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इंग्लैंड को फिर धूल चटाई भारत ने

विजय-रथ पर सवार भारत ने इंग्लैंड को चेन्नै टेस्ट में एक पारी और 75 रन से हराकर 5 मैचों की टेस्ट सीरीज पर 4-0 से कब्जा कर लिया। इस मैच में तिहरा शतक जड़ने वाले करुण नायर को ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया, वहीं सीरीज में 655 रन बनाने वाले कप्तान विराट कोहली ‘मैन ऑफ द सीरीज’ घोषित किए गए।
भारत ने मंगलवार को इंग्लैंड की दूसरी पारी को महज 207 रनों पर समेट दिया। भारत की ओर से इस पारी में रवीन्द्र जडेजा ने 7 विकेट लिए। चेन्नै टेस्ट में जडेजा के नाम कुल 10 विकेट रहे। इससे पहले इस मैच में भारत ने अपनी पहली पारी 7 विकेट पर 759 रन बनाकर घोषित की थी। इस पारी में करुण नायर ने नॉट आउट 303 रन बनाए, वहीं एक रन से दोहरा शतक चूक गए ओपनर केएल राहुल ने 199 रन बनाकर भारत की मजबूत बुनियाद रखी।
इस मैच के बाद भारतीय कप्तान विराट कोहली टेस्ट मैचों में अजेय रहने के मामले में पूर्व कप्तान कपिल देव से आगे निकल गए हैं। कपिल की कप्तानी में टीम इंडिया सितंबर 1985 से मार्च 1987 के बीच 17 टेस्ट मैच तक अजेय बनी रही। जबकि विराट कोहली की यह टीम 18 मैचों से अजेय है। इसके साथ ही टीम इंडिया टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 के पायदान पर भी बुलंदी के साथ काबिज है।
भारत के लिए यह सीरीज हर लिहाज से शानदार रही। करुण नायर और जयंत यादव जैसे खिलाड़ी इसी सीरीज की खोज हैं। कोहली, नायर और राहुल की शानदार बल्लेबाजी, आर अश्विन के लाजवाब 28 विकेट और जडेजा एवं यादव के ऑलराउड खेल के लिए यह सीरीज लम्बे समय तक याद रखी जाएगी। वैसे इस सीरीज में टीम इंडिया का शायद ही कोई खिलाड़ी हो जिसने किसी-न-किसी पारी में यादगार योगदान न दिया हो।

“मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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ओबामा, ट्रम्प और असांजे मिलकर भी मोदी से पीछे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘टाइम’ के ‘पर्सन ऑफ द इयर’ खिताब के लिए ऑनलाइन रीडर्स पोल जीत लिया है। इस खिताब के लिए उनका मुकाबला दुनिया भर के कई राजनेताओं, कलाकारों और अन्य क्षेत्रों की बड़ी हस्तियों के साथ है। गौरतलब है कि पाठकों द्वारा दिए जाने वाले वोटों के हिसाब से मोदी पहले नंबर पर जरूर हैं लेकिन यह खिताब किसे दिया जाए, इसका अंतिम निर्णय पत्रिका के संपादकों द्वारा किया जाता है। विजेता के नाम की घोषणा 7 दिसंबर को की जाएगी।

बहरहाल, रविवार रात को बंद की गई वोटिंग में मोदी को 18 प्रतिशत पाठकों के वोट मिले। दिलचस्प बात यह कि भारतीय प्रधानंमंत्री का नजदीकी मुकाबला जिन तीन महारथियों – बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रम्प और जूलियन असांजे – से रहा, वे तीनों एक साथ मिलकर भी महज 7 प्रतिशत वोट ही हासिल कर पाए। इस खिताब की दावेदारी में हिलेरी क्लिंटन (4 प्रतिशत) और मार्क जुकरबर्ग (2 प्रतिशत) भी थे। लेकिन मोदी ने लोकप्रियता में सबको बहुत पीछे छोड़ दिया। मोदी को मिले वोटों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि उन्हें न केवल भारत से बल्कि अमेरिका के कैलिफोर्निया और न्यू जर्सी जैसे शहरों से भी काफी वोट मिले।

बता दें कि हर वर्ष ‘टाइम’ पत्रिका साल के सबसे प्रभावशाली शख्स का चुनाव करती है। इस खिताब के लिए चुनी गई हस्ती को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही कारणों से चुना जा सकता है। किस शख्स का प्रभाव इस साल पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा रहा, इस आधार पर विजेता के नाम का चुनाव किया जाता है। वैसे यह लगातार चौथा साल है, जब इस खिताब के दावेदारों में मोदी को शुमार किया गया है। इससे पहले साल 2014 में भी मोदी को ‘टाइम पर्सन ऑफ द इयर’ के ऑनलाइन पोल में जीत मिली थी, लेकिन पत्रिका के संपादकों द्वारा इस खिताब के लिए चुने गए आठ लोगों की सूची में वे जगह नहीं बना सके थे। चलते-चलते यह भी बता दें कि साल 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, 2013 में पोप फ्रांसिस, 2014 में इबोला फाइटर्स और 2015 में जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल को ‘टाइम पर्सन ऑफ द इयर’ घोषित किया गया था।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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अमेरिका को थर्राने वाले फिदेल कास्त्रो नहीं रहे

क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति और वहाँ की विश्वप्रसिद्ध क्रांति के जनक फिदेल कास्त्रो नहीं रहे। अमेरिका के पड़ोस में रहकर 50 साल तक उसकी आँख की किरकिरी बने रहे इस कम्युनिस्ट सिपाही ने शुक्रवार को हमेशा के लिए आँखें मूंद लीं। जैतून के रंग की वर्दी, बेतरतीब दाढ़ी और सिगार पीने के अपने अंदाज के लिए मशहूर कास्त्रो न केवल दुनिया के सबसे बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में शुमार किए जाते थे बल्कि वे दुनिया के तीसरे ऐसे नेता थे जिन्होंने किसी देश पर लंबे समय तक राज किया हो। उन्होंने साल 1959 में क्यूबा की सत्ता संभाली और साल 2008 में खराब स्वास्थ्य के कारण सत्ता अपने भाई राउल कास्त्रो को सौंपी। हालांकि तब भी पर्दे के पीछे असली ताकत वही बने रहे।

क्यूबा के समयानुसार शुक्रवार रात साढ़े दस बजे मौजूदा राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने सरकारी टेलीविजन से घोषणा की कि क्यूबा की क्रांति के सर्वोच्च कमांडर फिदेल अब नहीं हैं। इस घोषणा के साथ ही क्यूबा शोक में डूब गया और सड़कें सूनसान हो गईं। वहाँ पूरे नौ दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है। बता दें कि कास्त्रो को चाहने वाले भारत समेत दुनिया भर में हैं। भारत के तो वे अभिन्न मित्र थे। खासतौर पर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से उनके बड़े प्रगाढ़ संबंध रहे।

फिदेल कास्त्रो साम्यवादी व्यवस्था के बहुत बड़े और मजबूत स्तम्भ थे, इतने मजबूत कि सोवियत संघ के टूट जाने के बाद भी उसमें ‘दरारें’ तक नहीं आईं। साम्राज्यवादी व्यवस्था के शोषण के खिलाफ लड़कर उन्होंने क्यूबा में साम्यवादी सत्ता स्थापित की थी। अमेरिका की दहलीज के इतने करीब होते हुए भी उन्होंने ताज़िन्दगी क्यूबा में पूंजीवादी व्यवस्था को घुसने नहीं दिया। शायद यही वजह रही कि क्यूबा की गिनती आज भी दुनिया की सबसे खुशहाल जनता वाले देशों में होती है।

अमेरिका के खिलाफ खुलकर बोलने वाली इतनी मजबूत आवाज़ अब शायद कभी न हो। उनकी एक आवाज़ से पूरा अमेरिका थर्रा जाता था। 1962 में शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ को अपनी सीमा में अमेरिका के खिलाफ मिसाइल तैनात करने की मंजूरी देकर उन्होंने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। इस शख्स से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश कितना घबराता था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने उन्हें एक अनुमान के मुताबिक 638 बार मारने की योजना बनाई पर कास्त्रो हर बार बच निकले। अमेरिका के एक नहीं, दो नहीं पूरे 11 राष्ट्रपति आए और चले गए पर कास्त्रो जहाँ थे वहीं रहे, चट्टान की तरह अडिग। उन्होंने डटकर आइजनहावर से लेकर क्लिंटन तक का सामना किया, अमेरिका की ओर से लगाए गए सभी आर्थिक प्रतिबंधों को झेला और तमाम साजिशों को अपनी चतुराई और कूटनीति से नाकाम किया। हाँ, ओबामा के शासनकाल में अमेरिका और क्यूबा के संबंधों में नए अध्याय जरूर जुड़े।

13 अगस्त 1926 को जन्मे कास्त्रो के पिता एक समृद्ध स्पेनी प्रवासी जमींदार थे और उनकी माँ क्यूबा की निवासी थीं। बचपन से ही कास्त्रो चीजों को बहुत जल्दी सीख जाते थे। वह बेसबॉल के प्रशंसक थे और कभी उनका सपना था कि नामचीन अमेरिकी लीगों में खेलें और खेल ही में अपना भविष्य बनाएं। लेकिन उनकी राह तो राजनीति देख रही थी। उन्हें आधुनिक क्यूबा का इतिहास जो गढ़ना था।

चलते-चलते

कास्त्रो जितने तेजतर्रार व्यक्तित्व के धनी थे, वक्ता भी उतने ही शानदार थे। संयुक्त राष्ट्र में सबसे लंबा भाषण देने का गिनीज रिकॉर्ड उन्हीं के नाम दर्ज है। उन्होंने 29 सितंबर 1960 को संयुक्त राष्ट्र में 4 घंटे 29 मिनट का भाषण दिया था। इतना ही नहीं, क्यूबा में में 1986 में दिया उनका एक भाषण तो 7 घंटे 10 मिनट लंबा था।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप    

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हम क्यों मनाते हैं बाल दिवस ?

14 नवंबर यानि चाचा नेहरू का जन्मदिन जिसे हम बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। अगर पूछा जाय कि क्यों मनाते हैं तो आपका जवाब होगा कि ऐसा इसलिए क्योंकि पं जवाहरलाल नेहरू बच्चों से बहुत स्नेह करते थे। आपकी ये बात सही तो होगी लेकिन अधूरी होगी क्योंकि पं. नेहरू बच्चों से केवल स्नेह ही नहीं करते थे, प्रौढ़ों और युवाओं की तुलना में उन्हें अधिक महत्व भी देते थे।

पं. नेहरू का स्पष्ट मानना था कि आज जन्मा शिशु भविष्य में राजनीतिज्ञ, शिक्षक, लेखक, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या फिर किसान और मजदूर ही क्यों न बने, राष्ट्र निर्माण का दायित्व उन्हीं के कंधों पर होता है। कहने का तात्पर्य यह कि पं. नेहरू बच्चों को देश का भविष्य मानते थे और यही इस दिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का औचित्य है। बल्कि और बेहतर तरीके से यह कहा जाना चाहिए कि 14 नवंबर केवल स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को याद करने का दिन ही नहीं, उनके बहाने बच्चों में विश्वास जताने का दिन भी है।

वैसे जब हम बाल दिवस की बात कर ही रहे हैं तो हमें यह जरूर जानना चाहिए कि बाल दिवस केवल भारत में ही नहीं दुनिया भर में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग तारीखों में। चलिए जानते हैं कैसे हुई इसकी शुरुआत?

असल में बाल दिवस की नींव 1925 में रखी गई थी, जब बच्चों के कल्याण पर विश्व-कांफ्रेंस में बाल दिवस मनाने की घोषणा हुई। 1954 में इसे दुनिया भर में मान्यता मिली। संयुक्त राष्ट्र ने यह दिन 20 नवंबर के लिए तय किया लेकिन अलग-अलग देशों में यह अलग दिन मनाया जाता है। हालांकि कुछ देश 20 नवंबर को भी बाल दिवस मनाते हैं। 1950 से बाल संरक्षण दिवस यानि 1 जून भी कई देशों में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

खैर, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाल दिवस हम 14 नवंबर को मनाते हैं, 20 नवंबर को मनाते हैं, 1 जून को मनाते हैं या किसी और दिन। महत्वपूर्ण यह है कि हम इस दिन पं. नेहरू के बच्चों में जताए विश्वास को याद करें। हम जानें और मानें कि हर बच्चा खास है और देश के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें बेहतर जीवन देना बेहद जरूरी है। इन बच्चों का शरीर, मस्तिष्क या संस्कार जितना कुपोषित होगा, हमारे समाज, देश और दुनिया को भी उसी अनुपात में कुपोषण झेलना पड़ेगा, इस सच से नज़र चुराने की भूल हमें हरगिज नहीं करनी चाहिए। यही इस दिन का संदेश है।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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अमिताभ और प्रियंका नहीं मोदी होंगे अतुल्य भारत अभियान का चेहरा

पर्यटन को बढ़ावा देने वाले अतुल्य भारत (इन्क्रेडिबल इंडिया) अभियान का चेहरा अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी होंगे। पर्यटन मंत्रालय ने अमिताभ बच्चन समेत बॉलीवुड के अन्य सितारों को अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाने का विचार छोड़ दिया है। गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में अभिनेता आमिर खान को हटाए जाने के बाद ब्रांड एंबेसडर के रूप में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा को लाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे।

पर्यटन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पिछले ढाई वर्षों के दौरान देश और विदेश में पर्यटन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों की विशेषता और विविधता का वर्णन बड़े ही प्रभावशाली तरीके से किया है। पर्यटन मंत्रालय प्रधानमंत्री द्वारा अलग-अलग स्थानों और अवसरों पर कही गईं ऐसी तमाम बातों एवं वक्तव्यों के विडियो फुटेज को जुटाने में लगा हुआ है। इन्हीं फुटेजों का इस्तेमाल अतुल्य भारत अभियान में किया जाएगा।

भारत के पर्यटन मंत्री महेश शर्मा इससे पूर्व कह चुके हैं कि अतुल्य भारत अभियान को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री सबसे उपयुक्त चेहरा हैं। जिन देशों का उन्होंने दौरा किया है, वहाँ से पर्यटकों के आगमन में उछाल देखा गया है। बकौल शर्मा पिछले दो वर्षों में प्रधानमंत्री के कई देशों के दौरे से भारत को लेकर धारणा में उल्लेखनीय बदलाव आया है। ऐसे में भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उनसे बेहतर चेहरा और कौन हो सकता है!

पर्यटन मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर जो राय रखी है उससे इनकार नहीं किया जा सकता। अपने सघन और प्रभावशाली विदेशी दौरों से मोदी सम्पूर्ण विश्व में भारत के ब्रांड एंबेसडर के तौर पर उभरे हैं। अपनी वक्रता और कुशल कूटनीति से भारतीय संस्कार और संभावनाओं का उन्होंने एक नया आयाम रच दिया है। विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सचमुच अब बॉलीवुड के किसी चेहरे की आवश्यकता हमें नहीं है। देर से लिए गए इस दुरुस्त निर्णय के लिए पर्यटन मंत्रालय को बधाई!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप  

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अमेरिका में अबकी बार ट्रंप सरकार

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे। तमाम भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए 70 वर्षीय ट्रंप ने मजबूत मानी जा रही 69 वर्षीया हिलेरी को मात दे दी और सारी दुनिया को हतप्रभ कर दिया। अभी से साल भर पीछे चल कर देखें। बहुत कम लोग मान रहे थे कि वो राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हो पाएंगे, लेकिन वो हुए। इसके बाद फिर से बहुत कम लोग मान रहे थे कि वो रिपब्लिकन नॉमिनेशन तक पहुँचेंगे, लेकिन वो पहुँचे। और उसके बाद एक बार फिर बहुत कम लोग मान रहे थे कि वो अंतिम मुकाबला जीत पाएंगे, लेकिन वो जीते। जीते ही नहीं, बहुत शान से जीते और इतिहास रच दिया। जी हाँ, राजनीति के लिए एक बाहरी व्यक्ति रहे डोनाल्ड जॉन ट्रंप ने महज 18 महीने के राजनीतिक करियर में हाल के अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर कर दिया।

ट्रंप ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को केवल हराया ही नहीं, बल्कि बड़े अंतर से हराया। अमेरिका के 50 में से 29 राज्य ट्रंप की झोली में आ गिरे, जिनमें पेंसिल्वेनिया, ओहायो, फ्लोरिडा, टेक्सास और नॉर्थ केरोलिना जैसे निर्णायक राज्य शामिल हैं, जबकि हिलेरी को केवल 18 राज्यों में ही कामयाबी मिल पाई। देश की प्रथम महिला और विदेश मंत्री रहीं हिलेरी का अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का सपना इस परिणाम के साथ ही टूट गया। अपनी अभूतपूर्व जीत के बाद सबके लिए अच्छा दिखने की कोशिश कर रहे ट्रंप ने हिलेरी की तारीफ की और कहा कि उन्होंने अच्छी टक्कर दी। साथ में वो यह कहना भी नहीं भूले कि “मेरी जीत उनकी है जो अमेरिका से प्यार करते हैं।”

ट्रंप को 538 इलेक्टोरल वोटों में से 288 और हिलेरी को 215 वोट मिले। गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोटों की जरूरत पड़ती है। खास बात यह कि ट्रंप ने उन कुछ राज्यों में भी हिलेरी के मुकाबले बढ़त बनाई, जहाँ पहले डेमोक्रैट उम्मीदवार के जीतने की संभावना जताई जा रही थी। वॉल स्ट्रीट जनरल का कहना है कि पेंसिल्वेनिया में ट्रंप की जीत ने हिलेरी की जीत की संभावनाओं को पूरी तरह धूमिल कर दिया।

अपने बड़बोलेपन, मुस्लिम विरोधी बयान और यौन उत्पीड़न जैसे कई विवादों में घिरे होने के बावजूद ट्रंप की जीत सत्ता विरोधी लहर की ओर संकेत करती है। जिन राज्यों और काउंटियों में चार साल पहले मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा को वोट मिले थे वहाँ इस बार ट्रंप के पक्ष में वोट पड़ना साबित करता है कि लोग बदलाव चाहते थे। ट्रंप की इस जीत में अमेरिका के श्वेत लोगों, कामकाजी वर्ग और ग्रामीण आबादी का बड़ा योगदान माना जा रहा है।

ट्रंप की इस ऐतिहासिक जीत के बाद कहा जा रहा कि भारत-अमेरिका रिश्ते आने वाले दिनों में और भी प्रगाढ़ होंगे। पाकिस्तान और चीन जैसे ‘बिगड़ैल’ पड़ोसियों को ध्यान में रखते हुए ये प्रगाढ़ता जितनी भारत के लिए जरूरी है, उससे जरा भी कम जरूरी अमेरिका के लिए नहीं। कारण यह कि वैश्विक आतंकवाद और अमेरिका की अर्थनीति पर ट्रंप जिस बेबाकी से अब तक अपनी राय रखते आ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान और चीन को वे उनकी ‘सीमा’ में रखना चाहेंगे और इसके लिए उन्हें भारत से बेहतर और भरोसेमंद सहयोगी नहीं मिल सकता।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप  

 

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हमारी दीपावली से अब सारा संसार जगमगाता है

दीपों का उत्सव, प्रकाश का पर्व, तमाम आसुरी वृत्तियों पर विजय का उद्घोष – दीपावली। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अधेरी रात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध, सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां लक्ष्मी अंश रूप में ठहर जाती हैं। पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ दीपावली पर उनका आह्वान करें तो प्रसन्न होकर सद्गृहस्थों के घर वो स्थायी रूप से निवास करती हैं। लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए ही व्यापारियों में आज ही के दिन बही-खाता बदलने की परंपरा है।

धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा रावण का संहार कर अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के आगमन और उनके राज्यारोहण पर दीपमालाओं का महोत्सव मनाया था। अद्भुत संयोग है कि आगे चलकर इसी दिन सम्राट् विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ। बता दें कि विक्रम संवत् का आरम्भ भी इसी दिन माना जाता है। यह भी मान्यता है कि दीपावली की अमावस्या से ही पितरों की रात्रि प्रारम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए भी सर्वत्र दीप व आतिशबाजी के माध्यम से प्रकाश की व्यवस्था की जाती है। इस तरह कहा जा सकता है कि अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ प्रकाश-पथ पर अग्रसर करने का पुनीत पर्व है दीपावली।

हमारे वेदों-उपनिषदों ने हमें ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का जो पाठ पढ़ाया उसे भारत समेत दुनिया भर में फैलाने का श्रेय दीपावली को ही जाता है। आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं रह गई है। इसे संसार के हर कोने में मनाया जाता है। सच तो यह है कि क्रिसमस और ईद की तरह आलोक का यह पर्व भी अब विश्वपर्व कहलाने का अधिकारी है।

दरअसल भारत से दशकों पहले (1834 से 1884 के बीच) सात समंदर पार चले गए भारतीय अपने तीज-त्योहारों को आज तक नहीं भूले। उदाहरण के तौर पर त्रिनिदाद और टोबैगो की ही बात करें। यहाँ भारतवंशियों की पहली टुकड़ी पहुँची थी। आज यहाँ की एक चौथाई आबादी हिन्दू है। दीपावली के पर्व पर यहाँ राष्ट्रीय अवकाश होता है। भारत में हमलोग भले ही मोमबत्ती को दीये के विकल्प के तौर पर अपनाने लगे हों, लेकिन इस दिन यहाँ हर घर को आप मिट्टी के दीये से ही सजा पाएंगे। इस कैरिबियाई टापू देश के पास स्थित देश गुयाना में भी आलोक के इस पर्व को बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है।

त्रिनिदाद और टोबैगो तथा गुयाना की तरह ही फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, सिंगापुर, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा, बंगलादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड्स, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी दीपावली की छटा देखी जा सकती है।

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी को फोन कर दीपावली की बधाई दी थी। उसके बाद हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह जानकर अच्छा लगा कि व्हाइट हाउस में भी दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। बता दें कि वर्ष 2009 में पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर ओबामा ने व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में दीपोत्सव का परंपरागत दीया जलाया था। अब तो आलम यह है कि अमेरिका में चल रहे वर्तमान राष्ट्पति चुनाव के दोनों उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप दीपावली के पहले से ही भारतवंशियों के बीच जाकर दीये जला रहे हैं।

आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में दीपावली के दिन सरकारी छुट्टी होती है, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो दीपावली पर आयोजित कार्यक्रम में कुर्ता-पायजामा पहनकर पंजाबी गाने पर डांस करते हैं और हिन्दुओं को दोयम दर्जा देने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तक इस दिन हिन्दुओं को संबोधित करते हैं। दक्षिण अफ्रीका के जोहांबर्ग के निकट लेनासिया और चैट्सवर्थ और डरबन के फोनेक्स में तो दीपावली बहुत ही भव्य तरीके से मनाई जाती है। इतना ही नहीं, पड़ोसी देश नेपाल में दीपावली का पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है और लक्ष्मीपूजा के दिन से ही नेपाल संवत् शुरू होता है।

सच तो यह है कि दीपावली का यह प्रसार अकारण नहीं है। दीपावली में छिपा संदेश है ही इतना व्यापक कि इसमें समूचे संसार की संवेदना समा जाय। तो आईये, इस बार हम बाकी दीयों के साथ-साथ एक दीया विश्वपर्व दीपावली के निमित्त अपने गौरव के लिए भी जलाएं। और हां, हर दीये से पहले एक दीया हमारे लिए शहीद हुए उड़ी के वीर जवानों के लिए जलाएं। ये जवान न हों तो कैसी होली, कैसी ईद, कैसी बैसाखी, कैसा क्रिसमस और कैसी दीपावली? शुभ दीपावली!

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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भारत लगातार तीसरी बार बना कबड्डी का विश्वचैम्पियन

भारत ने कबड्डी वर्ल्ड कप में एक बार फिर से इतिहास रचते हुए खिताब पर अपना कब्जा कायम रखा। शनिवार को अहमदाबाद के ‘द एरेना बाय ट्रांसस्टेडिया’ पर ईरान की टीम को 38-29 से रौंद कर भारत लगातार तीसरी बार विश्वचैम्पियन बना। हालांकि मैच की शुरुआत में ईरानी टीम ने भारत पर दबाव बना दिया था और मैच के दूसरे हाफ में भी वह बहुत देर तक भारत से आगे चल रही थी, पर भारत की इस जीत के नायक रहे अजय ठाकुर ने शानदार खेल दिखाते हुए न केवल मैच में भारत की वापसी कराई बल्कि जीत की यादगार हैट्रिक की मुश्किल दिख रही राह भी आसान कर दी।

सांस रोक देने वाले फाइनल मुकाबले में एक समय 19-14 से पिछड़ रही भारतीय टीम ने अजय ठाकुर की शानदार रेड के बाद वापसी की और एक ही बार में ईरान के दो खिलाड़ियों को बाहर कर दिया। इसके बाद भारत ने मैच में पकड़ बनाए रखी। एक वक्त पर 5 अंकों से पिछड़ रही टीम इंडिया ने स्कोर को 20-20 से बराबर कर दिया और ईरान की टीम को ऑल आउट कर मैच में 24-21 की बढ़त ले ली। इसके बाद भारत ने कोई गलती नहीं कि और मैच अपने नाम कर लिया। अजय ठाकुर के साथ ही प्रदीप, अनूप, सुरजीत समेत बाकी खिलाड़ियों ने भी शानदार खेल दिखाया।

जो जीता वही सिकंदर – इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन ईरान की टीम को भी दाद देनी होगी कि उसने मैच में फेवरेट मानी जा रही भारतीय टीम को कड़ी चुनौती पेश की। अपनी रेड और मजबूत डिफेंस से ईरान ने जता दिया कि इस खिताब के लिए वह सब कुछ झोंक देने के इरादे से उतरा है। पर अंत में भारतीय टीम ने अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाते हुए विश्वविजेता का खिताब बरकरार रखा।

भारत की इस जीत ने बता दिया कि क्यों उसे कबड्डी का पर्याय माना जाता है। आज पूरा देश टीम इंडिया की इस उपलब्धि पर गौरवान्वित हो रहा है। पर यहाँ एक सवाल पूछने को दिल करता है कि क्या कबड्डी का विश्वविजेता कहलाना क्रिकेट या बाकी खेलों का विश्वविजेता कहलाने से कमतर है? क्या ऐसी उपलब्धियों पर होने वाली खुशियों में कोई फर्क है? अगर नहीं तो हम क्रिकेट के सामने बाकी खेलों का दर्जा दोयम क्यों कर देते हैं?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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संस्कृति रामायण तो धर्म इस्लाम !

जहां एक ओर इंडिया में बापू की तस्वीर नोटों पर छपती रही है और उनका भजन ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम…… यानी गंगा-जमुनी संस्कृति सदा से चलती रही है, वहीं दूसरी ओर दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में धर्म इस्लाम का और संस्कृति रामायण की भली-भांति फलती-फूलती रही है तथा वहां के सभी लोग रामायण के दीवाने दिखते रहे हैं |

तभी तो इंडोनेशिया के ‘नोट’ के एक तरफ (रामायण के राम ने जिस देवाधिदेव महादेव की पूजा-अर्चना बारंबार की है, उन्हीं के पुत्र) ‘गणेश जी’ की तस्वीर छपती है तो दूसरे हिस्से पर वहां के बच्चों से भरी कक्षा की तस्वीर-इसीलिए छपी होती है कि इंडोनेशिया की बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा भगवान गणेश को कला, शास्त्र एवं बुद्धिजीवी का भगवान माना जाता है | और तो और, इंडोनेशिया की आजादी के जश्न के दिन प्रत्येक साल बड़ी तादाद में राजधानी जकार्ता की सड़कों पर हनुमान जी का वेश धारण कर वहां के युवावर्ग सरकारी परेड में शामिल होते रहे हैं |

Indonesian Currency bearing picture of Kalashastri Ganesh Bhagwan on one side and the class of kids running smoothly on the other side.
Indonesian Currency bearing picture of Kalashastri Lord Ganesha on one side and the class of kids running smoothly on the other side.

यहाँ यह भी जान लें कि इंडोनेशिया को रामायण के मंचन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त है | काश ! धरती पर बढ़ रही धार्मिक असहिष्णुता के इस दौर में यदि इंडोनेशिया अपनी सांस्कृतिक विरासत “रामकथा” का मंचन-प्रदर्शन दुनिया के अन्य देशों में भी कर देता और भाईचारे का पाठ पढ़ा देता तो दुनिया अमन-शांति के लिए कभी नहीं तरसती और ना कभी दुर्गापूजा-मुहर्रम आदि के अवसर पर प्रत्येक थाने में शांतिदूतों व गण्यमान्यों की मीटिंग ही बुलानी पड़ती और ना ही कभी किसी सन्मार्गी कवि को यह लिखना पड़ता –

होली ईद मनाओ मिलकर, कभी रंग को भंग करो मत |
भारत की सुंदरतम छवि को, मधेपुरी बदरंग करो मत ||

यह भी जानिये कि जहां मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करनेवाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है- जो सच के लिए जान देने की जिंदा मिसाल है- वहीं दुर्गापूजा न्याय पाने के लिए बुराइयों पर अच्छाइयों की जीत का प्रतीक पर्व माना जाता है | सत्य, न्याय, राष्ट्रीय एकता एवं भाईचारे के निमित्त ही सभी त्यौहार मनाये जाते हैं- जैसा कि कटिहार जिले के ‘डहेरिया’’ में मुस्लिम समुदाय के लोग दुर्गा माता के दरबार को सजाते हैं, पूजा-प्रबंधन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं | हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय अपनी अटूट एकता के लिए मिलकर सौहार्द के गीत गाते हैं | तभी तो मुस्लिम समुदाय से दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष बनाये जाते हैं कटिहार नगर निगम के उपमहापौर मो.मंजूर खां, तो सबकी पसंद से महासचिव बनते हैं- संजय महतो | दोनों मिलकर ईश्वर-अल्लाह एक है, सबका मालिक एक है- इस मंत्र को जन-जन तक पहुंचाने में लीन रहते हैं, तल्लीन रहते हैं |

यह भी बता दे कि समस्तीपुर जिले में एक मुस्लिम महिला खुदनी बीबी के नाम पर ब्रिटिश काल में ही खुदनेश्वर शिवमंदिर स्थापित हुआ था जिसका शिवलिंग खुदनी द्वारा गाय चराने के दरमियान खुदवाया गया था और खुदनी महान शिव-भक्त भी बन गई थी | उसकी मृत्यु के बाद शिवलिंग के एक गज दक्षिण तरफ उसे दफनाया भी गया जिसे सभी शिवभक्त आदर से पूजते हैं, सभी श्रद्धा से सिर झुकाते हैं | कालांतर में नरहन स्टेट द्वारा मंदिर निर्माण कराया गया और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में विकसित पर्यटक केंद्र बनाने के लिए बिहार धार्मिक न्यास परिषद् के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने 2008 में खुद्नेश्वर शिव मंदिर को बेहतर आर्थिक सहयोग भी किया था |

Shivlingam & Mazar of Khudni inside Khudneshwar Shiv Temple , 17Kms. South-West from Samastipur District Town.
Shivlingam & Mazar of Khudni inside Khudneshwar Shiv Temple , 17Kms. South-West from Samastipur District Town.

हाल ही में अमेरिका के मैसाचुएट्स प्रांत के फोस्टन शहर निवासी 17 वर्षीय मुस्लिम बालिका ‘हन्नान’ स्थानीय सहेली के साथ भागलपुर के मनोहरपुर गांव आकर दुर्गामाता के दर्शन करने जाती है | हन्नान “अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन” विषय पर शोध करती है और कई जगहों पर घूमने के बाद मीडिया से कहती है- यहां सभी समुदायों में बेहद अपनापन है | पारिवारिक मूल्यों को तवज्जो दी जाती है | भीड़ के बावजूद पूजा के दौरान अनुशासन है | महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है, जैसा कहीं भी देखने को नहीं मिलता | और ‘हन्नान’ अब अपनी सहेली एशना सिन्हा के साथ ‘काली पूजा व छठ’ तक रहने का मन बना लेती है |

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इस साल किन्हें और क्यों मिले विज्ञान के नोबेल ?

इस साल के लिए विज्ञान के तीनों पुरस्कार – चिकित्सा शास्त्र, भौतिकी और रसायन शास्त्र – घोषित हो चुके हैं। इस बार के पुरस्कार जिन खोजों के लिए दिए गए हैं उनमें से कोई ऐसी नहीं जो फंडामेंडल साइंस को झकझोर दे, बल्कि ये खोजें चिकित्सा शास्त्र, भौतिकी और रसायन शास्त्र के विकासमान क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमारे जीवन पर इनका असर अगले दस-बीस वर्षों में पड़ने वाला है।

एशिया के लिए गौरव की बात है कि चिकित्सा शास्त्र का नोबेल अकेले जापान के डॉ. योशिनोरी ओहसुमी को प्राप्त हुआ है। उनका कार्यक्षेत्र ऑटोफैगी है, यानि वह प्रक्रिया, जिसके जरिये शरीर लगातार खुद को नया करता रहता है और इस क्रम में अपने पुराने हिस्से को रिसाइकल करता रहता है। डॉ. ओहसुमी ने इसका समूचा जेनेटिक और मेटाबोलिक मेकेनिज्म खोज निकाला है और भविष्य में इसका उपयोग पार्किंसंस डिजीज और कुछ खास तरह के कैंसर के इलाज में किया जा सकता है।

रसायन शास्त्र का नोबेल भी एक मायने में चिकित्सा शास्त्र के लिए अत्यंत उपयोगी क्षेत्र के लिए दिया गया है। यह क्षेत्र है आण्विक मशीनों का, जिन्हें बनाने में काम आने वाले मेकेनिज्म का इस्तेमाल करके अभी पिछले साल विकसित किए गए कॉम्बरस्टैटिन ए-4 नाम के रसायन को कैंसर के इलाज के लिए आजमाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। फ्रांसीसी ज्यां पिएर सावेज, डच बर्नार्ड फेरिंग और अमेरिकी जेम्स फ्रेजर स्टोडार्ट ने अपनी तीस साल लंबी साधना से इतनी सूक्ष्म रासायनिक मशीनें तैयार करने का हुनर विकसित कर दिया है, जो सबसे ताकतवर इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोपों से भी धुंध जैसी शक्ल में ही देखी जा सकती हैं।

भौतिकी का नोबेल प्राइज इस बार सुपर कंडक्टिविटी और सुपर लिक्विडिटी जैसी विचित्र परिघटनाओं के सिद्धांत पक्ष पर काम करने वाली ब्रिटेन के तीन वैज्ञानिकों डेविड थूलेस, डंकन हाल्डेन और माइकल कोस्टरलित्ज की टीम को मिला है। जिन लोगों का मानना है कि आम ज़िन्दगी में भौतिकी के असली चमत्कार अभी आने बाकी हैं, उनकी उम्मीदों को वैज्ञानिकों की इस अनोखी तिकड़ी के ‘सुपर’ फिजिक्स से खासा बल मिला है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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