अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सात मुस्लिमबहुल देशों – सीरिया, सूडान, इराक, ईरान, सोमालिया, यमन और लीबिया – के प्रवासियों और शरणार्थियों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगा दी है। ट्रंप की ओर से जारी आदेश के अनुसार सीरियाई शरणार्थियों के अमेरिका आने पर अनिश्चित काल के लिए रोक लग गई है, जबकि अन्य छह देशों के शरणार्थियों पर 120 दिनों तक रोक रहेगी। और तो और इन देशों के सामान्य नागरिकों को भी 90 दिनों तक अमेरिकी वीजा नहीं मिलेगा। उनके इस फैसले का अमेरिका समेत दुनिया भर में विरोध हो रहा है।
ट्रंप का यह फैसला निहायत हैरतअंगेज है। साथ ही हास्यास्पद और आत्मघाती भी। कारण यह कि जिस अमेरिका के तथाकथित हित के लिए उन्होंने यह विवादास्पद कदम उठाया है, वो अमेरिका आज महाशक्ति न कहलाता अगर वहां प्रवासी न होते। आपको आश्चर्य होगा कि अमेरिका की जो हस्तियां आज वहां की पहचान बन चुके हैं, उनमें से अधिकतर प्रवासी ही हैं। ऐसी हस्तियों की फेहरिस्त खासी लंबी है। फिलहाल यहां चर्चा कुछ चुनिंदा लोगों की।
शुरुआत करते हैं ऐपल के स्टीव जॉब्स से। स्टीव जॉब्स मूलत: सीरिया के रहने वाले मुसलमान अब्दुल फतह जंदाली और जर्मन प्रवासी महिला कैरोले शिबेल की संतान थे। यही नहीं, ऐपल की स्थापना में एक और स्टीव – स्टीव वोज्नियाक – का योगदान था और वे भी जॉब्स की तरह यूक्रेनी प्रवासी के बेटे थे। इसी तरह दिग्गज अमेरिकी कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी कंपनी ओरेकल के सह-संस्थापक लैरी इलिससन इटली के एक प्रवासी के जैविक बेटे थे। उन्हें अविवाहित यहूदी महिला ने जन्म दिया था।
अब बात करते हैं गूगल की। रूस में जन्मे सेरगे ब्रिन ने लैरी पेज के साथ मिलकर दुनिया के इस सबसे बड़े सर्च इंजन की स्थापना की थी। वे फिलहाल गूगल की पैरंट कंपनी अल्फाबेट के प्रेसिडेंट हैं। और जनाब, गूगल के मौजूदा सीईओ सुंदर पिचाई को तो आप जान ही रहे होंगे। भारतीय मूल के पिचाई ने आईआईटी खड़गपुर से बीटेक किया था और 2015 में वे गूगल के सीईओ बने थे।
अगर आप सोच रहे हैं कि ये सूची खत्म हो गई है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। अभी तो कई महारथी बाकी हैं। अब अमेरिका की दिग्गज ऑटोमेकर और एनर्जी स्टोरेज कंपनी टेस्ला के फाउंडर एलन मस्क को ही लीजिए। मस्क दक्षिण अफ्रीका में जन्मे थे और कनाडा से अमेरिका प्रवासी के तौर पर आए थे। इसी तरह विश्वप्रसिद्ध ई-कॉमर्स और ऑक्शन साइट ई-बे के संस्थापक पियरे ओमिड्यार मूलत: ईरान के थे और यू-ट्यूब के सह-संस्थापक स्टीव चेन का जन्म ताइवान में हुआ था। फेसबुक के सह-संस्थापकों में एक एडुअर्डो सेवरिन भी ब्राजीली प्रवासी हैं।
थोड़ा पीछे चलकर देखें तो बैंक ऑफ अमेरिका के संस्थापक एमेडियो गियान्निनी के माता-पिता इटली के प्रवासी नागरिक थे। इसी तरह दुनिया की दिग्गज विमानन कंपनियों में से एक बोइंग एयरोस्पेस की स्थापना करने वाले विलियम बोइंग ऑस्ट्रिया और जर्मनी से आए प्रवासियों की संतान थे। दुनिया की दिग्गज कंप्यूटिंग कंपनियों में एक इंटल के संस्थापक एंड्रयू ग्रो, जिनका पिछले साल देहांत हुआ, हंगरी से आकर अमेरिका में बसे थे।
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि प्रवासियों पर रोक लगाने का फैसला सुनाने वाले ट्रंप स्वयं स्कॉटिश महिला और जर्मन मूल के पिता की संतान हैं। उऩके ग्रैंडपैरेंट्स जर्मनी के कालस्टैड शहर से अमेरिका गए थे। यही नहीं, बराक ओबामा – ट्रंप से ठीक पहले लगातार आठ वर्षों तक व्हाइट हाउस जिनका पता रहा था – के पिता भी केन्याई मूल के मुस्लिम थे, जबकि उनकी मां अमेरिकी ईसाई थीं।
अब आप ही बतायें, क्या इन प्रवासियों के बिना अमेरिका की कल्पना भी की जा सकती है? कहने की जरूरत नहीं कि ट्रंप ने अगर समय रहते अपनी भूल नहीं सुधारी तो अमेरिका की पहचान ही संकट में पड़ जाएगी।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप