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जी हां, आइंस्टीन के एक नोट की कीमत दस करोड़ से ज्यादा

कुछ लोग मशहूर होते हैं, कुछ महान होते हैं और जिन्हें ईश्वर ये दोनों नेमत देते हैं उनके लिए माना जाना चाहिए कि वे इस धरती पर कोई विशेष कार्य करने आए हैं और उनके जीवन का हर क्षण, उनसे जुड़ी हर चीज मानव-सभ्यता की थाती है। बुद्ध, गांधी, मार्क्स, आइंस्टीन आदि ऐसे ही बिरले लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने हमारी सभ्यता की दिशा और दशा बदली। यही कारण है कि उनसे जुड़ी छोटी-सी-छोटी चीज भी अनमोल हो जाती है और अगर उनकी बोली लगा दी जाए तो करोड़ों भी कम पड़ जाते हैं।

ऊपर कही बात के विस्तार में जाएं उससे पहले एक सवाल। जरा सोच कर बताएं, एक पन्ने की कीमत क्या हो सकती है, जिस पर महज एक नोट लिखा हुआ हो। आप चाहे जितनी उदारता से सोच लें, कुछ सौ या हजार से आगे शायद ही बढ़ पाएं। अब अगर आपसे कहा जाए कि एक नोट वाले एक पन्ने की कीमत दस करोड़ से भी ज्यादा हो सकती है तो क्या आप यकीन कर पाएंगे? नहीं ना? लेकिन जनाब जब उस पन्ने पर अल्बर्ट आइंस्टीन का स्पर्श हो और लिखा हुआ नोट उनका हो तो यह भी मुमकिन है।

जी हां, महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के लिखे नोट वाला पन्ना येरूशलम में हुई एक नीलामी में दस करोड़ से भी ज्यादा (दस करोड़ तेईस लाख) में बिका। आपको बता दें कि आइंस्टीन ने यह नोट 1922 ई. में टोक्यो के इंपीरियल होटल में एक वेटर को बतौर इनाम लिखकर दिया था क्योंकि उस वक्त उनके पास उसे देने के लिए कैश नहीं था। आपको उत्सुकता हो रही होगी कि आखिर आइंस्टीन उस वेटर को इनाम क्यों देना चाह रहे थे? तो यह भी जान लें। दरअसल एक लेक्चर देने जापान आए आइंस्टीन को उस वेटर ने ही आकर संदेश दिया था कि उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है। इस संदेश के बाद इनाम देना तो बनता ही था।

अब आपको यह भी बता बता दें कि आइंस्टीन ने उस पन्ने पर लिखा क्या था। उन्होंने उस पन्ने पर जीवन की खुशी का राज बताते हुए लिखा था कि “जीवन में मंजिल हासिल करने के बाद भी खुशी मिल जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है।” जर्मन भाषा में लिखे अपने नोट में उन्होंने आगे लिखा – “कामयाबी और उसके साथ आने वाली बेचैनी के बजाय एक शांत और विनम्र जीवन आपको अधिक खुशी देगा।”

करीब इसी दौरान के एक दूसरे नोट में उन्होंने लिखा -“जहां चाह, वहां राह।” ये नोट करीब दो करोड़ रूपयों में नीलाम हुआ। नीलामी करने वाली कंपनी का कहना है कि इन दोनों नोट्स की कीमत अनुमान से कहीं अधिक है। हो भी क्यों ना? आइंस्टीन अनुमान में आने वाली शख्सियत भी नहीं। चलते–चलते बता दें कि आइंस्टीन के बेशकीमती नोट को बेचने वाला साल 1922 में आइंस्टीन तक संदेश पहुंचाने वाले व्यक्ति का भतीजा है और नोट को खरीदने वाला एक यूरोपीय।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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जी हां, चन्द्रमा पर है 50 किलोमीटर लंबी गुफा

पांच दशक होने को आए जब मनुष्य ने चन्द्रमा पर पहला कदम रखा था। वो दिन था 20 जुलाई 1969 जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के दो एस्ट्रोनॉट नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रीन अंतरिक्ष विमान अपोलो 11 में सवार होकर चांद पर पहुंचे थे। तब से अब तक विज्ञान ने बेहिसाब तरक्की की है और नई-नई खोजों का सिलसिला अनवरत जारी है। खासकर चन्द्रमा को लेकर हमारी उत्सुकता प्रारंभ से ही कुछ अलग रही है। कहना गलत न होगा कि यह हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा है। न जाने कितनी ही कविताएं इस पर रची गई होंगी और कितनी ही कहानियां इससे जुड़ी हुई होंगी। अकारण नहीं कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इसके अलग-अलग पहलुओं पर तरह-तरह की जानकारियां इकट्ठी की हैं। आज हम चन्द्रमा के बारे में आपको एक ऐसी जानकारी से अवगत कराएंगे कि आप बस चौंक जाएंगे।

जी हां, सुनकर शायद अविश्वसनीय लगे लेकिन जापान के वैज्ञानिकों को चांद पर एक बहुत बड़ी गुफा का पता चला है। वैज्ञानिकों ने गुरुवार को बताया कि इस गुफा में चन्द्रमा पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट रह सकते हैं। इससे वे खतरनाक विकिरण और तापमान में बदलाव से बच सकते हैं। जापान के एईएईएनई लूनर ऑर्बिटर से मिले आंकड़ों के अनुसार चांद पर मौजूद यह गुफा 3.5 अरब साल पहले भूगर्भ के अंदर हुई हलचल की वजह से बनी होगी। इस गुफा की लंबाई 50 किलोमीटर और चौड़ाई 100 मीटर है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह गुफा भूगर्भ से निकले लावे की वजह से तैयार हुई होगी। जापानी वैज्ञानिकों के ये आंकड़े और नतीजे अमेरिकी पत्रिका जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में भी प्रकाशित हुए हैं।
जापानी वैज्ञानिक जुनिची हारुयामा ने गुरुवार को कहा, ‘हमें अभी तक ऐसी चीज के बारे में पता था और माना जाता था कि यह लावा ट्यूब हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी की पुष्टि पहले नहीं हुई थी।’ जमीन के अंदर मौजूद यह गुफा चंद्रमा के मारियस हिल्स नामक जगह के पास है। बकौल हारुयामा इस गुफा में रह कर अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा प्रवास के दौरान विकिरण और तापमान में होने वाले तेज बदलावों के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।
चलते-चलते बता दें कि जापान ने इसी साल जून में साल 2030 तक चंद्रमा पर अंतरिक्ष मिशन भेजने की घोषणा की है। इधर भारत और चीन भी अपने-अपने अंतरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर भेजने की तैयारी कर रहे हैं। चन्द्रमा पर इंसानी बस्ती बसाने की तैयारी जोरों पर है। अब वो दिन दूर नहीं जब चंदा मामा से हम सचमुच अपने मामा के जैसे मिल पाएंगे।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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धनतेरस: धन ही नहीं, स्वास्थ्य का भी पर्व

धनतेरस, एक अनोखा पर्व जो न केवल दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है बल्कि समृद्दि के लिए स्वास्थ्य का महत्व भी रेखांकित करता है। आम धारणा के अनुसार धन का पर्व दीपावली है, जो सही नहीं है। दीपावली तो धन के साथ-साथ अन्य सिद्धियों का दिन भी है। धन का दिन तो असल में धनतेरस है। साथ ही यह दिन औषधि और स्वास्थ्य के स्वामी धन्वंतरि का भी दिन है, जो इस बात का संदेश देता है कि धन का भोग करने के लिए लक्ष्मी की कृपा जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरत उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की होती है। बता दें कि आर्युवेद, जिसकी रचना ब्रह्मा ने की थी, को प्रकाश में लाने का श्रेय भी धन्वंतरि को ही जाता है।

धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। दीपावली की महानिशा से दो दिन पहले इसी खास दिन यक्ष-यक्षिणियों का जागरण होता है। यक्ष-यक्षिणी इस स्थूल जगत के उन सभी चमकीले तत्वों के नियंता कहे जाते हैं, जिन्हें दुनिया ‘दौलत’, ‘सम्पत्ति’, ‘वैभव’, ‘ऐश्वर्य’ जैसे नामों से जानती है। जानना दिलचस्प होगा कि कुबेर को यक्ष और लक्ष्मी को यक्षिणी का रूप माना जाता है। कुबेर और लक्ष्मी यक्ष-यक्षिणी के रूप में हमारे जीवन की उस ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं, जिससे हमारी जीवन-शैली निर्धारित और नियंत्रित होती है।

‘धनतेरस’ में ‘धन’ शब्द को धन-संपत्ति और धन्वंतरि दोनों से ही जोड़कर देखा जाता है। भगवान धन्वंतरि को हिन्दू धर्म में देव वैद्य का पद हासिल है। कुछ ग्रंथों में इन्हें विष्णु का अवतार भी माना गया है। मान्यता है कि समुद्र-मंथन के दौरान धन्वंतरि चांदी के कलश और शंख के साथ प्रकट हुए थे। इसी कारण धनतेरस के दिन शंख और चांदी का कोई पात्र, बर्तन या सिक्का खरीदना शुभ माना जाता है। सामर्थ्य के अनुसार कुछ लोग चांदी की जगह सोना तो कुछ लोग पीतल या स्टील की चीज खरीदते हैं, लेकिन ये रस्म लोग निभाते जरूर हैं। दीपावली के लिए इसी दिन लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा और पूजन सामग्री खरीदना भी शुभ माना गया है।

तंत्र शास्त्र में इस दिन लक्ष्मी, गणपति, विष्णु और धन्वंतरि के साथ कुबेर की साधना की जाती है। धनतेरस की रात्रि में कुबेर यंत्र, कनकधारा यंत्र, श्री यंत्र तथा लक्ष्मी स्वरूप श्री दक्षिणावर्ती शंख के पूजन को अचूक माना गया है। इस दिन अपने मस्तिष्क को स्वर्ण समझकर ध्यानस्थ होने से धन अर्जित करने की आन्तरिक क्षमता सक्रिय होती है, जो सही मायने में समृद्धि का कारक बनती है।

एक बात और, ‘धनतेरस’ में ‘धन’ से जुड़े ‘तेरस’ शब्द को लेकर एक बड़ी महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि इस दिन खरीदे गए धन, विशेषकर सोना या चांदी, में तेरह गुना वृद्धि हो जाती है। ईश्वर करे आपके धन में भी तेरह गुना की वृद्धि हो और हर धनतेरस को हो। ‘मधेपुरा अबतक’ की ओर से इस दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

 

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अपने नाम को दें मंगल का मुकाम

इंसानी इच्छा और महत्वाकांक्षा का सचमुच कोई अंत नहीं। इंसान सशरीर भले ही हर जगह न जा पाए, लेकिन उसके मन को कहीं जाने से कोई कैसे रोक सकता है? हममें से हर कोई हर उस जगह पर अपनी या अपने नाम की मौजूदगी चाहता है जहां उसकी कल्पनाशक्ति सुकून पाती हो। यहां तक कि स्कूल-कॉलेज के बेंचो पर, ट्रेन के डिब्बों पर, ऐतिहासिक ईमारतों पर, पुराने पेड़ों पर और यहां तक कि पहाड़ों तक पर हममें से कई अपना नाम किसी नुकीली चीज से खुरचकर या घिसकर लिखने की कोशिश करते हैं। जीवन के एक-एक पल को जीने की ख्वाहिश कुछ ऐसी होती है कि समुद्र के किनारे बैठकर उस रेत तक पर हम अपना लिखते हैं जिसको अगले ही पल लहरों से मिल जाना होता है। जरा सोचिए, हमारी ख्वाहिशों की इस सूची में अगर मंगल ग्रह भी शामिल हो जाए तो क्या हो?

