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पत्रकारों की हत्या लोकतंत्र की हत्या है

Media Persons of Madhepura.

अच्छी सड़कें एवं अच्छी बिजली की व्यवस्था, परन्तु खराब हो रहे लॉ एंड आर्डर से बिहार की छवि कलंकित होने लगी है जबकि बिहार के हर कोने से प्रतिवर्ष आई.ए.एस. व आई.पी.एस. निकलने लगे हैं- यहाँ तक कि टॉप टेन में भी दो स्थान पाने लगे हैं | अर्द्धशतक बना बनाकर अब शतक बनाने की कोशिश में कदम बढ़ाने लगे हैं |

‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जार्नलिस्ट’ के शोधानुसार भारत में 1992 से अबतक लगभग 100 पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं | सवाल यह नहीं कि कितने मामलों में इन्साफ मिला और कितने अपराधियों को माफ़ी मिल गई ! सवाल यह है कि वैसे सैकड़ों आहत परिवार की तरह और कबतक इस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की हत्याएं होती रहेंगी | सीवान में हिन्दुस्तान के ब्यूरोचीफ राजदेव रंजन और झारखंड के पत्रकार इन्द्रदेव यादव के बच्चों के सपने कब तक भूलुंठित होते रहेंगे ! कब तक विदेशों में भी ऐसी मर्माहत करने वाली हत्याओं की भर्त्सनाएँ की जाती रहेंगी ! तथा देश के कोने-कोने में पत्रकारों द्वारा काले बिल्ले लगा-लगाकर धरना दिये जाते रहेंगे ?

वरिष्ठ पत्रकार धर्मेन्द्र भारद्वाज की अध्यक्षता में जिले के प्रतिष्ठित पत्रकार अमिताभ एवं रुपेश कुमार सहित प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के सभी पत्रकारों ने राजदेव एवं इन्द्रदेव की दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए सम्मिलित रूप से दो मिनट का मौन रखा | श्रधांजलि सभा में पत्रकारों द्वारा सुरक्षा की मांग के साथ-साथ इन दोनों पत्रकारों को राजकीय शहीद का दर्जा देते हुए उसके तहत मिलने वाली सुविधाएँ उनके परिजनों को मुहैया कराने की मांग भी की गई |

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