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भारत ने जीत ली लंका

भारत ने कोलंबो टेस्ट मैच में श्रीलंका को पारी और 53 रन से हराकर तीन टेस्ट मैचों की सीरीज अपने नाम कर ली, जबकि अभी सीरीज का एक टेस्ट खेला जाना बाकी है। भारत की इस जीत के नायक रहे रविन्द्र जडेजा और आर अश्विन। इन दोनों ने इस टेस्ट में अर्द्धशतक लगाने के साथ-साथ 7-7 विकेट भी झटके और भारत को टेस्ट सीरीज में लगातार आठवीं जीत दिलाई। गौरतलब है कि 2015 के बाद से टीम इंडिया को कोई भी टीम टेस्ट सीरीज में हरा नहीं पाई है।

बता दें कि भारत ने अपनी पहली पारी में 9 विकेट पर 622 रन बनाकर पारी घोषित कर दी थी। भारत की इस पारी में चेतेश्वर पुजारा ने शानदार 133 और अजिंक्य रहाणे ने 132 रन बनाए थे। इसके जवाब में श्रीलंका की पहली पारी महज 183 रनों पर सिमट गई थी। दूसरी पारी में भी श्रीलंकाई टीम 386 रनों से आगे नहीं बढ़ पाई। इस पारी में केवल दिमुथ करुणारत्ने (141 रन) और कुशल मेंडिस (110 रन) ही अपनी टीम के लिए संघर्ष कर पाए।

भारत के लिए पहली पारी में अश्विन ने 5 विकेट चटकाए थे, जबकि दूसरी पारी में यह कमाल जडेजा ने दिखाया। जडेजा ने इस टेस्ट में अपने 150 विकेट भी पूरे कर लिए। बड़ी बात यह कि इस उपलब्धि के साथ वे सबसे तेजी से 150 विकेट लेने वाले दाएं हाथ के गेंदबाज बन गए हैं। उन्होंने मात्र 32 टेस्टों में यह मुकाम हासिल किया। दूसरी ओर अश्विन के लिए भी यह टेस्ट उपलब्धियों भरा रहा। इस टेस्ट के बाद वे सबसे तेजी से 2000 से अधिक रन और 250 से अधिक विकेट हासिल करने वाले टेस्ट खिलाड़ी बन गए हैं। उन्होंने यह उपलब्धि 51 टेस्ट मैचों में हासिल की।

क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में भारत की हाल की जीतों की एक बड़ी बात यह भी रही है कि इन जीतों से टीम में एक के बाद एक कई मैच विनर खिलाड़ी सामने आए। इसी टेस्ट की बात करें तो पुजारा, रहाणे, अश्विन, जडेजा, के एल राहुल सब के सब विजेता की तरह खेले। कोहली तो टीम की रीढ़ हैं ही। सीरीज का तीसरा और आखिरी टेस्ट पल्लीकेले में खेला जाएगा। एक पर एक जांबाजों से सजी विराट कोहली की टीम निश्चित तौर पर अपना विजय अभियान जारी रखना चाहेगी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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रामनाथ कोविंद होंगे भारत के अगले राष्ट्रपति

रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति होंगे। एनडीए उम्मीदवार कोविंद ने विपक्ष की मीरा कुमार को बड़े अंतर से हराकर रायसीना हिल्स की रेस जीती। कोविंद को जहां 66.65 प्रतिशत वोट मिले वहीं मीरा का अभियान 34.35 प्रतिशत मतों पर ही रुक गया। सोमवार को हुए मतदान में रामनाथ कोविंद को कुल 7,02,044 वोट मिले, जबकि मीरा कुमार को 3,67,314 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा। बता दें कि नए राष्ट्रपति का शपथग्रहण 25 जुलाई को होना है।

राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद कोविंद ने कहा कि वे सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना से काम करेंगे और पद की मर्यादा को बनाए रखेंगे। अपने संक्षिप्त और भावुक संबोधन में उन्होंने कहा, “जिस पद का गौरव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, एपीजे अब्दुल कलाम और प्रणब मुखर्जी जैसे विद्वानों ने बढ़ाया उस पद पर रहना मेरे लिए गौरव की बात है और यह मुझे जिम्मेदारी का अहसास करा रहा है।”

अपने जीवन के बेहद खास मौके पर गरीबी में बिताए अपने बचपन को याद करते हुए आगे उन्होंने कहा, “आज दिल्ली में सुबह से बारिश हो रही है। बारिश का मौसम मुझे बचपन की याद दिलाता है। हमारा घर कच्चा था। मिट्टी की दीवारें थीं। बारिश के समय फूस की छत पानी को रोक नहीं पाती थी। हम सब भाई-बहन कमरे की दीवार से लग कर बारिश रुकने का इंतजार करते थे। आज पता नहीं कितने ही रामनाथ कोविंद बारिश में भींग रहे होंगे। खेत में काम कर रहे होंगे और शाम के भोजन के लिए प्रबंध कर रहे होंगे। मैं उन सभी से कहना चाहता हूं कि परौख गांव का यह रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन में उनका प्रतिनिधि बनकर जा रहा है।”

अपनी जीत की औपचारिक घोषणा के बाद कोविंद ने अपनी प्रतिद्वंद्वि मीरा कुमार को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। वहीं मीरा ने भी उन्हें बधाई दी और कहा कि उनके ऊपर संविधान की रक्षा का दायित्व आया है। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत देश भर के नेताओं ने कोविंद को बधाई और शुभकामनाएं दीं। ‘मधेपुरा अबतक’ की ओर से भी उन्हें हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं। एक बात और, बिहार का राज्यपाल रहते हुए उन्हें देश का प्रथम नागरिक बनने का अवसर मिला, इसलिए हम अपेक्षा करते हैं कि उनके मन और मस्तिष्क में बिहार के लिए खास जगह रहेगी और सम्पूर्ण देश के लिए अपना दायित्व निभाते हुए भी करोड़ों बिहारवासियों के ‘विशेष’ अपनत्व व अधिकाबोध का मान वे रख पाएंगे!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप   

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अमेरिका और भारत दोनों के इतिहास में अहम है 4 जुलाई

4 जुलाई कहने को एक तारीख है, लेकिन इतिहास के पन्नों में इस दिन की अहमियत किस कदर है, यह जानकर चौंक जाएंगे आप। जी हां, यही वो दिन है जिसके बाद अमेरिका और भारत दोनों देशों की किस्मत बदल गई। दरअसल, ये दिन दोनों ही देशों की आज़ादी से जुड़ा है।

पहले बात अमेरिका की। वर्तमान पीढ़ी के लिए शायद सोचना भी कठिन हो, लेकिन सच है कि आज दुनिया का सबसे ताकतवर देश कहलाने वाला अमेरिका भी कभी गुलाम था और 1776 में 4 जुलाई को ही आजाद हुआ और जॉर्ज वाशिंगटन देश के पहले राष्ट्रपति बने। इस तरह अमेरिका को आज़ाद हुए पूरे 241 साल हो चुके हैं। बता दें कि अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी, जिसे 1876 में उसे फ्रांस ने तोहफे के रूप में दी थी, पर अमेरिका की स्वतंत्रता की तिथि 4 जुलाई 1776 ही अंकित है।

अब बात भारत की। जैसा कि सब जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में 15 अगस्त और 26 जुलाई मील के पत्थर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी तरह 4 जुलाई का दिन भी भारत की स्वतंत्रता के लिए बेहद खास है। दरअसल 1947 में इसी दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट के सामने भारत की स्वतंत्रता से संबंधित बिल का प्रस्ताव रखा गया था। और इसी बिल के तहत देश का भारत ओर पाकिस्तान के रूप में बंटवारा हुआ था।

4 जुलाई की बात चल ही रही है तो यह हमें यह भी जानना चाहिए कि 1963 में आज ही के दिन पिंगली वेंकैय्या, जिन्हें भारत का राष्ट्रध्वज बनाने का श्रेय दिया जाता है, का निधन हुआ था। और चलते-चलते यह भी जानें कि आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद की भी पुण्यतिथि है। अध्यात्म की दुनिया को अपनी अप्रतिम आभा से जगमग कर देने वाले युवाओं के इस सबसे बड़े ‘आईकॉन’ ने 1902 में आज ही के दिन अंतिम सांस ली थी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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ओबामा ही नहीं ट्रंप के अमेरिका में भी छा गए मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अमेरिका दौरा संपन्न हुआ। उनके इस दौरे पर करोड़ों भारतवासियों समेत पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं। इसका पहला कारण यह था कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह अमेरिका का उनका पहला दौरा था और ट्रंप अपने स्वभाव और शैली में ओबामा से कितने अलग हैं, ये छिपी बात नहीं। दूसरा, चीन द्वारा अपनी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण पाकिस्तान को शह देने और इस कारण पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में हो रहे इजाफे के मद्देनज़र भारत-अमेरिका संबंधों और आपसी हितों को नए सिरे से परिभाषित करना बेहद जरूरी था। इन दोनों ही कसौटियों पर मोदी की यह यात्रा अत्यंत सफल कही जाएगी। हालांकि एच-1 बी वीजा और पेरिस जलवायु समझौता जैसे मुद्दे भी थे, लेकिन इस यात्रा में इन पर बात संभव न हो सकी।

कहना गलत न होगा कि मोदी-ट्रंप की इस मुलाकात से भारत और अमेरिका के आपसी संबंधों को और मजबूती मिली। इस मुलाकात में सबसे ज्यादा आतंकवाद का मुद्दा छाया रहा। दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता जताते हुए पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद पर कड़े तेवर दिखाए। अपने साझा बयान में दोनों देशों ने पाकिस्तान से कहा कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद को प्रश्रय देने के लिए न करे। यही नहीं, दोनों देशों ने पाकिस्तान को अपनी जमीन पर सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने को भी कहा। साथ ही, भारत पर हुए 26/11 के आतंकी हमलों और पठानकोट एयरबेस पर हुए अटैक में शामिल आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई तेज करने की हिदायत भी पाकिस्तान को दी गई।

आतंकवाद के अलावे मोदी और ट्रंप के बीच व्यापार, सुरक्षा, द्विपक्षीय सहयोग और अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने के प्रयासों पर भी बातचीत हुई। इसके अलावा ट्रंप ने जीएसटी की तारीफ करते हुए इसे भारत का सबसे बड़ा टैक्स सुधार बताया। उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के मोदी सरकार के प्रयासों की भी तारीफ की। साथ ही उन्होंने माना कि भारत-अमेरिका के संबंध इतने मधुर कभी नहीं थे। इससे पहले मोदी का स्वागत करते हुए ट्रंप ने कहा कि “दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का व्हाइट हाउस में स्वागत करना सम्मान की बात है।“

चलते-चलते सारी बातों का सार यह कि अपने साझा बयान में ट्रंप ने जहां इस बात का खास तौर पर उल्लेख किया कि भारत और अमेरिका के संविधान के पहले तीन शब्द – ‘We the People’ – एक जैसे हैं और इसमें जोड़ा कि प्रधानंमत्री मोदी और मैं इन शब्दों का महत्व बहुत अच्छी तरह जानते हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के नए राष्ट्रपति को आज के संदर्भ में यह एहसास कराने में सफल रहे कि “न्यू इंडिया और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन एक जैसे हैं।”

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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दो हजार करोड़ की कमाई करने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी ‘दंगल’

आमिर खान के लिए इससे यादगार ईद भला क्या हो सकती है! ईद के दिन 2.5 करोड़ की कमाई कर उनकी फिल्म ‘दंगल’ दुनिया भर में 2000 करोड़ की कमाई करने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई है। वैसे तो प्रभास अभिनीत व एसएस राजामौली द्वारा निर्देशित ‘बाहुबली-2’ भी इस आंकड़े की ओर तेजी से बढ़ रही है, लेकिन 2000 करोड़ के क्लब में शामिल होने वाली पहली भारतीय फिल्म कहलाने का सौभाग्य ‘दंगल’ को मिला।

23 दिसंबर 2016 को रिलीज हुई ‘दंगल’ की इस रिकॉर्डतोड़ सफलता का सबसे अहम पहलू यह है कि इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन की है। वहां इस साल 5 मई को रिलीज होने वाली ‘दंगल’ अब तक कुल 1154 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी है। बड़ी बात यह कि इसका प्रभाव वहां अब भी बरकरार है। बता दें कि आमिर की फिल्म पीके ने भी चीन में काफी अच्छी कमाई की थी। इससे साफ है कि वहां बॉलीवुड के इस खान की खासी फैन फॉलोइंग है।

चीन के अलावा बाकी मुल्कों में भी ‘दंगल’ ने अच्छी कमाई की है, वहीं भारत में इसने अब तक 387 करोड़ रुपए कमाए हैं। बात जहां तक पड़ोसी पाकिस्तान की है, वहां इसे रिलीज ही नहीं किया गया, क्योंकि आमिर किसी भी सूरत में इस फिल्म से राष्ट्रगान वाला हिस्सा हटाने को तैयार नहीं थे।

बहरहाल, आमिर की सफलता ने साबित कर दिया है कि संजीदगी और शिद्दत से कोई काम किया जाय तो देश की सीमाएं भी छोटी पड़ जाती हैं। आमिर से पहले विदेशों में अगर किसी भारतीय अभिनेता के लिए इस तरह का क्रेज देखा गया था तो वे राज कपूर थे। लेकिन तब सौ, दो सौ, पांच सौ, हजार और दो हजार करोड़ के क्लब कल्पना से परे थे।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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अमेरिका में इन 21 कंपनियों के सीईओ से मिल रहे हैं मोदी

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली अमेरिका यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाशिंगटन पहुंच गए हैं। ट्रंप से उनकी मुलाकात सोमवार को होगी, लेकिन उससे पहले ही ट्रंप ने अपने आधिकारिक वेबसाईट से मोदी का स्वागत किया। मोदी को सच्चा दोस्त बताते हुए उन्होंने ट्वीट किया कि भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए व्हाइट हाउस तैयार है। अहम रणनीतिक मुद्दों पर अपने सच्चे दोस्त से चर्चा होगी।

गौरतलब है कि सोमवार को होनेवाली ट्रंप-मोदी मुलाकात में दोनों देशों के बीच कई अहम करार होने की उम्मीद है। इस दौरान द्विपक्षीय हितों के अतिरिक्त दोनों नेताओं के बीच जिन मुद्दों पर बातचीत संभावित है, उनमें एच-1बी वीजा, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े मुद्दे शामिल हैं।

बहरहाल, सोमवार की इस बहुप्रतीक्षित मुलाकात पर जहां भारत समेत पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी की रविवार को दुनिया के टॉप 21 सीईओ से हो रही मुलाकात भी कम महत्वपूर्ण नहीं। इस समय जब ये पोस्ट लिखा जा रहा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के शीर्ष बिजनेस लीडर्स के साथ संवादरत हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री के बातचीत में मौजूद बिजनेस वर्ल्ड के 21 बड़े नाम इस प्रकार हैं – शांतनु नारायण (एडोब), जेफ बेजोस (अमेजन), जिम टैक्लेट (अमेरिकन टावर कार्पोरेशन), टिम कुक (एप्पल), जिम उम्प्लेबाई (कैटरपिलर), जॉन चैंबर्स (सिस्को), पुनित रेंजेन (डेलॉइट ग्लोबल), डेविड फार (इमर्सन), मार्क वेनबर्गर (अर्नेस्ट एंड यंग), सुंदर पिचाई (गूगल), एलेक्स गोरस्की (जॉनसन एंड जॉनसन), जेमी डिमोन (जेपी मॉर्गन चेज एंड कंपनी), मेरिलिन ए ह्यूसन (लॉकहीड मॉर्टिन), आर्ने सोरेनसन (मैरियट इंटरनेशनल), अजय बंगा (मास्टरकार्ड), इरेन रोसेनफील्ड (मोंडेलेज इंटरनेशनल), डेविड रुबेन्स्टेन (द कार्लाइल ग्रुप), डग मैकमिलन (वॉलमॉर्ट), चार्ल्स काये (वारबर्ग पिनकस), डेनियल यार्गिन (आईएचएस मार्किट) और मुकेश आघी (यूएसआईसीबी)।

गौरतलब है कि मोदी ने 2015 में भी कई कंपनियों के सीईओ के साथ राउंड टेबल मीटिंग की थी और कई संभावनाओं का बीजारोपण किया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार की मुलाकात के बाद वे संभावनाएं ठोस आकार लेंगी। मोदी दुनिया की इन दिग्गज कंपनियों को जीएसटी जैसे ऐतिहासिक सुधार के बाद बनी भारत की माकूल स्थिति से अवगत कराना चाहेंगे। साथ ही उन्हें ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ का भरोसा देंगे। मोदी ये अच्छी तरह जानते हैं कि उनके कार्यकाल के तीन वर्ष बीत चुके हैं और उनका देश उन्हें बड़ी उम्मीदों से देख रहा है। जाहिर है, अपनी कोशिशों में वे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेंगे।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

 

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मदर्स डे का पूरक है फादर्स डे

पिता यानि हमारे सर्जक, हमारे निर्माता, हमारे ब्रह्मा… जिनकी ऊंगलियों के इशारे से हमारी दुनिया आकार लेती है, जिनके दिए संस्कार से हमारे विचार व्यवहार में ढलते हैं, जिनकी तपस्या से हम सम्पूर्ण मनुष्य बनते हैं… और दुनिया का क्रम चलता रहता है। जिस तरह मां के लिए कहा जाता है कि ईश्वर स्वयं हर जगह नहीं हो सकते, इसीलिए उन्होंने मां को बनाया, उसी तरह पिता के लिए कहना गलत न होगा कि मां के रूप में हर जगह होकर भी ईश्वर के लिए संसार चलाना संभव न था, इसीलिए उन्होंने अपनी पूर्णता के लिए अपनी ही असंख्य प्रतिकृतियां बनाईं और उन्हें पिता का नाम दे दिया। इन्हीं पिता को समर्पित दिन है – फादर्स डे। संतान के लिए पिता के अवदान के प्रति, उनके प्रेम, संघर्ष और त्याग के प्रति श्रद्धा से सिर झुकाने का दिन। दूसरे शब्दों में मदर्स डे का पूरक दिन।

फादर्स डे की मूल परिकल्पना अमेरिका की है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1909 को मनाया गया था। वाशिंगटन के स्पोकेन शहर में सोनोरा डॉड ने अपने पिता की स्मृति में इस दिन की शुरुआत की थी। इसकी प्रेरणा उन्हें मदर्स डे से मिली थी।

आगे चलकर 1916 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इस दिन को मनाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी। धीरे-धीरे इस दिन को मनाने का चलन बढ़ता गया और 1924 में राष्ट्रपति कैल्विन कुलिज ने इसे राष्ट्रीय आयोजन घोषित किया। इसके उपरान्त 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे जून के तीसरे रविवार को मनाने का फैसला किया और 1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस दिन को नियमित अवकाश के रूप में घोषित किया।

माता-पिता इस धरती के साक्षात ईश्वर हैं। उन्हें सम्मान हम चाहे जिस बहाने से दें वो गलत नहीं, लेकिन अगर सम्मान केवल दिनविशेष में सिमट कर रह जाए तो ये अनैतिकता की पराकाष्ठा होगी। पर आज हो कुछ ऐसा ही रहा है। समय बीतने के साथ मदर्स डे और फादर्स डे का व्यवसायीकरण होता गया। ग्रीटिंग कार्ड और उपहार तो हमें याद रहे लेकिन इन दिनों के सार, संदर्भ और संदेश को हम भुला बैठे। आज दुनिया के लगभग हर हिस्से में ये दिन मनाए जाते हैं और विरोधाभास देखिए कि दुनिया के हर हिस्से में ओल्ड एज होम भी बढ़ रहे हैं। आज हमारे पास अपने माता-पिता के लिए वक्त नहीं, लेकिन फेसबुक और व्हाट्स एप पर ये जताने में हम सबसे आगे होते हैं कि हम उन्हें कितना चाहते हैं, हमें उनकी कितनी फिक्र है और वो हमारे लिए क्या मायने रखते हैं। आईये, इस विरोधाभास को दूर करें। माता-पिता के लिए अपने सम्मान को केवल औपचारिकता न बन जानें दें।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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क्या मोदी के लिए ओबामा जैसी गर्मजोशी दिखाएंगे ट्रंप ?

अपनी विदेश यात्राओं के लिए खास तौर पर चर्चा रहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर अमेरिका जा रहे हैं। पर ये यात्रा उनकी पिछली यात्राओं की तरह ‘चकाचौंध’ वाली नहीं होगी। इस बार वे साल 2014 के बहुचर्चित मैडिसन स्कवॉयर कार्यक्रम की तरह भारतीय मूल के लोगों से हाई-प्रोफाइल मुलाकात नहीं करेंगे। बल्कि 25 और 26 जून को राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के दौरान भारतीय समुदाय के एक छोटे से तबके के साथ बातचीत में हिस्सा लेंगे। बताया जा रहा है कि ऐसा ‘समय की कमी’ और ‘अनुकूल वातावरण न होने’ के कारण किया जा रहा है। वैसे प्राप्त जानकारी के मुताबिक इससे पहले ह्यूस्टन में एक सामुदायिक इवेंट की योजना बनाई गई थी जिसके लिए भारतीय समुदाय के लोग खासे उत्साहित थे। लेकिन वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए इसे टाल दिया गया।

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का ये पहला अमेरिकी दौरा है। हालांकि इससे पहले दोनों नेताओं के बीच करीब तीन बार फोन पर बातचीत हो चुकी है। विदेश मंत्रालय ने 25 जून को शुरू होने वाली प्रधानमंत्री की इस अमेरिकी यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रधानमंत्री मोदी 26 जून को राष्ट्रपति ट्रंप के साथ आधिकारिक बातचीत करेंगे। उनकी चर्चा पारस्परिक हित के मुद्दों पर गहरे द्विपक्षीय संबंधों और भारत-अमेरिका के बीच बहुआयामी रणनीतिक भागीदारी को मजबूत बनाने के लिए नई दिशा प्रदान करेगी।

ट्रंप और मोदी की मुलाकात के दौरान जिन मुद्दों पर बातचीत संभावित है उनमें एच-1बी वीजा का मुद्दा भी शामिल है। इस संबंध में भारत अपनी चिन्ता जता सकता है। गौरतलब है कि इस वीजा का इस्तेमाल भारतीय आईटी कंपनियां करती हैं और ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान इस वीजा प्रोग्राम के ‘दुरुपयोग’ को बड़ा मुद्दा बनाया था। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन समझौता भी चर्चा के लिए एक बड़ा मुद्दा है।

बहरहाल, ओबामा शासन के दौरान मोदी और ओबामा की रिकॉर्ड आठ बार मुलाकात हुई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाशिंगटन का तीन बार दौरा किया था, जबकि साल 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा भारत आए थे। अब जबकि दोनों देशों के संदर्भ व हालात में खासा बदलाव आ चुका है, ये देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप मोदी के लिए कितनी गर्मजोशी और आत्मीयता दिखाते हैं। कहना गलत न होगा कि मोदी के इस अमेरिकी दौरे पर उनके समर्थकों और विरोधियों की नज़र एक साथ टिकी होगी।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

 

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आखिर शर्मिंदा होना कब सीखेगा पाकिस्तान ?

हरीश साल्वे और उनकी टीम सवा सौ करोड़ देशवासियों की अपेक्षा पर खरी उतरी। उनकी ओर से दी गई दलीलें काम आईं और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतरिम रोक लगा दी। भारत ने वियना कन्वेंशन के तहत काउंसिलर एक्सेस नहीं दिए जाने का हवाला दिया था और पाकिस्तान ने इस मामले के कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की दलील दी थी। लेकिन अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कहा कि उसे इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार है।

देश और दुनिया का ध्यान खींचने वाले इस मामले में अदालत ने भारत की सभी दलीलों को स्वीकार किया है। अदालत ने कहा कि उसके पास इस मामले को सुनने का अधिकार है। अदालत ने ये भी स्वीकार किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद है और उसे सुनने का अधिकार अदालत को है। अदालत ने माना कि काउंसिलर एक्सेस के मामले में 2008 के समझौते के बावजूद पाकिस्तान ने भारत को काउंसिलर एक्सेस नहीं दिया, इसलिए अदालत को अंतरिम फैसला देने का हक है।

गौरतलब है कि कुलभूषण का मामला भारत के लिए काफी अलग था और इसमें समय काफी कम था। मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय न्यायलय में ये मामला इसलिए उठाया क्योंकि पाकिस्तान इस पर टाल मटोल कर रहा था। भारत का कहना है कि ये मानवाधिकार का मामला है, जिस पर अब अदालत मामले के मेरिट पर फैसला करेगी।

बहरहाल, अदालत का फैसला आने के बाद पाकिस्तान को अपना रुख बदलना पड़ सकता है। हालांकि इस फैसले के तत्काल बाद उसने जैसी प्रतिक्रिया दी है, वह कहीं से स्वागतयोग्य नहीं। कहने की जरूरत नहीं कि उसे इस मामले में मुंह की खानी पड़ी है और अपनी किरकिरी को वह पचा नहीं पा रहा। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान अभी कुलभूषण पर कोई कार्रवाई नहीं करे और पाकिस्तान के लिए ये फैसला मानना जरूरी है। यही नहीं, पाकिस्तान को ये भी बताना होगा कि इस फैसले पर क्या कदम उठाए गए हैं।

चलते-चलते बता दें कि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फिलहाल ये नहीं देखा कि पाकिस्तान की अदालत का फांसी पर फैसला सही है या नहीं। अदालत को ये भी देखना है कि वियना संधि के तहत काउंसिलर एक्सेस न देने से कुलभूषण के मामले में बचाव का सही मौका मिला या नहीं। हालांकि छुपा कुछ भी नहीं। सारी दुनिया जानती है, सच क्या है। फिर भी अदालत की अपनी मर्यादा और प्रक्रिया होती है, उसका पालन होना ही चाहिए। पर हद तो यह है कि इतना सब होने के बावजूद पाकिस्तान की आंखों में पानी नाम की कोई चीज नहीं। आखिर शर्मिंदा होना कब सीखेगा पाकिस्तान?

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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सरहदों से नहीं बदलता ‘मदर्स डे’ का सार

माँ – वो शब्द जिसे परिभाषित करने में दुनिया की सारी भाषाओं के सारे शब्द और साहित्य व कला की सारी विधाएं खर्च हो जाएं, फिर भी परिभाषा अधूरी रह जाए। संसार का साक्षात ईश्वर, सृष्टि का पर्याय, हमारे अस्तित्व का पहला अध्याय होती है मां। दुनिया के हर बच्चे के लिए सबसे खास, सबसे प्यारा, सबसे गहरा, सबसे नि:स्वार्थ रिश्ता। सच तो यह है कि हमारे जीवन के सारे दिन मां से और मां के  होते हैं, फिर भी मां को सम्मानित करने के लिए एक खास दिन को दुनिया ने ‘मदर्स डे’ का नाम दिया, जो भारत में मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि अलग-अलग देशों में इस दिन को मनाने की तारीख और इसकी शुरुआत की कहानी भी अलग-अलग है। तो आईये, मदर्स डे के इतिहास में झांकें, इस दिन को सम्पूर्णता में देखें।

मदर्स डे का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में मदर्स डे को मनाने के कई साक्ष्य हैं। पुराने समय में ग्रीस में मां को सम्मान देने के लिए पूजा का रिवाज था। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं और उनके सम्मान में यह दिन त्योहार के रूप में मनाया जाता था। उधर एशिया माइनर के आसपास और रोम में इसे वसंत ऋतु के करीब ‘इदेस ऑफ मार्च’ यानि मां को सम्मान देने के पर्व के रूप में 15 से 18 मार्च तक मनाया जाता था।

यूरोप और ब्रिटेन में मां के प्रति सम्मान दर्शाने की कई परंपराएं प्रचलित हैं। उसी के अंतर्गत एक खास रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता था, जिसे ‘मदरिंग संडे’ कहा जाता था। इंग्लैंड में 17वीं शताब्दी में 40 दिनों के उपवास के बाद चौथे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता था। इस दौरान चर्च में प्रार्थना के बाद छोटे बच्चे फूल या उपहार लेकर अपने-अपने घर जाते थे। इस दिन सम्मानस्वरूप मां को घर का कोई काम नहीं करने दिया जाता था।

दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में मदर्स डे 27 मई को मनाया जाता है। यहां मदर्स डे का मतलब कोरोनिल्ला युद्ध को स्मरण करना है। दरअसल 27 मई 1812 को यहां के कोचाबाम्बा शहर में युद्ध हुआ। कई महिलाओं का स्पेनिश सेना द्वारा कत्ल कर दिया गया। ये सभी महिलाएं सैनिक होने के साथ-साथ मां भी थीं। इसीलिए 8 नवंबर 1927 को यहां एक कानून पारित किया गया कि यह दिन मदर्स डे के रूप में मनाया जाएगा।

चीन में भी मदर्स डे काफी लोकप्रिय है। इस दिन वहां उपहार के रूप में गुलनार के फूल खूब बिकते हैं। चीन में 1997 में यह दिन गरीब माताओं की, खासकर उन गरीब माताओं की जो ग्रामीण क्षेत्रों जैसे पश्चिम चीन में रहती हैं, की मदद के लिए निश्चित किया गया था।

जापान में मदर्स डे शोवा युग (1926-1989) में महारानी कोजुन (सम्राट अकिहितो की मां) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। अब इस दिन को लोग वहां अपनी मां के लिए ही मनाते हैं। इसी तरह थाईलैंड में भी रानी के जन्मदिन की तारीख को मदर्स डे की तारीख में बदल दिया गया।

बहाना चाहे जो हो, आज मदर्स डे दुनिया के अधिकांश देशों में मनाया जाता है। जैसे कई कैथोलिक देशों में वर्जिन मेरी डे को तो इस्लामिक देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा के जन्मदिन को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ देश 8 मार्च यानि वुमेंस डे को ही मदर्स डे की तरह मनाते हैं, लेकिन मनाते जरूर हैं। कई देशों में तो मदर्स डे पर अपनी मां का विधिवत सम्मान नहीं करना अपराध की श्रेणी में आता है।

अमेरिका में मदर्स डे की शुरुआत 1870 में जूलिया वार्ड होवे ने की थी। उनका मानना था कि महिलाओं या माताओं को राजनीतिक स्तर पर अपने समाज को आकार देने का सम्पूर्ण दायित्व मिलना चाहिए। आगे चलकर 1912 में मदर्स डे इंटरनेशनल एसोसिएशन बना और एना जॉर्विस (वर्जीनिया) ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे घोषित किया। गौरतलब है कि जॉर्विस शादीशुदा नहीं थीं और न ही उनका कोई बच्चा था। उन्होंने अपनी मां एना मैरी रविस जॉर्विस की मृत्यु के बाद उनके प्रति अपना प्यार और सम्मान जताने के लिए इस दिन की शुरुआत की थी। भारत में भी मई के दूसरे रविवार को ही मदर्स डे मनाया जाता है। वैसे यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी के जन्मदिन को भी मदर्स डे के तौर पर मनाने के उदाहरण देखे जा सकते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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