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मन के पार, चेतना के द्वार जाने की तैयारी का नाम है योग

21 जून को केवल मधेपुरा ही नहीं बल्कि दिल्ली स्थित रायसीना हिल सहित सम्पूर्ण भारत योगमय वातावरण से आच्छादित हो जाएगा। आजू-बाजू के जिले के भी सभी प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शारीरिक शिक्षक योग सिखाएंगे। विगत कुछ वर्षों से योगगुरू स्वामी रामदेव द्वारा योग को विश्व में अनवरत प्रचारित-प्रसारित करते रहने एवं हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में योग एवं भारतीय संस्कृति को बुलंदी के साथ रखने के फलस्वरूप 21 जून को घोषित अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस को धूम-धाम से मनाए जाने की तैयारी शुरू हो गई है।

इस अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर भारत सरकार के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के निर्देशानुसार कॉलेजों में शिक्षकों, कर्मचारियों सहित छात्र-छात्राओं एवं एन.सी.सी. के जवानों को योग से होनेवाले लाभ की जानकारी दी जाएगी। भूपेन्द्र नारायण मंडल वि.वि., मधेपुरा के एन.एस.एस. समन्वयक डॉ. अब्दुल लतीफ ने कहा कि इस क्षेत्र में योग के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने वि.वि. मुख्यालय में केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा रिसर्च सेंटर खोलने का फैसला किया है।

जहाँ एक ओर महाविद्यालयों में पूर्वाभ्यास कार्यक्रमों के लिए प्रो. नन्दकिशोर एवं महिला प्रभारी प्रो. रीता कुमारी ने मधेपुरावासियों का आह्वान करते हुए कहा कि योगाभ्यास के सभी कार्यक्रमों में भाग लेकर अपने जिला को एक जागरुक जिला के तौर पर पेश करें, वहीं दूसरी ओर देश के दूसरे हिस्सों में कुछ स्वार्थी तत्वों ने इसे धर्म से जोड़कर राजनीति करना शुरू कर दिया है। विरोध करनेवालों को यह जानकारी होनी चाहिए कि योग हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई देखकर फायदा या नुकसान नहीं पहुँचाता अपितु यह एक शारीरिक व मानसिक क्रिया है। योग से आन्तरिक शक्ति ही नहीं आत्मप्रकाश में भी वृद्धि होती है। योग से व्याधि और व्यवधान मिटते हैं। अन्तरात्मा को जाग्रत करना ही योग है। मन के पार, चेतना के द्वार जाने की तैयारी का नाम है योग, जो अन्दर की आँखें खोलता है।

विश्व के सभी जातियों, धर्मों व सम्प्रदायों के लोग यदि संकीर्णता से ऊपर उठकर योग को स्वास्थ्य से जोड़कर देखें तो सम्पूर्ण मानव-जाति का कल्याण होगा। हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. के कुलपति जमीरूद्दीन शाह ने कहा कि योग यहाँ की संस्कृति में समाया हुआ है। उन्होंने बिल्कुल सही कहा कि योग एक राष्ट्रीय खजाना है जिसे धार्मिक रंग देने की जगह शारीरिक एवं मानसिक व्यायाम की प्राचीन कला के रूप में स्वीकारना ही श्रेयस्कर है।

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