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एक नहीं पाँच सर्वे का सार, ‘घिर’ गए नीतीश कुमार

Nitish Kumar in sad mood -vidhan sabha election 2015

इस बार के चुनाव में नीतीश कुमार ने अपने पॉलिटिकल करियर का सबसे बड़ा दांव खेला है। बीजेपी से संबंध तोड़ने और मांझी को मुख्यमंत्री बनाने से भी बड़ा दांव है लालू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाना। लालू से अलग होकर समता पार्टी की नींव रखना उनके लिए सबसे बड़ा (और सबसे पॉजिटिव भी) टर्निंग प्वाइंट था। जेपी के घोषित ‘चेले’ होने के कारण कांग्रेस-विरोध भी समझ में आता था। लेकिन अपनी जिन ‘भूलों’ की भरपाई के लिए इन्होंने फिर से लालू (और साथ में कांग्रेस) से संबंध जोड़ा है, वो कहीं और बड़ी भूल ना साबित हो जाए। कम-से-कम अब तक आए पाँच सर्वे, जिनमें देश के चार बड़े चैनल/एजेंसियों के साथ-साथ बीजेपी का आंतरिक सर्वे भी शामिल है, का सार तो यही है।

2010 में जेडीयू ने 141 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 115 सीटों पर उसे जीत मिली थी। तब बीजेपी के साथ गठबंधन था नीतीश का। दूसरी ओर लालू के राजद का गठबंधन रामविलास पासवान की लोजपा से था। तब लालू ने 168 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और केवल 22 पर उन्हें जीत मिली थी। कांग्रेस 2010 में एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसने सारी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे जीत मिली थी मात्र 4 सीटों पर। अब इस बार का समीकरण देखिए। इस बार ये तीनों एक साथ हैं और इनका सीट शेयर इस तरह है – जेडीयू 101 + राजद 101 + कांग्रेस 41 = 243 सीटें। यानि पिछले चुनाव में 115 सीटें जीतने वाली जेडीयू इस बार लड़ ही रही है 100 सीटों पर। कहने का मतलब ये है कि अगर 100 की 100 सीटें भी जीत जाय जेडीयू तब भी 15 सीटों का तो सीधा नुकसान हो ही रहा है नीतीश को। पर नीतीश ने इतनी ही ‘कुर्बानी’ दी होती तो एक बात थी। महागठबंधन के लिए उन्होंने अपनी 25 जीती हुई सीटें राजद को और 10 जीती हुई सीटें कांग्रेस को दी हैं। यानि 35 सीटिंग विधायकों की बलि नीतीश को चढ़ानी पड़ी और बदले में मिली राजद की केवल एक सीट। महागठबंधन को नीतीश भले ही वक्त की ‘जरूरत’ और उनकी पार्टी ‘मास्टर स्ट्रोक’ कह ले लेकिन वास्तव में ये ‘कमजोर’ और ‘हताश’ हो चुके नीतीश का ‘अक्श’ मात्र है।

अब एक नज़र अब तक के सर्वे पर डालें। सबसे पहले 9 सितंबर को इंडिया टीवी/सी वोटर्स का सर्वे आया। इस सर्वे के मुताबिक एनडीए को 94-110 सीटें, महागठबंधन को 116-132 सीटें और अन्य को 13-21 सीटें मिलनी चाहिएं। अगले ही दिन यानि 10 सितंबर को आए इंडिया टीवी/सिसरो के सर्वे में एनडीए को 120-130 सीटें, महागठबंधन को 102-103 सीटें और अन्य को 10-14 सीटें दी गई थीं। इसके बाद 15 सितंबर को एबीपी न्यूज/नीलसन का सर्वे सामने आया जिसमें एनडीए को 118, महागठबंधन को 122 और अन्य को 3 सीटें मिलने का अनुमान है। यहाँ तक मुकाबला कांटे का दिखता है। पहले सर्वे में महागठबंधन को बढ़त मिली थी, दूसरे में एनडीए को और तीसरे में दोनों लगभग बराबरी पर थे। कहानी में मोड़ इसके बाद हुए सर्वेक्षणों से आया।

18 सितंबर को आए जी न्यूज के सर्वे के मुताबिक 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए को 140 सीटें मिलने जा रही हैं जबकि महागठबंधन महज 70 सीटों पर सिमट सकता है। शेष 33 सीटों पर कड़ा मुकाबला है। इस सर्वे के मुताबिक 50.8 फीसदी मतदाता भगवा रंग में रंगे हैं और नीतीश-लालू के साथ 42.5 प्रतिशत मतदाता ही हैं।

बीजेपी के आंतरिक सर्वे के अनुसार भी वो ‘आसानी’ से बहुमत हासिल करती दिख रही है। बीजेपी के अपने आकलन के मुताबिक एनडीए को 160 से 170 सीटें मिलनी चाहिएं। इस सर्वे के अनुसार महागठबंधन महज 70 सीटों पर सिमट रहा है और इन 70 सीटों में भी ज्यादातर सीटें लालू की होने जा रही हैं। इसका अर्थ ये है कि नीतीश कुमार हर तरह से ‘घिर’ गए हैं। यहाँ यह बताना जरूरी है कि बीजेपी ने इससे पहले भी आंतरिक सर्वे कराए थे जिनमें एनडीए पिछड़ा हुआ था। बीजेपी के अपने ‘ग्राफ’ के मुताबिक भी ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आता गया है, त्यों-त्यों बीजेपी बढ़त बनाने में सफल हुई है।

देखा जाय तो बीजेपी को बढ़त मिलने के कारण भी स्पष्ट हैं। मुलायम सिंह ने महागठबंधन से नाता तोड़कर और अब ‘थर्ड फ्रंट’ को आकार देकर बीजेपी को स्पष्ट तौर पर फायदा पहुँचाया है। इस थर्ड फ्रंट में पप्पू यादव के शामिल होने तथा तारिक अनवर को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में सामने लाने से भी महागठबंधन को नुकसान होगा। मांझी महादलितों के वोट में सेंध लगा ही चुके थे और अब ओवैसी ने सीमांचल में चहलकदमी कर महागठबंधन की ही चिन्ता बढ़ाई है। वामदलों को भी थोड़ा-बहुत जो मिलेगा, महागठबंधन के हिस्से का ही। इसीलिए सारे सर्वे को किनारे भी कर दें तो भी एनडीए बेहतर स्थिति में तो है ही।

जिस तरह रंगों से रंग निकलते चले जाते हैं और उनकी गिनती सम्भव नहीं, वैसे ही राजनीति में एक समीकरण से कितने समीकरण जुड़े होते हैं और उन समीकरणों से कितने नए समीकरण बन जाएंगे इसका आकलन पूरी तरह सम्भव नहीं। लेकिन इन पंक्तियों के लिखने तक बिहार में मुकाबला कांटे का  है और इस कांटे के मुकाबले में बढ़त फिलहाल एनडीए को है यानि उसकी राह के ‘कांटे’ दूर होते दिख रहे हैं। यहाँ तक कि नीतीश के साथी लालू और कांग्रेस के हिस्से में भी ‘कांटे’ अपेक्षाकृत कम हैं लेकिन नीतीश हर तरह से ‘कांटों’ में घिरे दिख रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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