समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी बताते हैं कि सदर अस्पताल मधेपुरा से हाल ही में उपाधीक्षक के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले बच्चों के भगवान डॉ.गुप्ता उन्हें शिष्यवत् सम्मान देते थे। एक दशक से अधिक दिनों से दोनों दौरम शाह मुस्तकीम जैसे सूफी संत की चर्चा किया करते।
एक बार तो दोनों दौरम शाह के वंशजों की तलाश में पैदल ही गौशाला मधेपुरा के सामने नदी पार कर मंजरहट गांव पहुंचकर गुमान शाह की खोज में जुट गए। ज्ञातव्य है कि यह वही सूफी संत दौरम शाह हैं जिनके नाम पर मधेपुरा स्टेशन का नाम दौराम मधेपुरा रखा गया है।
जब कभी भी गुरु-शिष्य की मुलाकात होती तो दोनों समाजसेवा की अवधारणाओं पर विस्तार से चर्चा किया करते। आज डॉ.डीपी गुप्ता नहीं रहे। उनके आकस्मिक निधन पर मधेपुरा के समस्त संवेदनशील जनों के साथ-साथ चिकित्सकों सहित किसान-मजदूर-व्यापारी वर्गों में भी शोक की लहर दौड़ गई है। डॉ.गुप्ता को श्रद्धांजलि देने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
अंत में डॉ.मधेपुरी ने अपने सहपाठी मित्र अरुण प्रभाकर जिन्होंने रतनपुरा कचहरी में अंतिम सांस ली, उन्हें भी याद किया और श्रद्धांजलि दी। प्रभाकर जी गांव में रहकर गरीब बच्चों को पढ़ाया भी करते थे। डॉ.मधेपुरी ने दोनों व्यक्तियों के लिए यही कहा कि गुजरे दुनिया से खुले हाथ, पर कर्म सदा लहराता है……..!!