मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेडीयू के नए अध्यक्ष चुन लिए गए। कल दिल्ली में सम्पन्न हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में स्वयं शरद यादव ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। लगातार तीन कार्यकाल तक पार्टी के अध्यक्ष रहे शरद यादव ने वक्त की ‘नजाकत’ देख चौथी बार अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से मना कर दिया गया था। हालांकि पार्टी के संविधान में संशोधन कर ऐसा हो सकता था लेकिन नीतीश की ताजपोशी की ‘पटकथा’ पहले ही लिखी जा चुकी थी। वैसे अध्यक्ष बनने के पूर्व भी सरकार और संगठन पर ‘निर्णायक’ पकड़ नीतीश की थी लेकिन अब वे दोनों के ‘विधिवत’ सर्वेसर्वा हो गए।
नीतीश के कमान सम्भालते ही जेडीयू के नए युग की शुरुआत हो गई। अध्यक्ष पद छोड़ते हुए बेहद ‘भावुक’ हो रहे शरद के लिए नए ‘उत्साह’ से लबरेज नीतीश ने कहा कि शरद पार्टी के सबसे बड़े ‘मार्गदर्शक’ बने रहेंगे लेकिन नीतीश आज जिस मुकाम पर हैं और आगे जो ‘मुकाम’ पाना चाहते हैं उसे देखते हुए आने वाले दिनों में उनका अपना ‘मार्ग’ और अपना ‘दर्शन’ हो जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। नीतीश अब बिना देर किए राष्ट्रीय लोकदल, झारखंड विकास मोर्चा और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) के जेडीयू में विलय की प्रक्रिया में लगेंगे और यहीं से जेडीयू और शरद के आने वाले कल की झलक भी मिलनी शुरू हो जाएगी।
पाँचवीं बार बिहार की गद्दी सम्भाल रहे नीतीश अब अपनी राजनीति का ‘कैनवास’ बड़ा करना चाहते हैं। वे अच्छी तरह जानते थे कि मोदी और भाजपाविरोधी राजनीति की ‘धुरी’ बनने के लिए उनका अध्यक्ष पद पर काबिज होना जरूरी है। नीतीश उत्तर प्रदेश चुनाव में भी बेवजह दिलचस्पी नहीं ले रहे। वहाँ जिस तरह के समीकरण वे बिठा रहे हैं उसमें थोड़ी सफलता भी उनके लिए बड़ा रास्ता खोल सकती है और वो रास्ता 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के बरक्स खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने का है।
चलते-चलते बता दें कि चुनाव आयोग के निर्देशानुसार नए अध्यक्ष के चयन के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी का फैसला काफी नहीं है, इस पर राष्ट्रीय परिषद का अनुमोदन भी आवश्यक है। 23 अप्रैल को पटना में ये ‘औपचारिकता’ भी पूरी कर ली जाएगी।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप