कल्पना कीजिए कि आज से 129 साल पहले ज्योतिष में विश्वास रखने वाली भारत की एक धर्मपरायण माँ जिसे उसके बेटे के बारे में कहा जाय कि उसकी जन्मपत्री में दो बाते हैं – पहली, वह एक दिन दुनिया भर में नाम कमाएगा लेकिन उसकी उम्र कम होगी या दूसरी, वह अपना पूरा जीवन जियेगा लेकिन एक साधारण व्यक्ति की तरह और वह माँ बिना किसी दुविधा के पहले विकल्प को चुने, वह कितनी असाधारण होगी! और जब माँ ऐसी हो तो आश्चर्य नहीं कि उसकी संतान रामानुजन हो। जी हाँ, मात्र 33 वर्ष की अल्पायु पाने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन, आज के कम्प्यूटर युग में भी जिनकी असाधारण प्रतिभा के आगे पूरी दुनिया सिर झुकाती है।
आपको आश्चर्य होगा कि तमिलनाडु के कोयंबटूर में 22 दिसंबर 1887 को जन्मे रामानुजन की गणित के प्रति ऐसी दीवानगी थी कि बाकी विषयों में वे फेल हो गए और उच्च शिक्षा से वंचित रह गए। इस तरह उन्होंने गणित खुद से सीखा और जीवन भर में गणित के 3384 प्रमेयों का संकलन किया, जिनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किए जा चुके हैं। रामानुजन बचपन से ही जिज्ञासु थे और उनकी जिज्ञासा आम बच्चों से बिल्कुल हटकर थी। संसार का पहला इनसान कौन था, आकाश और पृथ्वी के बीच की दूरी कितनी है, समुद्र कितना गहरा और बड़ा होता है जैसे प्रश्न बालक रामानुजन को परेशान करते और ऐसे प्रश्नों को पूछ-पूछ कर वे अपने शिक्षक की नाक में दम करते।
एक बार की बात है, इनके शिक्षक कक्षा में गणित पढ़ाने के क्रम में बता रहे थे कि अगर किसी संख्या को उसी संख्या से भाग दें तो उसका उत्तर 1 (एक) आएगा। ये सुनकर सभी छात्र संतुष्ट हो गए सिवाय रामानुजन के। उन्होंने तपाक से पूछा कि अगर शून्य को भी शून्य से भाग दें तो क्या उत्तर एक ही आएगा? ये सुनकर उनके शिक्षक का दिमाग चकरा गया। रामानुजन के इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था। होता भी कैसे? घोर जिज्ञासु रामानुजन का ये सवाल उनकी उम्र से बहुत आगे का था।
26 अप्रैल 1920 को तपेदिक की बीमारी से इस विलक्षण प्रतिभाशाली गणितज्ञ का निधन हो गया। उनको गए सौ साल होने को आए लेकिन गणित के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कई कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। 33 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गणित को जितना साध लिया था उतने के लिए सदियां भी कम हैं। उनके सम्मान में 2012 से हर वर्ष आज के दिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। आर्यभट्ट की परंपरा को आगे बढ़ाकर भारत का गौरव बढ़ाने वाले इस गणितज्ञ को उनकी जयंती पर ‘मधेपुरा अबतक’ का नमन।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप