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विश्व धरोहर दिवस की शुरुआत कब से और क्यों जरूरी है ?

सर्वप्रथम ट्यूनीशिया में इंटरनेशनल काउंसिल आफ माउंटेंस एंड साइट द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में 18 अप्रैल 1982 को विश्व धरोहर दिवस मनाने का सुझाव दिया गया, जिसे कार्यकारी समिति द्वारा सर्वसम्मति से मान लिया गया। अगले वर्ष 1983 के नवंबर में यूनेस्को सम्मेलन के 22वें सत्र में यह प्रस्ताव पारित कर दिया गया कि अब प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जायेगा यानी 18 अप्रैल 1984 से अब तक प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को World Heritage Day मनाया जाता है।

बता दें कि अबतक संसार में लगभग 1052 स्थलों को विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है। इनमें इटली की 49, चीन की 45, स्पेन की 44, फ्रांस व जर्मनी की 38 और भारत की 35 धरोहरें शामिल हैं- जिनमें प्रमुख भारतीय धरोहरें हैं- ताजमहल, आगरा का किला, अजंता की गुफाएं, सांची का बौद्ध स्मारक, एलोरा की गुफाएं, खजुराहो, हुमायूं का मकबरा, बोध गया मंदिर, लालकिला, नालंदा विश्वविद्यालय आदि।

यह भी बता दें कि जब 15 जुलाई 2016 को यूनेस्को ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया तो विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा की खोई प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई मिल गयी। विश्व धरोहर में शामिल होने वाली यह भारत की 33वीं धरोहर है।

जानिए कि इस नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. के आस-पास गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी…… 12वीं शताब्दी तक यह दुनिया का पहला आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना रहा और इसमें दुनिया भर के 10 हज़ार छात्र रहकर शिक्षा ग्रहण करते रहे।

800 वर्षों तक शिक्षा दान का केन्द्र बना यह विश्वविद्यालय नालंदा जिसे तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी द्वारा जला दिया गया। वहाँ के पुस्तकालयों में इतनी पुस्तकें थी कि 6 महीने तक आग सुलगती रही, बुझ नहीं पायी। पांचवी से बारहवीं शताब्दी में नालंदा बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना रहा। लाल ईंट से बनी प्रार्थनालय वाली इमारतें आज भी सुरक्षित हैं | परंतु, वहाँ एक अदद अच्छा सा होटल तक पर्यटकों के लिए उपलब्ध नहीं है….. और आगे………।

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