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कराहते सीरिया का सच

क्या आप ओमरान दक्नीश को जानते हैं? यकीनन आपमें से ज्यादातर लोग उसके नाम से वाकिफ नहीं होंगे, लेकिन अगर आपके हाथ में स्मार्ट फोन है या इंटरनेट से आपका दूर का भी वास्ता है या देश-दुनिया की ख़बरों में आपकी थोड़ी-सी भी रुचि है तो ऊपर दी गई तस्वीर को पहचान जरूर लेंगे। खून और मिट्टी से सना ये पाँच साल का बच्चा ओमरान दक्नीश है, जो एंबुलेंस में बैठा है और जिसकी सूनी आँखें जंग से कराहते सीरिया का सच बयां कर रही हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी ये तस्वीर सीरिया के मौजूदा हालात का प्रतीक बन गई है।

आप सोच रहे होंगे कि इस मासूम बच्चे को आखिर किस गुनाह की सजा मिली है? तो जान लें कि इस बच्चे का गुनाह ये है कि इसका घर सीरिया के ‘विद्रोहियों’ के इलाके में मौजूद है और ये ‘गुनाह’ इस बात के लिए काफी है कि सीरियन आर्मी और रूस उसके घर पर हवाई हमला कर सकें। बता दें कि अलेप्पो मीडिया सेंटर ने इस पूरी घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर किया है।

वैसे ये कहानी केवल ओमरान दक्नीश की नहीं। ओमरान तो फिर भी खुशकिस्मत है कि जीवित है। आप याद करें अयलान कुर्दी को। एक तीन साल का बच्चा जो सितंबर 2015 में अपने माता-पिता के साथ सीरिया से भागकर यूरोप आ रहा था कि नाव पलट गई और उसकी नन्ही-सी लाश बहकर समुद्र के किनारे आ लगी। अयलान ने अपने पिता से आखिरी शब्द कहे थे – “मैं आपका हाथ नहीं पकड़ूँगा, आप मेरा हाथ पकड़ो पापा, मेरा हाथ छूट जाएगा”…। हाथ सचमुच छूट गया था और समुद्र के किनारे बहकर आई उस नन्ही-सी लाश का वजन पूरी दुनिया ने अपनी छाती पर महसूस किया था।

सीरिया सब दिन ऐसा नहीं था। कभी इसे समृद्ध देशों में शुमार किया जाता था। पर इसकी खुशहाली को किसी की नज़र लग गई। आज आईएसआईएस, रेबल ग्रुप, सीरियन सरकार, नाटो और रशियन आर्मी ने इसे जंग के मैदान में तब्दील कर दिया है। इस जंग में अब तक करीब डेढ़ लाख लोग मारे गए हैं और  एक करोड़ से ज्यादा लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक अब तक 76 लाख लोग भागकर यूरोप के देशों में पहुँचे हैं और ये अभी भी लगातार जारी है।

सीरिया का ये संकट साल 2011 में वहाँ की बशर अल असद के नेतृत्व वाली ‘बाथ सरकार’ के समर्थकों और विरोधियों के बीच सशस्त्र संघर्ष से शुरू हुआ था, जो अब विध्वंशकारी रूप ले चुका है। विद्रोही चाहते हैं कि राष्ट्रपति असद पदत्याग करें और बाथ पार्टी के शासन का अंत हो। कहने को यह सीरिया का गृहयुद्ध है पर वास्तविकता यह है कि सीरिया को लेकर पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गई है। अपने-अपने हितों को देखते हुए एक ओर रूस और ईरान जैसे देश इस बात पर अड़े हैं कि बशर अल असद ही सीरिया के राष्ट्रपति बने रहेंगे तो दूसरी ओर अमेरिका, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश हैं जो सीरिया के असदविरोधी गठबंधन ‘नेशनल कोएलिशन’ के समर्थक हैं और उनकी हर संभव मदद कर रहे हैं।

सीरिया संकट एशिया की दो महाशक्तियों भारत और चीन की विदेश नीति की परीक्षा भी है। अपने-अपने व्यापारिक हितों के कारण दोनों देश इस मुद्दे पर खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं लेकिन किसी भी सैनिक कार्रवाई का विरोध करते रहे हैं।

बहरहाल, कूटनीति अपनी जगह है और संवेदना अपनी जगह। हो सकता है सीरिया के विद्रोहियों की हर मांग जायज और राष्ट्रपति बशऱ अल असद की हर इनकार नाजायज ना हो। लेकिन इन सबमें अयलान कुर्दी या ओमरान दक्नीश का क्या कसूर?  मानवीय संवेदना को मारकर हमने तख्तोताज हासिल भी कर लिया तो क्या? अयलान की मुंदी हुई और ओमरान की सूनी पड़ी आँखें क्या हमारी ‘कंगाली’ की गवाही नहीं दे रही होंगी?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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भारतीय क्रिकेट का ‘विराट’ इतिहास रचते कोहली

विराट दिन-ब-दिन और विराट होते जा रहे हैं। कल भारतीय क्रिकेट के इस धूमकेतु ने वेस्टइंडीज की धरती पर 200 रन बनाने के साथ ही कई रिकॉर्ड अपने नाम कर लिए। 1932 में भारतीय टीम को टेस्ट का दर्जा मिलने के बाद विदेशी धरती पर किसी भारतीय कप्तान का ये पहला दोहरा शतक है। इस शतक के साथ ही भारत ने 41 साल बाद वेस्टइंडीज के बेमिसाल खिलाड़ी और कप्तान क्लाइव लॉयड के उस दोहरे शतक का जवाब भी दे दिया जो उन्होंने साल 1975 में भारत में लगाया था।

विराट कोहली की ये पारी कई मायनों में खास है। उनकी इस पारी ने विदेश में 19 साल के उस सूखे को समाप्त कर दिया जो 1997 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सचिन तेन्दुलकर द्वारा बनाए गए 169 रनों के बाद से ही चला आ रहा था। सचिन के बाद कोई भी भारतीय कप्तान विदेशी धरती पर 150 के आंकड़े को पार नहीं कर पाया था। विराट कोहली ने अपने इस दोहरे शतक से कप्तान के तौर पर भी अपने दम-खम को साबित किया है। उनसे पहले साल 1990 में मोहम्मद अजहरूद्दीन ने कप्तान के रूप में ऑकलैंड में 192 रनों की शानदार पारी खेली थी।

दोहरे शतक की बात करें तो विराट कोहली से पहले भारतीय टीम के चार कप्तान दोहरा शतक जमा चुके हैं। नवाब पटौदी, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर और महेन्द्र सिंह धोनी ने सैंकड़ा तो पार किया था लेकिन उन्होंने ये दोहरे शतक भारतीय धरती पर ही लगाये थे। एक कप्तान के तौर पर विराट कोहली वो पहले क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्होंने ये कमाल विदेशी धरती पर कर दिखाया है। इसी के साथ विराट कोहली ने पूर्व भारतीय बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग का एक बड़ा रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया। इस पारी के बाद विराट भारत के लिए 12 टेस्ट शतक पूरे करने वाले दूसरे सबसे तेज बल्लेबाज बन गए हैं। वो सहवाग की 77 पारियों में 12 शतकों के रिकॉर्ड को तोड़कर उनसे आगे निकल गए हैं। कोहली ने ये उपलब्धि महज 72 पारियों में अपने नाम कर ली है।

इस शतक के साथ ही विराट कोहली ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 12 हजार रन भी पूरे कर लिए। ऐसा करने वाले वो आठवें भारतीय कप्तान बन गए हैं। विराट का ये 8वां शतक एशिया के बाहर है। वैसे अभी तक एशिया से बाहर सबसे ज्यादा शतक तेंदुलकर ने लगाया है। उन्होंने 18 शतक विदेशी धरती पर जड़े हैं। ये भी बता दें कि विराट कोहली ने कप्तान के रूप में विदेशी सरजमीं पर अब तक 12 पारियों में 76.27 की औसत से 839 रन बनाये हैं। उनसे बेहतर औसत सिर्फ महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन का है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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दूसरी नहीं, पहली महिला प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं टेरीज़ा मे

आम मध्यवर्गीय परिवार से आने वाली टेरीज़ा मे, जो पहले टेरीजा ब्रेजियर थीं, जिनकी पढ़ाई सरकारी प्राथमिक स्कूल से शुरू हुई थी, जो गांव में रहती थीं, मूक नाटकों में हिस्सा लेती थीं और जेबखर्च के लिए शनिवार को बेकरी में काम करती थीं, की दिनचर्या भले ही छोटे-छोटे कामों से पूरी होती हो लेकिन उनके सपने हमेशा बड़े रहे। उनके दोस्त बताते हैं कि शुरुआत से ही वो काफी फैशनेबल थीं और कम उम्र में ही ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा करती थीं। आज, मारग्रेट थैचर के बाद ही सही, उस ‘महत्वाकांक्षी’ लड़की ने अपना सपना पूरा कर ही लिया।

महारानी एलिजाबेथ ने टेरीज़ा मे को मुश्किल दौर से गुजर रहे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। 59 साल की टेरीज़ा मे मारग्रेट थैचर के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं। टेरीज़ा डेविड कैमरन सरकार में गृहमंत्री थीं। गौरतलब है कि यूरोपीय संघ के मुद्दे पर हुए जनमत संग्रह के बाद डेविड कैमरन को इस्तीफा देना पड़ा था। कैमरन ने पिछले साल हुए चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को चुनावी जीत दिलाई थी। लेकिन उम्मीद के विपरीत ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहने के सवाल पर हुए जनमत संग्रह में उनका साथ नहीं दिया था।

बहरहाल, अपने स्टाइल स्टेटमेंट और स्पष्ट नीतियों के कारण अलग पहचान रखने वाली टेरीज़ा 1997 से लगातार ब्रिटिश संसद की सदस्य हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाली टेरीज़ा के पिता चर्च में पादरी थे। जब टेरीज़ा 25 साल की थीं, उनके पिता की कार दुर्घटना में मौत हो गई।

टेरीज़ा के पॉलिटिकल करियर में सबसे अहम मोड़ 2009 में आया जब वो गृह मंत्री बनीं। ब्रिटेन का गृह मंत्रालय कई राजनेताओं के लिए ‘कब्रगाह’ रहा है लेकिन दृढ़ संकल्प की धनी टेरीज़ा ने इस धारणा को गलत साबित किया। उनकी नीतियां जितनी साफ रही हैं उनके पालन के लिए वो उतनी ही सख्त हैं, बहुत हद तक मारग्रेट थैचर की तरह। ब्रिटिश राजनीति के जानकार उन्हें एक ‘कठिन’ महिला मानते हैं।

ब्रेक्जिट की बात करें तो टेरीज़ा इस पर हुए फैसले के साथ हैं और इस मुद्दे पर दूसरा जनमत संग्रह नहीं कराना चाहतीं। हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा है कि यूरोपीय संघ को छोड़ने के मसले पर आधिकारिक फैसला 2016 के समाप्त होने से पहले संभव नहीं होगा।

ये देखना दिलचस्प होगा कि टेरीज़ा मे का भारत के प्रति क्या रुख रहता है। उनके पूर्ववर्ती कैमरन भारत के साथ बेहतर संबंधों के हिमायती थे। उम्मीद की जा रही है कि टेरीज़ा उसी रास्ते को अपनाएंगी। हालांकि ये टेरीज़ा ही थीं जिन्होंने अप्रैल 2012 में पोस्ट स्टडी वर्क वीजा समाप्त कर दिया था, जिसका भारतीय छात्रों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

 ‘मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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अंतरिक्ष की नई महाशक्ति भारत

