगे कि अगले साल के सूचकांक में हम डेनमार्क जैसे देशों के करीब जाने के लिए कुछ और ऊपर का सफर तय कर लेंगे..?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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पूंजीवाद का नंगा सच… 62 अमीरों के पास है दुनिया का आधा पैसा

दुनिया के सारे नेता चाहे जो भाषण दे लें, दुनिया भर की सरकारें चाहे जितनी नीतियां बना लें, आर्थिक असमानता के विश्लेषण के लिए चाहे जितने नोबेल पुरस्कार दे दिए जाएं… सच ये है कि हर बीतते दिन के साथ अमीर और गरीब के बीच की खाई और बड़ी, और गहरी होती जा रही है। क्या आप यकीन करेंगे कि दुनिया के आधे पैसे पर महज 62 लोगों का कब्जा है। इन 62 धनकुबेरों में 53 पुरुष और 9 महिलाएं हैं। जी हाँ, इसका खुलासा कल जारी की गई ‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट ‘एन इकोनॉमी फॉर द वन परसेंट’ में हुआ है।

‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए गए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के एक प्रतिशत अमीर लोगों की दौलत शेष 99 प्रतिशत लोगों की कुल संपत्ति के बराबर हो गई है। इसमें कहा गया है कि 2010 से लेकर अब तक दुनिया भर के अमीरों की सम्पत्ति में करीब 11 लाख करोड़ का इजाफा हुआ है। इस अवधि में अमीरों की सम्पत्ति जहाँ 44 प्रतिशत बढ़ी, वहीं गरीबों की सम्पत्ति में 41 प्रतिशत की कमी आई।

आंकड़े यह भी बताते हैं कि 1990 से लेकर 2010 तक वैश्विक गरीबी लगभग आधी हो गई थी। हालांकि इस दौरान आम लोगों की आमदनी में नाममात्र इजाफा हुआ। इस दौरान महज 10 प्रतिशत लोगों की सालाना आमदनी बढ़ी और वो बढोतरी थी केवल 180 रुपये की।

‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट से आर्थिक असमानता की जो भयावह तस्वीर सामने आई है उसकी भविष्यवाणी गरीबों के लिए काम करने वाली इस संस्था ने 2015 में ही कर दी थी। उसने कहा था कि जल्द ही एक प्रतिशत आबादी के पास दुनिया के शेष लोगों से ज्यादा पैसा होगा। हालांकि ये समस्या इतनी जटिल और इतने स्तरों पर है कि इसका कोई एक कारण नहीं कहा जा सकता। स्वाभाविक रूप से इसके कई कारण हैं और सबसे बड़ा कारण है राष्ट्रीय आय में गरीबों की भागीदारी कम होना। यही कारण है कि दुनिया भर में दौलत कुछ लोगों के पास सिमट कर रह गई है। अधिकतर विकसित और विकासशील देशों में कर्मचारी और मजदूरों की आय लगातार कम हो रही है।

हैरानी की बात तो ये है कि दुनिया की सारी सरकारें सब कुछ देख और समझकर भी खामोश बैठी हैं। खामोश ही नहीं ये तमाम सरकारें पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली होकर रह गई है। ये पूंजीवाद का नंगा सच है और दिन-ब-दिन इसका रूप और विकराल और वीभत्स होता जाएगा। क्या हम कुछ नहीं करेंगे… कुछ भी नहीं..?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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आइंस्टीन और हॉकिंग से अधिक है भारत की बेटी काश्मिया का आईक्यू

अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग इस धरती पर मानव-मस्तिष्क के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। अपनी बेजोड़ उपलब्धियों से इन महान वैज्ञानिकों ने मानव-मस्तिष्क की अद्भुत क्षमता से हमारा परिचय कराया। आज मानव-जाति ने टेक्नोलॉजी के मामले में अभूतपूर्व प्रगति कर ली है और करोड़ों मस्तिष्क दिन-रात ‘असंभव’ को ‘संभव’ बनाने की जंग में जुटे हुए हैं तब भी आइंस्टीन और हॉकिंग के आगे का रास्ता अभी तय नहीं हो पाया है। ऐसे में 11 साल की एक बच्ची आईक्यू के मामले में इन दोनों दिग्गजों को पीछे छोड़ दे तो इसे कुदरत के करिश्मा के अलावा क्या कहेंगे आप..? और जब आपको कहा जाय कि ये कमाल भारत की किसी बेटी ने किया है तो क्या प्रतिक्रिया होगी आपकी..?

जी हाँ, ब्रिटेन में रह रही भारतीय मूल की 11 वर्षीया काश्मिया वाही ने ‘मेनसा’ की आईक्यू परीक्षा में सौ फीसदी यानि 162 में से 162 अंक लाकर अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग को पीछे छोड़ दिया है। काश्मिया की ये उपलब्धि कितनी बड़ी है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सार्वकालिक महान जिन दो वैज्ञानिकों के नाम ऊपर लिए गए हैं उनका आईक्यू 160 माना जाता है।

मुंबई में जन्मी काश्मिया के पिता विकास लंदन के एक बैंक में आईटी प्रबंधन से जुड़े हैं और माँ का नाम पूजा वाही है। पश्चिमी लंदन के नॉटिंग हिल एंड ईलिंग जूनियर स्कूल की इस छात्रा ने अपने माता-पिता की नज़र में खुद को साबित करने के लिए ‘मेनसा’ की प्रतिष्ठित परीक्षा में हिस्सा लिया था। बता दें कि ‘मेनसा’ संसार की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी उच्च आईक्यू सोसायटी मानी जाती है और “कैटल-3 बी मेनसा” आईक्यू के आकलन की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति रखने वाली प्रक्रिया है। इसके तहत कुल 150 सवाल पूछे जाते हैं और इस परीक्षा में शामिल होने की न्यूनतम आयु साढ़े दस साल है।

अपनी करिश्माई उपलब्धि के बाद काश्मिया ने कहा कि आइंस्टीन और हॉकिंग जैसी महान हस्तियों से तुलना किए जाने से अभिभूत हूँ। यह तुलना अकल्पनीय है। मेरा मानना है कि ऐसी महान हस्तियों की श्रेणी में शामिल होने के लिए ढेरों उपलब्धियां हासिल करनी होंगी। वहीं बेटी की सफलता से भाव-विभोर माता-पिता का कहना है कि हम हमेशा से महसूस करते थे कि उसके पास अलौकिक बुद्धि है और मौका दिया जाय तो अपनी बुद्धिमत्ता को वह साबित कर सकती है।

ये जानना दिलचस्प होगा कि मानव-मस्तिष्क का नया छोर बन चुकी काश्मिया शतरंज की बेजोड़ खिलाड़ी हैं और कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीत चुकी हैं। यही नहीं, उसे नेट बॉल खेलना भी पसंद है। अतुलनीय प्रतिभा की धनी भारत की इस बेटी को जगमगाते भविष्य के निमित्त मधेपुरा अबतक की ढेरों शुभकामनाएं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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‘अच्छे दिन’ जाएंगे बीत मोदीजी..! ‘भय’ बिन होगी ना ‘प्रीत’ मोदीजी..!!

अटल बिहारी वाजपेयी की ऐतिहासिक ‘सद्भावना यात्रा’ के 11 साल बाद एक बार फिर किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की धरती पर कदम रखा लेकिन जिस तरह रखा उससे कई सवाल उठ खड़े हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूस का दौरा समाप्त कर कल सुबह काबुल (अफगानिस्तान) पहुँचे और फिर काबुल से ही दिल्ली लौटते समय उन्होंने अचानक पाकिस्तान का रुख कर लिया। बता दें कि मोदी की अफगानिस्तान यात्रा की भी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई थी। पाकिस्तान का कार्यक्रम तो खैर कल्पनातीत था ही। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के शब्दों में ये ‘इनोवेटिव डिप्लोमेसी’ है। लेकिन ये ‘इनोवेसन’ सवा सौ करोड़ भारतीयों से जुड़ा है इसीलिए इसकी पड़ताल होनी ही चाहिए।

उद्देश्य चाहे जो हो, वो बहुत पवित्र और बहुत बड़ा ही क्यों ना हो, एक प्रधानमंत्री का एकदम फिल्मी अंदाज में किसी देश की यात्रा करना हैरान करेगा। उसमें भी जब पाकिस्तान सामने हो तो ये हैरानी और बढ़ जाएगी। पाकिस्तान की अनगिनत वादाखिलाफियां, सीमा पर हर दिन नापाक हरकतें, क्रिकेट तक के संबंध मधुर ना हों और अतीत के युद्धों की परछाईयां अब भी पीछा कर रही हों तो भला हमारे प्रधानमंत्री की इस अप्रत्याशित यात्रा पर सवाल कैसे ना उठें..? देश क्यों ना पूछे कि ‘सद्भावना’ की यात्रा को ‘गोपनीय’ रखने की जरूरत क्यों आन पड़ी..? सार्वजनिक तौर पर भले स्वीकार ना करें लेकिन सच ये है कि उनके कट्टर प्रशंसकों और उनकी पार्टी तक को ये बात हजम नहीं होगी। उनकी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज चाहे लाख कह लें लेकिन ये व्यवहार एक ‘स्टेट्समैन’ का तो हरगिज नहीं कहा जा सकता। वैसे राजनीति के गलियारों में कांग्रेस का ये आरोप भी चर्चा में है कि मोदी की ‘सद्भावना’ के मूल में एक व्यापारिक घराना था और ये यात्रा उसी को ‘फायदा’ पहुँचाने के लिए थी।

आजादी के बाद भारत की विदेश-नीति का ताना-बाना जवाहरलाल नेहरू ने बुना और उसे नया कलेवर देने में अटल बिहारी वाजपेयी ने बड़ी भूमिका निभाई। आज चीन से लेकर पाकिस्तान तक के साथ जिस ‘व्यावहारिक’ विदेश-नीति पर मोदी अमल कर रहे हैं उसकी बुनियाद वाजपेयी ने रखी थी। वैसे भी पड़ोसियों के साथ अच्छे सबंध को लेकर मोदी कितने गंभीर हैं इसकी झलक उनके शपथ-ग्रहण के दिन ही मिल गई थी। लेकिन पाकिस्तान शुरू से ही ‘टेढ़ी खीर’ रहा है। अपनी बात से पलटने का उसका लम्बा इतिहास है। अभी हाल ही में दोनों देशों के प्रधानमंत्री ऊफा (रूस) में मिले। फिर पेरिस (फ्रांस) में भी दोनों की संक्षिप्त मुलाकात हुई। लेकिन रिश्तों की बर्फ पिघलते-पिघलते फिर जमने लगी और कारण सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान ही था।

पिछले दिनों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्लामाबाद दौरे से रिश्तों की बर्फ एक बार फिर पिघली और मोदी शायद अपनी इस यात्रा से उस बर्फ के फिर से जमने की हर गुंजाइश खत्म करना चाहते थे। दिन भी उन्होंने बहुत खास चुना। 25 दिसम्बर को अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ दोनों का जन्मदिन था। साथ ही नवाज की नवासी का निकाह भी। मोदी ने नवाज की माँ के पाँव छुए और नवाज मोदी को छोड़ने एयरपोर्ट तक आए। हर तरफ ‘फील गुड’ का माहौल था। लेकिन दो देशों का संबंध अन्तर्राष्ट्रीय मामला है और उसकी कुछ निहायत जरूरी औपचारिकताएं होती हैं। अगर आनन-फानन में यात्रा हो भी गई तो उसका हासिल क्या है, प्रधानमंत्री मोदी को इसका जवाब देना ही होगा। क्या वो देश को आश्वस्त कर सकते हैं कि अब सीमा पर पाक कोई नापाक हरकत नहीं करेगा..? इस यात्रा के बाद वो मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम को उपहार-स्वरूप सौंप देगा या फिर मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज सईद पर हमेशा के लिए लगाम कस देगा..?

ये हम सभी जानते हैं कि इनमें से कोई ‘चमत्कार’ नहीं होने जा रहा। वाजपेयी भी पाकिस्तान गए थे और कुछ समय बाद हमें ‘कारगिल’ का जख़्म मिला था। ‘अच्छे दिन’ बीत जाएं उससे पहले मोदी को तुलसीदास के कहे “भय बिन होय ना प्रीत” को समझना होगा। अगर सिर्फ ‘प्रेम’ से बात बननी होती तो कश्मीर उस कगार पर नहीं होता जहाँ अभी खड़ा है। हम आज भी ये कह रहे होते कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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