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लौटकर आइएगा अटलजी..!

भारत के अनमोल रत्न, देश के सार्वकालिक महान व्यक्तित्वों में एक, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। देश भर की दुआएं काम ना आईं। कल हमलोगों ने राष्ट्रीय उत्सव मनाया और आज नियति ने सवा सौ करोड़ भारतवासियों को राष्ट्रीय शोक दे दिया। अटल जी पिछले कई वर्षों से बीमार चल रहे थे और 11 जून को तबीयत अधिक बिगड़ने के बाद उन्हें एम्स लाया गया था। दो दिनों से वे वेंटिलेटर पर थे और आज 94 वर्ष की उम्र में शाम 5 बजकर 5 मिनट पर यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली।

किसी बड़े व्यक्ति के जाने पर आमतौर कहने का चलन है कि ये ‘अपूरणीय क्षति’ है, पर अटल बिहारी वाजपेयी नाम के शख्स के जाने से बनी रिक्तता सचमुच कभी नहीं भरी जा सकती। भारत के मानचित्र पर जैसे हिमालय जैसा दूसरा संबल नहीं हो सकता, हमारी अंजुलि में जैसे गंगा जैसा दूसरा जल नहीं हो सकता, वैसे ही इस वसुंधरा पर दूसरा अटल नहीं हो सकता। संवेदना से ओतप्रोत कवि, विचारों से लबालब बेजोड़ वक्ता, विनम्रता और शालीनता की प्रतिमूर्ति, नेताओं की भीड़ में अद्वितीय स्टेट्समैन जिसकी भव्यता ना तो किसी पार्टी में समा सकती थी ना प्रधानमंत्री जैसे पद में – काजल की कोठरी कही जाने वाली राजनीति में जैसे तमाम अच्छी चीजें उन्होंने समेट रखी हो अपने भीतर।

आज जबकि राजनीति पर विश्वसनीयता का संकट आन पड़ा है, ‘सांकेतिक’ ही सही अटलजी की मौजूदगी की बेहद जरूरत थी हमें। बहरहाल, पूरा देश शोकाकुल है आज। राजनेताओं से लेकर तमाम क्षेत्रों के दिग्गज उन्हें भाव-विह्वल श्रद्धांजलि दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “उनका जाना पिता का साया सिर से उठने जैसा है।” बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “देश ने सबसे बड़े राजनीतिक शख्सियत, प्रखर वक्ता, लेखक, चिंतक, अभिभावक एवं करिश्माई व्यक्तित्व को खो दिया।” उनके निधन को लेकर सात दिनों के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई है। कई राज्यों ने भी राजकीय शोक और अवकाश की घोषणा की है। बिहार में सात दिनों के राजकीय शोक और शुक्रवार 16 अगस्त के अवकाश की घोषणा की गई है।

अटलजी का पार्थिव शरीर कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर रातभर रखा जाएगा। सुबह 9 बजे पार्थिव देह भाजपा मुख्यालय ले जाई जाएगी। दोपहर 1 बजे अंतिम यात्रा शुरू होगी, जो राजघाट तक जाएगी। वहां महात्मा गांधी के स्मृति स्थल के नजदीक 4 बजे अटलजी का अंतिम संस्कार किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अटलजी की अस्थियां प्रदेश की सभी नदियों में प्रवाहित की जाएंगी।

25 दिसंबर 1924 को जन्मे अटलजी 10 बार लोकसभा के सदस्य, दो बार राज्यसभा के सदस्य और तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनके प्रशंसक भारत ही नहीं दुनिया के हर कोने में मिल जाएंगे। उन जैसे नेता सदियों में होते हैं और इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। अटलजी, श्रद्धांजलि शब्द छोटा है आपके लिए, श्रद्धा का पूरा घट ही अर्पित करता हूँ आपको… बस अपना कहा पूरा करिएगा – मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? – लौटकर आइएगा अटलजी..!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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गावस्कर, कपिल, सिद्धू और आमिर होंगे इमरान के मेहमान

कभी खेल जगत के शीर्ष पर रहे व्यक्ति का अपने देश के शासन के शीर्ष पर जाना बड़ी बात है। इमरान खान ने यह उपलब्धि हासिल कर दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उन्हें चाहने वाले पहले भी दुनिया के हर हिस्से में थे पर सियासत में सक्रिय होने से लेकर उसके शिखर को छूने तक उनके व्यक्तित्व का दायरा काफी बढ़ चुका है। अब बात 11 अगस्त को होने वाले उनके शपथ-ग्रहण समारोह को ही लीजिए, भारत में इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि उनकी ओर से किन शख्सियतों को बुलावा आएगा। मानकर चला जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले व्यक्ति होंगे जिन्हें इमरान निमंत्रण देंगे, लेकिन यह बड़े स्तर का कूटनीतिक निर्णय है जिसे लेने में पाकिस्तान को कई बिन्दुओं पर सोचना पड़ रहा है। लेकिन इस बीच भारत की चार शख्सियतों को इमरान का न्योता मिल चुका है। चलिए जानते हैं कौन हैं ये चारों..?

इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की ओर से जिन चार शख्सियतों को न्योता भेजा गया है उनमें दो भारतीय क्रिकेट के पर्याय और इमरान के साथ दर्जनों यादगार मैच खेले सुनील गावस्कर और कपिल देव हैं। न्योता पाने वाली तीसरी शख्सियत भी क्रिकेट से जुड़ी है और अब राजनीति में भी दखल रखती है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू की। और चौथी शख्सियत जिन्हें इमरान ने आमंत्रित किया है, वो हैं भारतीय सिनेमा के महत्वपूर्ण नाम आमिर खान। इमरान की पार्टी पीटीआई के प्रवक्ता फवाद चौधरी ने ये जानकारी मीडिया से साझा की।

इससे पहले इस तरह की भी खबरें आई थीं कि इमरान की ताजपोशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अन्य विदेशी नेताओं को न्योता दिया जा सकता है। इसका खंडन करते हुए प्रवक्ता फवाद चौधरी ने मंगलवार को ट्वीट कर लिखा कि मीडिया में जो अटकलें लगाई जा रही हैं, वह सही नहीं है, उनकी पार्टी पाकिस्तान के विदेश कार्यालयों से परामर्श करने के बाद सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाने के बारे में निर्णय लेगी।

गौरतलब है कि 25 जुलाई को होने वाले आम चुनावों के नतीजों में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। हालांकि सरकार बनाने के लिए 272 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में 137 सदस्यों की जरूरत होगी। वहीं इमरान की पार्टी 116 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई है और वो बहुमत से 21 सीट दूर है। इस बाबत फवाद चौधरी का दावा है कि पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। बकौल चौधरी इमरान की पार्टी को नेशनल असेंबली में 168 सदस्यों का समर्थन हासिल है।

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इमरान का हुआ पाकिस्तान

क्रिकेट की दुनिया में कभी पाकिस्तान को शिखर पर पहुँचाने वाले इमरान खान के ऊपर अब कई संकटों और चुनौतियों से घिरे अपने पूरे मुल्क को ऊपर उठाने की जिम्मेवारी होगी। जी हाँ, पाकिस्तान में अभी-अभी हुए चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाले इमरान अपने मुल्क के अगले कप्तान होंगे। कहा जाता है कि 2002 में तत्कालीन सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का ऑफर दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था और जनता की अदालत से इस पद तक पहुँचने की ठानी थी। आखिरकार 17 साल बाद उनकी इच्छा पूरी होती दिख रही है।

पाकिस्तान के चुनाव परिणामों की आधिकारिक और अंतिम घोषणा अभी नहीं हुई, लेकिन क्रिकेटर से नेता बने इमरान का पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। त्रिशंकु नेशनल असेंबली में उनकी पार्टी पीटीआई सबसे ज्यादा 119 सीटों पर आगे है, जबकि नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन 62 और बिलावल भुट्टो की पीपीपी 44 सीटों तक सिमटती दिख रही है। गौरतलब है कि 272 सीटों वाले सदन में बहुमत का आंकड़ा 137 है। ऐसे में इमरान को सरकार बनाने में विशेष कठिनाई होगी, ऐसा नहीं लगता। ऐसा इसलिए भी नहीं लगता क्योंकि अब ये ‘ओपेन सिक्रेट’ है कि पाकिस्तान की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाली वहां की सेना इमरान का समर्थन कर रही है।

बहरहाल, पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को अपना रोल मॉडल मानने वाले इमरान खान ने क्रिकेट की दुनिया छोड़कर 1996 में राजनीतिक दल पीटीआई की स्थापना की थी। संयोग देखिए कि जिन्ना ने 1910 में राजनीति शुरू की थी लेकिन उन्हें सफलता 1937 में मिली थी। ठीक वैसे ही 66 साल के इमरान खान भी 22 साल के राजनीतिक संघर्ष के बाद प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। आज सुनकर किसी को आश्चर्य लग सकता है कि 1997 के चुनावों में इमरान ने केवल 9 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और सभी सीटों पर उनकी पार्टी की हार हुई थी। यहां तक कि 7 सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। लेकिन समय का खेल देखिए, आज वही इमरान पाकिस्तान की सियासत के सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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‘ब्लूमबर्ग’ की मानें तो 2029 तक मोदी बने रह सकते हैं प्रधानमंत्री

जलवायु परिवर्तन, गरीबी या शांति स्थापित करने जैसी लंबी अवधि की वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए देशविशेष के नेता का वैश्विक स्तर का कद जरूरी है और साथ ही यह भी जरूरी है कि वह नेता लंबे समय तक अपने देश का नेतृत्व करता रहे। इस पैमाने पर ब्लूमबर्ग मीडिया ने दुनिया के 16 नेताओं के राजनीतिक करियर की उम्र को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है। विश्व के जिन नेताओं को इस रिपोर्ट में स्थान दिया गया है उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी एक हैं। शेष नेताओं में शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन, सऊदी अरब के भावी किंग मोहम्मद बिन सलमान आदि शामिल हैं।

अमेरिका के ब्लूमबर्ग मीडिया समूह की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2019 ही नहीं बल्कि 2024 का भी चुनाव जीत सकते हैं और वह 2029 तक भारत के प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं। अब जबकि आम चुनाव में लगभग 10 महीने ही बचे हैं, ऐसे में ब्लूमबर्ग का अपनी रिपोर्ट में यह कहना कि 2019 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी साफ तौर पर जीतते नजर आ रहे हैं यानि 130 करोड़ की आबादी वाले देश पर 2024 तक मोदी ही राज करेंगे, सचमुच बड़ी बात है।

उक्त रिपोर्ट के मुताबिक 67 साल के नरेन्द्र मोदी वर्तमान में सबसे लोकप्रिय भारतीय नेता हैं। विपक्षी कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता की कमी को भी प्रधानमंत्री मोदी की जीत की एक बड़ी वजह बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भले ही भाजपा सरकार की नीतियां भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह हों लेकिन आम जनता के बीच इन नीतियों को लेकर सकारात्मक भाव है।

बहरहाल, विश्व के अन्य नेताओं की बात करें तो ब्लूमबर्ग के मुताबिक शी जिनपिंग (चीन), किम जोंग-उन (उत्तर कोरिया) और मोहम्मद बिन सलमान अपने-अपने देशों में अगले कई दशकों तक राज कर सकते हैं। वहीं पुतिन 2024 तक तो अपने पद पर रहेंगे ही, इसके बाद भी अपने पद पर बने रहने के लिए एक बार फिर वे संविधान में बदलाव का सहारा ले सकते हैं। वहीं 71 वर्षीय ट्रंप के लिए ब्लूमबर्ग का कहना है उन्हें किसी भी अमेरिकी नेता की तुलना में सबसे कम स्वीकार्यता मिली है और बहुत से लोग यह कयास लगा रहे हैं कि वे अपना मौजूदा कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाएंगे। हालांकि, फिलहाल कुछ ऐसा होता नजर नहीं आ रहा। हां, अगर ट्रंप 2020 में दोबारा चुने जाते हैं तो भी संवैधानिक व्यवस्था के तहत वह 2024 का राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ सकते।

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ट्रंप-पुतिन की ऐतिहासिक मुलाकात

ट्रंप के अगुआई में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच जमी बर्फ के पिघलने के बाद अब रूस के साथ भी अमेरिका का तनाव भरा संबंध सामान्य होने की राह पर है। पूरी दुनिया के लिए ये खुशी की बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच सोमवार को फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में ऐतिहासिक मुलाकात हुई। इस मौके पर ट्रंप ने जहां एक असाधारण रिश्ते का वादा किया, वहीं पुतिन ने कहा कि दुनियाभर के विवादों को खत्म करने का यह सही समय है। भले ही अमेरिका और रूस के संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हों, पर सोमवार को जब दोनों देशों के नेता फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में मिले तो उनमें बेहतरीन रिश्ते बनाने की ललक साफ दिखाई दी।

समिट के दौरान ट्रंप ने कहा कि सच कहूं तो हम पिछले कई सालों से साथ नहीं हैं। पर मेरा मानना है कि दुनिया हमें साथ देखना चाहती है। हम दोनों महान परमाणु शक्तियां हैं। मैं केवल पिछले दो सालों से राष्ट्रपति हूं लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमारा रिश्ता असाधारण रहने वाला है। बता दें कि रूस के साथ तनावपूर्ण संबंधों के लिए अपने पूर्ववर्ती नेताओं की मूर्खताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए ट्रंप इस सम्मेलन में शामिल हुए हैं। वहीं, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि ट्रंप ने हमेशा फोन के जरिए और अतंरराष्ट्रीय इवेंट्स के दौरान मुलाकात करके संपर्क बनाए रखा। उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि हम अलग-अलग अतंरराष्ट्रीय समस्याओं और संवेदनशील मुद्दों पर बात करें।

गौरतलब है कि दोनों राष्ट्रपतियों की बातचीत अकेले में हुई। मुलाकात के लिए कमरे में जाने से पहले ट्रंप ने कहा कि हमारे पास बात करने के लिए कई अच्छी चीजें हैं। हम व्यापार से लेकर सेना, मिसाइल से लेकर परमाणु और चीन तक पर बात करेंगे। हालांकि इनके अकेले मिलने पर कई समीक्षक चिन्ता जता रहे थे कि बैठक के दौरान दोनों देशों के राष्ट्रपति के अकेले होने से कोई इस बात को देखने के लिए वहां मौजूद नहीं होगा कि आखिर उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई।

बहरराल, दोनों महाशक्तियों की मुलाकात के दौरान एक बड़ी दिलचस्प बात हुई। ट्रंप ने मुलाकात के दौरान जहां सबसे पहले पुतिन को फीफा विश्व कप के शानदार आयोजन की बधाई दी, वहीं पुतिन ने ट्रंप को इस ऐतिहासिक मुलाकात के मौके पर एक फुटबॉल भेंट की और कहा, “मिस्टर प्रेजिडेंट, मैं आपको यह बॉल देता हूँ और अब बॉल आपकी कोर्ट में है।“

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दक्षिण कोरिया की तकनीक और भारत की मैनुफैक्चरिंग ताकत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने नोएडा के सेक्टर 81 में दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का उद्घाटन किया। दक्षिण कोरिया की सुप्रसिद्ध सैमसंग कम्पनी नोएडा में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का विस्तार कर रही है। इसके लिए कंपनी ने 4915 करोड़ का निवेश किया है। उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत आज मैनुफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया की तकनीक और भारत की मैनुफैक्चरिंग ताकत से दुनिया को मजबूत प्रॉडक्ट मिलेगा। साथ ही इससे ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी गति मिलेगी।

गौरतलब है कि भारत में सैमसंग 2007 से मोबाइल बना रही है और वर्तमान में यह लगभग 670 लाख स्मार्टफोन बनाती है। अनुमान है कि अब इस नई यूनिट की शुरुआत के बाद यह संख्या दोगुनी हो सकती है। हमें यह भी जानना चाहिए कि चीन, दक्षिण कोरिया और अमेरिका को छोड़कर सैमसंग ने अगर भारत में यह यूनिट शुरू की है तो इसलिए कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल मार्केट है और दुनियाभर के 10 फीसदी मोबाइल फोन यहां बिकते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 2017 में यहां लगभग 30 करोड़ मोबाइल यूजर थे जो इस साल के आखिरी तक 35 करोड़ हो सकते हैं। संभावना है कि 2022 तक भारत में 45 करोड़ मोबइल यूजर हो जाएंगे।

बता दें कि शुरू में सैमसंग अपने इस यूनिट में मोबाइल फोन बनाएगी, जबकि दूसरे चरण में फ्लैट पैनल टेलिविजन और रेफ्रिजरेटर बनाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2016 में नोएडा अथॉरिटी ने कंपनी को करीब 25 एकड़ जमीन अलॉट की थी और प्रदेश व केंद्र सरकार के निर्देश पर नोएडा अथॉरिटी के सहयोग से कम समय में इतनी बड़ी यूनिट बनकर तैयार हो गई। विदेशी कंपनियों का हब बनाने के लिए नोएडा प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता में है। कहने की जरूरत नहीं कि सैमसंग की ये विशाल यूनिट उसी की एक बानगी है।

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सऊदी अरब में आज से महिलाएं भी चला सकेंगी गाड़ी

सऊदी अरब की महिलाओं के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है। आज से वहां महिलाएं भी गाड़ी चला सकेंगी। 28 साल के अनवरत संघर्ष के बाद हमेशा यात्री सीट पर बैठने वाली महिलाएं भी गाड़ी की स्टियेरिंग थाम सकेंगी, जो कल तक उनके लिए ‘गुनाह’ था वहाँ। गौरतलब है कि सऊदी अरब महिलाओं के गाड़ी चलाने पर लगे प्रतिबंध को हटाने वाला दुनिया का अंतिम देश है। बाकी देशों में महिलाओं को यह ‘आजादी’ पहले से हासिल थी।

आज राजधानी जेद्दा में महिलाएं जश्न मना रही हैं। उनके चेहरे की चमक और खुशी से उनके भीतर जगा आत्मविश्वास झांक रहा है। लेकिन यह अधिकार उन्हें ऐसे ही नहीं मिला। इसके पीछे लंबे संघर्ष का इतिहास है। 1990 में 47 महिलाओं ने नियम तोड़ते हुए शहर में वाहन चलाए थे। सभी को गिरफ्तार कर लिया गया था। सर्वोच्च धार्मिक संस्था ने अध्यादेश लाकर प्रतिबंध को सख्त किया, जिससे उन्हें जेल तक जाना पड़ा। इसी तरह महिला सामाजिक कार्यकर्ता मानल अल शरीफ को ड्राइविंग का वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करने की वजह से जेल जाना पड़ा था। 2014 में लॉउजैन अल-हथलौल ने यूएई से सऊदी अरब तक ड्राइव करने की कोशिश की, जिसकी वजह से उन्हें 73 दिन तक जेल में रहना पड़ा। 70 साल की कार्यकर्ता अजीजा-अल यूसुफ को भी जेल जाना पड़ा था।

बहरहाल, सऊदी अरब में महिलाओं को मिली इस आजादी के मूल में वहाँ के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का विजन 2030 कार्यक्रम है, जिसके तहत वे सऊदी अरब की तेल-गैस और हज यात्रा से होने वाली आमदनी पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। साथ ही वे अर्थव्यवस्था को विविधता देने के लिए अलग-अलग तरह के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर्स को बढ़ावा भी देना चाहते हैं। हाल ही में सऊदी ने देश में महिलाओं को अपनी मर्जी से बिजनेस शुरू करने के अधिकार दिए हैं। इसके अलावा महिलाओं के स्टेडियम में जाने पर लगे प्रतिबंध को भी सऊदी शासन हटा चुका है। माना जा रहा है कि प्रिंस ज्यादा से ज्यादा लोगों को अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाना चाहते हैं। इससे देश की उत्पादकता में भी बढ़ोतरी होगी। हालांकि, देश के कई कट्टरपंथी संगठनों ने प्रिंस के इन कदमों की आलोचना भी की है।

देखा जाय तो सऊदी अरब में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है। महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा और यौन शोषण को रोकने के लिए वहाँ कोई कानून नहीं है। सऊदी में महिलाएं अकेले प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकतीं, विदेश यात्रा नहीं कर सकतीं, रहने की पसंदीदा जगह नहीं चुन सकतीं और ना ही पासपोर्ट या नेशनल आईडी कार्ड के लिए अप्लाई कर सकती हैं। सऊदी अरब में पुरुषों की तरह महिलाओं को कानूनी तौर पर बराबरी हासिल नहीं है। ऐसे कई काम जिन्हें पुरुष कर सकते हैं, वो महिलाओं के लिए प्रतिबंधित हैं वहाँ। यहाँ तक कि पुरुष गवाह के बिना महिलाओं की पहचान की पुष्टि तक नहीं हो सकती। ऐसे में वहाँ महिलाओं को मिली यह आजादी क्या मायने रखती है, समझना मुश्किल नहीं।

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फीफा वर्ल्ड कप 2018 का शानदार आगाज

मॉस्को के लुजनिकी स्टेडियम में रंगारंग प्रस्तुति के साथ ‘पैरों के जादूगरों’ के महाकुंभ फीफा वर्ल्ड कप का शानदार आगाज हुआ। उद्घाटन समारोह में सबसे पहले स्पेन के पूर्व कप्तान और गोलकीपर इकर कासिलास और मॉडल नतालिया वोडियानोवा विश्व कप ट्रोफी को लेकर मैदान पर आए। इसके कुछ देर बाद ब्राजील के महान फुटबॉलर रोनाल्डो का आगमन हुआ। उन्होंने बॉल को मस्कट (विश्वकप का शुभंकर) की ओर पास किया, जिसे उनके साथ आए एक बच्चे ने किक लगाकर बॉल पिच (परंपरागत तरीके से कार्यक्रम का आगाज) किया।

रंगारंग कार्यक्रम की शुरुआत ब्रिटिश गायक रॉबी विलियम्स ने ‘आय नो’ गाना गाकर की। उनके बाद रूस की गायिका एइडा गारिफुलिना ने अपनी प्रस्तुति दी। दोनों गायकों ने मिलकर मैदान पर मौजूद दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। रॉबी ने ‘लेट मी एंटरटेन यू’, ‘फील’ और ‘बर्ड-काइट्स’, सहित अपने हिट्स गानों पर जोरदार प्रस्तुति दी। इन दोनों की प्रस्तुति के दौरान 32 जोड़े विश्व कप में हिस्सा ले रहे सभी देशों की पोशक में उनके झंडे के मार्च करते दिखे। दोनों गायकों की प्रस्तुति खत्म होने के बाद मैच की आधिकारिक गेंद को लेकर मॉडल विक्टोरिया लोपरेया उतरीं।

उद्घाटन समारोह खत्म होने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भाषण दिया और कहा, ‘हम विश्व कप की मेजबानी कर बेहद खुश हैं। फुटबॉल को यहां बहुत प्यार किया जाता है। हमारी जो भी संस्कृति हो, लेकिन फुटबाल हमें एक साथ लेकर आता है। मैं सभी टीम को शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि आपका अनुभव यादगार रहेगा।’ पुतिन के बाद फीफी के अध्यक्ष गियानी इन्फेंटीनो ने भी सभी टीमों को शुभकामनाएं दीं और विश्व कप के सफल आयोजन की कामना की। उद्घाटन समारोह के लिए अर्मेनिया, अजरबेजान, बेलारूस, बोलीविया, उत्तरी कोरिया, काजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लेबनान, मोलड़ोवा, पैराग्वे, पनामा, सऊदी अरब जैसे देशों ने खास तौर पर अपने प्रतिनिधि भेजे थे।

फुटबॉल प्रेमियों को बता दें कि विश्व कप का आयोजन 14 जून से 15 जुलाई तक होगा। यह फीफा का 21वां वर्ल्ड कप है। टूर्नामेंट में 8 पूल की 32 टीमें खिताब के लिए जोर लगा रही हैं और अगले एक महीने तक 11 शहरों के 12 मैदान पर कुल 64 मैच खेले जाएंगे। यह भी जानें कि इस टूर्नामेंट का मौजूदा चैंपियन जर्मनी, जबकि रनरअप अर्जेंटीना है।

फीफा विश्वकप के आठों पूल और उनमें खेलने वाली 32 टीमें इस प्रकार हैं: पूल A: रूस, उरुग्वे, मिस्र, सउदी अरब;  पूल B: पुर्तगाल, स्पेन, ईरान, मोरक्को; पूल C: फ्रांस, पेरू, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया; पूल D: अर्जेंटीना, आइसलैंड, क्रोएशिया, नाइजीरिया; पूल E: ब्राजील, सर्बिया, कोस्टारिका, स्विट्जरलैंड; पूल F: जर्मनी, मेक्सिको, स्वीडन, साउथ कोरिया; पूल G: इंग्लैंड, बेल्जियम, ट्यूनिशिया, पनामा और पूल H: कोलंबिया, पोलैंड, जापान, सेनेगल।

चलते-चलते यह भी बता दें कि उद्घाटन मैच में मेजबान रूस ने सऊदी अरब पर 5-0 से शानदार जीत दर्ज की। इस मैच में रूस ने पहले हाफ में दो और दूसरे हाफ में तीन गोल किए। टूर्नमेंट का पहला गोल मैच के 12वें मिनट में दागा गया और यह गोल रहा यूरी गाजिंस्की के नाम।

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मिले ट्रंप और किम, पूरी दुनिया ने ली चैन की सांस

कभी एक दूसरे का मजाक उड़ाने वाले और कट्टर विरोधी रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बीच मंगलवार को सिंगापुर में ऐतिहासिक शिखर वार्ता हुई। किम ने जहां पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का वादा किया है, वहीं ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका अब दक्षिण कोरिया में सैन्य अभ्यास नहीं करेगा। अगर दोनों देश अपने वादों पर खरे उतरे तो यह विश्व शांति की दिशा में निश्चित तौर पर मील का पत्थर साबित होगा।

दोनों नेताओं की बहुप्रतीक्षित शिखर वार्ता पर पूरी दुनिया की निगाह किस कदर टिकी हुई थी इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस ऐतिहासिक पल को कवर करने के लिए दुनिया भर से 3000 पत्रकार सिंगापुर पहुंचे थे। ट्रंप और किम ने भी निराश नहीं किया। दोनों नेताओं ने मुलाकात को लेकर जैसी गंभीरता और इस दौरान एक-दूसरे के प्रति जैसी गर्मजोशी दिखाई वह निश्चित तौर पर स्वागत योग्य है।

समिट के अंत में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हमलोगों ने बेहद अहम डॉक्युमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं। यह बहुत व्यापक डॉक्युमेंट है। यही नहीं ट्रंप ने किम जोंग-उन को अत्यंत प्रतिभाशाली बताया और कहा कि हम कई बार मिलेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह निश्चित तौर पर किम को वाइट हाउस बुलाएंगे। उधर ऐतिहासिक डॉक्युमेंट पर हस्ताक्षर करने के बाद नॉर्थ कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने कहा कि हमने इतिहास को पीछे छोड़ने का फैसला किया। किम ने कहा कि दुनिया बड़े बदलाव देखेगी। उन्होंने इस बैठक के लिए ट्रंप का शुक्रिया कहा।

ट्रंप और किम जोंग-उन की समिट की वजह से चीन के चिंतित होने की खबरें आ रहीं थीं लेकिन बैठक के बाद इसके सुर बदल गए। चीन ने कहा कि इस समिट ने इतिहास बनाया है। यहां तक कि दक्षिण कोरिया ने भी ट्रंप और किम की मीटिंग को ‘सदी की बातचीत’ कहकर इसकी तारीफ की है। इस मुलाकात के बाद नि:संदेह पूरी दुनिया ने चैन की सांस ली है। विश्व-शांति के लिए सचमुच यह एक बड़ा दिन था।

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स्पेन के मंत्रिमंडल में दो तिहाई महिलाएं

स्‍पेन में हाल ही में नई (समाजवादी) सरकार आई है और इसके मुखिया हैं 46 वर्षीय पैड्रो सांचेज। बुधवार को प्रधानमंत्री सांचेज ने अपनी 17 सदस्यीय कैबिनेट का ऐलान किया जिसमें 11 यानि लगभग दो तिहाई महिलाएं हैं। स्पेन और यूरोपीय देशों के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी सरकार में महिलाओं को इतनी बड़ी भागीदारी दी गई हो। सांचेज ने अपने मंत्रियों के नाम की घोषणा मोनक्लोआ पैलेस से की और गुरुवार को स्पेन के राजा फिलिप-6 ने इन सभी को शपथ दिलाई गई।

स्‍पेन के युवा प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों के नाम की घोषणा करते हुए कहा कि उनकी नई सरकार ‘साफ तौर पर समानता के लिए प्रतिबद्ध है’ और स्‍पेन के समाज में होने वाले बदलावों को प्रदर्शित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि स्‍पेन में सन् 1975 में जनरल फ्रांसिस्‍को फ्रैंकों की मौत के बाद जबसे लोकतंत्र की बहाली हुई है, यह पहली सरकार है जिसमें महिलाओं को बहुमत दिया गया है। बकौल सांचेज यह उच्‍च योग्‍यता वाली सरकार है, जो समाज में समानता का प्रतिनिधित्‍व करेगी और साथ ही यूरोप और दुनिया में एक नई शुरुआत करेगी। गौरतलब है कि स्‍पेन में लैंगिक समानता को लेकर आठ मार्च को महिलाओं ने हड़ताल की थी। उन्होंने इस दौरान इस हड़ताल का भी जिक्र किया।

स्‍पैनिश कैबिनेट में शामिल मंत्रियों की बात करें तो इसमें कारमन साल्‍वो को उपप्रधानमंत्री और समानता मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है। वह पहले संस्कृति मंत्रालय की मुखिया थीं। इसके अलावा नादिया सैल्विनो को वित्‍त मंत्रालय का काम सौंपा गया है। नादिया इससे पहले यूरोपियन कमीशन में बजट डायरेक्‍टर जनरल का पद संभाल रही थीं। वहीं डोलोरेस डेलगाडो को देश का जस्टिस मंत्री बनाया गया है। उन्‍हें ह्यूमन राइट्स और आतंकवाद से जुड़े मामलों में महारत हासिल है। अन्य मंत्रियों में बार्सिलोना में जन्‍मीं मेरिटेक्सेल बैट स्पेन की टेरिटोरियल मिनिस्‍टर बनाई गई हैं और यूरोपियन संसद की अध्‍यक्ष रह चुकी जोसेफ बॉरेल देश की विदेश मंत्री हैं। स्पष्ट है कि स्‍पेन में सारे अहम विभाग महिलाओं को दिए गए हैं। उन्हें केवल खानापूरी के लिए कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है।

प्रधानमंत्री सांचेज ने बाकी विभागों के लिए भी मंत्रियों को सोच-समझ कर चुना है और उनकी विशेषज्ञता को तरजीह दी है। उदाहरण के तौर पर उनकी कैबिनेट में एक एस्‍ट्रोनॉट और एक जर्नलिस्‍ट को भी जगह दी गई है। जी हाँ, सांचेज ने दो स्पेस मिशन लीड कर चुके 55 वर्षीय पेड्रो ड्यूक को देश का साइंस और इनोवेशन मिनिस्‍टर बनाया है। उनके पास वहां की सारी यूनिवर्सिटी की भी जिम्‍मेदारी होगी। वहीं जर्नलिस्‍ट मैक्सिम ह्यूरेता को देश का नया संस्‍कृति और खेलकूद मंत्री बनाया गया है। स्वयं प्रधानमंत्री सांचेज युवा होने के साथ-साथ इकोनॉमिक्स में खासी योग्यता रखते हैं। वह इस विषय के प्रोफेसर रह चुके हैं। उन्‍होंने स्पेन में पिछले हफ्ते हुए चुनावों में कंज‍रवेटिव पार्टी के मारियानो राजो को हराया है।

चलते-चलते स्पेन की नई कैबिनेट से जुड़ी एक अहम बात और। स्पेन की यह कैबिनेट जहां अपने फेमिनिस्ट होने के कारण चर्चा में है वहीं इस बात के लिए भी कि स्पेन के इतिहास में यह पहली सरकार है, जिसने बाइबिल की जगह संविधान की शपथ ली। यानि हर तरह से एक नई शुरुआत।

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