देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद कहिए या भारत रत्न डॉ.राजेन्द्र प्रसाद….. जन्म भले ही जीरादेई में हुआ लेकिन वे वर्ष 1921 से 1946 तक पटना में कुर्जी के नजदीक मौलाना मजहरुल हक द्वारा कांग्रेस को दी गई जमीन पर स्थित बिहार विद्यापीठ परिसर में बने एक खपरैल मकान में ही रहा करते थे। हाँ! पढ़ाई और वकालत के बाद कुछ समय देश सेवा के दरमियान जेल में और भारत के राष्ट्रपति के रूप में दस वर्षों (1952-1962) तक 320 एकड़ में फैले 340 सुसज्जित कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में बीते।
बता दें कि 1962 में ही दिल्ली के राष्ट्रपति भवन को अलविदा कहकर पटना के उसी बिहार विद्यापीठ वाले खपरैल मकान में लगभग साल भर अपना जीवन गुजारा राजेन्द्र बाबू ने। 28 फरवरी 1963 की रात बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने बिहार के विद्यापीठ परिसर में के उसी खपरैल मकान में अंतिम सांस ली।
यह भी जानिए कि इस विद्यापीठ की स्थापना 1921 में ही महात्मा गांधी द्वारा की गई थी। इसकी स्थापना के लिए गांधी ने झरिया जाकर वहाँ के एक गुजराती कोयला व्यवसायी से चंदे के रूप में कुछ राशि ली और तब मजहरुल हक द्वारा दी गई जमीन पर निर्माण हुआ।
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जब दिल्ली से लौटकर बिहार विद्यापीठ में पुनः स्थाई रूप से रहने लगे तो कोई ऐसा दिन नहीं होता जब नेताओं एवं आम लोगों का जमावड़ा नहीं लगता। आज भले ही देश रत्न हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनकी स्मृतियाँ आज भी उनके होने का एहसास कराती हैं। वह पुराना खपरैलनुमा भवन आज भी हमारे मानस पटल पर ढेर सारे संस्मरणों को अंकुरित होने के लिए प्रोत्साहित करता है। पास में जमीन पर बिछी सफेद चादर पर रखा चरखा आजादी के आंदोलनों को तरोताजा कर देता है। राजेन्द्र बाबू की धर्मपत्नी राजवंशी देवी से जुड़ी कई यादें आज भी जिंदा हो जाती हैं।