तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और वहाँ की सबसे लोकप्रिय नेता जे जयललिता का सोमवार रात 11.30 बजे निधन हो गया। रविवार को उनकी हृदयगति रुक जाने के बाद से विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक बड़ी टीम उनके इलाज में जुटी हुई थी, लेकिन हर संभव कोशिश और लाखों लोगों की दुआओं के बावजूद उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। बता दें कि जयललिता बुखार और डिहाइड्रेशन की शिकायत के बाद 22 सितंबर से ही चेन्नई स्थित अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं।
तमिलनाडु की राजनीति में ‘अम्मा’ के नाम से मशहूर जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को एक रूढ़िवादी तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता को शुरुआती लोकप्रियता एक नेता के तौर पर नहीं बल्कि अभिनेत्री के तौर पर मिली थी। दक्षिण भारतीय सिनेमा की अत्यन्त सफल अभिनेत्रियों में शुमार जयललिता का राजनीतिक करियर 1982 में शुरू हुआ। सिनेमा से लेकर राजनीति तक में लोकप्रियता का नया मापदंड रचने वाले और एआईएडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन इस खूबसूरत अभिनेत्री को राज्य की राजनीति में लेकर आए थे।
1987 में एमजीआर की मृत्यु ने तमिलनाडु की राजनीति के साथ-साथ एआईएडीएमके की राजनीति में भी भूचाल ला दिया। पार्टी जयललिता और एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन के बीच दो हिस्सों में टूट गई। वर्चस्व की लंबी लड़ाई और एआईएडीएमके में कई उतार-चढ़ाव के बाद जयललिता एमजीआर की राजनीतिक वारिस और तमिलनाडु की कद्दावर नेता बनकर उभरीं और 1991 में पहली बार कांग्रेस की मदद से राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2016 के विधानसभा चुनाव में सारे अनुमानों को धता बताते हुए उन्होंने तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन की परिपाटी को भी ध्वस्त कर दिया। इस जीत के बाद वो छठी बार राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं।
जयललिता के निधन के बाद हमारे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गलत नहीं कहा कि ‘नेशन हैज लॉस्ट एन आइकन’। सच तो यह है कि जयललिता एक नहीं, कई लिहाज से आइकन थीं। पहले तो बहुत छोटी उम्र में वो सिनेमा की आइकन बनीं। वो भी ऐसी कि दक्षिण के सिनेमा का सबसे बड़ा नाम एमजीआर भी उनके बिना अधूरा है। एमजीआर ने एक नहीं, दो नहीं, पूरी अट्ठाइस फिल्में जयललिता के साथ कीं। और जब वही जयललिता राजनीति में आईं तब तमाम अवरोधों और विरोधों के बावजूद वो राजनीति की आइकन बनीं। वो भी ऐसी कि एमजीआर की मृत्यु से लेकर अपनी मृत्यु तक तमिलनाडु की राजनीति की धुरी रहीं। सिनेमा और राजनीति की आइकन होने के साथ-साथ वो तमिलनाडु की महिलाओं की आइकन भी थीं। वो भी ऐसी कि वहाँ की महिलाएं उन्हें भगवान मानती थीं और हजारों की संख्या में ऐसे पुरुष भी मिलेंगे आपको जो विमान से उनके उड़ जाने तक पूरी श्रद्धा से दंडवत किए रहते थे।
अपने समर्थकों के लिए जयललिता एक ऐसी महिला थीं, जिन्हें उनके विरोधियों ने खूब परेशान किया। खासकर विरोधी दल डीएमके के नेता करुणानिधि ने। जयललिता के लिए उनके समर्थकों की चाहत हर तर्क से परे थी और उसी अनुपात में ‘अम्मा’ उन पर लुभावनी योजनाओं की बौछार करती थीं। मिक्सी, ग्राइंडर, सिलाई मशीन, बकरी, बच्चों के लिए साइकिल, लैपटॉप जैसी चीजें उनके लिए आसानी से उपलब्ध थीं, उन्हें राशन की दुकानों से बीस किलो चावल के बैग मुफ्त मिलते थे और ‘अम्मा कैंटीन’ से वे रियायती दर पर मन भर खाना खा सकते थे।
देखा जाय तो जयललिता एक साधारण महिला ही थीं, लेकिन उनकी ज़िन्दगी असाधारण बन गई। उनके करिश्मे और पार्टी की उन पर निर्भरता ने एक ऐसा रिश्ता बना दिया जिसे बाहरी लोगों के लिए समझना मुश्किल है। बड़े-से-बड़े निर्णय वे बिना देर किए लेती थीं और अपने निकटतम लोगों से भी एक निश्चित दूरी बना कर रखती थीं। उनका आभामंडल कुछ ऐसा था कि शासन के दौरान सत्ता के गलियारों में डर का माहौल रहता था। मंत्री और उच्चाधिकारी चुप्पी साधे रहते थे। उनकी मर्जी के बिना कोई शब्द भी बोलने का साहस नहीं कर सकता था।
जयललिता का नाता कर्नाटक से था, उन्होंने एक ब्राह्ण परिवार में जन्म लिया और वो एक अभिनेत्री रह चुकी थीं। यानि उनके साथ तमाम ऐसी चीजें थीं जो उन्हें कामयाब होने से रोक सकती थीं, लेकिन वो एक द्रविड़ पार्टी की प्रमुख बनीं, जिसकी नींव ब्राह्मणों के विरोध के लिए पड़ी थी और वो अपने मेंटर एमजीआर की जगह लेने में कामयाब रहीं जिन्हें ‘देवतुल्य’ माना जाता था।
जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोपों में कई अदालती मामले थे। आय से अधिक सम्पत्ति मामले में उन्हें कुछ देर के लिए ही सही, जेल भी जाना पड़ा। लेकिन वो अपनी पार्टी और राज्य के लिए किंवदंती थीं, इसमें कोई दो राय नहीं।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप