दीपों का उत्सव, प्रकाश का पर्व, तमाम आसुरी वृत्तियों पर विजय का उद्घोष – दीपावली। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अधेरी रात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध, सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां लक्ष्मी अंश रूप में ठहर जाती हैं। पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ दीपावली पर उनका आह्वान करें तो प्रसन्न होकर सद्गृहस्थों के घर वो स्थायी रूप से निवास करती हैं। लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए ही व्यापारियों में आज ही के दिन बही-खाता बदलने की परंपरा है।
धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा रावण का संहार कर अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के आगमन और उनके राज्यारोहण पर दीपमालाओं का महोत्सव मनाया था। अद्भुत संयोग है कि आगे चलकर इसी दिन सम्राट् विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ। बता दें कि विक्रम संवत् का आरम्भ भी इसी दिन माना जाता है। यह भी मान्यता है कि दीपावली की अमावस्या से ही पितरों की रात्रि प्रारम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए भी सर्वत्र दीप व आतिशबाजी के माध्यम से प्रकाश की व्यवस्था की जाती है। इस तरह कहा जा सकता है कि अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ प्रकाश-पथ पर अग्रसर करने का पुनीत पर्व है दीपावली।
हमारे वेदों-उपनिषदों ने हमें ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का जो पाठ पढ़ाया उसे भारत समेत दुनिया भर में फैलाने का श्रेय दीपावली को ही जाता है। आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं रह गई है। इसे संसार के हर कोने में मनाया जाता है। सच तो यह है कि क्रिसमस और ईद की तरह आलोक का यह पर्व भी अब विश्वपर्व कहलाने का अधिकारी है।
दरअसल भारत से दशकों पहले (1834 से 1884 के बीच) सात समंदर पार चले गए भारतीय अपने तीज-त्योहारों को आज तक नहीं भूले। उदाहरण के तौर पर त्रिनिदाद और टोबैगो की ही बात करें। यहाँ भारतवंशियों की पहली टुकड़ी पहुँची थी। आज यहाँ की एक चौथाई आबादी हिन्दू है। दीपावली के पर्व पर यहाँ राष्ट्रीय अवकाश होता है। भारत में हमलोग भले ही मोमबत्ती को दीये के विकल्प के तौर पर अपनाने लगे हों, लेकिन इस दिन यहाँ हर घर को आप मिट्टी के दीये से ही सजा पाएंगे। इस कैरिबियाई टापू देश के पास स्थित देश गुयाना में भी आलोक के इस पर्व को बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है।
त्रिनिदाद और टोबैगो तथा गुयाना की तरह ही फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, सिंगापुर, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा, बंगलादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड्स, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी दीपावली की छटा देखी जा सकती है।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी को फोन कर दीपावली की बधाई दी थी। उसके बाद हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह जानकर अच्छा लगा कि व्हाइट हाउस में भी दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। बता दें कि वर्ष 2009 में पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर ओबामा ने व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में दीपोत्सव का परंपरागत दीया जलाया था। अब तो आलम यह है कि अमेरिका में चल रहे वर्तमान राष्ट्पति चुनाव के दोनों उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप दीपावली के पहले से ही भारतवंशियों के बीच जाकर दीये जला रहे हैं।
आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में दीपावली के दिन सरकारी छुट्टी होती है, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो दीपावली पर आयोजित कार्यक्रम में कुर्ता-पायजामा पहनकर पंजाबी गाने पर डांस करते हैं और हिन्दुओं को दोयम दर्जा देने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तक इस दिन हिन्दुओं को संबोधित करते हैं। दक्षिण अफ्रीका के जोहांबर्ग के निकट लेनासिया और चैट्सवर्थ और डरबन के फोनेक्स में तो दीपावली बहुत ही भव्य तरीके से मनाई जाती है। इतना ही नहीं, पड़ोसी देश नेपाल में दीपावली का पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है और लक्ष्मीपूजा के दिन से ही नेपाल संवत् शुरू होता है।
सच तो यह है कि दीपावली का यह प्रसार अकारण नहीं है। दीपावली में छिपा संदेश है ही इतना व्यापक कि इसमें समूचे संसार की संवेदना समा जाय। तो आईये, इस बार हम बाकी दीयों के साथ-साथ एक दीया विश्वपर्व दीपावली के निमित्त अपने गौरव के लिए भी जलाएं। और हां, हर दीये से पहले एक दीया हमारे लिए शहीद हुए उड़ी के वीर जवानों के लिए जलाएं। ये जवान न हों तो कैसी होली, कैसी ईद, कैसी बैसाखी, कैसा क्रिसमस और कैसी दीपावली? शुभ दीपावली!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप
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