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जी हाँ, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने अपने पोते का नाम ‘श्रीनरेन्द्र’ रखा है

इंडोनेशिया, मलयेशिया और सिंगापुर की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार शाम को इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंचे, जहां स्वाभाविक तौर पर उनका भव्य स्वागत किया गया। बड़े ही आत्मीय माहौल में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो और प्रधानमंत्री मोदी के बीच परस्पर हित की कई बातें हुईं और कई यादगार पल बीते। पर इस दौरान दो बातें ऐसी हुईं जो प्रधानमंत्री मोदी के लिए शायद कल्पनातीत थीं। चलिए जानते हैं, क्या हैं वे दो बातें।

शुरू करते हैं उस बात से जिसे सुनकर प्रधानमंत्री मोदी का चकित होना स्वाभाविक था। हुआ यों कि स्वागत के उपरान्त अनौपचारिक बातचीत के दौरान इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो ने प्रघानमंत्री मोदी को बताया कि उनके पोते का नाम प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही श्रीनरेन्द्र रखा गया है। उन्होंने कहा कि उके बड़े बेटे गिबरान राकाबुमिंग के बेटे यानि उनके पोते का का जन्म जनवरी 2016 में हुआ था, जिसका नाम उन्होंने श्रीनरेन्द्र रखा है। निश्चित तौर पर यह बात ना केवल प्रधानमंत्री मोदी के लिए बल्कि पूरे देश के लिए हर्ष और सम्मान की बात है।

यह तो हुई पहली बात। दूसरी बात भी कम चौंकाने वाली नहीं थी। दरअसल इंडोनेशिया के राष्ट्रपति द्वारा आयोजित इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत के लिए इंडोनेशिया की मशहूर सिंगर फ्रायडा लुसिआना का कार्यक्रम भी रखा गया था। लुसिआना को उनके सिंगिंग के साथ-साथ उनके चैरिटी वर्क के लिए भी जाना जाता है। लुसिआना ने इस दौरान 1954 में आई हिन्दी फिल्म ‘जागृति’ का गाना ‘साबरमति के संत’ गाया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित यह गाना वहां के कलाकार से कुछ अलग अंदाज में पर उसी सम्मान और समर्पण के साथ सुनना सचमुच एक अलग अनुभूति से भरने वाला था।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंडोनेशियाई राष्ट्रपति से समुद्र, व्यापार और निवेश सहित विभिन्न मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग के संबंध में चर्चा की। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य तीनों दक्षिण पूर्व एशियाई देशों – इंडोनेशिया, मलयेशिया और सिंगापुर – के साथ भारत के संबंध को बढ़ाना है। कहने की जरूरत नहीं कि यह उनकी एक्ट ईस्ट नीति का हिस्सा है।

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20 मई 1570 को मिला था दुनिया को पहला एटलस

बहुत खास दिन है 20 मई। क्यों खास है, यह जानने के लिए आज से लगभग 450 साल पहले की कल्पना कीजिए। दुनिया का कोई मुकम्मल नक्शा नहीं था तब। पृथ्वी की भौगोलिक बनावट को समझ पाना कितना कठिन रहा होगा उस समय। ऐसे में एटलस की परिकल्पना करना और उसे साकार कर देना असंभव-सा प्रतीत होता है, पर 1570 ई. में आज ही के दिन यानि 20 मई को अब्राहम ऑर्टेलियस ने दुनिया का पहला आधुनिक एटलस प्रकाशित किया और इसे बड़ा सही नाम दिया – Theatrum Orbis Terrarum यानि Theatre of the World अर्थात् दुनिया का रंगमंच। सच्चे अर्थों में दुनिया का रंगमंच ही था वो। इसमें उन्होंने कई कार्टोग्राफर के काम को उनकी व्याख्या और स्रोतों के साथ समाहित किया था। कुछ खामियों और सीमाओं के बावजूद ऑर्टेलियस के इसी एटलस ने व्यवहार में लाए जाने वाले आज के सभी एटलस की नींव रखी थी।

4 अप्रैल 1527 को बेल्जियम के एंटवर्प में जन्मे अब्राहम ऑर्टेलियस पेशे से भूगोलविद और मानचित्र निर्माता थे। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में पहला मैप मिस्र का बनाया था। एशिया, स्पेन और रोमन साम्राज्य के नक्शे भी उन्होंने बनाए। 16वीं शताब्दी में प्रकाशित उनके एटलस में 53 मानचित्र थे। यह वो समय था जब दुनिया में नए-नए इलाके खोजे जा रहे थे। अमेरिका, अफ्रीका के कई देशों को इस सदी में दुनिया ने जाना। बता दें कि ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के बारे में तब कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए इस एटलस में पांच महाद्वीपों के ही नक्शे हैं।

ऑर्टेलियस के एटलस से दुनिया की खोज में निकले लोगों को अपनी मंजिल ढूंढ़ने में खासी मदद मिली, संचार में आसानी हुई और उनके नक्शों ने लोगों को पहली बार वैश्विक दृष्टिकोण का साक्षात्कार कराया। कॉन्टिनेन्टल ड्रिफ्ट थ्योरी, जिसमें कहा जाता है कि दुनिया के सारे द्वीप आपस में जुड़े हुए थे और धीरे-धीरे वे टूटना शुरू हुए, की प्रारंभिक जानकारी भी इस एटलस से मिलती है।

अब्राहम ऑर्टेलियस असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उनका कई भाषाओं पर अधिकार था। वह बचपन से ही डच, ग्रीक, लैटिन, इटालियन, फ्रेंच, स्पैनिश और कुछ हद तक जर्मन और अंग्रेजी भी बोल सकते थे। उन्होंने क्लासिक साहित्य का अध्ययन किया और विज्ञान के विकास से भी लागातार अपने आप को जोड़े रखा। यह ऑर्टेलियस का ही भगीरथ प्रयत्न था कि दुनिया के ‘कैनवास’ को उसका सही विस्तार मिला। 1570 में अपने एटलस के प्रकाशन के बाद भी दुनिया को समझने और समझाने की उनकी ललक कम न हुई। यही कारण है कि 1622 में जब उनके एटलस का अंतिम संस्करण प्रकाशित हुआ तब उसमें 167 मैप थे। उनके इस अवदान की ऋणी पूरी मानव-सभ्यता है। इस महान शख्सियत की मृत्यु 71 वर्ष की आयु में 28 जून 1598 को हुई। उन्हें और दुनिया को उनके योगदान को हमारा नमन।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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मदर्स डे: कुछ अनुभूतियां

मां से छोटा
और ताकतवर
शब्द कोई और हो… तो बताना..!

गम को छिपाकर
वो कहां रखती है
गर तुम्हें मालूम हो… तो दिखाना..!

मौत के रास्ते हैं बहुत
ये मैंने, तुमने, सबने जाना
पर बात जब सृजन की हो
मां की कोख में ही होता है आना..!

मां अनपढ़ हो तब भी
गणित में बड़ी दिलदार होती है
दो रोटी मांग कर देखो
वो हरदम चार देती है..!

साल में एक दिन
मदर्स डे आता है
सब कहते हैं आज
मां का दिन है
कोई तो बतलाए
दिन कौन-सा मां के बिन है..!

ईश्वर ने सृष्टि को रचकर
उसे करीने से सजाया
पर हर बच्चे को पालने में
स्वयं को सक्षम नहीं पाया
तब हारकर उसने मां को बनाया..!

मां वो है
जो बच्चों के पथ में फूल बिछा
स्वयं कांटों पर चल लेती है
मां वो है
जो बच्चों के आज की खातिर
अपना सारा कल देती है..!

सोचो किस कदर वही मां
खून के आंसू रोती होगी
जब घर के बंटवारे में
छाती के टुकड़े ढोती होगी..!

धरा-आसमां बंट जाए सब
मां कब-कहां बंटती है
गोद इतनी विशाल उसकी
पूरी कायनात उसमें अंटती है..!

[डॉ. मधेपुरी की कविता]

 

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साढ़े तीन अरब साल पहले सूख गईं मंगल की झीलें

कहना गलत ना होगा कि मंगल ग्रह दूसरे ग्रह पर जीवन की संभावनाएं तलाश रहे दुनिया भर के खगोलविदों के कौतूहल का केन्द्र बना हुआ है। हम और आप भी इस कौतूहल से बचे हुए नहीं हैं और ज्यों-ज्यों इसके बारे में जानकारियां हासिल होती जा रही हैं, कौतूहल भी उसी अनुपात में बढ़ता जा रहा है। आप जानते ही होंगे कि इस ग्रह को लेकर सर्वाधिक उत्सुकता इस बात की रही है कि वहां पानी की मौजूदगी है या नहीं? इस बाबत हुए गहन शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मंगल ग्रह का पर्यावरण कभी तरल पानी के अनुकूल था। पर यक्ष प्रश्न जो बच गया थो वो यह कि क्या वो पानी अब भी मौजूद है? और अगर वो वर्तमान में मौजूद नहीं तो अतीत में उसकी मौजूदगी वहां कब तक थी?

इस उत्सुकता को शांत करने के लिए मंगल ग्रह पर फैले नदियों के अवशेषों का अध्ययन किया गया जिससे इस बात की पुष्टि हुई है कि वहां करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भारी मात्रा में पानी मौजूद था और फिर कालांतर में वहां की सभी झीलें सूख गईं। जी हाँ, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह दावा लाल ग्रह की सतह पर मौजूद लंबी दरारों का अध्ययन करने के बाद किया है। इन दरारों की खोज अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने 2017 की शुरुआत में की थी।

बता दें कि कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में प्राचीन काल में पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह के मौसम से जुड़ी जानकारियों पर से भी पर्दा उठाया है। वैज्ञानिक नैथनील स्टीन का कहना है कि किसी भी प्राकृतिक जलस्त्रोत की तलछट के हवा के संपर्क में आने से सूखी दरारों का निर्माण होता है। ये दरारें झीलों के किनारे की जगह उनके केंद्र के नजदीक स्थित हैं। इससे स्पष्ट है कि समय के साथ इन झीलों के स्तर में उतार-चढ़ाव भी होता था। जियोलॉजी जर्नल में छपे इस शोध के अनुसार पृथ्वी की तरह मंगल के झरने भी एक ही तरह के चक्र का पालन करते थे। इस अध्ययन से लाल ग्रह पर मौजूद झील की प्रणालियों के विषय में जानकारियां सामने आएंगी।

बहरहाल, इस अध्ययन को क्यूरियोसिटी रोवर के मिशन का दूसरा अध्याय कहा जा रहा है। अभी बहुत सी रोमांचक जानकारियों से पर्दा उठना बाकी है। तब तक हम और आप स्वतंत्र हैं अपनी रुचि और कल्पनाओं का लोक वहां बसाने के लिए।

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कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत 500 मेडल जीतने वाला पाँचवाँ देश बना

भारत के लिए इस 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स का 10वाँ दिन वास्तव में सर्वाधिक शानदार रहा | भारत के लिए 88 साल के कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में विदेश में मेडल टेबुल में स्थान के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा |

जहाँ तीन बच्चों की माँ दिग्गज मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम भारत की ध्वजावाहक बनी हो वहाँ भारत को अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से कौन रोकेगा | दशवें दिन आठ गोल्ड मेडल मिले भारत को जिसकी शुरुआत मेरी कॉम ने ही 48 किलोग्राम स्पर्धा वाले बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल जीतकर की थी | उस दिन 14 अप्रैल को कुल 17 पदक जीतकर भारत ने मेडलों का अर्धशतक पूरा किया |

बता दें कि संसार के 53 ऐसे स्वतंत्र देशों का एक संघ, जो कॉमनवेल्थ कंट्रीज के नाम से जाना जाता है, का मुख्यालय लंदन में है | वे सभी कभी-न-कभी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था | इन देशों की 2 वर्षों में एक बार लंदन में बैठक होती है | इन्हीं देशों के सम्मिलित खेलों को कॉमनवेल्थ गेम्स कहा जाता है |

यह भी जानिए कि 2018 का कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट स्थित कैरारा स्टेडियम में हजारों पुरुष-महिलाओं खिलाड़ियों एवं खेल पदाधिकारियों की उपस्थिति में 11 दिवसीय विभिन्न प्रतियोगिताओं के रूप में आयोजित किया गया जिसका समापन 15 अप्रैल (रविवार) को जश्न के साथ संपन्न हुआ | इस अवसर पर राष्ट्रमंडल खेल महासंघ की अध्यक्षा लुई मार्टिन ने कहा कि खिलाड़ियों की क्षमता की कोई सानी नहीं | इस बार 2018 में भारत 26 गोल्ड के साथ तीसरे स्थान पर रहा जबकि 2010 में दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में 38 गोल्ड जीतकर भारत दूसरे स्थान पर तिरंगा लहराया था | तभी तो हम कहते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में विदेश में भारत का दूसरा सर्वश्रेष्ठ और कुल मिलाकर तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है इस बार |

हाँ | यह भी बता दें कि भारत के 115 पुरुष एवं 103 महिला खिलाड़ियों ने इस खेल में कुल 66 मेडल जीते जिसमें 26 गोल्ड, 20 सिल्वर एवं 20 ब्रांज | किसी मायने में महिलाएं पीछे नहीं रही हैं | पुरुष 13 गोल्ड जीते तो महिलाएं 12 गोल्ड हासिल की तथा एक गोल्ड मिक्स्ड टीम ने दिलाई | पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चली महिलाएं |

यह भी जानिए कि भारत का कुश्ती में सक्सेस रेट 100% और बॉक्सिंग में 75% रहा है | भारत पहली बार बैडमिंटन में 6 मेडल जीते जिसमें 2 गोल्ड भी है | यह किसी भी कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन में सबसे अधिक गोल्ड और मेडल है | मणिका ने टेटे में 4 मेडल जीते यह क्या कम है |

भारत द्वारा इतिहास तब रचा गया जब बैडमिंटन में गोल्ड और सिल्वर के लिए दोनों तरफ से भारतीय महिला खिलाड़ी पीवी सिंधु और साइना संघर्ष कर रही थी | जहाँ पिछली बार ग्लासगो में इंग्लैंड ने सर्वाधिक पदक जीते थे वही इस बार ऑस्ट्रेलिया ने शानदार वापसी की |

और अंत में बिहार को गौरवान्वित करने और अपने स्वर्णिम प्रदर्शनों के बीच “गोल्डन गर्ल” बनी रहने के लिए श्रेयसी को शूटिंग में स्वर्ण दिलाने के लिए ‘मधेपुरा अबतक’ सलाम करता है |

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कॉमनवेल्थ गेम्स 2018: बेटियों को सलाम

भारतीय महिला खिलाड़ियों ने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की झोली में गोल्ड मेडल्स की बरसात कर दी है। इनमें से हालिया गोल्ड मेडल महिला टेबल टेनिस टीम ने जीता है। भारतीय टीम ने सिंगापुर को 3-1 से हराकर पहली बार इस इवेंट में गोल्ड मेडल हासिल किया है। लड़कियों के शानदार प्रदर्शन के कारण आज हर भारतीय इन लड़कियों पर गर्व कर रहा है। देशभर से उनको शुभकामनाएं मिल रही हैं।

कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में भारत के सुनहले सफर की शुरुआत वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने की। वेटलिफ्टर संजीता चानू ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाया। वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण का सफर यहीं नहीं रुका। सफलता की इस कहानी में अगला नाम जुड़ा वाराणसी शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर बसे दादूपुर गांव में रहने वाली पूनम यादव का। कभी अभ्यास के बाद भूखे पेट सोने वाली पूनम यादव ने 69 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता। उधर निशानेबाजी में हरियाणा के झज्जर की बेटी मनु भाकर ने स्वर्णिम सफलता दिलाई तो महिला टेबल टेनिस के गोल्ड पर भी हमारी बेटियों ने कब्जा जमाया।

क्या आम और क्या खास, भारत की इन बेटियों ने सभी का सीना चौड़ा किया है और यही वजह है कि सभी इनको दिल खेलकर बधाइयां दे रहे हैं। सदी के महानायक बच्चन ‘यूनाइटेड नेशन्स गर्ल चाइल्ड’ के ब्रैंड ऐंबेसडर अमिताभ बच्चन ने भी ट्विटर पर इन विजयी लड़कियों की तस्वीर शेयर की है और बधाई दी है। उन्होंने लिखा है, ‘खेल की महानता और महिला ऐथलीट्स का गौरव कमाल कर रहा है। वेट लिफ्टिंग, शूटिंग, टेबल टेनिस, स्क्वैश… अद्भुत। आप हम भारतीयों का गौरव हैं।’

भारत की इन बेटियों को ‘मधेपुरा अबतक’ का सलाम..! आइये, हम सभी इन बेटियों को बधाई दें और प्रण करें कि अपनी बेटियों की नैसर्गिक प्रतिभा को निखारने में कोई कसर नहीं रखेंगे। याद रखें, हमारी आज की मेहनत ही कल सोना बनकर दमकेगी।

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खुद को संवारेंगे या संस्कृति को सहेजेंगे संसद सदस्य ?

भारत अपने आप में एक महत्वपूर्ण विश्व विरासत है | विश्व विरासत की सूची में सांस्कृतिक संपदा के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र है भारत | भारत के लिए अपनी संस्कृति को हर हाल में सहेजकर तथा सम्मान के साथ बचाकर रखना अपेक्षित है | परंतु, भारतीय संसद के सदस्यगण अपनी संस्कृति को सहेजने के बजाय खुद को नाना प्रकार की सुविधाओं से लैस करने एवं सँवारने में लगे रहते हैं |

तभी तो प्रेम व भाईचारे वाले त्यौहार जिसे आम लोगों द्वारा भी उमंग के साथ खुशियाँ बांटने वाला पर्व ‘होली’ कहकर संबोधित किया जाता है तथा मथुरा-वरसाने की वह ‘होली’ जो परम को भी प्रिय है | बावजूद इसके हमारे संसद सदस्यों की अवहेलना के चलते केंद्रीय डाक विभाग द्वारा आजादी के बाद से आज तक कोई डाक टिकट ‘होली’ को लेकर जारी नहीं किया गया | जबकि दक्षिण अमेरिका का ‘गुयाना’ दुनिया का एकलौता ऐसा देश है जिसने ‘होली’ पर लगभग 50 वर्ष पूर्व (26 जनवरी 1969) ही चार डाक टिकटो का खूबसूरत सेट जारी किया था जिसमें राधा-कृष्ण को होली खेलते हुए तथा रंग-गुलाल से बचते-बचाते हुए दिखाया गया है |

बता दें कि यह कितनी अफसोस की बात है कि जो भी त्यौहार यानी ‘होली, ईद….. आदि हमारे देश में इतना अहम हैं, उन पर संसद-सदस्यों द्वारा अभी तक ध्यान नहीं दिये गये हैं और ना ही डाक टिकटें जारी किये गये हैं  | अलबत्ता एक दो के अलाबे सभी सांसद सदस्यगण वेतन-भत्ता व अन्य सारी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए सदैव ‘कागचेष्टा वकोध्यानंम….’ को भी मात देने में लगे रहते हैं बल्कि संस्कृति भांड़ में जाय तो जाय…… उसकी कभी चिंता नहीं करते |

हाँ ! 10 वर्षों की सतत मांग के बाद ही भारत में दीपावली पर 7 अक्टूबर 2008 को तीन डाक टिकट जारी किए गये | इसमें भी गुयाना हमें पीछे छोड़ दिया | क्योंकि , गुयाना लगभग 30 वर्ष पूर्व ही दिपावली पर चार टिकट जारी कर दिये थे जिसमें महालक्ष्मी के साथ दीप दान का चित्र बना है |

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पाकिस्तान में सेनेटर बन ‘कृष्णा’ ने रचा इतिहास

एक हिन्दू-दलित महिला ने 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में इतिहास रच दिया। जी हाँ, पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थार की रहने वाली कृष्णा कुमारी कोलही नाम की यह 39 वर्षीया महिला सेनेटर बनने वाली पाकिस्तान की पहली हिन्दू-दलित महिला है। बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) की उम्मीदवार कृष्णा ने चुनाव में तालिबान से जुड़े एक मौलाना को हराया है। कृष्णा का सेनेट के लिए चुना जाना पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों के अधिकारों और महिलाओं के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।

गौरतलब है कि 1979 में एक गरीब परिवार में जन्मीं कृष्णा के पिता किसान थे। वो 9वीं क्लास की छात्रा थीं जब 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। हालांकि, शादी के बाद भी कृष्णा ने पढ़ाई जारी रखी और साल 2013 में उन्होंने सिंध यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की।

स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आने वाली कृष्णा कुमारी कोलही अपने भाई के साथ ऐक्टिविस्ट के तौर पर पीपीपी में शामिल हुई थीं। उन्होंने थार में हाशिये पर जी रहे लोगों के अधिकारों की आवाज उठाई है। बहरहाल, चलने से पहले बता दें कि पाकिस्तान के अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन सेनेट में सबसे अधिक सीटें हासिल कर संसद के उच्च सदन में सबसे बडी़ पार्टी बनकर उभरी है।

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पाकिस्तान में भी मनाई जाती है होली

आमतौर पर जब पाकिस्तान की चर्चा होती है, तब हमारे जेहन में भारत के लिए वहां के सियासतदानों के कटुता भरे बयान, हाफिज सईद जैसे आतंकियों की नापाक हरकतें, सीमा पर आए दिन होने वाली गोलीबारी या फिर क्रिकेट के मैदान की प्रतिद्वंद्विता की तस्वीर उभरती है। ऐसे में क्या आप इस बात पर यकीन कर सकते हैं कि रंगों के त्योहार होली के दिन वहां भी जमकर अबीर-गुलाल उड़ता है, हिन्दी फिल्मों के गानों पर धमाल मचता है और वहां रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसमें शामिल होते हैं..!

जी हां, मुस्लिम मुल्क पाकिस्तान में हिंदू बिरादरी के लोग धूमधाम से होली मनाते हैं। इस दिन सारे रिश्तेदार बहन-भाई मंदिरों में इकट्ठा होते हैं और एक दूसरे पर रंग डालते हैं। वहां के लोग बताते हैं कि होली के जश्न में उनके मुस्लिम दोस्त भी शामिल होते हैं और होली भी खेलते हैं। होली के मौके पर हिंदुस्तान की तरह पाकिस्तान में भी विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि कुछ साल पहले तक यहां होली की छुट्टी नहीं होती थी, लेकिन अब होली पर यहां सार्वजनिक अवकाश हुआ करता है।

गौरतलब है कि पाकिस्तान में 2 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी है। इनमें हिंदुओं के अलावा ईसाई और दूसरे सम्प्रदाय के लोग भी हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदुओं की आबादी ज्यादा है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर यहां होली की धूम अधिक होती है। वैसे कराची भी इस मामले में पीछे नहीं। इस बार हिन्दुओं ने वहां धूमधाम से भव्य होली फेस्टिवल का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया और एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं।

सच तो यह है कि दोनों देशों के बीच जो दूरी आज दिखती है, वो चंद स्वार्थी तत्वों के कारण। नहीं तो इंसानियत के रंग, खुशियों के रंग, मुहब्बत और उम्मीदों के रंग भारत हो या पाकिस्तान या फिर दुनिया का कोई और मुल्क, हर जगह एक है। रही बात होली की, तो ये त्योहार ही रंगों का है, इस दिन कोई ‘बेरंग’ या ‘बदरंग’ रहे भी तो कैसे..?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप 

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अमीर देशों की सूची में भारत को छठा स्थान

दुनिया के सबसे अमीर देशों की सूची में भारत को छठा स्थान मिला है, जबकि अमेरिका शीर्ष स्थान पर काबिज है। न्यू वर्ल्ड वेल्थ 2017 की इस रिपोर्ट में भारत की कुल संपत्ति 8,230 अरब डॉलर और अमेरिका की कुल संपत्ति 64,584 अरब डॉलर बताई गई है। अमेरिका के बाद 24,803 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ चीन दूसरे और 19,522 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ जापान तीसरे स्थान पर है। बता दें कि कुल संपत्ति से मतलब हर देश/शहर में रहने वाले सभी व्यक्तियों की निजी संपत्ति से है। इसमें उनकी देनदारियों को घटाकर सभी संपत्तियां (प्रॉपर्टी, नकदी, शेयर, कारोबारी हिस्सेदारी) शामिल की जाती हैं। ध्यान रहे कि इस रिपोर्ट के आंकड़ों से सरकारी धन को बाहर रखा गया है।
बहरहाल, न्यू वर्ल्ड वेल्थ की इस सूची में ब्रिटेन चौथे स्थान (9,919 अरब डॉलर), जर्मनी पांचवें (9,660 अरब डॉलर), फ्रांस सातवें (6,649 अरब डॉलर), कनाडा आठवें (6,393 अरब डॉलर), ऑस्ट्रेलिया नौवें (6,142 अरब डॉलर) और इटली दसवें (4,276 अरब डॉलर) स्थान पर है। खास बात यह कि इन दिग्गज देशों के बीच भारत को 2017 में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला संपत्ति बाजार बताया गया है। देश की कुल संपत्ति 2016 में 6,584 अरब डॉलर थी जो 2017 में 25% वृद्धि के साथ बढ़कर 8,230 अरब डॉलर हो गई है।
बकौल न्यू वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट, पिछले दशक (2007-2017) में भारत की कुल संपत्ति में 160% का उछाल आया है। 2007 में हमारी संपत्ति 3,165 अरब डॉलर थी जो 2017 में बढ़कर 8,230 अरब डॉलर हो गई है। करोड़पतियों की संख्या के लिहाज से बात करें तो भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है। यहां 20,730 करोड़पति हैं। जबकि अरबपतियों के लिहाज से देश का स्थान अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा है। यहां 119 अरबपति हैं।

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