स्कूली बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा चलाई गयी मध्यान भोजन योजना आजकल बच्चों की जान का दुश्मन बनता जा रहा है | यह वाकया किसी क्षेत्र विशेष या किसी खास स्कूल के मध्यान भोजन की नहीं | आये दिन बच्चों की थालियों में मरे हुए कीड़े-मकोड़े या चूहे अथवा मृत चिपकल्लियाँ तक बराबर पाए जाते हैं | बच्चे वही खाना खाते हैं और बीमार पड़ते हैं | कुछ मृत्यु को गले भी लगा लेते हैं – तब शुरु होता है हंगामा, रोडजाम ! और मौका पाकर रसोइये हो जाते हैं फरार | ऐसी ही घटना कल जिला मुख्यालय मधेपुरा के कन्या मध्य विद्यालय में घटी | छात्राओं की थालियों में मरे हुए कीड़े मिले और जोरदार हंगामा हुआ | रसोइये गायब हुए |
और उस घटना के बाद होता क्या है ? रसोइया बोलता है कि जैसा सामान सप्लाई होगा वैसा ही तो खाना मिलेगा | प्रधानाध्यापिका बोलती है कि कुछ छात्राओं की माँ का इस रसोइये से मतभेद होने के कारण ही हंगामा करा दिया गया है | पूछताछ करने पर शिक्षा विभाग के जिला शिक्षा पदाधिकारी कहते हैं कि किसी ने तो लिखित शिकायत नहीं की है जिसपर दोषी के विर्रुध जांच के निमित्त कमिटी गठित की जा सके |
बच्चे तो देश का भविष्य हैं | फिर ऐसा क्यों नहीं होता की महामहिम राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की तरह स्कूली बच्चों के मध्याह्न भोजन को भी या तो स्थानीय सरकारी डॉक्टर जाँच करे या फिर रसोइया , अध्यापक-प्रधानाध्यापक और शिक्षा विभाग के एक पदाधिकारी प्रतिदिन देश के भविष्य के निर्माता इन बच्चों के साथ बैठ कर भोजन करें – तो कदाचित् वर्तमान स्थिति में कुछ सुधार हो जा सकती है |