‘ललिता’ मधेपुरा की बेटी ! पूरा नाम सुमन भारती ‘ललिता’ ! अभावों का कुबेर है वह ! 21 वर्षीय ललिता ने यह सिद्ध कर दिया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते कोई भी मंजिल पाई जा सकती है |
बता दें कि 1997 में जन्म ग्रहण करने वाली ललिता के सिर से 2000 आते-आते माता-पिता का साया उठ गया | उसके बाद ललिता के पालनहार बने नाना-नानी को भी 2008 में आई कुसहा त्रासदी ने छीन ली | और तब से ललिता की जिंदगी में शुरू हुए संघर्ष का दौर आज तक जारी है लेकिन उसके जुनून के सामने कोई टिक नहीं पाता है | छोटी सी उम्र में अनाथ होने के बावजूद ललिता के अंदर कभी जज्बे की कमी नहीं रही | तब से जख्मों पर मरहम लगा-लगाकर ट्रैक पर नंगे पाँव दौड़ लगाती रही ललिता | मधेपुरा की बेटी अब कोसी का ही नहीं बल्कि बिहार का भी नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन कर रही है |
यह भी जानिये कि मैराथन दौर में राष्ट्रीय स्तर पर 5 मेडल हासिल करने वाली ललिता राज्य स्तर पर 7 बार गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी है | राष्ट्रीय फलक पर कोसी का नाम रोशन करने के बाद ललिता का अगला लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है |
यह भी बता दें कि जहाँ 2013 में भारतीय रेल द्वारा आयोजित राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता एवं 2014 में ऑल इंडिया सोसाइटी की प्रतियोगिता में ललिता विनर व रनर रही वहीं 2015 के नेशनल एथलेटिक्स में प्रथम स्थान पाकर ललिता ने बिहार का नाम रोशन किया | फिर जहां 2016 में नेशनल मैराथन में गोल्ड मेडल जीतकर बिहार का परचम लहराया वहीं 2017 में पटना के गांधी मैदान में आयोजित मैराथन की विनर बनी और बंगाल में आयोजित नेशनल एथलेटिक्स की रनर रही |
ऐसी धाविका को मदद के रेस में सरकारी तंत्र भी रह जाता है पीछे, तभी तो रनिंग ट्रैक पर कमाल करने और धमाल मचाने के लिए नाइट गार्ड की नौकरी करनी पड़ती है ललिता को | फिलहाल मधेपुरा जिला के डंडारी गाँव में माता स्व. मीरा एवं पिता स्व. लक्ष्मी यादव के घर जन्मी अनाथ ललिता को उत्साहित एवं प्रोत्साहित करने के लिए गुरु सह कोच शंभू कुमार हैं जिसे ललिता अपने जीवन का आदर्श मानती है |