आम मध्यवर्गीय परिवार से आने वाली टेरीज़ा मे, जो पहले टेरीजा ब्रेजियर थीं, जिनकी पढ़ाई सरकारी प्राथमिक स्कूल से शुरू हुई थी, जो गांव में रहती थीं, मूक नाटकों में हिस्सा लेती थीं और जेबखर्च के लिए शनिवार को बेकरी में काम करती थीं, की दिनचर्या भले ही छोटे-छोटे कामों से पूरी होती हो लेकिन उनके सपने हमेशा बड़े रहे। उनके दोस्त बताते हैं कि शुरुआत से ही वो काफी फैशनेबल थीं और कम उम्र में ही ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा करती थीं। आज, मारग्रेट थैचर के बाद ही सही, उस ‘महत्वाकांक्षी’ लड़की ने अपना सपना पूरा कर ही लिया।
महारानी एलिजाबेथ ने टेरीज़ा मे को मुश्किल दौर से गुजर रहे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। 59 साल की टेरीज़ा मे मारग्रेट थैचर के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं। टेरीज़ा डेविड कैमरन सरकार में गृहमंत्री थीं। गौरतलब है कि यूरोपीय संघ के मुद्दे पर हुए जनमत संग्रह के बाद डेविड कैमरन को इस्तीफा देना पड़ा था। कैमरन ने पिछले साल हुए चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को चुनावी जीत दिलाई थी। लेकिन उम्मीद के विपरीत ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहने के सवाल पर हुए जनमत संग्रह में उनका साथ नहीं दिया था।
बहरहाल, अपने स्टाइल स्टेटमेंट और स्पष्ट नीतियों के कारण अलग पहचान रखने वाली टेरीज़ा 1997 से लगातार ब्रिटिश संसद की सदस्य हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाली टेरीज़ा के पिता चर्च में पादरी थे। जब टेरीज़ा 25 साल की थीं, उनके पिता की कार दुर्घटना में मौत हो गई।
टेरीज़ा के पॉलिटिकल करियर में सबसे अहम मोड़ 2009 में आया जब वो गृह मंत्री बनीं। ब्रिटेन का गृह मंत्रालय कई राजनेताओं के लिए ‘कब्रगाह’ रहा है लेकिन दृढ़ संकल्प की धनी टेरीज़ा ने इस धारणा को गलत साबित किया। उनकी नीतियां जितनी साफ रही हैं उनके पालन के लिए वो उतनी ही सख्त हैं, बहुत हद तक मारग्रेट थैचर की तरह। ब्रिटिश राजनीति के जानकार उन्हें एक ‘कठिन’ महिला मानते हैं।
ब्रेक्जिट की बात करें तो टेरीज़ा इस पर हुए फैसले के साथ हैं और इस मुद्दे पर दूसरा जनमत संग्रह नहीं कराना चाहतीं। हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा है कि यूरोपीय संघ को छोड़ने के मसले पर आधिकारिक फैसला 2016 के समाप्त होने से पहले संभव नहीं होगा।
ये देखना दिलचस्प होगा कि टेरीज़ा मे का भारत के प्रति क्या रुख रहता है। उनके पूर्ववर्ती कैमरन भारत के साथ बेहतर संबंधों के हिमायती थे। उम्मीद की जा रही है कि टेरीज़ा उसी रास्ते को अपनाएंगी। हालांकि ये टेरीज़ा ही थीं जिन्होंने अप्रैल 2012 में पोस्ट स्टडी वर्क वीजा समाप्त कर दिया था, जिसका भारतीय छात्रों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप