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पूर्व कुलपति प्रो.अमरनाथ सिन्हा के निधन से साहित्य जगत में हुई अपूरणीय क्षति- डॉ.केके मंडल

मधेपुरा की सर्वाधिक पुरानी साहित्यिक संस्थान कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष व पूर्व प्रतिकुलपति डॉ.केके मंडल की अध्यक्षता में प्रखर साहित्यकार एवं कई पुस्तकों के रचनाकार रहे कुलपति प्रो.अमरनाथ सिन्हा के 87वर्ष की उम्र में हुए निधन पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। शोक व्यक्त करते हुए डॉ.मंडल ने कहा कि बीएन मंडल विश्वविद्यालय में प्रो.अमरनाथ सिन्हा अपने तीन वर्षों के कार्यकाल को पूरा करने के दरमियान विश्वविद्यालय को यूजीसी के 2(एफ) एवं 12(बी) से मान्यता दिलाने में महत्व भूमिका निभाई। उन्होंने यह भी कहा कि प्रोफेसर सिन्हा के निधन से एक कुशल साहित्यकार, कर्मठ प्रशासक एवं शिखर समालोचक हमने खो दिया है जो साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

सम्मेलन के सचिव एवं बीएन मंडल विश्वविद्यालय में कुलानुशासक सह कुलसचिव रह चुके डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य के स्तंभ व पूर्व कुलपति प्रोफेसर सिन्हा सरीखे मनीषी साहित्यकार के निधन से न केवल मंडल विश्वविद्यालय के लिए बल्कि संपूर्ण प्रदेश और देश के साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है जिसकी निकट भविष्य में भरपाई नहीं की जा सकती। डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि उनकी प्रकाशित पुस्तक हिंदी साहित्य एवं लोक चेतना सहित अन्य कृतियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार व सम्मान से उन्हें सम्मानित किया जाता रहा है।

इस अवसर पर शोकोदगार व्यक्त करने वाले कवि-साहित्यकारों में प्रमुख हैं- पूर्व कुल सचिव प्रोफेसर सचिंद्र, डॉ शांति यादव, डॉ.अरुण कुमार, डॉ विनय कुमार चौधरी, डॉ.विश्वनाथ विवेका, डॉ सिद्धेश्वर कश्यप, डॉ आलोक कुमार, डॉ.रामचंद्र मंडल, प्रोफेसर मणि भूषण वर्मा, सियाराम यादव मयंक, श्यामल कुमार सुमित्र आदि

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बोले मधेपुरी, मां सरस्वती की पूजा हम वसंत में ही क्यों करते हैं?

वसंत उत्सव नहीं, वसंत महोत्सव है। जब प्रकृति में वसंत आता है तो चारों ओर फूल खिलने लगते हैं। पक्षी गीत गाने लगते हैं। आम और महुआ के पेड़ में मंजर लगने लगते हैं। सरसों के फूल सुगंध बिखरने लगते हैं। कोयल कूकने लगती है। हर तरफ बहार ही बहार होता है। सुंदर वातावरण मधुमय हो जाता है, नशीला हो जाता है। वसंत के ऐसे नशीले वातावरण में फिसलना व भटकना लाजिमी हो जाता है।

और फिर जीवन में किशोरावस्था पार कर युवावस्था आती है। युवावस्था भी तो जीवन के नगाड़े की बुलंद आवाज है। जीवन का वसंत काल है। इस उम्र में हाथ कहता है कि पकड़ो तो छोड़ो मत। नजरें कहती हैं जिस सुंदर चीज पर नजर टिक जाए तो उसे हटाओ मत। जीवन के इस वसंत काल में युवजनों के पैर डगमगाने लगते हैं, फिसलने लगते हैं।

इन दोनों वसंतों के बीच सर्वाधिक फिसलन भरी राहों पर युवाओं के पैर नहीं फिसले इसलिए बुद्धि की अधिष्ठात्री वीणापाणि सरस्वती माता की यह कहते हुए पूजा-अर्चना की जाती है कि हमारे मन को संयम और शक्ति प्रदान करो ताकि प्रकृति के रसीले वसंत और जीवन के नशीले वसंत में हमारा पैर स्थिर रहे। हम कहीं भटकें नहीं- ‘सरस्वती मां’ हमारे इस संकल्प को शक्ति दो।

परंतु आजकल होता क्या है? आज के युवजन वैसी पूजा-अर्चना नहीं करते। दिन-रात डीजे बजा-बजाकर भद्दे गीतों पर डांस करते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में लगे रहते हैं। तभी तो जिला प्रशासन को समाज के गणमान्य लोगों को बुलाकर शांति समिति की बैठक करनी पड़ती है।

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प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री उषा किरण खान के निधन पर शोक

साहित्य के क्षितिज पर बिहार की बेटी पद्मश्री उषा किरण खान के निधन से मानवीय संवेदनाओं के रचनाकारों की कमी होती जा रही है। लोकजीवन के संवेदनशील चितेरा पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु की गहरी छाप उषा किरण की रचनाओं पर पड़ी है। 11 फरवरी रविवार को दोपहर 2:00 के आसपास पटना मेदांता अस्पताल में हृदयाघात के कारण 78 वर्षीय उषा किरण ने अंतिम सांस ली। निधन के समय उनके एक मात्र पुत्र तुहिन शंकर मौजूद थे। उनके पति रामचंद्र खान (आईपीएस) 2 वर्ष पूर्व ही दिवंगत हो गए थे।

कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन संस्थान के अध्यक्ष व पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल की अध्यक्षता में स्थानीय साहित्यकारों ने शोक संवेदनाएं व्यक्त की। अपने शोकोदगार में  डॉ.मंडल ने कहा कि प्रख्यात लेखिका उषा किरण के जाने से हिंदी एवं मैथिली साहित्य को भारी क्षति हुई है। सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पद्मश्री उषा किरण खान बिहार की संवेदनशील रचनात्मक अस्मिता एवं महिला लेखन की बुलंद पहचान थी। उनकी विराट रचना संसार को बाल लेखन से ही पूर्णता मिली। उन्होंने हिंदी और मैथिली में विपुल साहित्य की सर्जना की। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। विदुषी डॉ.शांति यादव ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मशहूर रचनाकार नागार्जुन के शिष्यत्व एवं प्रभाव में उन्होंने साहित्य जगत में 1977 ई. से ही अपना डेग धरा और फिर मुड़कर कभी पीछे नहीं देखी। प्रखर साहित्यकार डॉ.विनय कुमार चौधरी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी कई रचनाओं के अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया सहित कई अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में कवि व साहित्यकार प्रोफेसर सचिंद्र, डॉ.अरुण कुमार, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.सिद्धेश्वर कश्यप, सियाराम यादव मयंक, डॉ.विश्वनाथ विवेका, डॉ.महेंद्र नारायण पंकज, शंभू शरण भारतीय, प्रमोद कुमार सूरज, राकेश कुमार द्विजराज, श्यामल कुमार सुमित्र आदि। अंत में पद्मश्री उषा किरण खान की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन भी रखा गया।

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महान वैज्ञानिक डॉ.भाभा को भी मिले भारतरत्न- डॉ.मधेपुरी

भारतीय संविधान निर्माता व ‘स्टैचू ऑफ नॉलेज’ कहे जाने वाले डॉ.अंबेडकर एवं लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल सरीखे अद्वितीय व्यक्तित्व द्वय को मृत्यु के 30-40 वर्षों बाद ‘भारतरत्न’ दिया गया तो क्या फादर ऑफ न्यूक्लियर पावर कहे जाने वाले एवं ‘एटम और पीस’ के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु 24 जनवरी 1966 को जिनेवा जा रहे डॉ.होमी जहांगीर भाभा के एयर इंडिया के बोइंग जहाज के आल्प्स पर्वत से टकराने पर हुई मृत्यु वाले महानतम वैज्ञानिक को भारतरत्न अवश्य ही मिलना चाहिए। समाजसेवी-साहित्यकार एवं विज्ञान वेत्ता डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने भारत सरकार से डॉ.भाभा को भारतरत्न दिए जाने की मांग की है।

डॉ.भाभा 1940 ईस्वी में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी के यशस्वी प्राध्यापक थे। उस पद को छोड़ भारत को न्यूक्लियर पावर में विश्व चैंपियन बनाने हेतु त्यागपत्र देकर भारत आ गए। भारत आकर उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ. सीवी रमन के बेंगलुरु वाले ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ में उनके साथ काम किया। डॉ.भाभा ने 1945 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और उन्हें ही प्रथम निदेशक बनाया गया। 1948 में प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘एटमिक एनर्जी कमीशन’ की स्थापना कर डॉ.भाभा को अध्यक्ष बनाया। डॉ.भाभा ने ट्रॉम्बे में एशिया का पहला ‘परमाणु अनुसंधान केंद्र’ स्थापित किया और उनके निर्देशन में अप्सरा, सिरान एवं जरलीना नामक तीन परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का निर्माण किया गया और इस प्रकार भारत में परमाणु युग का प्रवेश हुआ। 1962 में डॉ.भाभा ने ‘इलेक्ट्रॉनिक समिति’ की स्थापना की और देश ने उन्हें प्रथम अध्यक्ष भी बनाया। ऐसे यशस्वी वैज्ञानिक डॉ.होमी जहांगीर भाभा को मरने के 58 वर्ष बाद भी तो ‘भारतरत्न’ जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए।

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डॉ.स्वामीनाथन को भारतरत्न दिए जाने पर भारतीय किसानों के बीच खुशी की लहर- डॉ.मधेपुरी

करीब बीस सप्ताह पूर्व समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने दिनांक 28 सितंबर, 2023 को तमिलनाडु के मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ‘हिंदुस्तान’ के माध्यम से भारत सरकार द्वारा उन्हें भारतरत्न दिए जाने की मांग की थी। आज उन्हें भारतरत्न दिए जाने की घोषणा पर विशेष रूप से भारतीय किसानों के अंतर्मन में खुशियों की लहर दौड़ने लगी है। क्योंकि हरित क्रांति के जनक डॉ.एमएस स्वामीनाथन ने वर्ष 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन अवार्ड ऑफ साइंस एवं 1987 में संसार का पहला “वर्ल्ड फूड प्राइज”, जिसे कृषि का नोबेल प्राइज माना जाता है, प्राप्त कर संसार में भारत को गौरवान्वित किया था। उनकी बदौलत भारत अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनकर विदेशों को अन्न निर्यात भी करने लगा है।

किसानों को सर्वाधिक खुशी इस बात की है कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मरने के 37 वर्ष, जननायक कर्पूरी ठाकुर को 36 वर्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मृत्यु के 20 वर्ष बाद मिलने वाला भारतरत्न सरीखे सर्वोच्च नागरिक सम्मान डॉ. स्वामीनाथन को निधन के मात्र 135 दिनों के बाद ही भारत सरकार ने दिया, इसके लिए मोदी सरकार को डॉ.मधेपुरी ने साधुवाद दिया है। साथ ही डॉ.मधेपुरी ने भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में संपूर्ण विश्व में शिखर तक पहुंचाने वाले एवं “एटम फॉर पीस” के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु जिनेवा जाने के क्रम में 1962 के ‘एयर क्रैश’ में अपने प्राण की आहुति देने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा को भी भारतरत्न सरीखे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किए जाने की मांग मोदी सरकार से की है।

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रिटायर्ड शिक्षक संघ ने एलएन गोप को दी श्रद्धांजलि

डॉ.लक्ष्मी नारायण गोप भौतिकी के यशस्वी प्रोफेसर और भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में वर्षों विज्ञान के इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेजेज रहकर लोकप्रियता हासिल की। डॉ.गोप ने बीएसएस कॉलेज सुपौल में 36 वर्षों तक अपनी सेवा से छात्र और प्रशासन को संतुष्टि प्रदान की तथा अपने व्यवहार से सबों के दिल में जगह बना ली। दिनांक 31 जनवरी 2024 की देर रात पटना में हृदय गति रुकने के कारण 82 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें दो पुत्र संजय कुमार एवं अजय कुमार, दोनों सेंट्रल स्कूल में प्राचार्य व वरिष्ठ व्याख्याता हैं। उन्हें तीन पुत्रियां हैं। नाती-पोते से भरा पूरा परिवार छोड़कर उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

उनके निकटतम भौतिकी के प्रोफेसर एवं समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी की अध्यक्षता में बीएनएमयू के सेवानिवृत शिक्षक संघ के महासचिव डॉ.परमानंद यादव, डॉ.सुरेश प्रसाद यादव, प्रो.सचिंद्र, डॉ.पीएन पीयूष, डॉ.उदय कृष्ण, डॉ.अरुण कुमार आदि अन्य शिक्षकों ने उनकी कार्यशैली और लोगों से संबंध बनाने की कला का वर्णन किया और कहा कि उनके जाने से शिक्षा जगत को भारी क्षति हुई है। अंत में सबों ने उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा।

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भूपेन्द्र बाबू जैसे संत राजनीतिज्ञ को याद करना हम सब का परम कर्तव्य- डॉ.मधेपुरी

स्थानीय भूपेन्द्र चौक पर एनएच106 की अप्रत्याशित ऊंचाई बढाये जाने के बाद नए कलेवर में बने मनीषी भूपेन्द्र नारायण मंडल की प्रतिमा मंडप पर समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी की अध्यक्षता में 1 फरवरी को उनकी 121वीं जयंती भव्य समारोह के रूप में प्रातः 9:30 बजे मनाई गई। मौके पर दो सरकारी एवं तीन गैर सरकारी स्कूल के छात्र-छात्राओं की मौजूदगी में बैनर और बैंड बाजा के साथ भूपेन्द्र बाबू अमर रहे के नारे लगते रहे।

इस अवसर पर उनकी प्रतिमा पर सर्वप्रथम माल्यार्पण करते हुए अध्यक्ष डॉ.मधेपुरी ने कहा कि भूपेन्द्र नारायण मंडल सरीखे संत राजनीतिज्ञ को सदैव याद करना हम सबका परम कर्तव्य है। डॉ.राम मनोहर लोहिया की तरह भूपेन्द्र बाबू भी समाजवादी विचारधारा के अग्रणी महानायक रहे हैं। वे दोनों समस्त समाजवादियों के प्रेरणा स्रोत रहे हैं और आगे भी रहेंगे। डॉ.मधेपुरी ने उन्हें सुलझे सोच का नेक इंसान बताया और कहा कि वे जीवन भर विषमता मिटाने के साथ-साथ सामाजिक समरसता के जरिए छुआछूत की दीवार को गिराने में लगे रहे।

मौके पर साहित्यकार प्रो.सिद्धेश्वर कश्यप एवं पूर्व प्रधानाध्यापक डॉ.सुरेश भूषण ने कहा कि उनका संपूर्ण जीवन एक खुली किताब की तरह है। बीएनएमयू के पूर्व जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ.अरुण कुमार ने कहा कि वे भारतीय संसद में सदैव गरीब गुरबों के हित के लिए लड़ते रहे। डॉ.रामचंद्र यादव, डॉ आलोक कुमार एवं पूर्व उपाध्यक्ष रामकृष्ण यादव तथा शिक्षक नेता परमेश्वरी प्रसाद यादव ने कहा कि भूपेन्द्र बाबू एक ऐसे इंसान थे जिन्हें ना तो हार में कभी गम हुआ और ना जीत में खुशी। ज्ञानदीप निकेतन के निदेशक चिरामणि यादव, अधिवक्ता सीताराम पंडित एवं बीएनएमयू की शोधार्थी जयश्री ने कहा कि भूपेन्द्र बाबू वैसौं की मदद करते थे जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ती थी। इसके अलावे संजीव लोचन, सतीश चंद्र, संत कुमार, अमरेश कुमार, भारत भूषण मुन्ना जी, महेंद्र साह, रामकुमार, पप्पू कुमार, संजय मुखिया, समाजसेवीका विनीता भारती, सीपीएम नेता मानव, शिक्षक गणेश कुमार आदि भूपेन्द्र विचारधारा के सभी समर्थकों ने पुष्पांजलि एवं श्रद्धांजलि दी। अंत में समाजसेवी शौकत अली ने धन्यवाद ज्ञापन किया और कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।

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जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.(प्रो.) भूपेंद्र प्रसाद की भव्य विदाई

सेवानिवृत्ति के बाद विदाई का हर पल, हर क्षण अत्यंत भावुक क्षण होता है। सेवानिवृत्ति एक ऐसा अवसर है जहां व्यक्ति को बोलने के लिए शब्दों की कमी पड़ जाती है। उस समय मन मे मिश्रित भावनाएं उमड़ती है। रिटायर होने वाले व्यक्ति को अपने सफ़र का हिस्सा बने व्यक्तियों, चाहे वो शिक्षक, छात्र व सहकर्मी या सफाई कर्मी ही क्यों ना हो, को धन्यवाद देना सुनिश्चित करना चाहिए। ये बातें विशिष्ट अतिथि समाजसेवी-साहित्यकार एवं भौतिक के रिटायर्ड यूनिवर्सिटी प्रोफेसर रहे डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने अपने शिष्य प्राचार्य जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज डॉ.भूपेंद्र प्रसाद की विदाई पर कही।

11 मार्च 2018 से इन्होंने सेवा आरंभ की और 31 जनवरी 2024 को सेवानिवृत हुए। नेत्र विशेषज्ञ के रूप में सर्जन सासाराम, पीएमसीएच एवं कई स्थानों पर कार्यरत रहे। वर्ष 1997 से 2013 तक डीएमसीएच में तथा 2018 से 2021 तक बेतिया में प्रोफेसर रहे एवं आज तक प्रिंसिपल जीएनकेटी मेडिकल कॉलेज में रहकर सेवानिवृत हुए।

इस विदाई समारोह में शहर के लोकप्रिय शिशु रोग चिकित्सक डॉ.अरुण कुमार मंडल, जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष डॉ.दिनेश कुमार, डॉ.पीके मधुकर, डॉ.आलोक निरंजन, डॉ.चंचल, डॉ.पूनम कुमारी आदि सहित शहर के गणमान्यों एवं प्राचार्य भूपेंद्र के मित्रों उद्दालक घोष, विश्वनाथ गांगुली उर्फ गोदई, अनिल राज, विनोद कुमार यादव, हरेराम कामती आदि मौजूद रहे। सेवानिवृत प्राचार्य डॉ.भूपेंद्र प्रसाद के साथ बिताए क्षणों को साझा किया। साथ ही मेडिकल कॉलेज के कुछ छात्रों ने भी अपने प्राचार्य की विदाई पर उद्गार व्यक्त करते हुए उनके स्वास्थ्य एवं दीर्घायु होने की कामना की।

डॉ.मधेपुरी ने अपने शिष्य की सेवा निवृत्ति पर उनके शैक्षिक प्रयासों से खुश होकर पाग, अंग वस्त्रम व पुस्तक से सम्मानित करते हुए यही कहा कि डॉ. प्रसाद के प्रयास के कारण ही तत्कालीन डीएम श्याम बिहारी मीणा से अनुरोध करके एक डेड बॉडी छात्रों की प्रायोगिक पढ़ाई हेतु उपलब्ध कराया था।

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बीपी मंडल इंजीनियरिंग कॉलेज में कोसी खेल एवं सांस्कृतिक उत्सव ‘अभ्युदय’ का भव्य शुभारंभ

मधेपुरा बीपी मंडल कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के परिसर में कोसी कमिश्नरी के मधेपुरा, सहरसा एवं सुपौल कॉलेज आफ इंजीनियरिंग के छात्र-छात्राओं के लिए खेल एवं सांस्कृतिक उत्सव -2023 “अभ्युदय” का शुभारंभ 17 दिसंबर को 10:00 बजे पूर्वाह्न से प्राचार्य प्रो.अरविंद कुमार अमर की अध्यक्षता में सहरसा एवं सुपौल जिले के अभियंत्रण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर सी प्रसाद एवं डॉ. एन मिश्रा की गरिमामयी उपस्थिति व अन्य अतिथियों की मौजूदगी में समारोह के मुख्य अतिथि प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

मुख्य अतिथि डॉ.भूपेन्द्र  मधेपुरी ने अपने संबोधन में जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो.(डॉ.)भूपेंद्र प्रसाद एवं अतिथि के रूप में तीनों जिले के नोडल ऑफिसर इंजीनियर मुरलीधर प्रसाद  इंजीनियर अजय प्रभाकर व इंजीनियर अचिंत रंजन, बीएन मंडल विश्वविद्यालय के सीनेटर प्रो.(डॉ.) नरेश कुमार एवं एसएनपीएम के पूर्व प्राचार्य डॉ.निरंजन कुमार सहित सभी छात्र-छात्राओं को तीनों जिले के इतिहास से रू-ब-रू कराते हुए यही कहा कि खेल में हार जाना खेल का अंत नहीं होता, खेल में हार मान लेना खेल का अंत होता है। जिद्दी बनिए और जीतने तक खेलते रहिए। देश की एकता-अखंडता के लिए खेल आवश्यक होता है। खेल हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है। आजकल खेल स्कूल, कॉलेज एवं करियर में भी स्थान बनाने लगा है। अंत में डॉ.मधेपुरी ने यही कहा कि खेल सामाजिक सद्भाव, मानसिक विकास एवं व्यक्तित्व निर्माण के लिए जरूरी होता है। खेल अनुशासन, ईमानदारी एवं धैर्य को बढ़ाता है। खेल हर खिलाड़ी के अंदर समूह के प्रति ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना उत्पन्न करता है। जहां सहरसा के प्राचार्य डॉ. आर सी प्रसाद ने कहा कि बिना हार का स्वाद चखे, सफलता नहीं मिलती वहीं सुपौल के प्राचार्य डॉ.ए.एन मिश्रा ने खिलाड़ियों से यह कहा कि इतनी तैयारी करो कि कोसी की टीम बाहर खेलने जाए। जेएनकेटी के प्राचार्य डॉ.भूपेंद्र प्रसाद ने कहा कि खेल में अच्छा करने वाले को सभी जानने लगते हैं और उसकी इज्जत बढ़ जाती है।

अंत में प्राचार्य प्रो.अरविंद कुमार अमर द्वारा अपने मंच संचालकों एवं सहयोगी डॉ.एस डी सिंह सहित सभी अतिथियों का अंगवस्त्रम एवं पौध देकर स्वागत करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। तत्पश्चात सुपौल क्रिकेट टीम टॉस जीतकर बोलिंग पसंद किया और सहरसा क्रिकेट टीम बैटिंग करने लगी। यह खेल उत्सव का कार्यक्रम 22 दिसंबर तक चलेगा जिसमें विभिन्न विधाओं के प्रतिभागीगण वॉलीबॉल, बैडमिंटन, हाई जंप, लॉन्ग जंप, 100 मीटर दौड़, टग ऑफ वॉर, शॉट पुट थ्रो, शतरंज, टेबल टेनिस, कैरम डिबेट, क्विज, पोस्टर मेकिंग, गीत गायन कंपटीशन सहित डांस व रंगोली प्रतियोगिता में भाग ले सकेंगे। 22 दिसंबर को ही पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित होगा।

 

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पीएम श्री योजना के तहत नवोदय विद्यालय सुखासन में कार्यक्रम का श्री गणेश

अतीत को जाने बिना आप अपने भविष्य को गढ़ नहीं सकते- डॉ. मधेपुरी

जवाहर नवोदय विद्यालय, सुखासन, मधेपुरा में पीएम श्री योजना के तहत प्राचार्य श्रीकांत सिंह सहित शिक्षकों व कर्मियों द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए कैरियर परामर्श एवं मार्गदर्शन विषय पर सारगर्भित स्पीच देने के लिए ख्याति प्राप्त समाजसेवी-साहित्यकार -सह- फिजिक्स के सेवानिवृत सीनियर यूनिवर्सिटी प्रोफेसर डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी को 9 दिसंबर शनिवार को 3:00 बजे अपराह्न में आमंत्रित किया गया। डॉ.मधेपुरी ने अपने लगभग 2 घंटे के संबोधन में बच्चों को अपने अतीत को जानने की सलाह देते हुए कहा कि अपने अतीत को जाने बिना आप अपने भविष्य को गढ़ नहीं सकते और वर्तमान में आगे बढ़ नहीं सकते। उन्होंने छात्रों के बीच आर्यभट्ट से लेकर गांधीयन मिसाइल मैन डॉ.कलाम की विस्तार से चर्चा की। राष्ट्रकवि दिनकर की एक कविता के माध्यम से स्पीड एंड वेलोसिटी के बीच का अंतर  ‘दौड़ना और भागना’ शब्दों का सहयोग लेकर ऐसा समझाया कि छात्रों सहित शिक्षकों के चेहरे पर मुस्कान लाकर भरपूर तालियां बटोरी। स्पीच के बाद सर्वाधिक छात्राएं डॉ.मधेपुरी से मिलकर पढ़ाई के बाबत अपनी समस्याओं के समाधान तलाशने में लगी देखी गई।

आरंभ में प्राचार्य श्रीकांत ने बुके एवं शब्दों से मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित बीएन मंडल विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक -सह- कुलसचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी का स्वागत करते हुए कहा कि पीएम श्री योजना के तहत संपूर्ण भारत करीब  27 हजार करोड़ की पहली किस्त के अंतर्गत कौशल विकास हेतु  यह कार्यक्रम छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित किया गया। कार्यक्रम में शिक्षक अभय कुमार, हेमनाथ झा, हरेराम कुमार, विभूति विशाल, जितेंद्र बिष्ट, मुरलीधर झा, ममता सिंह, पूर्णिमा सिंह, सारिका अरोड़ा, शिवानी यादव, उर्मिला आदि एवं अन्य कर्मचारीगण मौजूद थे। संगीत शिक्षक विभूति विशाल के निर्देशन में शांभवी, कृतिका, अनुप्रिया, साक्षी प्रिया व आकाश ने स्वागत गान प्रस्तुत किया। मंच संचालन पीजी टीचर हेमनाथ झा ने किया।

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