कैलाश सत्यार्थी के काम को एक और ‘सलाम’ मिला है। शांति के इस नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम एक और प्रतिष्ठित पुरस्कार जुड़ गया है। पिछले सप्ताह उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित ‘हार्वर्ड ह्यूमैनिटेरियन ऑफ द ईयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान बाल अधिकारों की रक्षा में उनके योगदान को देखते हुए दिया गया है। बता दें कि सत्यार्थी इस पुरस्कार को पाने वाले पहले भारतीय हैं।
‘ह्यूमैनिटेरियन’ पुरस्कार ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया हो और लोगों को अपने काम से प्रेरित किया हो। सत्यार्थी ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में बाल संरक्षण एवं कल्याण संबंधी प्रावधानों को शामिल कराने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। इन प्रावधानों का लक्ष्य बच्चों की दासता, तस्करी, जबरन श्रम और हिंसा को समाप्त करना है।
सत्यार्थी ने पुरस्कार स्वीकार करते हुए कहा- उन लाखों वंचित बच्चों की ओर से विनम्रतापूर्वक यह पुरस्कार स्वीकार करता हूँ जिनके अधिकारों की रक्षा के लिए हम प्रयास कर रहे हैं। आओ, हम सब मिलकर विश्व से बाल दासता को समाप्त करने का प्रण लें। इस अवसर पर उन्होंने एक बड़े ‘सत्य’ को रेखांकित किया कि अमेरिका समेत विकसित देशों में भी सैकड़ों गुलाम बच्चे हैं जिन्हें श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता है, देह व्यापार में धकेला जाता है या घरेलू श्रम के लिए उनकी तस्करी की जाती है। कहने का अर्थ ये है कि आज ये समस्या विश्वव्यापी है। तीसरी दुनिया कहे जाने वाले देश ही नहीं अपने ‘ऐश्वर्य’ पर इतराने वाले देश भी इससे अछूते नहीं। ऐसे में सत्यार्थी के काम की क्या अहमियत है, ये कहने की जरूरत नहीं।
कैलाश सत्यार्थी आज बालश्रम के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक बन चुके हैं। 1980 में उनके द्वारा शुरू किया गया ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ आज किसी परिचय का मोहताज नहीं। अपने इस आन्दोलन की बदौलत वो अब तक अस्सी हजार मासूमों की ज़िन्दगी संवार चुके हैं। कितनी बड़ी बात है कि इस ‘साधक’ ने इतनी बड़ी साधना अकेले अपने दम पे की, बिना किसी शोर-शराबे के। आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी जो पहचान और स्वीकार्यता है उसके मूल में सिर्फ और सिर्फ उनका काम है, कोई सरकार, कोई सिफारिश, सोशल मीडिया पर चलाया गया कोई कैम्पेन या प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई चकाचौंध नहीं। ‘विज्ञापन’ के युग में ये बातें उन्हें भीड़ से एकदम अलग करती हैं। नोबेल के बाद ‘हार्वर्ड ह्यूमैनिटेरियन ऑफ द ईयर’ पुरस्कार इस बात की एक और तस्दीक है।
इस पुरस्कार के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सत्यार्थी से पहले यह पुरस्कार मार्टिन लूथर किंग सीनियर, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिवों कोफी अन्नान, बुतरस बुतरस-घाली और ज़ेवियर पेरिज डी कुईयार, नोबेल पुरस्कार विजेताओं जोस रामोस-होर्ता, बिशप डेसमंड टूटू, जॉन ह्यूम और एली वेसल तथा संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान महासचिव बान की मून जैसी हस्तियों को मिल चुका है।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप