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ये दुर्घटना नहीं, 25 लोगों की ‘हत्या’ है मेरी सरकार!

Patna Boat Tragedy

अभी-अभी सम्पन्न हुए ऐतिहासिक प्रकाशोत्सव के दौरान अपनी तैयारी और मुस्तैदी से देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने वाली बिहार सरकार ने मकर संक्रान्ति की जैसी अनदेखी की, वह हैरान कर देने वाली है। प्रकाशोत्सव के दौरान देश और दुनिया के अलग-अलग कोनों से लगभग 8 लाख लोग पटना आए, पर क्या मजाल कि किसी को कोई चोट तक लगी हो। लेकिन 14 जनवरी को राजधानी पटना से लगे गंगा दियारा में पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित पतंग-उत्सव में महज कुछ हजार लोग जुटे और 25 लोग अपनी जान गंवा बैठे और कई लापता हैं! इस हादसे का वायरल हो चुका वीडियो देखें, प्रशासन का कोई आदमी आसपास भी नहीं दिखेगा आपको। क्या हमारा प्रशासन अब तक प्रकाश-पर्व की थकान मिटाने में लगा है और हमारी सरकार उस आयोजन के लिए मिली प्रशंसा के जश्न में खोई है?

जी हाँ, प्रशासनिक लापरवाही इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह है। गौरतलब है कि प्रकाश-पर्व से जुड़ी तमाम तैयारियों की निगरानी मुख्य सचिव और डीजीपी स्तर के अधिकारियों के अलावा खुद मुख्यमंत्री कर रहे थे, जबकि मकर संक्रान्ति के लिए उसकी चौथाई तत्परता भी न थी। आखिर मकर संक्रान्ति के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? क्या सरकार का समूचा तंत्र इस दिन मुख्यमंत्री द्वारा आयोजित चूड़ा-दही भोज में व्यस्त था? अगर नहीं, तो प्रकाशोत्सव पर इतनी चुस्ती और पतंगोत्सव पर ऐसी चूक क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो अंतर्राष्ट्रीय आयोजन था और उसमें शामिल होने वाले लोग उसका प्रचार दूर-दूर तक करते, जबकि पतंगोत्सव में शामिल होनेवाले अधिकांश लोग राजधानी पटना और आसपास के थे? ये चिराग तले अंधेरा नहीं तो और क्या है?

बता दें कि आयोजन-स्थल के पास ही बना डॉल्फिन आइलैंड अम्यूजमेंट पार्क इस हादसे की दूसरी बड़ी वजह है। जिस जगह इस पतंगबाजी का आयोजन किया गया था उससे थोड़ी ही दूरी पर ये अम्यूजमेंट पार्क भी है, जहाँ लोग काफी संख्या में जुटे थे। स्थानीय लोगों के मुताबिक जो नाव डूबी, उस पर सवार लोगों में बड़ी संख्या इसी पार्क में घूमने आए लोगों की थी। जबकि आप आश्चर्य करेंगे कि इस अम्यूजमेंट का निर्माण ही अवैध है। इसे बिना किसी सरकारी या प्रशासनिक मंजूरी के ही बनाया गया है।

इस दर्दनाक घटना की तीसरी वजह थी नाव पर क्षमता से अधिक लोगों की मौजूदगी। इस नाव पर 50 से ज्यादा लोग मौजूद थे, जबकि होने चाहिएं थे आधे से भी कम। स्थानीय लोग बताते हैं कि शाम होने पर सब वापस लौटने की जल्दी में थे, पर प्रश्न उठता है कि उन्हें रोकने-टोकने और भीड़ को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी जिनके ऊपर थी, वो कहाँ थे? पर्याप्त संख्या में नाव और स्टीमर क्यों नहीं थे? और ऐसी आपातस्थिति से निबटने के लिए पर्याप्त गोताखोर क्यों नहीं थे?

बहरहाल, अनहोनी तो हो गई। पर क्या इसे दुर्घटना कहेंगे? क्या सरकार और प्रशासन की लापरवाही के कारण, अनजाने में ही हुई, ‘हत्या’ नहीं है ये? राज्य और केन्द्र सरकार अब मृतकों पर मुआवजों की बारिश करेगी। पर इससे होगा क्या? जिन लोगों ने अपनी जानें गंवाईं उनके घरों की ‘मकर संक्रान्ति’ क्या फिर लौटेगी कभी?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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