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महाकवि नीरज: लगेंगी सदियां उन्हें भुलाने में

महान गीतकार, महाकवि गोपालदास नीरज, दिनकर ने जिन्हें ‘हिन्दी की वीणा’ कहा था, नहीं रहे। 19 जुलाई की शाम 93 वर्ष के नीरज जी का दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया। ‘दर्द दिया है’, ‘आसावरी’, ‘बादलों से सलाम लेता हूँ’, ‘गीत जो गाए नहीं’, ‘नीरज की पाती’, ‘नीरज दोहावली’, ‘गीत-अगीत’, ‘कारवां गुजर गया’, ‘पुष्प पारिजात के’, ‘काव्यांजलि’, ‘नीरज संचयन’, ‘नीरज के संग-कविता के सात रंग’, ‘बादर बरस गयो’, ‘मुक्तकी’, ‘दो गीत’, ‘नदी किनारे’, ‘लहर पुकारे’, ‘प्राण-गीत’, ‘फिर दीप जलेगा’, ‘तुम्हारे लिये’, ‘वंशीवट सूना है’ और ‘नीरज की गीतिकाएँ’ जैसी रचनाओं से हमारी भाषा और संवेदना को समृद्ध करने वाले नीरज जीवन भर कविता लिखने में लगे रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दी के माध्यम से जहां उन्होंने साधारण पाठकों के मन और मस्तिष्क में अपनी जगह बनाई वहीं गंभीर पाठकों को भी झंझोरा। उनकी अनेक कविताओं के अनुवाद गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, रूसी आदि भाषाओं में हुए।

गोपाल दास नीरज का जन्म 4 जनवीर 1925 में उत्तर प्रदेश के इटावा के एक गांव में हुआ था। प्रारंभ में उनके ऊपर हरिवंश राय बच्चन जी का गहरा प्रभाव रहा। बाद में उन्होंने अपना रास्ता खुद तलाश किया। बकौल नीरज जी बच्चन जी से पहले हिन्दी कविता आकाश में घूम रही थी, वह जीवन से संबंधित नहीं थी। बच्चन जी ने आकाशीय कविता को उतारकर जमीन पर खड़ा कर दिया और सामान्य आदमी जैसा सुख-दुख भोग रहा है, उस सुख-दुख की कहानी उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से कही। ठीक यही काम नीरज जी ने किया। देश की कई पीढ़ियों के दिल की आवाज़ को वे आजीवन गुनगुनाहट में बदलते रहे। इसमें शायद ही किसी की दो राय हो कि बच्चन जी के बाद मंच पर किसी ने पूरी ठसक और धमक के साथ राज किया तो वे नीरज ही थे। एक बार की बात है कि बस में वे और बच्चनजी एक साथ यात्रा कर रहे थे। जगह कम होने के काऱण बच्चन जी ने उनसे कहा था कि मेरी गोद में बैठ जाओ। तब नीरज जी ने कहा था, आपकी गोद में तो बैठा ही हूँ, लेकिन आपकी गोद का भी सम्मान रखूँगा, एक दिन इसी तरह लोकप्रिय होऊँगा जिस तरह आप हुए हैं। बच्चन जी ने इस पर आशीर्वाद दिया था उन्हें और ये आशीर्वाद किस कदर लगा इसका सबूत उनके लाखों चाहने वाले देंगे आपको।

पद्मभूषण से सम्मानित गोपाल दास नीरज ने कई प्रसिद्ध फिल्मों के गीतों की रचना भी की। महज पाँच साल के फिल्मी सफर में उन्होंने तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार जीता। ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’, ‘जीवन की बगिया महकेगी’, ‘काल का पहिया घूमे रे भइया!’, ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ’, ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’, ‘शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब’, ‘लिखे जो खत तुझे’, ‘दिल आज शायर है’, ‘खिलते हैं गुल यहां’, ‘फूलों के रंग से’, ‘रंगीला रे! तेरे रंग में’, ‘आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं’ जैसे गीतों को भला कौन भूल सकता है। ये गीत हिन्दी सिनेमा के लिए किसी धरोहर से कम नहीं।

बहरहाल, नीरजजी कारवां लेकर आगे गुजर गए लेकिन उसका गुबार सदियों तक कायम रहेगा। उन्होंने बिल्कुल सही कहा था – इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में। शब्दो के उस मसीहा को मेरा शत्-शत् नमन।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. अमरदीप

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