जी हां, चौंकिए नहीं। अगर आप मंगल ग्रह पर अपना नाम भेजने की ख्वाहिश रखते हैं तो आपके पास एक शानदार मौका है। यह जिम्मा अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी पहचान और धाक रखने वाले नासा ने लिया है। दरअसल, नासा अगले साल लाल ग्रह पर पर इनसाइट लैंडर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने जा रहा है। यह स्पेसक्राफ्ट कुछ ऐसी चीजों का पता लगाने के लिए भेजा जा रहा है, जिनसे हम अब तक अनजान हैं। आप चाहें तो इसी स्पेसक्राफ्ट के जरिए अपने नाम को मंगल तक पहुंचा सकते हैं। इसके लिए बस आपको रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

वैसे यह कोई पहली बार नहीं है जब नासा की ओर से मंगल पर नाम भेजने का मौका उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे पूर्व साल 2015 में भी ऐसा हो चुका है। तब स्पेस एजेंसी ने एक सिलिकन चिप पर अपना नाम लिखने के लिए दुनिया भर से लोगों को आमंत्रित किया था। इन सभी नामों को इनसाइट मार्स लैंडर स्पेसक्राफ्ट के साथ जोडा जाएगा।

आपको जानकर हैरत होगी कि 8,27,000 लाख लोग पहले ही अपना नाम लिखने की अर्जी दे चुके हैं। नासा अब दूसरी माइक्रोचिप जोड़ने जा रहा है, जिसके जरिए अपने नाम मंगल पर भेजने का एक और मौका हर आम और खास को दिया जा रहा है।

बता दें कि नासा की तरफ से इनसाइट लैंडर को अगले साल मई में लॉन्च किया जाएगा। इसी के साथ एक सिलिकॉन चिप पर हजारों लोगों के नाम लिखकर भेजे जाएंगे। पहली चिप भर चुकी है, जबकि दूसरी चिप के लिए नासा ने नाम लिखने के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिए गए हैं। अगर आप भी अपने नाम को मंगल का मुकाम देना चाहते हैं, तो 1 नवंबर से पहले आप भी इसमें रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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बेनजीर के पति ने ही कराई थी उनकी हत्या..!

बेनजीर भुट्टो मर्डर केस में भगोड़ा घोषित हो चुके पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। उनकी मानें तो भुट्टो परिवार के खात्मे के लिए कोई और नहीं बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी जिम्मेदार थे। बकौल मुशर्रफ, जरदारी बेनजीर व मुर्तजा भुट्टो की हत्या में शामिल रहे हैं। मुशर्रफ के मुताबिक, जब भी कोई हत्या होती है तो पहले यह देखा जाना जरूरी है कि इसका सबसे अधिक फायदा किसे होगा। उनके अनुसार बेनजीर की हत्या से सबसे अधिक फायदा पीपुल्स पार्टी ऑफ पाकिस्तान के नेता और उनके पति आसिफ अली जरदारी को हुआ।

गौरतलब है कि पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के मर्डर केस को लेकर अभी हाल ही में परवेज मुशर्रफ को भगोड़ा करार दिया गया है। ऐसे में अपनी सफाई (चाहे वो पूरा सच हो, आंशिक सच हो या फिर झूठ हो) देने के लिए मुशर्रफ ने सोशल मीडिया को अपना जरिया चुना। उन्होंने जरदारी के संबंध में तमाम बातें अपने फेसबुक पेज पर डाले गए एक विडियो में कहीं।

इस विडियो में खुद को बेगुनाह ठहराते हुए मुशर्रफ ने कहा कि इस मामले में मुझे सबकुछ खोना पड़ा। मैं सत्ता में था और इस हत्याकांड ने मेरी सरकार को कठिन परिस्थितियों में ला खड़ा किया। उन्होंने आगे कहा, केवल एक ही शख्स था जिसे बेनजीर की हत्या से केवल और केवल फायदा होना था और वह शख्स आसिफ अली जरदारी थे।

मुशर्रफ ने जरदारी को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल किया है कि वे पांच सालों तक सत्ता में थे, फिर भी उन्होंने इस मामले की जांच जैसी होनी चाहिए थी, नहीं कराई। ऐसा इसलिए कि वह स्वयं बेनजीर हत्याकांड में शामिल थे। मुशर्रफ के अनुसार सबूतों से साफ था कि बैतुल्ला मसूद और उसके लोग इस हत्याकांड में शामिल थे पर उन्हें ऐसा करने को किसने कहा था। मुशर्रफ ने कहा, वह शख्स मैं नहीं हो सकता क्योंकि वह ग्रुप मुझसे और मैं उनसे नफरत करता था।

बहरहाल, मुशर्रफ के आरोप सच हों तो जरदारी के लिहाज से और झूठ हों तो मुशर्रफ के लिहाज से, राजनीति के घिनौने चेहरे से हमें दोनों ही हाल में रू-ब-रू कराते हैं। संबंध, संवेदना, सिद्धांत, सच्चाई – क्या सियासत के आगे इनका सचमुच कोई अस्तित्व नहीं?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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बिहार था हिन्दी को आधिकारिक भाषा चुनने वाला पहला राज्य

हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, हिन्दी हमारी राजभाषा है, हिन्दी में हिन्दुस्तान की आत्मा बसती है, हिन्दी ही पहचान है हमारी और फिर भी विडंबना देखिए कि कुछ संस्थाओं द्वारा रस्मअदायगी करने और कुछ सरकारी आयोजनों के अलावा हिन्दी दिवस पर उतनी भी चहल-पहल और रौनक नहीं जितनी ‘वेलेंटाइन डे’ तक पर देखने को मिल जाती है। आखिर हम जा कहां रहे हैं? क्या पश्चिम से आयातित तौर-तरीकों में अपनी शान समझने वाले हम भारतवासी (माफ कीजिए, ‘इंडियन’) बहुत तेजी से सांस्कृतिक गुलामी की तरफ नहीं बढ़ रहे? और क्या ये गुलामी सदियों की उस गुलामी से अधिक भयावह नहीं जिससे हम 15 अगस्त 1947 को मुक्त हुए थे?

जरा सोचकर देखिए, आज 14 सितंबर यानि हिन्दी दिवस है, क्या आप बता सकते हैं कि आज हम हिन्दी दिवस क्यों मनाते हैं? और अगर आप जानते हैं तो क्या विश्वास के साथ यह कह पाने की स्थिति में हैं कि आपने अपने बच्चों को भी इस दिन और इसके महत्व से अवगत कराया है? अगर पहले सवाल का जवाब आप ‘हां’ में दे भी दें तो दूसरे सवाल का जवाब (जैसा कि स्कूलों के सर्वे से पता चलता है) सौ में सत्तर फीसदी लोगों का ‘ना’ में होगा।

बहरहाल, 14 सितंबर के ही दिन 1949 में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिला था। संविधान के अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। हिन्दी को लेकर एक गौरवशाली तथ्य बिहार से जुड़ा है। जी हां, बिहारवासियों को इस बात का गर्व होना चाहिए कि 1881 में बिहार ही वो पहला राज्य था, जिसने हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में चुना था।

आज की पीढ़ी को ये जरूर जानना चाहिए कि ‘हिन्दी’ शब्द फारसी शब्द ‘हिन्द’ से बना है, जिसका अर्थ ‘सिंधु नदी की भूमि’ है। 11वीं सदी में जब तुर्कों ने पंजाब और गंगा के मैदानों पर हमला किया, तब हिन्द शब्द का इस्तेमाल यहां रहने वाले लोगों के लिए किया गया था। हमें यह भी पता होना चाहिए कि दुनिया भर में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिन्दी है। 2015 के आंकड़ो के मुताबिक हिन्दी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है। यही नहीं, एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि जहां 70 प्रतिशत चीनी ही मंदारिन बोलते हैं, वहां भारत के 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते हैं।

इंटरनेट की दीवाने युवाओं को यह जानकर खुशी होगी कि दुनिया में हर पांच में से एक व्यक्ति हिन्दी में इंटरनेट का उपयोग करता है। यही नहीं, हिन्दी भारत की उन सात भाषाओं में एक है, जिसका इस्तेमाल वेब एड्रेस बनाने में भी किया जाता है। हिन्दी की एक और खूबी जिससे आपको वाकिफ होना चाहिए, वो यह कि सीखने के लिहाज से यह विश्व की अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक आसान है। इसमें शब्दों का वही उच्चारण होता है, जो लिखा जाता है।

चलते-चलते यह भी जानें कि विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत महाराष्ट्र के नागपुर से 1975 में हुई थी और 2006 में इस दिन को आधिकारिक दर्जा के साथ वैश्विक पहचान मिली।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप  

 

 

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एक चाय बेचने वाला भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन गया ?

इस टाइटल को पढ़ने के बाद आप में से ज्यादा लोग यही सोचेंगे कि लक, किस्मत, नसीब ने नरेन्द्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया, साईकिल पर चढ़ कर चूरन बेचने वाले रामदेव को फ़र्स से अर्श तक पहुचाया और भारत का बिज़नस टायकुन बनाया | क्या सच में होता है किस्मत ? किस्मत या फिर लक इस दुनिया की सबसे रहस्यमयी शक्ति है | ऐसा क्यों होता है हम में से कुछ लोगों के साथ हमेशा अच्छी चीजें होती है और किसी-किसी के साथ हमेशा बुरी | तो किस्मत या लक या फिर नसीब कहलें- क्या यह सब एक ‘इत्तेफाक’ है | कोई अगर लगातार 10 बार लौटरी जीत जाये तो क्या हम इसे उसका लक कहेंगे या फिर ‘इत्तेफाक’ | अगर लक कहेंगे तो क्या सबकुछ पहले से तय है जिससे कोई बार-बार लौटरी जीत रहा है तो कोई चाय बेचते-बेचते प्रधानमंत्री बन जाता है | या फिर ये सब एक इत्तेफाक है ! क्या ये इत्तेफाक (Randomness) हमारे ब्रह्मांड पर राज करता है ??

जब हमारी जिंदगी में सारी परिस्थितियां अनुकूल होती है तो हम इसे अपना गुड-लक मानते हैं और जब परिस्थितियां बुरी होती है तो हम उसे अपना बैड-लक मानते हैं | पर आखिर ऐसा क्यों होता है हमारे साथ ? क्या कोई रहस्यमयी चीज़ है जो हमारी परिस्थितियों को नियंत्रित करती है ? तो आइये जानते हैं कि विज्ञान क्या कहता है- वो शक्ति जो हमारी गुड-लक और बैड-लक परिस्थितियों को तय करती है वो हमारी शरीर की एक अवस्था है जिसका जवाब Physics में है, जी हाँ Quantum Physics में | अगर हम Quantum Physics की बात मानें तो हम एक विशुद्ध शक्ति पुंज हैं | हम में भी ठीक उसी प्रकार कम्पन होता है जैसा की किसी भी Charged Particle में | बस सिर्फ हमें बाहर से हमारा शरीर नजर आता है | हम सबों ने अपने भीतर की उस उर्जा को कभी न कभी जरुर  महसूस किया है |

तो आज हम आपको बतायेंगे कि एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री कैसे बन गया- Quantum Physics के वैज्ञानिकों ने फ्रीक्वेंसी मापक यंत्र  द्वारा ये साबित कर दिया है कि एक साधारण स्वस्थ मनुष्य का शरीर 60-72 मेगाहर्ज़ पर कम्पन करता है | और गड़बड़ी तब हो जाती है जब आपके शरीर का कम्पन 60 मेगाहर्ज़ से नीचे हो जाये | इस अवस्था में आप किसी काम के नहीं होते हैं | चारों ओर असंतोष व्याप्त होने लगता है, आपके साथ हमेशा बुरा होता है, आपकी किस्मत आपको छोड़ के जा चुकी होती है, आपसे कोई प्यार नहीं करता है, आप नशे के गिरफ्त में आ चुके होते हैं, जिंदगी बोझ बन जाती है और आप बन जाते हो धरती के बोझ ! तभी तो हमारे क्रन्तिकारी मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने बिहार में शराब बंदी करवाई जिससे की बिहार की जनता Low Frequency Zone में न जा सके…… और एक अच्छी जिंदगी बना सके |

बहरहाल अब हम बात करते हैं जब हमारे शरीर की फ्रीक्वेंसी 72 मेगाहर्ज़ से ऊपर यानि 75-80-82 हो तो हम एक खुशहाल जिंदगी की तरफ़ बढ़ रहे होते हैं, हमारा जीवन स्वस्थ होता है, लोग हमसे प्यार करते हैं, हमें एक कामयाब आदमी की पहचान मिलती है या कुल मिलाकर कहें हम एक बहुत ही कामयाब जिंदगी जी रहे होते है  और अगर ये फ्रीक्वेंसी 90 मेगाहर्ज़ के पार चले जाये तो हम बहुत ही किस्मत वाले हो जाते हैं, हमारे सारे सपने सच होने लगते हैं, हमारा प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ने लगता है | ठीक यही बात हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ घटित हुई है उन्होंने अपने आप को Low Frequency Zone से High Frequency Zone में स्थापित किया और चाय बेचते-बेचते भारत के प्रधानमंत्री बन गये | वहीँ साईकिल पर चूरन बेचने वाला रामदेव- बिज़नस टायकुन चार्टर्ड प्लेन पर चढ़ने वाले बाबा रामदेव बन गये |

महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला ने कहा था-  “If you want to understand this Universe then think in terms of Energy, Vibration and Frequency”

तो एक बात साबित हो ही गई कि किस्मत उनकी चमकती है, लक उनका साथ देता है,नसीब उनका बनता है, मुकद्दर का सिकंदर वो होता है जिनकी फ्रीक्वेंसी हाई होती है |

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ब्रिक्स: धाक और धमक दोनों बढ़ी भारत की

चीन के शियामेन में हुए ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में आतंकवाद के खिलाफ भारत के अभियान को बड़ी सफलता मिली। ब्रिक्स देशों ने अपने घोषणापत्र में इस बार लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का नाम शामिल किया और इनसे तथा इनके जैसे तमाम आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल टेमर और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने शिरकत की।

शियामेन घोषणापत्र में कहा गया कि “हम क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति पर और तालिबान, इस्लामिक स्टेट (आईएस), अलकायदा और इससे संबद्ध संगठन ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और हिज्बुल-तहरीर द्वारा की गई हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हैं।” घोषणापत्र के इस अंश का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि भारत ने अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का रुख किया था लेकिन चीन ने बार-बार इस प्रस्ताव की राह में रोड़ा अटकाया। गोवा में बीते साल हुए आठवें ब्रिक्स सम्मेलन में भी चीन ने घोषणापत्र में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों को शामिल करने का विरोध किया था। पर इस बार उसकी नहीं चली। इससे भारत की धाक और धमक दोनों बढ़ी है।

गौरतलब है कि शियामेन घोषणापत्र में ब्रिक्स देशों सहित दुनियाभर में हुए सभी आतंकवादी हमलों की निंदा की गई है। घोषणापत्र में कहा गया, “आतंकवाद की सभी रूपों में निंदा की जाती है। आतंकवाद के किसी भी कृत्य का कोई औचित्य नहीं है।” पाकिस्तान का नाम लिए बगैर घोषणापत्र में कहा गया , “हम इस मत की पुष्टि करते हैं कि जो कोई भी आतंकी कृत्य करता है या उसका समर्थन करता है या इसमें मददगार होता है, उसे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।” घोषणापत्र में आतकंवाद को रोकने और इससे निपटने के लिए देशों की प्राथमिक भूमिका और जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए जोर दिया गया कि देशों की संप्रभुता और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का सम्मान करते हुए आतंक के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।

ब्रिक्स देशों ने अपने घोषणापत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से व्यापक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी गठबंधन की स्थापना करने और इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की समन्वयक की भूमिका के लिए समर्थन जताने का आह्वान किया। उन्होंने अपने घोषणापत्र में कहा, “हम जोर देकर कहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार होनी चाहिए। इसमें संयुक्त राष्ट्र का घोषणापत्र, अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी और मानवीय कानून, मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता भी शामिल हैं।”

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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डोकलाम पर भारत की कूटनीतिक विजय

भारत और चीन के बीच पिछले कुछ महीनों से डोकलाम में चल रहे विवाद को हल करने की दिशा में अहम सहमति बनी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक दोनों देश डोकलाम से सेना हटाने को तैयार हो गए हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया, “हाल के हफ्तों में डोकलाम को लेकर भारत और चीन ने कूटनीतिक बातचीत जारी रखी है। इस बातचीत में हमने एक दूसरे की चिंताओं और हितों पर बात की। इस आधार पर डोकलाम पर जारी विवाद को लेकर हमने सीमा पर सेना हटाने का फैसला किया है और इस पर कार्रवाई शुरू हो गई है।”

 

हालांकि चीन यहां भी अपनी चालबाजी से बाज नहीं आया। चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे अपनी जीत के रूप में पेश किया। उसके प्रवक्ता के मुताबिक भारतीय सैनिक अपने उपकरणों समेत अपनी सीमा में लौट गए हैं, जबकि चीनी पक्ष डोकलाम में अपनी गश्त जारी रखे हुए है। दूसरी ओर जीत-हार के दावों से अलग कूटनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए भारत ने कहा कि दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपने हितों-चिंताओं और रुख से अवगत कराने में सफल रहे हैं। जहां तक सिर्फ भारतीय सेना की वापसी का प्रश्न है, ये सोचने का विषय है कि भारत के एकतरफा पीछे हट जाने के लिए चीन से सहमति की भला जरूरत ही क्या थी।

 

बहरहाल, चीन चाहे जो कहे, इसमें कोई दो राय नहीं कि डोकलाम पर भारत ने कूटनीतिक विजय पाई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सितंबर में ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर चीन दौरे के पहले इस विवाद का सुलझना विशेष अर्थ रखता है। चीन लाख कोशिशों के बावजूद भारत और भूटान को अलग-थलग करने में विफल रहा। बड़े देशों में किसी ने उसके तर्क पर भरोसा नहीं जताया। उसके दुष्प्रचार, धमकियों और मनोवैज्ञानिक युद्ध का विश्व भर में गलत संदेश गया वो अलग। दूसरी ओर भारत लगातार मुद्दे के शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीके से हल पर जोर देता रहा। कहने की जरूरत नहीं कि अगर इस समस्या का समाधान अभी नहीं निकलता तो प्रधानमंत्री मोदी शायद ही ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेते और अगर ऐसा होता तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में चीन की और किरकिरी होती।

 

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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सर्वोच्च अदालत ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया

भारत के लिए बड़ा दिन। महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर। मुस्लिम महिलाओं के लिए एक नए युग की शुरुआत। जी हां, देश के सबसे जटिल सामाजिक मुद्दों में से एक तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया। पांच में से तीन जजों जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस फली नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। वहीं चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने छह महीने के लिए एक साथ तीन तलाक पर रोक लगाने और तमाम राजनीतिक दलों को साथ बैठकर कानून बनाने की सलाह दी।

बहरहाल, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 395 पेज के अपने आदेश में कहा कि पीठ तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को 3-2 के बहुमत से खारिज करती है। कोर्ट ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है, जबकि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है। कोर्ट ने मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर लगे बैन का जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए तीन तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगाते हुए केन्द्र सरकार से कहा कि वह तीन तलाक पर कानून बनाए। इस अवधि में देश भर में कहीं भी तीन तलाक मान्य नहीं होगा। सर्वोच्च अदालत ने उम्मीद जताई कि राजनीतिक दलों को विश्वास में लेते हुए केन्द्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिन्ताओं का ख्याल रखा जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तब भी तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा।

बता दें कि इससे पूर्व 11 से 18 मई तक रोजाना सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए 22 अगस्त का दिन तय किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय में शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब तरीका है। ये गैर-जरूरी है। कोर्ट ने सवाल किया था कि जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है, वह कानून के तहत कैसे वैध ठहराया जा सकता है? सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया था कि कैसे कोई पापी प्रथा आस्था का विषय हो सकती है?

चलते चलते ‘मधेपुरा अबतक’ की ओर इस ऐतिहासिक फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट का साधुवाद। ऐसे फैसलों के कारण ही अदालत के प्रति लोगों की आस्था अब तक बनी हुई है।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप  

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