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‘बधाई’ तो बनती है नरेन्द्र मोदी के लिए और वो भी नेहरू के बराबर

आपका नाम क्या है, मुझे नहीं पूछना… आप किस दल से जुड़े हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता… आप किस जाति के हैं, किस प्रांत से आते हैं, कौन-सी भाषा बोलते हैं, कुछ भी जानना जरूरी नहीं… लेकिन अगर आप भारतीय हैं तो आज आपको उस व्यक्ति को बधाई जरूर देनी चाहिए जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है। बधाई इसलिए कि आज उनका जन्मदिन है। आप असहमत हो सकते हैं उनसे, राजनीतिक तौर पर विरोध कर सकते हैं उनका लेकिन अगर आपको धरती के उस विशाल टुकड़े, जिसका नाम भारत है, की पहचान और सम्मान की चिन्ता है तो आपको इस व्यक्ति के स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना जरूर करनी चाहिए।

मुझे पता है, संविधान का कोई पन्ना और कानून की कोई किताब किसी को बधाई और शुभकामना देने के लिए आपको बाध्य नहीं कर सकती। आप एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं और अपना विचार रखने और व्यक्त करने की पूरी आज़ादी है आपको। फिर मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ..? क्या इसलिए कि मोदी प्रधानमंत्री हैं… बहुत ‘शक्तिशाली’ प्रधानमंत्री..? या इसलिए कि कमाल का बोलता है ये आदमी और इसी के दम पर भाजपा अपने स्वर्णिम दौर में है और दुनिया की ‘सबसे बड़ी’ पार्टी बन गई है..? या फिर इसलिए कि मीडिया आज मोदीमय है और तमाम सुर्खियां ये एक शख्स़ उड़ा ले जाता है और मैं चमत्कृत हूँ इस बात से..?  नहीं… बिल्कुल नहीं।

गुजरात जैसे किसी बड़े प्रांत का मुख्यमंत्री बनने और एक बार नहीं, दो बार नहीं, लगातार तीन बार बनने के बाद किसी की भी महत्वाकांक्षा हो सकती है प्रधानमंत्री बनने की। मान लेते हैं मोदी की भी यही महत्वाकांक्षा थी, परिस्थितियों ने साथ दिया उनका और बन भी गए वो। बने और प्रचंड बहुमत के साथ बने। तो फिर अब भी बेचैन क्यों हैं वो। उन्हें तो अभी ‘इंज्वाय’ करना चाहिए था अपना ‘पद’ और ‘रुतबा’। जाहिर है कोई भी ऐसा कहकर नहीं करेगा। तो फिर कम-से-कम चेहरे पर तो ‘आत्मसंतोष’ या ‘मुग्धता’ दिख ही सकती थी। लेकिन ये क्या..! इतना कुछ पाकर और बेचैन क्यों हो गया ये शख्स़..? क्या वजह है इस बेचैनी की..? यही वो ‘बिन्दु’ है जहाँ मैं आपको लाना चाहता था। जी हाँ, यही वो बिन्दु है जहाँ आकर आप नरेन्द्र मोदी को बधाई और शुभकामना दिए बिना नहीं रहेंगे।

‘प्रधानमंत्री कार्यालय’ में पैर रखते ही मोदी ने बता दिया कि ये तो बस एक ‘रनवे’ है उनके लिए। अभी तो बहुत लम्बी उड़ान भरनी है उनको। चुनाव के दौरान पूरे भारत का तूफानी दौरा कर चुके थे वो। प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी निगाह सबसे पहले ‘पड़ोसी’ मुल्कों पर गई और कुछ इस तरह गई कि लगा कि सारा ‘शेड्यूल’ तय था पहले से। ‘छोटे’ भूटान और नेपाल से लेकर ‘बड़े’ चीन और जापान तक और दूसरी ओर श्रीलंका से पाकिस्तान तक – तमाम पड़ोसियों से हमारे सम्बन्ध नए सिरे से ‘परिभाषित’ होने लग गए। ‘महाशक्तिशाली’ अमेरिका को उन्होंने बहुत सलीके से साधा। पहली बार लगा कि अमेरिका बराबरी पर बात कर रहा है हमसे। 28 साल तक जिस ऑस्ट्रेलिया को बिसराए रहे हम, सम्भावनाओं की तलाश में मोदी वहाँ भी पहुँचे। मॉरीशस, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, दक्षिण कोरिया – हर जगह मोदी दिखे और मोदी से अधिक भारत दिखा, विश्व-पटल पर अपने अस्तित्व को नए सिरे से तलाशता। कहीं हम संबंध बना रहे थे, कहीं समझौता कर रहे थे, कहीं व्यापार की संभावनाएं तलाशी जा रही थीं तो फिजी और मंगोलिया जैसे देशों को हम दिल खोलकर ‘दे’ भी रहे थे। हर जगह चर्चा में था भारत।

उनके विदेश दौरों पर टिप्णियां हुईं, काला धन के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की गई, उन्हें ‘सूट-बूट’ की सरकार कहा गया, ललित मोदी और व्यापम को लेकर संसद भवन गूंजता रहा – वे खामोशी से सुनते रहे। उन्हें पता था कि समस्याएं हैं और केवल और केवल काम करके ही ‘जवाब’ दिया जा सकता है। चुनाव से पूर्व उन्होंने जो कहा वो सब ‘कर दिया’, ऐसा नहीं है लेकिन ‘कर देंगे’ का विश्वास उन्होंने जरूर हासिल किया है और ये बड़ी बात है। ये सचमुच बड़ी बात है कि भारत का प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ कर रहा हो और पूरा देश उसे ‘मन’ से सुन रहा हो।

नेहरू के बाद लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री हुए। सबके कार्यकाल की अपनी-अपनी उपलब्धियां रहीं। इन सबमें इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी नेहरू के बाद और मोदी के पहले के दो ऐसे नाम हैं जिनकी स्वीकार्यता दलगत सीमा से ऊपर और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की थी। आज मोदी का कद भी दल और देश की सीमा को पार कर चुका है लेकिन ये जितने कम समय में और जितनी गहराई और जितने विस्तार से हुआ है, वो सचमुच अविश्वसनीय लगता है। आज उनकी उपस्थिति पूरे देश में एक समान है… राष्ट्रीय ही नहीं, राज्य स्तर के भी हर दल उन्हें देखकर अपनी रणनीति बना या बदल रहे हैं… भारत के भविष्य का ‘रूप’ गढ़ने में वो केवल मौजूद ही नहीं रहते, अपने ‘विज़न’ के साथ मौजूद रहते हैं… और देश के बाहर कहीं भी जाने पर वो भारत के प्रधानमंत्री कम और हमारे ‘प्रतिनिधि’ ज्यादा लगते हैं। हमारा सोचा हुआ हमें उनके मुँह से सुनने को मिल जाता है, ऐसा पहले या तो बहुत कम होता था या फिर होता ही नहीं था।

ये स्पष्ट हो चुका है कि मोदी की राजनीति केवल प्रधानमंत्री बनने या बने रहने के लिए नहीं है। वो अपना ‘कैनवास’ अपनी तरह से रच रहे हैं। अपने ‘कार्यकाल’ पर नहीं अपने ‘युग’ पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं वो। जिस गुजरात से आते हैं मोदी वहाँ से सीख कर आए हैं वो कि ‘राष्ट्रपिता’ और ‘लौहपुरुष’ का कद किसी भी पद से बड़ा होता है और ये भी कि ऐसी ‘विरासत’ को संजोने और उस ‘कड़ी’ से जुड़ने का ‘व्रत’ कितना कठिन होता है। मोदी को पता है कि ‘राज’ से बड़ी चीज है ‘नीति’ और ‘नीति’ से बड़ा होता है ‘विचार’। विचारों से ‘संस्कार’ बनता है और संस्कार से बनती है ‘संस्कृति’। उन्हें ये भी पता है कि इन सबको एक साथ साधने के लिए उन्हें थोड़ा विवेकानन्द, थोड़ा पटेल और थोड़ा अटल बनना होगा। उन्हें अपनी संस्कृति के तारों से ‘डिजिटल’ इंडिया को बुनना होगा। बहरहाल, आज़ाद भारत के लिए जो नेहरू ने किया था वही मोदी कर रहे हैं इक्कीसवीं सदी के भारत के लिए। इसीलिए बधाई तो बनती है उनके लिए और वो भी नेहरू के बराबर।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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काश गवर्नमेंट भी चलती गूगल की तरह..!

दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को सम्मान देते हुए नई दिल्ली स्थित औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड करने की घोषणा की। अभी ये घोषणा केवल घोषणा ही है। भारत में सरकारी फाइलें अब भी ‘माउस’ की बजाय ‘हाथी’ की सवारी करती हैं, इसीलिए इस घोषणा को सड़क पर उतरने में वक्त लगे शायद। बहरहाल, सरकार का काम सरकार जाने, गूगल ने अपना काम कर दिया।

जी हाँ, आपको आश्चर्य होगा कि अभी दिल्ली सरकार ने औरंगजेब रोड का बोर्ड भी नहीं हटाया है लेकिन गूगल ने बिना वक्त गंवाये अपने डाटाबेस को संशोधित कर लिया। अब आप गूगल मैप्स पर इस सड़क का नाम एपीजे अब्दुल कलाम रोड पाएंगे। यही नहीं, औरंगजेब रोड सर्च करने पर भी रिजल्ट में एपीजे अब्दुल कलाम रोड ही दिखेगा। विकिपीडिया पर भी इस रोड की मौजूदगी नये नाम के साथ हो गई है।

अरविन्द केजरीवाल की मौजूदगी में नई दिल्ली नगरपालिका (एनडीएमसी) ने ये फैसला 28 अगस्त को लिया था और अभी सप्ताह भर ही बीता है। देखा जाय तो इस फैसले को अमलीजामा पहनाने में दिल्ली सरकार ने इतनी देर नहीं की है कि हम उसे कठघरे में खड़ा कर दें। आज नहीं तो कल इस घोषणा पर अमल हो ही जाएगा। सवाल यहाँ सरकार की नीति और नीयत का नहीं, उस ‘तत्परता’ का है जिससे घोषणाएं जमीन पर उतरती हैं। हम इंडिया को जितना भी ‘डिजिटल’ और सिटी को जितना भी ‘स्मार्ट’ बना दें, फर्क ‘तत्परता’ से ही आना है।

सौ मीटर की दौड़ हो तो जीत-हार तय करने में सेकेंड के दसवें हिस्से की भी भूमिका होती है। देखा जाय तो ग्लोबलाइजोशन के दौर में वही देश दुनिया की अगुआई कर रहे हैं जो ‘मैराथन’ में भी ‘सौ मीटर’ वाली रफ्तार से दौड़ने की ‘क्षमता’ और ‘तत्परता’ रखते हैं। अपने दिल पर हाथ रखिए और बोलिए इस दौड़ में हम कहाँ हैं जबकि सच्चाई ये है कि दिल्ली से जुड़ा जो काम सात समुन्दर पार से संचालित होनेवाला गूगल कर लेता है वो दिल्ली की सरकार अपने समूचे तंत्र के साथ दिल्ली में बैठकर भी नहीं कर पाती है..!

पुनश्च :

औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड करना भी राजनीति का विषय है अपने यहाँ। जी हाँ, आजकल चर्चा में आए ओवैसी और मैडम मायावती ने इसका विरोध किया है। जिस ‘तत्परता’ की बात मैंने ऊपर की है उसकी जरूरत ये तय करने में भी है कि हमें किन ‘प्रतीकों’ के सहारे आगे बढ़ना है और ये भी कि आने वाली पीढ़ियों को हम किस ‘रोड’ पर चलते देखना चाहेंगे – औरंगजेब ‘रोड’ या एपीजे अब्दुल कलाम ‘रोड’..?

  • मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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नहीं रहीं भारत की प्रथम महिला शुभ्रा मुखर्जी

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की धर्मपत्नी और भारत की प्रथम महिला शुभ्रा मुखर्जी का निधन हो गया। आज सुबह 10 बजकर 51 मिनट पर दिल्ली स्थित सेना अस्पताल में उनका निधन हुआ। शुभ्रा मुखर्जी पिछले नौ दिनों से वेंटिलेटर के सहारे जीवित थीं। आज सुबह डॉक्टरों ने वेंटिलेटर हटाने का निर्णय लिया और उन्हें मृत घोषित किया।

बता दें कि शुभ्रा मुखर्जी लम्बे समय से बीमार चल रही थीं और पिछले कुछ दिनों से उनकी हालत नाजुक हो चली थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उनकी महती भूमिका तथा उनके मृदु स्वभाव और मानवीय सरोकारों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। स्मृतिशेष शुभ्रा मुखर्जी को मधेपुरा अबतक की भावभीनी श्रद्धांजलि..!

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करें तस्वीरों में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के अंतिम दर्शन

president pranav mukherjee paying homage to bharat-ratna-dr-apj-kalam-mortal-2भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के पार्थिव शरीर पर श्रधांजलि अर्पित करते हुए !
prime minister modi paying homage to dr kalam
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी नम आँखों से श्रधांजलि देते हुए !
bharat-ratna-dr-Sachin Tendulkar paying homage to apj-kalam-mortal-image-1
एक भारतरत्न दूसरे भारतरत्न के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हुए !
chief minister nitish kumar paying homage to bharat-ratna-dr-apj-kalam-mortal-image-4
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने भी  भारतरत्न कलाम को श्रधासुमन अर्पित किया !
indian army giving guard of honour to Ex president kalam
सेना ने भारत रत्न डॉ. कलाम को गार्ड ऑफ ऑनर से नवाजा !
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तिरंगे में लिपटा हुआ भारत रत्न कलाम का पार्थिव शरीर रामेश्वरम की अंतिम  यात्रा पर , जहाँ उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को होगा !

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गाँधीयन मिसाइल मैन डॉ. कलाम नहीं रहे  !

शिलांग में अपने अंतर्कोष लुटाते हुए भारतरत्न डॉ. कलाम ने अंतिम सांस ली | वे भारत के राष्ट्रपति हुआ करते थे जब मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | मैंने उस ऋषि को करीब से देखा जो गीता और कुरान में समभाव रखता था | जो हर पल मानवता को नई ऊंचाई पर ले जाने के बारे में सोचता था | जिसके फलस्वरूप मैंने उनकी जीवनी लिखी –स्वप्न ! स्वप्न !! और स्वप्न !!!बाद के वर्षों में मैंने उनके सवाल-जबाब पर आधारित दूसरी किताब लिखी छोटा लक्ष्य एक अपराध है !

और कुछ तो इस समय नहीं कह सकता | बस इतना ही कि उन्होंने जो मुझसे कहा था – वह सबों के लिए एक संदेश के रूप में कह रहा हूँ –

  • ये आँखें दुनिया को दोबारा नहीं देख पायेंगीं ! तुम्हारे अन्दर जो बेहतरीन है उसे दुनिया को देकर जाना . . . !!

 डॉ. मधेपुरी की कलम से ,

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भारतीय टेनिस का स्वर्णिम सप्ताह : विम्बलडन में चमके पेस, सानिया और नागल

एक नहीं, दो नहीं, पूरे तीन खिताब और वो भी विम्बल्डन में… जो हर टेनिस खिलाड़ी की उपलब्धि और ऊँचाई की कसौटी है..! सचमुच अप्रतिम था भारतीय टेनिस का ये स्वर्णिम सप्ताह जो अभी-अभी बीता है। अविस्मरणीय हो गया भारत के लिए इस साल का विम्बलडन।  बीते शनिवार को सानिया मिर्जा और मार्टिना हिंगिस की जोड़ी ने वीमेंस डबल्स का खिताब जीता, फिर अगले दिन रविवार को भारत के लिएंडर पेस और मार्टिना हिंगिस की जोड़ी ने विम्बलडन के मिक्स्ड डबल्स में जीत दर्ज की और उसी दिन सत्रह वर्षीय सुमित नागल अपने जोड़ीदार हुआंग ली के साथ जूनियर डबल्स के विजेता बने।

भारतीय टेनिस के गौरव लिएंडर पेस बयालीस साल की उम्र में विंबलडन का खिताब जीतकर सबसे अधिक उम्र में यह खिताब जीतने वाले खिलाड़ी हो गए हैं। इस शानदार खिलाड़ी ने इससे पूर्व आठ बार ग्रैंड स्लैम खिताब अपने नाम किया है। इस टूर्नामेंट में पेस और हिंगिस की सातवीं वरीयता जोड़ी ने पांचवीं वरीयता प्राप्त ऑस्ट्रिया-हंगरी की जोड़ी को मात्र चालीस मिनट में 6-1, 6-1 से पराजित किया।

उधर भारतीय टेनिस को नई ऊँचाई देनेवाली सानिया मिर्जा और स्विटजरलैंड की मार्टिना हिंगिस की शीर्ष वरीयता प्राप्त जोड़ी ने रूस की दूसरी वरीयता प्राप्त एकाटेरिना मकारोवा और एलेना वेस्नीना की जोड़ी को संघर्षपूर्ण मुकाबले में 5-7, 7-6, 7-5 से मात दी। इस जीत के साथ ही सानिया महिला युगल खिताब जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बन गई हैं। ग्रैंडस्लैम जीतने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव भी उन्हीं के नाम है। 2009 में उन्होंने महेश भूपति के साथ आस्ट्रेलियाई ओपन का मिश्रित युगल मुकाबले में खिताबी जीत दर्ज की थी।

भारतीय टेनिस की नई संभावना सुमित नागल और वियतनाम के हुआंग ली की जोड़ी ने अपने से चार वरीयता ऊपर अमेरिका के रीली ओपेल्का और जापान के अकीरा संतिलान की जोड़ी को 7-6, 6-4 से हराकर लड़कों का युगल खिताब अपने नाम कर लिया। नागल और ली की जोड़ी वरीयता क्रम में आठवें नंबर पर थी।

इन तीनों खिलाड़ियों पर आज पूरा देश गर्व कर रहा है। इनकी उपलब्धियों ने एहसास कराया है कि क्रिकेट से परे भी खेलों की एक बड़ी दुनिया है। सम्भावनाओं के कई और द्वार हैं जिनके पार भारतीय खिलाड़ी जा सकते हैं। मधेपुरा अबतक संभावनाओं के ऐसे हर पुंज को सलाम करता है।

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मोदी के ‘स्किल इंडिया मिशन’ का आगाज

बुधवार, 15 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में महत्वाकांक्षी कौशल विकास अभियान ‘स्किल इंडिया’ की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि जिस तरह चीन वैश्विक विनिर्माण कारखाना बन गया है, वैसे ही भारत को दुनिया के ‘मानव संसाधन के केंद्र’  के रूप में उभरना चाहिए। सरकार ने ‘गरीबी के खिलाफ लड़ाई’  के तहत यह अभियान शुरू किया है। मोदी ने कहा कि अगर देश के लोगों की क्षमता को समुचित और बदलते समय की आवश्यकता के अनुसार कौशल का प्रशिक्षण दे कर निखारा जाता है तो भारत दुनिया को 4  से 5  करोड़ कार्यबल उपलब्ध करा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर ‘स्किल इंडिया’ का प्रतीक चिन्ह जारी करने के साथ ही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) की शुरूआत की। उन्होंने कहा, “गरीब लोग अब भीख मांगने को इच्छुक नहीं है बल्कि वह आत्म-सम्मान के साथ कमाई करेंगे… स्किल इंडिया की पहल केवल जेब भरने के लिये नहीं है बल्कि यह गरीबों में आत्म-विश्वास का भाव जगाएगी।”  प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ‘कौशल ऋण’  योजना की भी शुरूआत की जिसके तहत देश में 34  लाख युवाओं को अगले पांच साल में कौशल विकास हेतु पांच हजार  से डेढ़  लाख रुपये तक उपलब्ध कराये जाएंगे। मोदी ने इस अवसर पर प्रशिक्षण के लिए कौशल ऋण के स्वीकृति पत्र भी सौंपे। उन्होंने कहा कि,  “इस अभियान के जरिये सरकार लोगों का सपना पूरा करना चाहती है और राज्यों को साथ लेकर सुगठित रूप में इसे करने का इरादा है।”

इस कार्यक्रम में अरूण जेटली, मनोहर पर्रिकर,  सुरेश प्रभु,  राजीव प्रताप रूडी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों के अलावा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, महाराष्ट्र के देवेन्द्र फड़णवीस, हरियाणा के मनोहर लाल तथा पंजाब के प्रकाश सिंह बादल समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी उपस्थित थे। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी कार्यक्रम में शामिल हुए।

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क्या रंग लाएगी नीतीश-केजरीवाल की दोस्ती..?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते मंगलवार को दिल्ली सचिवालय में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मुलाकात की और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अन्य पार्टियों के तालमेल के साथ जेडीयू इस मुद्दे को संसद में उठाएगी।

केजरीवाल से मुलाकात के बाद नीतीश ने कहा कि “दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। लोगों ने एक सरकार बनाने के लिए काफी उत्साह के साथ वोट डाला था। लोग उन्हें जानते हैं जिन्हें उन्होंने अपना वोट दिया है।” उन्होंने कहा कि,  “वे (लोग) सोचते हैं कि कानून व्यवस्था से लेकर अपराध और पुलिस तक सरकार के नियंत्रण में है। दिल्ली में पुलिस राज्य सरकार के तहत नहीं आती।”

बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि चूंकि सरकार लोगों के प्रति जवाबदेह है, इसलिए मुख्यमंत्री केजरीवाल के पास विभागीय सचिवों को चुनने की शक्ति होनी चाहिए। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए चलाए जा रहे अभियान को लोगों का पूर्ण समर्थन है।

बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी संसद में यह मुद्दा उठाएगी और अन्य पार्टियों का समर्थन जुटाने की कोशिश करेगी। नीतीश ने बिहार पुलिस के कर्मियों को दिल्ली भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो में शामिल करने पर केजरीवाल का शुक्रिया भी अदा किया।

नीतीश और केजरीवाल दोनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी हैं। ऐसे में बिहार चुनाव से पहले दोनों नेताओं के बीच बैठक अलग मायने रखती है। नीतीश का आप को समर्थन अकारण नहीं है। वैसे भी राजनीति में बिना कारण कुछ भी नहीं होता, चुनावी मौसम में तो हरगिज नहीं। इसकी पुष्टि भी हो ही गई जब आप ने बिहार में बीजेपी के खिलाफ प्रचार और अपने उम्मीदवार नहीं उतारने के जरिए नीतीश का समर्थन करने का फैसला किया।

आप के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी बीजेपी के खिलाफ प्रचार करेगी और यदि जरूरत पड़ी तो अरविंद केजरीवाल भी इसके लिए उतर सकते हैं। बहरहाल, देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश-केजरीवाल की दोस्ती आगे क्या रंग लाती है।

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22 साल बाद होगी मुंबई धमाकों के आरोपी याकूब मेमन को फांसी..!

मुंबई धमाकों के 22 साल बाद याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन को इस महीने के अंत में फांसी हो सकती है। सरकार और जेल प्रशासन ने तैयारी कर ली है और मुंबई की टाडा कोर्ट से फांसी का वारंट जारी हो चुका है। सूत्रों के मुताबिक 30 जुलाई को सुबह 7 बजे फांसी दी जा सकती है। हालांकि अभी तक इसकी आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है। याकूब मुंबई बम धमाकों की साजिश में शामिल था, जिसमें 257 लोग मारे गए थे, 700 से ज्यादा घायल हुए थे और 27 करोड़ से अधिक राशि की संपत्ति नष्ट हुई थी।

धमाकों से मुंबई को दहलाने वाले याकूब को जुलाई 2007  में टाडा कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। इसके बाद उसने हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास याचिका लगाई लेकिन हर जगह उसकी याचिका ठुकरा दी गई। अब महाराष्ट्र सरकार ने भी फांसी की अनुमति दे दी है। जानकारी के अनुसार, याकूब के परिवार को भी इसकी सूचना दे दी गई है।

हालांकि अब सारे रास्ते बंद हो चुके हैं, फिर भी क्यूरेटिव याचिका का एक विकल्प याकूब के पास है। अगर समय रहते यह याचिका दायर होती है तो फांसी पर रोक लग सकती है। वैसे याकूब की स्थिति देखते हुए इसकी संभावना कम ही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, उसने अपने वकील से भी मिलने से इनकार कर दिया है। हालांकि, याचिका दायर होने की स्थिति में भी उस पर 30 जुलाई से पहले फैसला हो जाएगा।

बता दें कि मुंबई बम धमाके के मामले में 123  अभियुक्त हैं जिनमें से 12 को निचली अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी। इस मामले में 20 लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थी जिनमें से दो की मौत हो चुकी है और उनके वारिस मुकदमा लड़ रहे हैं। इनके अलावा 68  लोगों को उम्र कैद से कम की सज़ा सुनाई गई थी जबककि 23 लोगों को निर्दोष माना गया था। जानकारी देते चलें कि 12 मार्च 1993 को मुंबई में एक के बाद एक बारह बम धमाके हुए थे। यह पहला मौका था, जब देश ने सीरियल बम ब्लास्ट के दंश को झेला था। इसी दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सेंज की 28  मंज़िला इमारत की बेसमेंट में भी धमाका हुआ जिसमें लगभग 50 लोग मारे गए थे ।

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इसरो की ऐतिहासिक उड़ान : अंतरिक्ष में भेजे पांच उपग्रह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष उड़ान के क्षेत्र में शुक्रवार की रात इतिहास रच दिया। इसरो के उपग्रह वाहन पीएसएलवी-सी 28 ने कल रात 9 बजकर 58 मिनट पर पांच ब्रिटिश व्यावसायिक उपग्रहों के साथ सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरी। उड़ान भरने के 20 मिनट के अन्दर उसने 1,440 किलोग्राम वजन के इन पांचों उपग्रह को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसरो की इस सफलता पर वैज्ञानिकों को बधाई दी है। बता दें कि यह इसरो का अब तक का सबसे बड़ा व्यावसायिक मिशन था।

ये उपग्रह पृथ्वी की सतह पर रोजाना किसी भी लक्ष्य की तस्वीर लेने में सक्षम हैं। लगभग सात वर्षों तक चलनेवाले इस मिशन का उद्देश्य पृथ्वी पर संसाधनों और उसके पर्यावरण का संरक्षण, शहरी अवसंरचना का प्रबंधन और आपदा प्रबंधन है। पीएसएलवी की इस 30वीं उड़ान में तीन एक समान डीएमसी3 ऑप्टिकल पृथ्वी निगरानी उपग्रह थे जिनका निर्माण ब्रिटेन ने किया है। इसके साथ ही दो सहायक उपग्रह भी थे।

इस मिशन की कामयाबी इस लिए भी खास है कि ये उपग्रह उस ब्रिटेन के थे जिसने कभी हमें गुलामी की जंजीड़ों में जकड़ कर रखा था। क्या इस उपलब्धि में हमारी आज़ादी का असली जश्न छिपा नहीं है..? वास्तव में भारत की ये उपलब्धि गर्व करने के लायक है। बधाई, इसरो..!

 

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