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‘सवर्ण सेना’ का भारत बंद और कुछ जरूरी सवाल

एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के विरोध और गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग को लेकर गुरुवार को आहूत भारत बंद का असर बिहार समेत कई राज्यों में देखा गया। क्या आपने सोचा कि बिना किसी राजनीतिक समर्थन या प्रचार के बंद का इतना व्यापक असर कैसे हुआ? इसका आह्वान करने वाला संगठन ‘सवर्ण सेना’ असल में क्‍या है, उसका नेटवर्क कितना बड़ा है और वह कैसे काम करता है?
सबसे पहले तो यह जानें कि तथाकथित तौर पर सवर्ण हितों की रक्षा के लिए गठित ‘सवर्ण सेना’ का सीधा कनेक्शन बिहार से है। जी हाँ, इसका गठन बिहार के जहानाबाद के रहने वाले भागवत शर्मा ने किया है। भागवत फिलहाल अरुणाचल प्रदेश के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं और गरीब सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि एससी-एसटी एक्ट में सुधार हो क्योंकि इस कानून के तहत बड़े पैमाने पर फर्जी मुकदमे होते हैं।
बकौल भागवत शर्मा उन्‍होंने सवर्णों के मुद्दों को उठाने के लिए 2017 में सवर्ण सेना बनाई। उनके दावे के मुताबिक आज दो साल बाद इस सेना में 50 हजार से अधिक सदस्य हैं। महज दो सालों में यह संगठन देश भर में फैल गया है और बड़ी बात यह कि इसका प्रचार-प्रसार केवल सोशल मीडिया के माध्‍यम से हो रहा है। भारत बंद का प्रचार भी सवर्ण सेना ने सोशल मीडिया पर ही किया। भागवत शर्मा कहते हैं कि आज के युग में वॉट्सएप और फेसबुक के माध्‍यम से कम समय में अधिक लोगों तक पहुंचना संभव है। साथ में यह भी कि आगे वे देश व समाज से जुड़े अन्‍य मुद्दे भी उठाएंगे।
बहरहाल, आगे वास्तव में क्या होगा यह तो समय बताएगा, फिलहाल यह प्रश्न विचारणीय जरूर है कि कल जो कुछ हुआ वो सोशल मीडिया की सफलता है या सूचना के नए माध्यमों की बेहिसाब बढ़ती ताकत का संकेत, जिसके अनियंत्रित होने से देश और समाज का बड़ा नुकसान संभव है? एक बात और, एक ‘व्यक्ति’ के विचार अगर व्यापक हित में हों तब भी क्या ‘संस्था’ के अभाव में उन विचारों को सही स्वरूप और सार्थक परिणति देना क्या संभव है?

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