नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज 119वीं जयंती है। महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था। ये भारत का दुर्भाग्य है कि अपने इस सपूत को उसने असमय ‘खो’ दिया और ये उस दुर्भाग्य की पराकाष्ठा है कि अब तक उस ‘खोने’ की पुष्टि ना हो सकी। कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइपेई के एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। पर इस तथाकथित ‘मृत्यु’ के कुछ दिनों बाद से ही यह बात जोर पकड़ने लगी कि असल में नेताजी मरे नहीं थे।
तब से लेकर आज तक जितनी चर्चा नेताजी के अवदानों की हुई है उतनी ही उनकी तथाकथित ‘मृत्यु’ से जुड़े रहस्य की भी। कभी विमान हादसे में उनकी मृत्यु की बात होती तो कभी कहा जाता कि नेताजी चीन के रास्ते रूस पहुँचे थे और वहीं उनकी हत्या कर दी गई। बहुत से लोगों का मानना है कि नेताजी भारत लौट आए थे और 1985-86 तक फैजाबाद में गुमनामी बाबा के रूप में रहे। इसी क्रम में कुछ लोगों ने दावा किया कि उन्होंने गांधीजी की शवयात्रा में नेताजी को देखा तो कुछ लोगों ने नेहरूजी की मृत्यु के बाद साधूवेश में नेताजी को उनके दर्शन करते देखने की बात कही। यहाँ तक कि उस अवसर की तस्वीर भी ‘सबूत’ के तौर पर पेश की गई।
नेताजी का व्यक्तित्व देश और काल में समाने वाला नहीं है। भारत समेत दुनिया भर में उनको जानने और मानने वाले लोगों की ये मांग रही है कि उनकी मृत्यु से जुड़े रहस्य को सुलझाने की आधिकारिक और ठोस पहल हो। कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक किया। इसके बाद से केन्द्र सरकार के पास रखी नेताजी से जुड़ी फाइलों को भी सार्वजनिक करने की मांग तेज हो गई थी। इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेताजी के रिश्तेदारों से वादा किया था कि 23 जनवरी को नेताजी की जयंती के अवसर पर उनसे जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया जाएगा।
अपने वादे को निभाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आज नेताजी के कई रिश्तेदारों की मौजूदगी में उनसे जुड़ी सौ गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक कर दिया। इन सभी फाइलों की डिजिटल कॉपी को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा जाएगा। पहली किस्त में सौ फाइलों को सार्वजनिक किया गया है। इसके बाद हर महीने 25-25 फाइलों को सार्वजनिक किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर नेताजी को समर्पित पोर्टल netajipapers.gov.in का भी लोकार्पण किया जिस पर ये सारे दस्तावेज देखे जा सकते हैं।
नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक कर केन्द्र सरकार ने उन्हें सचमुच एक बड़ी श्रद्धांजलि दी है। अब उम्मीद की जा सकती है कि उनकी ‘मृत्यु’ के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उन बिरले लोगों में हैं जो मर कर भी नहीं मरते। उनके जीवन का कोई भी कालखंड क्यों ना उठा लें वो अपने आप में सम्पूर्ण होगा। वैसे ही जैसे हीरे के हजार टुकड़े कर देने पर भी वो हीरा ही कहलाएगा। फिर भी उस ‘इतिहासपुरुष’ के जीवन का अन्तिम अध्याय क्या था और क्यों था ये जानना बेहद जरूरी है क्योंकि ये ना केवल भारत बल्कि उन तमाम देशों के मौजूदा इतिहास के पन्नों में नई खिड़कियां खोल सकता है जिनसे अपने देश की आज़ादी के निमित्त नेताजी संवादरत थे। यही नहीं, अगर आज़ाद भारत का इतिहास नए सिरे से भी लिखना पड़ जाय, तो भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप