सर्वप्रथम यह जानिए कि जून से अक्टूबर (यानि आषाढ़ से अगहन) तक बोई एवं काटी जाने वाली फसलें ‘खरीफ’ कहलाती हैं | इन फसलों में धान, मकई, बाजरा, उड़द, मूंग आदि अन्न आते हैं | उत्तर भारत में इन फसलों को जून-जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर के आसपास काटा जाता है |
यह भी बता दें कि अक्टूबर आते-आते ‘पतझड़’ का मौसम आ जाता है और अरबी भाषा में ‘खरीफ’ शब्द का मतलब ‘पतझड़’ होता है….. इसीलिए जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर तक उपजने वाली फसलों को ‘खरीफ’ कहा जाता है जिनके बोते समय अधिक तापमान व आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है |
लगे हाथ यह भी जान लेना उचित होगा कि “रबीफसल” (गेहूं, जौ, चना, मटर…. सरसों, मसूर, आलू आदि की बुआई के समय कम तापमान और पकते समय गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है यानि रबी सामान्यत: अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती है…… और चार-पांच महीने बाद यानि मार्च तक काटी जाती है |
मधेपुरा जिले के ‘आत्मा’ (ATMA: Agricultural Technology Management Agency) के परियोजना निदेशक डॉ.राजन बालन, कृषि वैज्ञानिक राहुल कुमार वर्मा, वरीय वैज्ञानिक डॉ.एमके राय एवं औषधीय खेती विशेषज्ञ प्रो.शंभू शरण भारतीय आदि द्वारा चौसा-आलमनगर-पुरैनी व ग्वालपाड़ा आदि प्रखंडों में कहीं आत्मा के सौजन्य से तो कहीं कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अधिकरण के तत्वावधान में बीएओ, प्रखंड प्रमुख……. आदि द्वारा “खरीफ महोत्सव सह प्रशिक्षण” कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें विशेष रूप से किसानों को धान की फसल के बाबत “श्रीविधि” से धान रोपनी की सलाह दी गई | इसके अलावे बीज की छटाई, रोपाई, खर-पतवार नियंत्रण आदि की विस्तृत जानकारी भी दी गई |
इस अवसर पर जहाँ प्रो.शम्भू शरण भारतीय ने कृषकों को उन्नत तकनीक से खेती करने की आवश्यकता पर बल देते हुए यह कहकर हैरत में डाल दिया कि औषधीय खेती द्वारा लागत खर्च से 50 गुना अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है | वहीं बीएओ उमेश बैठा ने खरीफ की खेती के लिए उपलब्ध कराये जा रहे सरकारी अनुदानों के बारे में किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि कोई भी किसान इसका लाभ उठा सकते हैं | अंत में आत्मा के निदेशक डॉ.राजन बालन ने स्वरचित “धान चालीसा” का पाठ किया और मनमोहक आवाज में गीत गाते हुए धान के उन्नत प्रभेदों के बारे में भी सर्वाधिक रोचक जानकारियाँ दी |