22 जून 2016 को सुबह करीब 9.15 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी-सी 34) को सत्रह विदेशी उपग्रहों समेत कुल 20 सेटेलाइट के साथ अंतरिक्ष में भेजा। पीएसएलवी-सी 34 ने 26 मिनट 30 सेकेंड में सभी सेटेलाइट सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिए। प्रक्षेपित उपग्रहों में कॉर्टोसैट-2 सीरीज का पृथ्वी संबंधी सूचनाएं एकत्र करने वाला भारत का नया उपग्रह भी शामिल है। इसके अलावा दो उपग्रह भारतीय विश्वविद्यालयों के हैं। इनमें एक चेन्नई स्थित निजी विश्वविद्यालय का उपग्रह ‘सत्यभामा’ और दूसरा पुणे स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज का उपग्रह ‘स्वयम्’ है। शेष सत्रह उपग्रह अमेरिका, कनाडा, जर्मनी और इंडोनेशिया के हैं। ये सारे विदेशी उपग्रह व्यावसायिक हैं और इनसे इसरो को कमाई होगी।

इसरो ने इससे पहले वर्ष 2008 में 10 उपग्रहों को पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में एक साथ प्रक्षेपित किया था। इस बार 20 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित करके वो ऐसा करने वाले तीन देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है। इससे पहले ऐसा केवल अमेरिका और रूस ही कर पाए हैं।

बहरहाल, एक साथ 20 उपग्रह प्रक्षेपित करने और हाल में ही स्वदेशी स्पेस शटल के प्रक्षेपण के बाद दुनिया भर में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की धूम मची है। एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने से मना कर दिया था। आज स्थिति यह है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इच्छुक हैं। बता दें कि अमेरिका 20वां देश है जो कॉमर्शियल लॉन्च के लिए इसरो से जुड़ा है।

आज की तारीख में पूरी दुनिया में उपग्रहों के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेज बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्द्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं हैं क्योंकि कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की ताकत है। बता दें कि भारतीय प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत की एक तिहाई भर है। बेहद कम लागत की वजह से अधिकांश देश स्वाभाविक तौर पर अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण करने के लिए भारत का रुख करेंगे। ऐसे परिदृश्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का होगा।

वैसे भी मंगलयान और चंद्रयान -1 की बड़ी सफलता के साथ-साथ अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो का लोहा पूरी दुनिया मान ही चुकी है। चंद्रयान-1 को ही चांद पर पानी की खोज का श्रेय भी मिला। भविष्य में इसरो उन सभी ताकतों को और भी टक्कर देने जा रहा है, जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रही हैं। भारत के पास साधन भले ही कम हों लेकिन प्रतिभाओं की बहुलता है। भारत द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर हम अब संचार, मौसम संबंधित जानकारी, शिक्षा, चिकित्सा में टेली मेडिसिन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि के क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल के स्रोतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर भी नजर रख रहे हैं। भारत यदि इसी प्रकार अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

 

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ढाका के हमलावरों को ‘इस्लामी आतंकी’ कहें : तस्लीमा नसरीन

अपने निर्भीक लेखन के लिए दुनिया भर में खास पहचान रखने वाली बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ट्विटर के माध्यम से ढाका हमले को लेकर कई अहम सवाल उठाए हैं। ढाका के हमलावरों को लेकर उन्होंने सीधा सवाल किया कि मीडिया उन्हें ‘गनमैन’ क्यों लिख रहा है? उन्हें ‘इस्लामी आतंकी’ क्यों नहीं कहा जा रहा? उन्होंने लोगों को मारने और उनमें दहशत फैलाने से पहले ‘अल्लाहू अकबर’ का नारा लगाया था। क्या उन्हें ‘इस्लामी आतंकी’ नहीं कहा जाना चाहिए था?

तस्लीमा ने इस तर्क को भी खारिज किया कि गरीबी किसी को आतंकवादी बना देती है। तस्लीमा ने अपने ट्वीट में लिखा कि ढाका हमले का आतंकी निब्रस इस्लाम तुर्की होप्स स्कूल, नार्थ साउथ और मोनाश यूनिवर्सिटी में पढ़ा था। उसका ब्रेन वॉश इस्लाम के नाम पर किया गया और वह आतंकी बन गया। ढाका हमले के सभी आतंकी अमीर परिवार से थे और सभी ने अच्छे स्कूलों में पढ़ाई की थी। कृपया यह मत कहिए कि गरीबी और निरक्षरता लोगों को इस्लामिक आतंकवादी बनाती है – “All Dhaka terrorists were from rich families, studied in elite schools. Please do not say poverty & illiteracy make people Islamic terrorists.”

