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पाकिस्तान के ‘मौसेरे भाई’ ने पार की बेशर्मी की हद

चीन ने तिब्बत में अपनी एक पनबिजली परियोजना के लिए ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का पानी रोक दिया है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, चीन का कहना है कि वो इससे बिजली पैदा करेगा, पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए करेगा और साथ ही इससे बाढ़ पर काबू पाने में मदद मिलेगी। लेकिन भारत और बांग्लादेश इससे चिन्तित हैं, क्योंकि इससे उनके इलाके में रहने वाले लाखों लोगों को पानी की आपूर्ति बाधित हो सकती है। गौरतलब है कि चीन से निकलकर ब्रह्मपुत्र नदी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश और असम से होती हुई बांग्लादेश तक जाती है।

चीन ने यह काम ऐसे वक्त में किया है जब उड़ी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सिंधु जल समझौते के तहत होने वाली बैठक रद्द कर दी और इस समझौते की समीक्षा करने का भी फैसला किया। भारत ने यह फैसला पाक पर दबाव बनाने के लिए किया था। ऐसे में चीन का ताजा रुख इस आशंका को बढ़ावा देता है कि कहीं वह पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत पर दबाव तो नहीं बना रहा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन की चाल की धमकी पहले ही दे दी थी।

बहरहाल, शिन्हुआ के मुताबिक, चीन ने इस पनबिजली परियोजना पर वर्ष 2014 में काम शुरू किया था, जिसे वर्ष 2019 तक पूरा करना है। इस परियोजना पर चीन ने 750 मिलियन डॉलर का निवेश किया है और यह उसकी सबसे महंगी परियोजना बताई जा रही है। बता दें कि यह परियोजना तिब्बत के जाइगस में है जो सिक्किम के नजदीक है। जाइगस से ही ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश में दाखिल होती है।

दरअसल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की सक्रियता और खासकर अमेरिका से उसकी बढ़ती नजदीकी चीन को रास नहीं आ रही है। उसकी बौखलाहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया जिस मसूद अजहर को आतंकी मानती है, सारी नैतिकता और मर्यादा को ताक पर रख चीन उसे बचाने में जुटा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र में अगर चीन ने वीटो नहीं लगाया होता तो भारत की मांग पर मसूद को संयुक्त राष्ट्र का आतंकी घोषित कर दिया जाता।

कहने की जरूरत नहीं कि चाहे वीटो कर मसूद को बचाना हो या ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोकना, चीन का एकमात्र मकसद भारत से अपनी कटुता साधना है। पाकिस्तान के साथ उसकी ‘जुगलबंदी’ जगजाहिर है, और अब उस ‘जुगलबंदी’ से बेहयाई के सुर निकल रहे हैं। ये सुर जितने भद्दे हैं, उतने ही खतरनाक भी। भारत को चाहिए कि समय रहते इन ‘मौसेरे भाईयों’ का सही हल निकाल ले।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप   

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भारत ने पाकिस्तान से छीना टेस्ट का ताज

टीम इंडिया ने घरेलू मैदान पर खेले गए अपने 250वें टेस्ट को शानदार जश्न में तब्दील कर दिया। कोलकाता के प्रसिद्ध ईडन गार्डंस पर खेले गए दूसरे टेस्ट के चौथे दिन भारत ने न्यूजीलैंड को 178 रन से हराकर ना केवल तीन मैचों की सीरीज पर कब्जा जमाया, बल्कि अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से टेस्ट में नंबर वन का ताज भी छीन लिया।

विराट कोहली की युवा टीम ने न्यूजीलैंड को 376 रन का विशाल लक्ष्य दिया था जिसका दबाव कीवी झेल नहीं पाए और पूरी टीम 197 रन पर ढेर हो गई। भारतीय गेंदबाजों ने कसी हुई गेंदबाजी की और कीवियों को सांस लेने का मौका नहीं दिया। दूसरी पारी में अश्विन, जडेजा और शमी ने तीन-तीन विकेट आपस में बांटे, जबकि पहली पारी में पाँच विकेट लेने वाले भुवनेश्वर को इस पारी में एक विकेट मिला। पहली पारी में अर्द्धशतक लगाने वाले रिद्धिमान साहा ने दूसरी पारी में भी महत्वपूर्ण 58 रन बनाए। उन्होंने पूरे मैच में 112 रन बनाए और खास बात यह कि दोनों पारियों में अविजित रहे। उनके इस शानदार प्रदर्शन पर उन्हें ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया।

बता दें कि कप्तान कोहली के धुरंधरों ने डेढ़ महीने बाद पाकिस्तान को शीर्ष रैंकिंग से हटाया है। अब भारत की अगली चुनौती होगी कि वह पाकिस्तान को पहले पायदान की पहुँच से दूर रखे। यह तभी संभव है जब वह इंदौर में सीरीज का तीसरा और आखिरी टेस्ट जीते या ड्रॉ कराए। वैसे भारतीय टीम अभी जिस तरह के फॉर्म में है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि निकट भविष्य में पाकिस्तान अपना रुतबा दोबारा हासिल कर पाएगा। गौरतलब है कि टीम इंडिया लगातार 13 मैचों से अजेय है। इसमें 11 जीत और 2 ड्रॉ शामिल हैं। यह भी याद दिला दें कि कोहली के नेतृत्व में यह लगातार चौथी टेस्ट जीत है।

चलते-चलते बता दें कि भारतीय टीम इससे पहले भी शीर्ष पर रह चुकी है। नवंबर 2009 से अगस्त 2011 तक टीम इंडिया आईसीसी की टेस्ट रैंकिंग में शिखर पर रही थी। फिर जनवरी 2016 से फरवरी 2016 के बीच भी वह पहले स्थान पर काबिज हुई थी।

 ‘मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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45 साल में पहली बार, हमने किया एलओसी पार

भारतीय जवानों ने उड़ी में शहीद हुए अपने 18 साथी जवानों की शहादत का बदला ले लिया। उड़ी हमले के 10 दिन बाद हमारे जवान अदम्य साहस का परिचय देते हुए एलओसी के पार करीब तीन किलोमीटर अंदर घुसे और चार घंटे में सात आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूद कर 38 आतंकियों को मार गिराया। 45 साल में पहली बार ऐसा हुआ कि हमने पाकिस्तान को पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) में घुसकर मारा। भारतीय सेना की तैयारी कितनी जबर्दस्त थी, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि इतनी बड़ी कार्रवाई को अंजाम देने के बाद हमारे सभी जवान सुरक्षित वापस लौटे। उनमें से किन्हीं को चोट तक नहीं आई।

भारतीय सेना के इस हमले की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडल समिति की बैठक के बाद की गई। बैठक में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग और सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) रणबीर सिंह मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत 25 देशों के उच्चायुक्तों और राजदूतों को इन हमलों के बारे में सूचित किया। निश्चित रूप से यह उनके कूटनीतिक कौशल का परिचायक है। दूसरी ओर हमारे नैतिक बल की पराकाष्ठा यह कि इस हमले के बाद हमारे सैन्य अभियान महानिदेशक ने पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशक से भी फोन पर बात की और उनसे इस अभियान का ब्योरा साझा किया।

इस हमले के बाद भारतीय सेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ (खास ठिकानों को लक्ष्य बनाकर गुप्त तरीके से हमला करना और यह सुनिश्चित करना कि सिर्फ लक्षित निशाने को ही नुकसान हो) की जानकारी दी गई। भारतीय सैन्य महानिदेशक ने बताया कि हमें अत्यन्त विश्वसनीय सूचना मिली थी कि आतंकी नियंत्रण रेखा पर बने आतंकी शिविरों में जम्मू-कश्मीर और अन्य महानगरों में हमले के उद्देश्य से एकत्र हुए हैं। इसी कारण बिना देर किए उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचा दिया गया।

भारत के इस मुँहतोड़ जवाब के बाद पाकिस्तान बौखलाहट में है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान पलटवार कर सकता है। हालांकि उड़ी के बाद अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बुरी तरह घिर चुके (गौरतलब है कि भारत के कड़े रुख के कारण इस्लामाबाद में प्रस्तावित सार्क सम्मेलन भी रद्द हो चुका है) और अन्दरूनी तौर पर अत्यन्त ‘जर्जर’ पाकिस्तान के लिए ऐसा करना बहुत आसान नहीं है, और अगर वह कोई नापाक हरकत कर भी बैठता है तो भारत इसके लिए पूरी तरह तैयार है।

सबसे अच्छी बात यह कि आतंक के खिलाफ कार्रवाई पर सभी राजनीतिक दल एक हैं। नियंत्रण रेखा पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बाद सभी दलों ने सेना को मुबारकबाद दी और सरकार को यकीन दिलाया कि आतंक के खिलाफ कार्रवाई में वे सरकार के साथ हैं। दूसरी ओर सरकार भी सभी दलों को विश्वास में लेकर चल रही है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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सौ भारतीय अमीरों में दो बिहारी

अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स की 100 सबसे अमीर भारतीयों की वार्षिक सूची में बिहार के दो उद्योगपतियों – संप्रदा सिंह और अनिल अग्रवाल – ने अपनी जगह बनाई है। धनकुबेरों की इस सूची में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी (कुल सम्पत्ति 1.52 लाख करोड़) लगातार नौवें साल शीर्ष पर हैं। सनफार्मा के दिलीप सांघवी (कुल सम्पत्ति 1.13 लाख करोड़) दूसरे और हिन्दूजा बंधु (कुल सम्पत्ति 1 लाख करोड़) तीसरे स्थान पर हैं। बता दें कि फोर्ब्स की सूची में इस साल छह नए अरबपतियों को पहली बार स्थान मिला है, जिनमें सबसे उल्लेखनीय नाम योगगुरु बाबा रामदेव के सहयोगी और पतंजलि आयुर्वेद के सह संस्थापक आचार्य बालकृष्ण का है। 16 हजार करोड़ की सम्पत्ति के साथ बालकृष्ण 48वें स्थान पर हैं।

बहरहाल, फोर्ब्स द्वारा जारी सूची के अनुसार भारत की पाँचवीं सबसे बड़ी फार्मास्युटिकल्स कम्पनी एल्केम लैबोरेट्रिज के मालिक संप्रदा सिंह सबसे अमीर बिहारी हैं और 17.9 हजार करोड़ की सम्पत्ति के साथ सौ अमीर भारतीयों में 42वें स्थान पर हैं। 25 जनवरी 1926 को बिहार के जहानाबाद जिले में जन्मे संप्रदा पिछले साल इस सूची में 47वें स्थान पर थे। संप्रदा ने अपने भाई नरेन्द्र के साथ 1973 में एल्केम लैबोरेट्रिज की स्थापना की थी। उनकी कम्पनी इस वक्त भारत समेत यूरोप, एशिया, दक्षिण अमेरिका और अमेरिका में संचालित होती है। एल्केम फार्मास्युटिकल्स को फार्मा लीडर अवार्ड मिल चुका है। अपने कार्यक्षेत्र में भीष्म पितामह का दर्जा रखने वाले 91 वर्षीय संप्रदा सिंह वर्तमान में सपरिवार मुंबई में रहते हैं।

7.4 हजार करोड़ की सम्पत्ति के साथ खनन व्यापारी अनिल अग्रवाल इस सूची में स्थान बनाने वाले दूसरे बिहारी हैं। इस साल अनिल को 63वां स्थान मिला है, जबकि पिछले साल वे 53वें पायदान पर थे। 2003 में शुरू हुई अनिल की वेदांता रिसोर्सेस लंदन स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज होने वाली पहली भारतीय कम्पनी थी। 24 जनवरी 1954 को बिहार की राजधानी पटना में जन्मे अनिल अग्रवाल ने 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ा और पुणे में अपने पिता के एल्युमीनियम कंडक्टर बनाने के व्यापार में लग गए। 19 साल की उम्र में वे पुणे से मुंबई आए और अपना व्यापार शुरू किया। स्क्रैप मेटल का काम उन्होंने 1970 में शुरू किया और 1976 में शैमशर स्टेर्लिंग कार्पोरेशन को खरीदा। उसके बाद के उनके सफर से दुनिया भलीभांति परिचित है।

आज देश-दुनिया में बिहारी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। यह निश्चित रूप से गौरव का विषय है। इन सामर्थ्यवान बिहारियों की उपलब्धियों में तब चार चाँद लग जाएंगे, जब इनमें से आगे बढ़कर कोई बिहार में नए-नए उद्योगों के विकास के लिए सार्थक पहल करे। जिस दिन बिहार को ‘अमीर’ बनाते हुए कोई बिहारी अमीरों की सूची में शामिल होगा, वो दिन नि:संदेह बिहार के इतिहास में मील का पत्थर कहलाएगा।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप 

 

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आईये, ऑस्कर के द्वार तक पहुँची ‘विसारनाई’ के लिए दुआ करें

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता तमिल फिल्म ‘विसारनाई’ 2017 के ऑस्कर पुरस्कारों की विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टी होगी। विसारनाई ने दौड़ में शामिल ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘सुल्तान’, ‘एयरलिफ्ट’ और ‘उड़ता पंजाब’ समेत कुल 29 फिल्मों को पीछे छोड़ यह उपलब्धि हासिल की है। एम चन्द्रकुमार के उपन्यास ‘लॉक अप’ पर आधारित इस फिल्म के निर्माता दक्षिण भारतीय फिल्मों के अभिनेता धनुष हैं। फिल्म का लेखन और निर्देशन वेट्रिमारन ने किया है और मुख्य भूमिकाएं दिनेश रवि, आनंदी और आदुकलाम मुरूगदेश ने निभाई हैं।

‘विसारनाई’ पुलिस की बर्बरता, भ्रष्टाचार और अन्याय को दिखाती है। फिल्म अपना काम इतनी सहजता और बारीकी से करती है कि आप इसके दृश्यों को जीने लग जाएंगे और सचमुच भूल जाएंगे कि आप  फिल्म देख रहे हैं। इस साल 63वें राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में इसने तीन पुरस्कार – सर्वेश्रेष्ठ तमिल फिल्म, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (समुतिराकनी) और सर्वश्रेष्ठ संपादन (किशोर ते) – हासिल किए थे। 72वें वेनिस फिल्म महोत्सव में भी ‘विसारनाई’ ने झंडे गाड़े थे और एमनेस्टी इंटरनेशनल इटालिया अवार्ड अपने नाम किया था।

ऑस्कर मिलना ना मिलना बाद की बात है। भारत में हर साल बनने वाली हजारों फिल्मों की भीड़ में अपनी ओर ध्यान खींचना और दुनिया भर की चुनिंदा फिल्मों के साथ जा खड़ा होना भी कम बड़ी बात नहीं। इस फिल्म ने साबित किया है कि अच्छे काम को किसी ताम-झाम की जरूरत नहीं। बड़े बजट, बड़े स्टार, बड़ी पब्लिसिटी के बिना भी लोगों के दिल-दिमाग को छुआ और झकझोरा जा सकता है।

छोटी-छोटी उपलब्धियों पर शोर मचाने वालों को यह बता देना भी जरूरी है कि ‘विसारनाई’ से पहले आठ और तमिल फिल्में ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। आईये, ऑस्कर के द्वार तक बड़ी शालीनता से पहुँचने वाली ‘विसारनाई’ की सफलता के लिए दुआ करें।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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और अब पाकिस्तान ने दी एटमी हमले की धमकी

बेशर्मी की पराकाष्ठा देखिए, इधर उड़ी पर आतंकी हमले के बाद मिले सबूत चीख-चीख कर बोल रहे हैं कि इसमें पाकिस्तान की संलिप्तता थी और उधर उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता इस हमले की निन्दा कर रहे हैं। हमले के बाद जारी बयान में पाकिस्तानी प्रवक्ता नफीस जकारिया ने कहा कि भारत ने हमले के तुरंत बाद इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा दिया, जबकि इसकी कोई जांच भी नहीं की गई। हम इस दावे को खारिज करते हैं। साथ ही पाकिस्तान इस तरह को हमलों की निन्दा करता है।

खैर, ये पाकिस्तान का पुराना राग है, जो वो अपनी हर कायराना हरकत के बाद अलापता है। लेकिन दोमुंहेपन की हद ये है कि उसके प्रवक्ता जहाँ इन हमलों की ‘निन्दा’ कर रहे हैं, वहीं उसके विदेश मंत्री भारत पर एटमी हमले की धमकी दे रहे हैं। जी हाँ, पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक साक्षात्कार में कहा है कि भारत द्वारा हमला किए जाने की स्थिति में हम अपने रणनीतिक हथियार परमाणु बम के इस्तेमाल से भी नहीं चूकेंगे। गौरतलब है कि यह साक्षात्कार शनिवार रात को उड़ी हमले से ठीक पहले रिकार्ड किया गया था।

इस साक्षात्कार में पाकिस्तान के रक्षामंत्री से भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के मद्देनज़र निकट भविष्य में युद्ध की आशंका पर सवाल पूछा गया था जिस पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि तुरंत हमले की आशंका है। हालांकि, अल्लाह ने कुरान में कहा है कि अपने घोड़े हमेशा तैयार रखो। इसलिए हम हर समय बाहरी शक्तियों से अपनी आज़ादी के खतरे के प्रति हमेशा तैयार रहते हैं। इसके आगे उन्होंने जोड़ा कि दुनिया परमाणु ताकत में पाकिस्तान की ‘बादशाहत’ को स्वीकार करती है और साथ ही बड़ी निर्लज्जता से ये भी कह डाला कि हमारे पास ‘जरूरत से ज्यादा’ परमाणु हथियार हैं।

बहरहाल, उड़ी पर हुए घिनौने हमले की निन्दा दुनिया भर में हो रही है। अमेरिका, ब्रिटेन समेत तमाम देशों ने बड़े कड़े शब्दों में इस हमले की निन्दा की और भरोसा दिलाया कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में वे हर कदम पर नई दिल्ली का साथ देंगे। परीक्षा की इस घड़ी में आपसी मतभेदों को भूल हमारे देश के तमाम राजनीतिक दल भी एकजुट हैं। सवा सौ करोड़ भारतीय बड़ी अपेक्षा से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर देख रहे हैं। सच यह है कि आतंक के खिलाफ जंग आखिरी दौर में है और अब बात ‘ट्वीट’ से नहीं पाकिस्तान को ‘दो टूक’ जवाब देने से बनेगी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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एक पैर से दुनिया जीतने वाले के लिए कोई जश्न नहीं?

रियो ओलंपिक में साक्षी के कांस्य और सिंधु के रजत पर आप जरूर खुशी से झूम गए होंगे। झूमना भी चाहिए। इन दोनों बेटियों की सफलता पर पूरा देश जश्न मना रहा था। मनाना भी चाहिए। पर क्या हमने रियो में ही स्वर्ण जीतने वाले मरियप्पन थंगावेलू के लिए भी वैसा ही जश्न मनाया? नहीं ना? बता सकते हैं क्यों? क्या इसलिए कि हमारे देश के किसी भी टीवी चैनल ने पैरालंपिक का सीधा प्रसारण नहीं दिखाया? या फिर इसलिए कि पैरालंपिक का आयोजन केवल विकलांग खिलाड़ियों के लिए होता है? अगर ऐसा है तो हमें जरूर जानना चाहिए कि ‘पैरालंपिक’ का ‘ओलंपिक’ से केवल शाब्दिक साम्य ही नहीं है, बल्कि भव्यता और व्यापकता की दृष्टि से भी ये उससे कमतर नहीं। इसे शारीरिक रूप से नि:शक्त खिलाड़ियों का ओलंपिक कहें तो गलत नहीं होगा। आप इसके ‘कैनवास’ का अंदाजा इस बात से लगायें कि इस साल के रियो पैरालंपिक में 176 देशों ने भाग लिया था।

जहाँ तक पैरालंपिक की शुरुआत की बात है, तो आपको बता दें कि 1960 में रोम ओलंपिक खेलों के खत्म होने के एक हफ्ते के बाद अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक खेलों का आयोजन पहली बार किया गया था। लेकिन 1968 में मेक्सिको ने ओलंपिक के बाद पैरालंपिक खेलों का आयोजन करने से इनकार कर दिया था। आगे चलकर 2001 में इसे नियमित कर दिया गया। अब ओलंपिक की मेजबानी करने वाले देश को पैरालंपिक खेलों के लिए भी दावेदारी करनी पड़ती है। हालांकि ये स्पष्ट कर दें कि ओलंपिक और पैरालंपिक का आयोजन बिल्कुल अलग-अलग संस्थाओं के हाथ में है। इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी और इंटरनेशनल पैरालंपिक कमेटी दोनों अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं।

बहरहाल, अनगिनत मुश्किलों और चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए भारत के मरियप्पन थंगावेलू ने रियो पैरालंपिक 2016 में भारत को पुरुषों की टी-42 हाई जंप में गोल्ड मेडल दिलाया। 21 वर्षीय मरियप्पन ने 1.89 मीटर की छलांग लगाकर भारत को ये ऐतिहासिक सफलता दिलाई। भारत के ही वरुण सिंह भाटी ने 1.86 मीटर की छलांग लगाकर इस इवेंट का कांस्य अपने नाम किया। बता दें कि टी-42 वर्ग में वैसे पैरा एथलीट आते हैं जिनके हाथ या पैर के साइज या मांसपेशियों में अन्तर होता है।

मरियप्पन को हाई जंप का गोल्ड मेडल ऐसे ही नहीं मिल गया। उसके पीछे की वजह है कड़ा संघर्ष। मरियप्पन का जन्म तमिलनाडु के सालेम से 50 किलोमीटर दूर पेरिवादमगट्टी गांव में हुआ था। उनकी माँ गांव में ही सब्जियां बेचकर गुजारा करतीं। पर घोर अभाव के बाद भी नियति को शायद मरियप्पन की और परीक्षा लेनी थी। जब वे पाँच साल के थे तब स्कूल जाते वक्त उनके पैर पर बस चढ़ गई। चोट इतनी गंभीर थी कि उनका दायां पैर पूरी तरह से खराब हो गया।

एक पैर खराब होने पर भी मरियप्पन की स्कूल के दिनों में खेलकूद में काफी रुचि थी और वे खासकर वॉलीबॉल खेला करते। इसी दौरान स्कूल के कोच की नज़र उन पर पड़ी। उन्होंने मरियप्पन को वॉलीबॉल छोड़ हाईजंप ज्वाइन करने की सलाह दी और ट्रेंड किया। जब मरियप्पन 14 साल के हुए तब उन्होंने पहली बार एक स्पोर्ट्स इवेंट में हिस्सा लिया और दूसरे नंबर पर रहे। महत्वपूर्ण बात ये कि इस प्रतियोगिता में उन्होंने नॉर्मल एथलीट्स को कम्पीट किया था।

मरियप्पन को नेशनल लेवल पर सफलता दिलाने का श्रेय कोच सत्यनारायण को जाता है। 18 साल की उम्र में वे ही मरियप्पन को नेशनल पैरा-एथेलेटिक्स चैम्पियनशिप में लेकर आए और इसके बाद की कहानी इतिहास है। आपको बता दें कि 1 नवंबर 2015 को मरियप्पन दुनिया के नंबर वन पैरा हाई जंपर बने और रियो पैरालंपिक में गोल्ड जीतने से पहले भी वे आईपीसी ट्यूनीशिया ग्रैंड प्रिक्स में 1.78 मीटर की स्वर्णिम छलांग लगा चुके हैं।

चलते-चलते:

पैरालंपिक के इतिहास में ये भारत का तीसरा गोल्ड मेडल है। मरियप्पन से पहले मुरलीकांत पेटकर (स्विमिंग) 1972 में और देवेन्द्र झाझरिया (जैवलिन थ्रो) 2004 में भारत के लिए स्वर्ण जीत चुके हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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तीन सर्वे में हिलेरी, एक में ट्रंप आगे

8 नवंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए होने वाला चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है। अब तक हिलेरी के पक्ष में एकतरफा-सा दिखने वाला मुकाबला अब कड़ा होता जा रहा है। ना केवल अलग-अलग सर्वे में अपने प्रतिदंवंद्वी ट्रंप के ऊपर दिखने वाली हिलेरी की बढ़त कम हो गई है बल्कि एक सर्वे के अनुसार तो ट्रंप हिलेरी से आगे तक निकलने में कामयाब हो गए हैं। जी हाँ, लॉस एंजिलिस टाइम्स/ यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना के ताजा सर्वे में उन्हें हिलेरी पर तीन प्रतिशत की बढ़त मिली है। हालांकि तीन अन्य राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में अभी भी हिलेरी आगे चल रही हैं।

डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को पीपीपी (डी) के सर्वे में पाँच, एनबीसी न्यूज सर्वे में छह और मानमाउथ यूनिवर्सिटी के सर्वे में सात प्रतिशत की बढ़त बताई गई है। सभी सर्वेक्षणों पर नजर रखने वाली रियल क्लियर पॉलिटिक्स ने उनकी औसत बढ़त नौ प्रतिशत बताई है। लेकिन ये सभी सर्वेक्षण हिलेरी की लोकप्रियता में गिरावट का भी संकेत दे रहे हैं। गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में ट्रंप पर उन्हें 13 प्रतिशत की बढ़त मिली थी।

इसके बावजूद हिलेरी की जीत की संभावना प्रबल है। इसका कारण पेंसिल्वेनिया, फ्लोरिडा, ओहायो, आयोवा, नेवादा, न्यू हेम्पशायर, मिशिगन, वर्जीनिया, जॉर्जिया और नार्थ कैरोलिना जैसे मह्तवपूर्ण राज्यों में उनकी बढ़त बरकरार रहना है। इन राज्यों में उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी पर औसत दस प्रतिशत की बढ़त प्राप्त है। वैसे तमाम ‘विरोधों’ और ‘विरोधाभासों’ के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने से लेकर अब तक ट्रंप ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क की राजनीति में जिस तरह अपनी जगह बनाई है और देश-विदेश में जितनी चर्चा पाई है उससे उनके कटु आलोचक भी हतप्रभ हैं और ये कतई छोटी बात नहीं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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‘मदर’ ने पूरा किया ‘सिस्टर’ से ‘संत’ का सफर

आज सारी दुनिया एक ऐतिहासिक पल की गवाह बनी। गरीबों और बेसहारा लोगों के लिए जीवन समर्पित करने वाली ‘भारतरत्न’ मदर टेरेसा को वेटिकन सिटी में संत की उपाधि दी गई। ईसाइयों के धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने लगभग एक लाख श्रद्धालुओं की मौजूदगी में उन्हें ‘संत’ की उपाधि से नवाजा। इस दौरान पीटर्स बेसीलिका पर मदर टेरेसा की एक बड़ी तस्वीर लगाई गई थी, जिसमें वह नीचे लोगों की ओर मुस्कराती प्रतीत हो रही थीं। गौरतलब है कि मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि उनकी 19वीं पुण्यतिथि से एक दिन पहले दी गई है। अब वो ‘संत मदर टेरेसा ऑफ कोलकाता’ के नाम से जानी जाएंगी।

मदर टेरेसा ने सिस्टर से संत बनने का सफर भारत में पूरा किया था। यहीं से उनकी ममता और करुणा की ज्योति पूरे संसार में फैली। स्वाभाविक है कि इस बेहद खास मौके पर वहाँ भारत का प्रतिनिधित्व हो। लिहाजा भारत की महानतम शख्सियतों में शुमार ‘मदर’ को संत की उपाधि दिए जाने के समय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ वेटिकन सिटी में मौजूद थीं। केन्द्रीय प्रतिनिधिमंडल के अलावा दिल्ली और पश्चिम बंगाल से दो राज्यस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी रोम में थे, जिनका नेतृत्व क्रमश: अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी ने किया। मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की सुपीरियर जनरल सिस्टर मेरी प्रभा के नेतृत्व में देश के विभिन्न हिस्सों से आईं लगभग 50 ननों का एक समूह भी इस समारोह के दौरान मौजूद रहा।

मेसेडोनिया की राजधानी स्कोप्ये में कोसोवर अल्बेनियाई माता-पिता के घर जन्मी मदर टेरेसा का मूल नाम गोंक्जा एग्नेस था। 1928 में महज 18 साल की उम्र में नन बनने की खातिर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। घर छोड़ने के बाद वो आयरलैंड स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी (सिस्टर्स ऑफ लोरेटो) के साथ जुड़ गईं। यहाँ उन्हें नया नाम मिला – सिस्टर मेरी और वो कोलकाता के लिए निकल पड़ीं। वर्ष 1931 में वो कोलकाता की लोरेटो एन्टाली कम्यूनिटी से जुड़ीं और लड़कियों के सेंट मेरी स्कूल में पढ़ाने लगीं। बाद में वो प्रिंसिपल बनीं। 1937 के बाद से उन्हें मदर टेरेसा के नाम से पुकारा जाने लगा। कहा जाता है कि 1941 में एक ट्रेन यात्रा के दौरान ईश्वर ने उन्हें गरीबों के लिए काम करने को प्रेरित किया। इसके बाद वो लोरेटो से इजाजत लेकर 1948 में मेडिकल ट्रेनिंग के लिए पटना आईं।

ये कम लोगों को पता है कि मदर टेरेसा ने पटना सिटी में होली फैमिली अस्पताल में मेडिकल ट्रेनिंग ली थी। पटना में ये अस्पताल पादरी की हवेली (सेंट मेरी चर्च) से सटा है। तीन महीनों की ट्रेनिंग के दौरान मदर इस हवेली के एक छोटे से कमरे में रहती थीं। उनकी याद में इस कमरे को अब तक सहेज कर रखा गया है। कहने की जरूरत है कि मदर को संत घोषित किए जाने के बाद ये जगह किसी तीर्थ से कम नहीं होगी। बहरहाल, 1948 के बाद ही मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की स्थापना की और उसके बाद की कहानी से पूरी दुनिया वाकिफ है। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था और 1980 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से नवाजा गया था।

मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने के लिए जरूरी था कि वैटिकन मदर टेरेसा से मदद के लिए की गई प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप हुए दो चमत्कारों को मान्यता दे। इस संबंध में स्मरणीय है कि 2002 में पोप ने एक बंगाली आदिवासी मोनिका बेसरा के ट्यूमर ठीक होने को मदर का पहला चमत्कार माना था। इसके बाद 2015 में ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त एक ब्राजीलियन पुरुष के ठीक होने को उनका दूसरा चमत्कार माना गया। दूसरे चमत्कार को मान्यता मिलने के साथ ही उन्हें ‘संत’ घोषित करने का रास्ता साफ हो गया था।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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मोदीविरोध के ‘तवे’ पर पाकिस्तान की ‘रोटी’

सच से पुराना बैर है पाकिस्तान का। भारत के खिलाफ अपनी भोली जनता की भावनाएं भड़का कर ‘रोटी’ सेकना कोई उससे सीखे। हालांकि पाकिस्तान के लिए ये कोई नई बात नहीं, पर ताजा मामले में तो ‘मर्यादा’ की हर सीमा ही लांघ दी उसने। जी हाँ, पाकिस्तान की पंजाब असेंबली ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। चौंक गए ना? अब जरा कारण भी जान लें। शायद आपको स्मरण हो कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण के दौरान बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि वहाँ और पीओके के लोगों ने उनकी समस्या उठाने के लिए उनको धन्यवाद ज्ञापित किया है। बस यही बात पाकिस्तान को चुभ गई। वहाँ की पंजाब असेंबली को ये बात इतनी नागवार गुजरी कि उसने पाकिस्तान की संघीय सरकार से इस मामले को संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने की अपील की है।

गौरतलब है कि पंजाब प्रांत की असेंबली में वहाँ के कानून मंत्री राणा सनाउल्लाह ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया और यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास भी हो गया। प्रस्ताव में कहा गया कि सदन बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान पर मोदी के बयानों की कड़ाई से निन्दा करता है। सदन ने कहा कि पाकिस्तान की संघीय सरकार को चाहिए कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र समेत दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाए। विश्व को यह बताने की जरूरत है कि मोदी सरकार पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है।

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के विधायक खुर्रम वाट्टू ने तो दो कदम आगे बढ़कर सदन से यहाँ तक कहा कि भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ने के लिए संघीय सरकार से गुजारिश की जाए। वहीं पंजाब असेंबली में विपक्ष के नेता राशिद ने आरोप लगाया कि मोदी का बयान उनकी असहिष्णुता की नीति और दूसरे राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को दर्शाता है।

यहाँ गौर करने की बात ये है कि भारत-विरोध के नाम पर पाकिस्तान की तमाम पार्टियां कुल मिलाकर एक ही राग अलापती हैं। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह विफल हो चुके पाक के जिस्म पर ना जाने कितने ‘पैबंद’ लगे हैं, जिन्हें जनता की नज़रों में जाने से रोकने के लिए पाक का राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व प्रारम्भ से बस भारत-विरोध का झंडा उठाता आया है। वैसे सच कहा जाय तो जहाँ ‘हाफिज सईद’ जैसों को पलकों पर रखा जाता हो वहाँ नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने पर हमें आश्चर्य होना ही नहीं चाहिए।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप    

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