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अब बसों में भी ट्रेन की तरह बायो टॉयलेट होगा

लंबी दूरी की बसों में ट्रेनों की तरह जरूरी है टॉयलेट | यूँ आरंभ में तो ट्रेनों में भी टॉयलेट नहीं हुआ करता था  | अर्धशतक बीत गया ट्रेन में टॉयलेट लगते-लगते |

बता दें कि अंग्रेजों द्वारा 16 अप्रैल 1853 को भाप के इंजन के जरिये पहली ट्रेन चलाई गई थी जिसमें लगभग 400 यात्रियों ने बम्बई यानी मुंबई शहर के बोरीबंदर (वर्तमान छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) से ठाणे स्टेशन तक की यात्रा बिना टॉयलेट वाली ट्रेन में पूरी की थी |

यह भी जानिये कि आगे 55 वर्षों तक यानी 1908 ई. तक ट्रेनों में यात्रियों के लिए टॉयलेट की सुविधा नहीं थी | बसों की तरह ही जब अनिवार्य एवं अपरिहार्य स्थिति हो जाती तब ट्रेन को भी बस की तरह रोकवाकर यात्री द्वारा मल-मूत्र का परित्याग कर लिया जाता था और फिर उसे बैठाकर ट्रेन खुलती थी |

यह भी बता दें कि अखिलेश चन्द्र सेन नामक यात्री को 1891  ई. में शौच/लघुशंखा करते छोड़कर ट्रेन खुल गई | श्री सेन द्वारा इसके विरोध में संघर्ष करते हुए दिये गये एक आवेदन के आलोक में अंततः 1909 ई. में जाकर फर्स्ट क्लास के डब्बे में सर्वप्रथम टॉयलेट बनाया गया और वह आवेदन पत्र आज भी दिल्ली के रेल संग्रहालय में सुरक्षित है जिसे कोई भी देख सकता है |

जानिए कि अब ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगाया जाना शुरू हो गया है ताकि रेलवे स्टेशनों पर गाड़ी खड़ी होने पर भी गंदगी नहीं फैलेगी- क्योंकि मल-मूत्र को बायोलॉजिकल पद्धति से नष्ट कर दिया जाता है तथा हानिकारक पानी को क्लोरीन चेंबर होकर बाहर निकाल दिया जाता है |
जो भी हो ट्रेन के सभी कंपार्टमेंट में तो टॉयलेट बन गया फिर भी इंजन के ड्राइवर को स्टेशन के टॉयलेट में ही जाना पड़ता है | बाहरहाल केंद्र सरकार के रेल बजट में अब इंजन में भी बायो टॉयलेट बनाने की स्वीकृति के साथ-साथ बजट में भी प्रावधान कर दिया गया है |
अंत में यह कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है | अस्तु आने वाले समय में लंबी दूरी की बसों में जरूरी लगता है टॉयलेट का होना | मोटर संशोधन विधेयक की समीक्षा के लिए सांसद  वी.पी.सहस्त्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली 24 सदस्यीय संसदीय समिति ने “स्वच्छ भारत अभियान” के तहत इस पर सरकार से गंभीरता पूर्वक विचार करने को कहा है | फिलहाल भारत में बहुत कम बसों में टॉयलेट की व्यवस्था की गई है |

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