तस्लीमा ने आगे बड़ी बेबाकी से कहा कि इस्लामिक आतंकवादी बनने के लिए गरीबी, निरक्षरता, तनाव, अमेरिकी विदेश नीति और इस्राइल की साजिश की जरूरत नहीं है। आपको इस्लाम की जरूरत है। ढाका की नृशंस घटना से आहत तस्लीमा ने यहाँ तक कहा कि इस्लाम को शांति का धर्म कहना बंद करें – “For humanity’s sake please do not say Islam is a religion of peace. Not anymore.”

बता दें कि बीते शुक्रवार को आतंकियों ने ढाका के एक रेस्टोरेन्ट में हमला कर 20 विदेशी नागरिकों की हत्या गला रेतकर कर दी थी जिनमें भारत की बेटी तारिषी जैन भी शामिल थी। गौरतलब है कि इन हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट (आइएस) और अलकायदा ने ली है और इस लोमहर्षक घटना के पीछे जिन दो स्थानीय आतंकी संगठनों का हाथ होने की बात कही जा रही है उनमें से एक ‘अंसार-अल-सलाम’ को अलकायदा का समर्थन प्राप्त है और दूसरा ‘जमात-उल-मुजाहिद्दीन’ आइएस से जुड़ा हुआ है। वैसे  बांग्लादेश के अनुसार इस नृशंस घटना को अंजाम देने में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी शामिल है।

यह भी जानें कि पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में धार्मिक चरमपंथियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। लेखकों, प्रकाशकों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वहाँ काम कर रहे विदेशी मूल के लोगों पर लगातार हमले हो रहे हैं। बीते दो दिनों में ही दो हिन्दू पुजारियों पर भी हमला हुआ और एक पुजारी की हत्या भी कर दी गई। दुख और हैरत की बात तो यह है कि ये सब कुछ ‘इस्लाम’ के नाम पर हो रहा है। क्या ‘इस्लाम’ की इससे बड़ी तौहीन भी कुछ हो सकती है?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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भारत को नहीं मिली एनएसजी की सदस्यता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयास और अमेरिका समेत ज्यादातर देशों के समर्थन के बावजूद एनएसजी (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) में भारत की एंट्री नहीं हो पाई। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप को कहना ही पड़ा कि ‘एक देश के अड़ियल रवैये’ की वजह से भारत की कोशिश नाकाम हो गई। कहने की जरूरत नहीं कि वो ‘अड़ियल देश’ हमारा पड़ोसी चीन है। बहरहाल, आज सियोल में एनएसजी की दो दिवसीय वार्षिक बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि भारत की सदस्यता के लिए नियमों में छूट नहीं दी जाएगी।

एनएसजी ने आज के अपने बयान में साफ तौर पर कहा कि एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) अन्तर्राष्ट्रीय अप्रसार व्यवस्था की धुरी है और वह इसके पूर्ण और प्रभावी क्रियान्वयन का समर्थन करता है। हाँ, इस बैठक में इस बात पर सहमति जरूर बनी कि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को इस समूह में शामिल करने के मुद्दे पर बातचीत जारी रहेगी। बता दें कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बिना एनएसजी की सदस्यता चाहता है।

बहरहाल, चीन ने एनएसजी में भारत का रास्ता रोकने में केन्द्रीय भूमिका निभाई। भारतीय उपमहाद्वीप में अपना वर्चस्व बनाने के लिए चीन की हर संभव कोशिश रही है कि भारत को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिले। इस संदर्भ में अपने भारतविरोधी अभियान के तहत निर्लज्ज चीन यहाँ तक कहता रहा है कि अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता दी जाती है तो पाकिस्तान को भी सदस्यता मिले। जी हाँ, चीन ने उस पाकिस्तान की वकालत की जिसकी पहचान आतंकवाद को प्रश्रय और आतंकियों को आश्रय देने वाले देश के रूप में जगजाहिर हो चुकी है। हालांकि ये अलग बात है कि एनएसजी में पाकिस्तान की एंट्री को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हुई।

भारत को एनएसजी की सदस्यता ना मिलना नि:संदेह निराशाजनक है लेकिन सम्भावनाओं के सारे द्वार बंद हो गए हों, ऐसा नहीं है। चीन, ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड और तुर्की जैसे कुछ देशों को छोड़ दें तो शेष देश आज कमोबेश भारत के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं जिनमें अमेरिका, फ्रांस, जापान और मैक्सिको जैसे देश शामिल हैं। निश्चित रूप से इसे भारत की कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जाना चाहिए। हाल के वर्षों में भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जैसी हैसियत बनाई है और एनएसजी की आज की बैठक के बाद जो माहौल बना है उसे देखते हुए भारत का रास्ता अधिक समय तक रोके रखना चीन के बूते में नहीं दिखता।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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राष्ट्रपति पद के लिए खुलकर हिलेरी के समर्थन में आए ओबामा

हिलेरी क्लिंटन की अमेरिका की महिला राष्ट्रपति बनने की सम्भावना को उस वक्त पर लग गए जब मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा खुलकर उनके पक्ष में आ गए। अमेरिका में राष्ट्पति पद के लिए होने जा रहे चुनाव में ये बड़ा मोड़ बीते गुरुवार को आया। ओबामा ने ट्विटर पर शेयर किए गए एक विडियो संदेश में कहा कि “मैं उनके साथ हूँ और मैं उत्साहित हूँ। मैं उनके साथ अभियान में जुड़ना चाहता हूँ।” बता दें कि ओबामा ने अपने समर्थन का ऐलान हिलेरी क्लिंटन के डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनने के लिए जरूरी जादुई आँकड़े को पार करने के ठीक बाद किया है। अपने संदेश में उन्होंने हिलेरी को राष्ट्रपति की भूमिका के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार बताया है। सबसे बड़ी बात यह कि हिलेरी के लिए ओबामा का दिया गया संदेश कहीं से भी ‘राजनीति’ से प्रेरित नहीं लगता, इसमें हिलेरी के प्रति उनकी खुशी साफ तौर पर देखी जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उम्मीदवारी हासिल करने के लिए महीनों चले प्राइमरी चुनावों के दौरान ओबामा ने चुप्पी साधे रखी थी। सम्भवत: इसकी एक वजह डेमोक्रेटिक पार्टी से ही उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल बर्नी सैंडर्स थे। इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि ओबामा ने हिलेरी को समर्थन की आधिकारिक घोषणा सैंडर्स से मुलाकात के बाद की। ओबामा से मुलाकात के बाद सैंडर्स ने भी कहा कि डोनाल्ड ट्रंप को हराने के लिए वे अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी के साथ मिलकर काम करेंगे। हिलेरी के ‘व्हाइट हाउस’ पहुँचने की संभावनाओं के लिहाज से ये एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है।

उधर रिपब्लिकन पार्टी के सम्भावित उम्मीदवार और अपने बड़बोले और भड़काऊ बयानों व भाषणों से चर्चा में आए धनकुबेर डोनाल्ड ट्रंप ओबामा के इस कदम को पचा नहीं पाए। उन्होंने हिलेरी के लिए अमर्यादित शब्द ‘Crooked’  (कुटिल) का प्रयोग करते हुए तुरंत ट्वीट कर अपनी प्रतिक्रिया दी कि “Obama just endorsed Crooked Hillary. He wants four more years of Obama – but nobody else does!” (ओबामा ने अभी-अभी कुटिल हिलेरी का समर्थन किया है। उन्हें अपने लिए चार साल और चाहिए, लेकिन कोई और ऐसा नहीं चाहता)। एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा – “Crooked Hillary Clinton will be a disaster on jobs, the economy, military, guns and just about all else. Obama plus!” (कुटिल हिलेरी क्लिंटन नौकरियों, अर्थव्यवस्था, व्यापार, स्वास्थ्य, सैन्य, बंदूकों और अन्य सभी चीजों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होंगी और साथ होंगे ओबामा)।

इसमे कोई दो राय नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ‘खास’ अंदाज और ‘आक्रामक’ बयानों से कम ही समय में अपने लिए अच्छा-खासा समर्थन जुटाया है लेकिन हिलेरी की उम्मीदवारी ‘स्पष्ट’ हो जाने के बाद ट्रंप का ‘ग्राफ’ गिरना शुरू हो गया है। उनके उपरोक्त ट्वीट में इससे उपजी उनकी ‘झुंझलाहट’ स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। उधर ओबामा और सैंडर्स के साथ खड़े हो जाने के बाद हिलेरी ‘इतिहास’ रचने के बहुत करीब दिख रही हैं। बहरहाल, भविष्य के गर्भ में क्या है, ये तो हम नवंबर में ही जान पाएंगे।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद की सुरक्षा में जुटा है पाक..!

पाकिस्तान की कथनी-करनी में फर्क एक बार फिर सामने आया है। अपने कूटनीतिक बयानों में वो चाहे लाख आतंक के खिलाफ होने की बात करे लेकिन वास्तव में वो आतंकियों को ना केवल पनाह देता है बल्कि उनकी ‘सुविधा’ और ‘सुरक्षा’ का ख्याल ऐसे रखता है जैसे कोई देश अपने विशिष्टतम नागरिक का रखा करता है। जी हाँ, अनैतिकता की सारी हदें पार करते हुए पाकिस्तान ने लश्कर ए तैयबा के सरगना हाफिज मोहम्मद सईद पर नकेल कसने की बजाय उसकी सुरक्षा बढ़ा दी है।

भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले हाफिज सईद को पाकिस्तान में सुरक्षा पहले भी हासिल थी लेकिन अब उसके सुरक्षा गार्डों की संख्या दोगुनी कर दी गई है और उसके घर से 300 मीटर दूर चार बैरीकेड लगाए गए हैं। लाहौर के जौहर टाउन के ई ब्लॉक स्थित उसके घर में अब 48 सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं जो 16-16 की संख्या में तीन पालियों में काम करते हैं। सरकारी सुरक्षा के अतिरिक्त जमात उद दावा के हथियारबंद सदस्य भी सईद की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सईद से उसकी गतिविधियों को भी सीमित करने को कहा गया है। यही नहीं, सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है।

बता दें कि मुंबई हमले के मास्टर माइंड सईद ने हाल ही में भारत पर एटमी हमले की धमकी दी थी। स्वाभाविक तौर पर इसके बाद भारत में तीव्र प्रतिक्रिया होनी थी। पर ऐसी नापाक हरकत के बाद जिस कुख्यात आतंकी को रौंद देना चाहिए था उसे पाक ने अब पलकों पर बिठा लिया है। हथेली पर तो वो पहले से था ही।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और भारत समेत कई देशों के प्रतिबंध के बावजूद पाकिस्तान सईद पर कार्रवाई नहीं कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2008 में जमात को आतंकी संगठन और सईद को मोस्ट वांटेड आतंकी घोषित किया था, अमेरिका ने उसके सिर पर दस लाख डॉलर का इनाम रखा है और भारत तो सईद को सौंपने की मांग करता ही रहा है। इसके बावजूद सईद ना केवल पाकिस्तान में खुलेआम सभाएं करता है बल्कि भारत और अमेरिका को धमकियां देने से भी बाज नहीं आता। काश, बारूद की ढेर पर बैठे पाक को कोई समझा पाए कि वह लगातार ‘आग’ से खेल रहा है, जबकि उसकी ‘विनाशलीला’ के लिए बस एक ‘चिंगारी’ ही काफी है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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मोदी को मिला अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अमीर अमानुल्ला खान अवार्ड’ से नवाजा गया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने आज उन्हें इस अवार्ड से सम्मानित किया। इससे पहले दोनों देशों के नेताओं ने संयुक्त रूप से ‘अफगान-भारत मैत्री बांध’ का उद्घाटन किया। हेरात प्रांत में स्थित यह बांध पूर्व में ‘सलमा बांध’ के नाम से जाना जाता था। बता दें कि इस बांध को भारत की सहायता से बनाया गया है। चिश्त ए शरीफ नदी के ऊपर बने इस बांध से 75 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकेगा और साथ ही 42 मैगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा।

पूर्वी, मध्य और दक्षिण एशिया के प्राचीन कारोबारी मार्ग पर पड़ने और यहाँ से ईरान, तुर्कमेनिस्तान तथा अफगानिस्तान के अन्य हिस्सों की सड़कें होने के कारण हेरात प्रांत का विशेष रणनीतिक महत्व है। पिछले महीने भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने ईरान के चाबहार में एक कारोबार एवं परिवहन गलियारा स्थापित करने के लिए एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

ज्ञातव्य है कि अफगानिस्तान पाँच राष्ट्रों की यात्रा पर निकले प्रधानमंत्री मोदी का पहला पड़ाव है। अफगानिस्तान के बाद मोदी कतर, स्विटजरलैंड, अमेरिका और मैक्सिको जाएंगे। स्मरणीय है कि मोदी पिछले साल दिसंबर में भी अफगानिस्तान की यात्रा पर आए थे और इस दौरान उन्होंने नौ करोड़ डॉलर की कीमत से भारत द्वारा निर्मित संसद भवन परिसर का उद्घाटन किया था।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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काश कि इस मामले में हम भी पाकिस्तान की राह पर चलें..!

शादियों पर बेलगाम होते खर्च से जितने हम परेशान हैं उतने ही हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के लोग भी। ‘प्रतिष्ठा के पीछे प्राण गंवाने’ की कहावत जितनी भारत में लागू होती है उतनी ही पाकिस्तान में भी। लेकिन पाकिस्तान के पंजाब प्रांत ने इससे निजात पाने के लिए एक कड़ा और बड़ा कदम उठाया है। शादियों में अनावश्यक शाहखर्ची पर रोक लगाने के लिए वहाँ की सरकार ने शादी में एक से ज्यादा तरह के भोजन, आतिशबाजी और दहेज का सामान सार्वजनिक रूप से दिखाने पर रोक लगाने के लिए कानून पारित किया है। इस कानून का उल्लंघन करने पर एक महीने की जेल और 20 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है।

वहाँ के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ ने इस कानून को सख्ती से लागू करने का संकल्प लेते हुए कहा कि इस कानून से शादियों में सादगी को बढ़ावा देने और अनावश्यक दिखावे को हतोत्साहित करने में मदद मिलेगी। बता दें कि राज्य की विधानसभा में बीते गुरुवार को ये कानून बहुमत के साथ पारित किया गया। इस कानून के तहत होटल, रेस्तरां और कैटरर्स को निर्देश दिया गया है कि शादी में वे एक से अधिक तरह का भोजन ना परोसें। यही नहीं, इस निर्देश में यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि शादी से जुड़ी तमाम रस्में रात 10 बजे से पहले पूरी कर ली जाएं।

भले ही इस कानून से राज्य में शादी पर होने वाली सारी फिजूलखर्ची एकदम से बन्द ना हो लेकिन उसमें कमी तो आएगी ही। ठीक वैसे ही जैसे बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद भी ‘पक्के’ शराबी भांति-भांति के उपायों से भले ही शराब का सेवन कर लेते हों लेकिन इस कानून के व्यापक असर से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे कानूनों से समाज में एक सार्थक संदेश तो जाता ही है।

कुरीतियां समाज में हमेशा रही हैं और रहेंगी भी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसे हम अपनी नियति मान लें। मनुष्य ने अपनी लगातार की गई कोशिशों की बदौलत ही इस दुनिया को रहने के लायक बनाया है। पाकिस्तान के पंजाब में शादी में शाहखर्ची को लेकर बनाया गया कानून हो या हमारे बिहार में शराबबंदी का कानून, ये ऐसी ही कोशिशें हैं।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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