बिहार के दो अत्यंत महत्वपूर्ण पुल आरा-छपरा और दीघा-सोनपुर का लोकार्पण आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन 11 जून को होने जा रहा है। गौरतलब है कि संबंधित विभाग (पथ-निर्माण) के मंत्री लालू के छोटे पुत्र व सरकार में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हैं और इसी कारण बिहार भाजपा इसका पुरजोर विरोध करने की योजना बना रही है। पार्टी का तर्क है कि क्या ये तेजस्वी की पारिवारिक संपत्ति है जिसे वो ‘पापा’ को ‘गिफ्ट’ करने पर तुले हुए हैं।
इस बाबत भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार की जनता को यह बताना चाहिए कि क्या तेजस्वी ने अपने पिता को पुल ‘गिफ्ट’ करने का ऐलान उनकी सहमति से किया है। यही नहीं, लगे हाथ उन्होंने सरकार को एक बड़ी सलाह भी दे डाली कि इन दोनों पुलों का लोकार्पण लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति दिवस यानि 5 जून को किया जाय।
मोदी ने तंज कसते हुए आगे कहा कि विभिन्न घोटालों व विवादों से घिरे किसी शख्स के जन्मदिन पर पुलों का लोकार्पण कर सरकार बिहार की जनता को जलील न करे। तेजस्वी को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि अगर गिफ्ट ही करना है तो वो पटना में बन रहे बिहार के सबसे बड़े मॉल, दिल्ली की सैकड़ों करोड़ की जमीन और अपनी एक हजार करोड़ से अधिक की बेनामी सम्पत्ति गिफ्ट करें।
बहरहाल, इन दिनों मोदी हाथ धोकर लालू और उनके परिवार के पीछे पड़े हैं। उनके आरोपों का सोता जैसे सूखने का नाम ही नहीं ले रहा। आजकल ऐसा कोई मौका नहीं छूटता जब वे लालू और उनके बेटों के खिलाफ और लालू के पुत्र व प्रवक्ता मोदी के खिलाफ आग न उगलते हों। लिहाजा यहां आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं। हां, उनकी यह बात सोचने को जरूर बाध्य करती है कि ये लोकार्पण लालू के जन्मदिन से छह दिन पहले सम्पूर्ण क्रांति दिवस पर क्यों नहीं? हां, सम्पूर्ण क्रांति, पिछले तीन दशकों में बिहार की राजनीति की धुरी रहे लालू और नीतीश समेत मौजूदा दौर के कई बड़े हस्ताक्षर जिसकी उपज हैं। क्या समय बीतने पर प्राथमिकता के साथ-साथ प्रतीक भी बदल जाते हैं, और उनके मूल्य घट-बढ़ जाते हैं, सिक्कों की तरह?
जहां तक बात लालू प्रसाद यादव की है, तो बिहार की राजनीति से उनको खारिज करना संभव नहीं। पिछड़े तबकों के उभार में उनकी बड़ी भूमिका रही है, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता। तो क्या इसका अर्थ यह है कि उन्हें जेपी पर तरजीह दी जाए? अगर तेजस्वी ने ‘पितृप्रेम’ में ऐसा प्रस्ताव रखा भी और लालू इस सम्मान के लिए अनुपयुक्त न भी हों, तो क्या लालू का फर्ज नहीं था कि वे अपने बेटे को अधिक उपयुक्त निर्णय लेने के लिए मदद और मार्गदर्शन देते?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप