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महाशिवरात्रि अर्थात् परमात्मा शिव के दिव्य ‘अवतरण’ की रात्रि

आज देश भर में महाशिवरात्रि की धूम है। उत्तर प्रदेश में शिव की नगरी काशी हो या उत्तराखंड में उनकी जटा से निकली गंगा की धरती हरिद्वार, मध्यप्रदेश का उज्जैन हो या गुजरात का सोमनाथ, झारखंड का देवघर हो या बिहार का सिंहेश्वर… भारत के कोने-कोने में स्थित शिवालयों से लेकर पड़ोसी देश नेपाल के विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर तक शिवभक्तों की भीड़ उमड़ रही है। इस बार की महाशिवरात्रि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चार साल के बाद शिव के प्रिय दिन सोमवार को महाशिवरात्रि का त्योहार आया है। इस साल महाशिवरात्रि पर दुर्लभ शिवयोग का संयोग बन रहा है। कहा जाता है कि इस विशेष योग में भक्तों को शिव की आराधना का कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है।

महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानि फरवरी-मार्च के महीने में पड़ने वाला ये त्योहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि माना जाता है कि आज के दिन भगवान शिव का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है।

शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव अपने रुद्र रूप में प्रकट हुए थे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। इसी समय जीवनरूपी चन्द्रमा का मिलन शिवरूपी सूर्य के साथ होता है। अत: महाशिवरात्रि परमात्मा शिव के दिव्य ‘अवतरण’ की रात्रि है। देखा जाय तो यह त्योहार सम्पूर्ण सृष्टि को उनके निराकार से साकार रूप में आने की मंगल सूचना है। महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है।

योग परम्परा में शिव दुनिया के पहले गुरु माने जाते हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी। इस मार्ग पर चलने वाले शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं बल्कि उन्हें आदिगुरु मानकर करते हैं।

एकमात्र शिव हैं जो स्वयं विष पीकर जग को अमृत देते हैं। उनके अलावा कौन है जिसकी पूजा ‘सुर’ ही नहीं ‘असुर’ भी करें। महज बेलपत्र और भांग-धतूरे से प्रसन्न हो जाने वाले शिव ‘सर्वहारा वर्ग’ के एकमात्र देवता हैं। शिवपुराण की ईशानसंहिता में कहा गया है कि आदिदेव शिव महाशिवरात्रि में करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस कथन की व्यावहारिक व्याख्या करें तो हम पाएंगे कि शिव का प्रभाव, उनका आभामंडल सचमुच ऐसा है कि उसमें करोड़ों देव समा जाएं… तभी तो वे देवों के देव हैं… महादेव हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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