कटक के बाराबती स्टेडियम में भारत ने इंग्लैंड को तीन मैचों के वनडे सीरीज के दूसरे मैच में 15 रन से हराकर सीरीज अपने नाम कर लिया। इस बेहद खास जीत में सबसे अहम भूमिका निभाई वनडे टीम में तीन साल बाद वापसी कर रहे युवराज सिंह ने। मात्र 25 रन पर तीन विकेट खोकर दबाव में थी टीम इंडिया, तब युवराज ने पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह घोनी के साथ 256 रनों की यादगार साझेदारी की और कभी हार न मानने वाले अपने जज्बे से एक बार फिर करोड़ों दिलों को जीत लिया। बड़ी बात यह कि इस जांबाज खिलाड़ी ने अपने जुझारूपन से जिस तरह टीम इंडिया के हाथों से फिसलते कई मैचों को उसकी झोली में डाला है वैसे ही अपनी ज़िन्दगी का जंग भी जीता है, कैंसर जैसी बीमारी से लड़कर और जीत हासिल कर।
गुरुवार को खेले गए इस मैच में अपने वनडे करियर का 14वां शतक पूरा कर मैदान पर भावुक हो गए थे युवराज। उन्होंने भरी हुई आँखों से आसमान को देखा और भगवान का शुक्रिया अदा किया। इसके बाद बल्ला उठाकर दर्शकों और पैवेलियन में बैठे साथी खिलाड़ियों का अभिवादन किया। कहने की जरूरत नहीं कि उनके सम्मान में पूरी टीम खड़ी थी उस वक्त। यह सेंचुरी इसलिए भी खास थी कि उन्होंने 6 साल बाद यह शतक लगाया था। पर वे इतने पर नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने इस पारी को अपने वनडे करियर के सबसे बड़े स्कोर में बदला और 150 रन कूट डाले, जिसमें 21 चौके और 3 छक्के शामिल थे।
याद दिला दें कि युवराज ने इससे पहले 2011 वर्ल्ड कप में सेंचुरी लगाई थी और इसके बाद वे कैंसर के शिकार हो गए। कैंसर से लड़ने के बाद मैदान पर वापसी कतई आसान नहीं थी। इलाज के बाद कमजोर हो चुके शरीर में वह स्टेमिना नहीं रह गई थी, जिसके लिए युवराज जाने जाते थे। पर उन्होंने हार नहीं मानी और न केवल टीम में वापसी की, बल्कि बता दिया कि उनमें काफी क्रिकेट बाकी है अभी और साथ ही बाकी है उनके ‘सर्वश्रेष्ठ’ का आना।
मैच के बाद भी लगातार भावुक दिखे युवराज। उन्होंने कहा भी कि वे जिस लड़ाई को लड़कर आए हैं, उसके बारे में सिर्फ उन्हें ही पता है। अपने उस दर्द को आज भी नहीं भूले युवराज। सच तो यह है कि इस दर्द ने उन्हें जीने का एक नया मकसद दे दिया है। आपको हैरत होगी कि अपनी तूफानी पारी के बाद जश्न मनाने के बदले उन्होंने कटक के ही एक होटल में कैंसर और ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के साथ समय बिताया, उनका दर्द बांटा और अपनी खुशी साझा की। इससे पहले भी क्रिसमस के मौके पर उन्होंने मुंबई के परेल में सेंट जूड इंडिया चाइल्ड केयर सेंटर में कैंसर पीड़ित बच्चों के साथ समय बिताया था।
क्रिकेट के इस योद्धा ने अपने दर्द से जीने का नया मकसद पा लिया है। इसे जब और जिस तरह मौका मिलता है, कैंसर से लड़ने वालों को जीने का हौसला देना नहीं भूलता। औरों के दर्द को कम करना ही अब ‘जश्न’ है भारतीय क्रिकेट के ‘युवराज’ का। क्या हम सब अपने-अपने दर्द को कुछ ऐसा ही मकसद नहीं दे सकते? क्या हम भी ‘युवराज’ नहीं बन सकते?
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप