आज जबकि भ्रष्टाचार, अपराध, हिंसा और राजनीति की उठापटक से जुड़ी ख़बरों से ही मीडिया को फुरसत ना मिलती हो और अच्छी ख़बरों के लिए कान तरस जाते हों, ऐसे में कोई सकारात्मक और प्रगतिमूलक ख़बर सुनने को मिले तो कहना ही क्या..! जी हाँ, ऐसी ही एक ख़बर है देश में बाल विवाह के आँकड़ों में कमी आना। हमारे समाज में व्याप्त यह कुरीति विभिन्न धार्मिक समुदायों और यहाँ तक कि अल्प शिक्षित वर्गों में भी तेजी से समाप्त हो रही है। बता दें कि कल जारी की गई 2011 की जनगणना के मुताबिक बीते 10 सालों में बाल विवाह में 14 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 18 साल से पहले ब्याह दी जाने वाली लड़कियों का आँकड़ा 2001 में 44 प्रतिशत था जो 2011 में घटकर 30 प्रतिशत रह गया।
बाल विवाह के मामले में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की स्थिति कमोबेश एक जैसी है। दोनों समुदायों में 31 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है। एक दशक पहले यह आँकड़ा 43 से 45 प्रतिशत था। सिख और ईसाई समुदायों की बात करें तो इनमे बाल विवाह की दर मात्र 11-12 प्रतिशत है, जबकि जैन समाज में 16 प्रतिशत लड़कियों की शादी व्यस्क होने से पहले कर दी जाती है। बौद्धों में यह आँकड़ा 28 प्रतिशत है और पारसी समेत अन्य धार्मिक समूहों में 24 प्रतिशत।
समाज में आए इस बदलाव की बड़ी वजह विभिन्न समुदायों का मिलकर रहना और उनमें आधुनिक शिक्षा का प्रसार है। आँकड़ों के मुताबिक जिन लड़कियों को पढ़ाई का अवसर मिला, उनकी शादी भी अमूमन देर से हुई। दूसरी ओर अशिक्षित लड़कियों में से करीब 38 प्रतिशत की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई। हालांकि 2001 में यह आँकड़ा 51 प्रतिशत का था। वहीं, ग्रैजुएट या उससे ऊपर की पढ़ाई करने वाली लड़कियों में से महज 5 प्रतिशत की शादी ही 18 साल की उम्र से पहले हुई।
जनगणना के ताजा आँकड़ों से पता चलता है कि शादी, बच्चे और ऐसे तमाम मसलों पर विभिन्न धार्मिक समुदायों की सोच कमोबेश एक जैसी है। शादी की औसत उम्र में बढ़ोतरी, दो बच्चों के पैदा होने के बीच अंतर आदि मसलों पर एक जैसा रुझान देखा जा सकता है। पर यहाँ इस बात का उल्लेख भी जरूरी है कि बाल विवाह की कुरीति भले ही कम हो रही हो लेकिन दहेज प्रथा, बेटे की चाह और कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयां अभी भी हमारे समाज में पहले की तरह व्याप्त हैं। काश कि हम आपको इनके आँकड़ो में कमी की ख़बर भी दे पाते..!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप