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फर्जी कारोबार से कब मुक्त होगा भारत..?

चाहे दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्री का मामला हो या मधेपुरा के मंडल विश्वविद्यालय के अन्तर्गत डी.एस. कॉलेज, कटिहार के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार झा की फर्जी पी-एच.डी. डिग्री का मामला। बात दूध में मिलावट की हो या फिर नकली दवाओं की। यहाँ तक कि कुछ मामले फर्जी आई.ए.एस. अफसरों के भी देखने को मिले हैं। देखा जाय तो इन सबके पीछे कारण बस एक है – वह ये कि आदमी जन्म से मृत्यु पर्यन्त षट्विकार यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष से ग्रसित रहता है। देखा जाय तो इन विकारों से संघर्ष के क्रम में वह इन पर जितनी अच्छी तरह विजय पाता है मनुष्यता की कसौटी पर वह उतना ही खरा उतरता जाता है और अगर इन विकारों से वह पूर्णत: मुक्त हो जाय तो देवत्व को प्राप्त कर ले। जो कि हो नहीं पाता। इन षट्विकारों से मुक्त होने के लिए विवेक, वैराग्य एवं निष्काम कर्मयोग की जरूरत होती है जो आज के भौतिक युग में दुर्लभ सी हो गई चीजें हैं।

प्राचीन काल के शिक्षक समाज के सिरजनहार हुआ करते थे। वे मान-मूल्यों के रक्षक, रहवर और रखवाला की भूमिका में थे। वे सच्चे अर्थों में विद्यादानी हुआ करते, सपने में भी उन्हें धन लूटने की चाहत नहीं होती। परन्तु, वर्तमान में शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में से वैसी तमाम चीजें निकाल दी गई हैं जिनसे चरित्र-निर्माण होता, जो इन षट्विकारों पर नियन्त्रण रखने में मददगार होतीं। आज पाठ्यक्रमों से ऋषि-मुनियों, तपस्वियों, साधकों, समाजसेवी संतों सहित आजादी के दीवानों की जीवनियां बेरहमी से निकाल दी गई हैं। इनकी जगह शिक्षा को केवल और केवल व्यावसायिक और प्रतिस्पर्द्धी बनाने पर बल दिया जा रहा है। फल यह है कि समाज में सत्कर्मों को छोड़ आज सारे कर्म हो रहे हैं।

सच है कि ये फर्जी कारोबार कभी निर्मूल नहीं हो सकते परन्तु इन्हें नियन्त्रित और संतुलित करने के लिए हम सबको जगना होगा और अपनी-अपनी भूमिका में लगना होगा – सरकार को, समाज को और खासकर शिक्षकों को। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने देश के नाम संदेश में कभी कहा था – “भारत तभी भ्रष्टाचारमुक्त होगा जब माता-पिता एवं प्राईमरी स्कूल के शिक्षक – ये तीनों ह्रदय से इस काम में जुटे रहेंगे। ”

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