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मधेपुरा और भारतीय रेल यानि एक और ‘कोसी’ की गाथा

Madhepura Station

वर्ष 2008 का अगस्त माह। कुसहा बाँध टूटने से बाढ़ की त्रासदी ने ऐसी धूम मचाई कि कोसी अंचल के जल-प्रलय को तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया। चारों ओर सड़कें टूटीं, बड़े-बड़े पुल बह गए एवं रेल की पटरियाँ ध्वस्त हो गईं। हाल तक मधेपुरा से रेल द्वारा यात्रा करना सपना बना रहा, जबकि यहाँ पर दो दिग्गज सांसद हैं – एक शरद यादव और दूसरे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और जनता बापू के बन्दर जैसे मुख बन्द किए बैठी है।

हाल में एक ट्रेन चलने लगी है – कोसी एक्सप्रेस। मुरलीगंज से मधेपुरा पहुँचती है सुबह के साढ़े तीन बजे। अब इसे सुबह कहा जाय कि रात, कहना मुश्किल है। बहरहाल, इस ट्रेन में ए.सी. का एक ही डब्बा होता है। मधेपुरा के लोग अपने परिवार के साथ उस ट्रेन से यात्रा करने हेतु कन्फर्म टिकट तो ले लेते हैं परन्तु स्टेशन पर गाड़ी उतनी देर (दो मिनट) भी नहीं ठहरती कि यात्री सपरिवार डब्बे में चढ़ सके। एक ही परिवार के कुछ लोग चढ़ जाते हैं और कुछ देखते हुए रह जाते हैं। कारण यह भी कि ट्रेन बड़ी लाईन वाली और प्लेटफॉर्म छोटी लाईन वाला। ट्रेन और प्लेटफॉर्म में अंतर इतना कि चढाई एवरेस्ट पर चढ़ने जैसी और उस पर तुर्रा यह कि रेल कर्मचारी एक-डेढ़ मिनट लगा देते हैं ए.सी. डब्बे के दोनों गेट खोलने में। तब तक ए.सी. के अधिकांश पैसेंजर को छोड़ गाड़ी सहरसा के लिए खुल जाती है। ऐसे में कुछ लोग तो किसी तरह अगल-बगल के नॉन ए.सी. डब्बे में चढ़ जाते हैं पर चढ़ने में असफल साबित हुए लोगों के सामने अब चुनौती होती है ट्रेन को सहरसा जाकर पकड़ने की।

खैर, कुछ लोग निजी मोटर गाड़ी से तो कुछ भाड़े के टैम्पू से सहरसा पहुँचकर उसी कोसी एक्सप्रेस पर सवार होते हैं परन्तु यहाँ पर उन्हे ट्रेन खुलने का इंतजार करना पड़ता है और वो भी दो-चार मिनट नहीं, लगभग घंटे भर और कई बार उससे भी अधिक। जरा सोचिए, उन यात्रियों को इस परिस्थिति में कैसा लगता होगा जो दौड़ते-हाँफते इस ट्रेन को पकड़ने सहरसा पहुँचे होंगे। कई बार तो सहरसा जाकर कोसी एक्सप्रेस पकड़ने की आपाधापी में यात्री अपनी अंतिम यात्रा पर भी चले गए हैं और सांसद-विधायक उनकी मातमपुर्सी करने और आर्थिक सहयोग देने पहुँचे हैं। पर क्या इन प्रतिनिधियों का कर्तव्य केवल इतना ही है..?

बहरहाल, इस ‘कोसी’ की ‘त्रासदी’ यहीं खत्म नहीं होती। आगे राजेन्द्र नगर टर्मिनल पर इस ट्रेन को दो मिनट से अधिक रुकना मंजूर नहीं लेकिन यहाँ से पटना जंक्शन की ढाई कि.मी. की दूरी ये आधे घंटे में तय करेगी..! तीन मिनट की दूरी ये तीस मिनट में क्यों तय करती है इसका जवाब कौन देगा..? यदि राजेन्द्र नगर में यह ट्रेन पाँच मिनट रुक जाती तो ज्यादातर यात्री यहीं उतर जाते और पटना जंक्शन पर यात्रियों और मोटर गाड़ियों का लोड स्वत: घट जाता। आखिर इसे कौन देखेगा..? क्या यात्रियों के लिए सब कुछ ‘प्रभु’ भरोसे ही छोड़ दिया जाएगा या हमारे जनप्रतिनिधि भी कुछ करेंगे..?

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. मधेपुरी से साभार

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