केन्द्र के किसी भी विभाग का विज्ञापन हो और उसमें विभागीय मंत्री के साथ प्रधानमंत्री की तस्वीर ना हो। या फिर किसी भी राज्य का विभागीय विज्ञापन हो और उसमें मुख्यमंत्री मौजूद ना हों ऐसा अमूमन नहीं होता। परम्परा के साथ-साथ शिष्टाचार का तकाजा भी यही है कि ऐसे विज्ञापनों में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की मौजूदगी हो। सच यही है कि काम चाहे किसी भी विभाग का क्यों ना हो उस विभाग के मंत्री प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर वो काम कर रहे होते हैं। ऐसे में ये मर्यादा से कहीं आगे लगभग बाध्यता है या होनी चाहिए कि उस विभाग के विज्ञापन या प्रचार-प्रसार में सरकार के मुखिया की तस्वीर हो। पर बिहार में ऐसा नहीं हो रहा।
जी हाँ, बिहार में एक सड़क परियोजना के लोकार्पण से संबंधित सरकारी विज्ञापन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर ही गायब है। सरैया-मोतीपुर सड़क परियोजना के लोकार्पण से संबंधित पूरे पेज वाले इस विज्ञापन में तेजस्वी की बड़ी तस्वीर छपी है जबकि नीतीश इससे नदारद है। बता दें कि इस विभाग के मंत्री लालू के सुपुत्र और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हैं।
बहरहाल, तेजस्वी के इस विज्ञापन ने विपक्ष को महागठबंधन सरकार पर तंज कसने का एक बड़ा मौका दे दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व में इसी विभाग के मंत्री रहे नंद किशोर यादव बिना देर किए पूछ बैठे कि क्या सरकार ने नई विज्ञापन नीति अपना ली है? उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को वस्तुस्थिति स्पष्ट करना चाहिए।
बहरहाल, राजनीति से अलग हटकर बात करें तो भी जो हुआ उसे हजम करना मुश्किल है। ये ऐसी भूल है जो किसी भी सूरत में नहीं होनी चाहिए थी। बात विभागीय या सरकारी मर्यादा की हो, पद और अनुभव की वरिष्ठता की हो या फिर गठबंधन धर्म की तेजस्वी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। और चाहे जिस भी कारण से ऐसा हुआ हो अनुभवी लालू को स्वयं पहल कर तेजस्वी से भूल-सुधार करने को कहना चाहिए। देखा जाय तो लालू ना केवल तेजस्वी बल्कि वर्तमान सरकार के भी ‘अभिवावक’ हैं। उन्हें ये समझना और समझाना ही होगा कि बिहार और सरकार की स्थिरता के लिए ‘महत्वाकांक्षा’ के असमय, अभद्र और अस्वस्थ प्रदर्शन पर रोक लगाना जरूरी है।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप